Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

View full book text
Previous | Next

Page 213
________________ ( १६४ ) सदा ध्यान में रखते हुए उनमें फंसते नहीं और उनका त्याग करना है। श्रेष्ठ समझते हैं। कुत्ते को जब सूखी हड्डी का टुकड़ा मिल जाता है वह उसको बड़े चाव से खूब चबाता है और उस हड्डी के तीक्ष्ण भाग के चुभने से उसके अपने मुंह से ही खून निकलने लगता है। वह कत्ता यह समझकर कि रक्त हड्डी से निकल रहा है उसे और अधिक चबाता ही जाता है। ठीक यह! दशा शास्त्रकारों ने विषय लंपट पुरुषों की भी बताई है। विषयों के भोग से नाश तो उनका अपना हा होता है किन्तु वे समझते हैं कि रस विषयों से मिल रहा है। विषयां का ध्यान करने से किस प्रकार मनुष्य उत्तरोत्तर पतन की ओर बढ़ता है इसका बड़ा ही सुन्दर चित्रण गीता में खींचा है: ध्यायती विषयान् पुसः संगस्तेपूपजायते । संगात्संजायते कामः कामाकोधोऽभिजायते ।। क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।। (गीता २ । ६२-६३) अर्थात्-विषयों का निस्तर ध्यान करने से मनुष्य का उनमें लगाव होजाता है। लगाव अर्थात् संग से काम की उत्पत्ति होती है । काम से क्रोध पैदा होता है, क्रोध से भूल होती है, भूल से स्मृति बिगड़ती है, स्मृति के बिगड़ने से बुद्धि का नाश और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का सर्वनाश होजाता है । गीता के इन दो श्लोक रत्नों में मनोविज्ञान का कितना सुन्दर और सारपूर्ण चित्र खोंचा है इसकी प्रशंसा किए बनती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226