Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ ( १६३) अधिकार नहीं करना चाहिये । सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये इस तीसरे महाव्रत का पालन भी सुसंस्कृत संसार के लिये परमावश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे के अधिकारों का आदर करे और उनको अपने अधिकारों के समान समझ बलपूर्वक डाका डालकर या छुप कर चोरी करके यदे कोई व्यक्ति दूसरे के माल को छीने सो इससे सामाजिक व्यवस्था भंग होती है और आत्मा का पतन होता है। अाजकल भी जो सबल राष्ट्र निर्वलों पर अाक्रमण करके उनको उनकी जन्मसिद्ध स्वतन्त्रता से वञ्चित करते हैं वे भी डाकुओं की ही कोटि में आते हैं। सबल निर्बल के अधिकारों को छीते यह अनधिकार चेष्टा है। अतः जीवन के आदर्श मार्ग की और बढ़ने के लिये इसका त्याग ही कल्याणकारी है । अस्तेय सामाजिक जीवन की सुव्यवस्था के लिषे मूल शिक्षा है । ब्रह्मचर्य । मनुष्य में अनेक प्रकार की वासनात्रों और लालसाओं का होना स्वाभाविक है । विवेक द्वारा उन वासनाओं और लालसाओं पर नियन्त्रण रखना ही ब्रह्मचर्य है। जो व्यक्ति ऐसा नियन्त्रण नहीं रखता है वह विषयों के गड्ढे में ऐसा गिरता है कि फिर उसका उत्थान होना बड़ा कठिन होता है। विषयों का रसास्वादन बाहर से मधुर है किन्सु परिणाम में दुःखरूप है। इनका अधिक से अधिक उपभोग करने पर भी क्षुधा शान्त नहीं होती किन्तु उत्तरोत्तर बढ़ती है। प्राग में जिस प्रकार घृत डालने से वह अधिकाधिक प्रचण्ड ही होती है, ठीक इसी प्रकार विषयों के उपभोग से उत्तरोत्तर तृष्णा बढ़ती जाती है घटती नहीं। अतएव विवेकी मनुष्य विषयों के दुःखावह परिणाम को . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226