Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 208
________________ ( १८६ ) त्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करते आए हैं । प्रकृतिवाद या भैतिकवाद की सदा ही श्रमण धर्म के महर्षियों ने उपेक्षा की है। भौतिकवाद को ही सर्वे सर्वा मानने वाला अाज का मानब भले ही उन महर्षियों को उपेक्षा की दृष्टि से देखे, या उनकी बुद्धि को प्रतिवाद के क्षेत्र में अविकसित समझे किन्तु तात्त्विक दृष्टि से विचार करने पर उनकी ही दृष्टि विशाल जचती है। यह ठीक हैं कि मानव जाति ने बहुत हद तक प्रकृति पर प्रशसनीय विजय प्राप्त करली है। मानव वायुयानों पर अाकाश में उड़ने लग गया है और महीनों की यात्रा घंटों में ही सुलभ होगई है। रेडियो यन्त्र के आविष्कार से वह घर बैठे ही सारे संसार के समाचार सुन सकता है। पनडुबियों में बैठ कर वह समुद्र के स्तल पर जासकता है और युद्ध-पोतों को तोड़ देता है। हवाईनहाजों द्वारा एटम बम्ब बरसा कर वह कुछ क्षणों में प्रलय मचा सकता है किन्तु इन सब और अन्य अनेक प्रकार के भौतिक अविष्कारों से वह वास्तव में ऊँचा नहीं उठ पाया है। भौतिकवाद की इस उन्नति की ओर बढ़ने के परिणामस्वरूप ही विश्व को गत दो महायुद्धों की भीषणता का सामना करना पड़ा। और अब तीसरे महायुद्ध के बादल फिर मँडराते नज़र आरहे हैं। विश्व के किसी कोने में भी शान्ति नहीं है। सर्वत्र अशान्ति, भय, कलह और अत्याचार बढ़ रहे हैं । यह सब होते हुए भी भौतिकवाद का दास अाज का मानव बड़ी शान से यह कहता है कि अाज का युग विज्ञान का : युग है, विकास का युग है और प्रगति का युग है । आज के युग में जो देश अधिक से अधिक संख्या में घातक शस्त्र अस्त्र तैयार कर सके और शक्ति के बल से निर्बल देश को हड़प कर सके उसको बहुत उन्नत और सभ्य देश समझा जाता है। यह बात कहां तक सत्य है यह पाठक स्वयं विचार सकते हैं। अस्तु श्रमण संस्कृति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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