Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 221
________________ ( २०२ ) अर्थात् - अादि पुरुष अापको देखकर लोग भी श्रापका ही अनुकरण करेंगे । प्रजाजन बड़ों के दिवाए मार्ग पर ही चला करते हैं । अतएव श्राप पत्नी के परिणयन की प्रार्थना को स्वीकार करें । ऐसा करने से सन्तानोत्पत्ति की शृङ्खला निरन्तर चलती रहेगी और उसके चलने से धर्म-सतति की वृद्धि होगी। ___ वर्ण व्यवस्था के प्रकरण में यह बताया ब चुका है कि मूलतः श्रमण संस्कृति में वर्ण व्यवस्था कर्म से ही रही है किन्तु वैदिक संस्कृति के साथ निरन्तर चिरकालीन सम्पर्क से यह उसके प्रभाव से मुक्त नहीं रह सकी। नीचे दिया उदाहरण इस सत्य की पुष्टि करता है । वैदिक. संस्कृति के अनुसार: शूद्रव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृते । ते च स्वा चैव राज्ञश्च ताश्च स्वा चाग्रजन्मनः॥ मनुस्मृति ३।१३ अर्थात्-शूद्रा ही शूद्र की स्त्री हो सकती है दूसरी नहीं। वैश्य को वैश्य वर्ण वाली और और शूद्रा; क्षत्रिय को क्षत्रिया, वैश्या तथा शूदा; ब्राह्मणों को चारों वर्णों की कन्याओं से विवाह करने का अधिकार है। ठीक ऐसा ही मन्तव्य जैन पुराणों में भी मिलता है। जैसे: - शूद्रा शूद्रण वोढव्या नान्या स्वां तां च नमः। वहेत्स्वा ते च राजन्यः म्वां द्विजम्मा कचिच्चताः ॥ ठीक ऊपर जैसा ही अर्थ इसका भी है। फर्ममूलक श्रमण-संस्कृति पर यह बन्ममूलक संस्कृति का ही असर है और यह असर बहुत श्रादि पुराण । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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