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उन्हें प्रोत्साहन न देकर प्रश्नों की निरर्थकताब ताई। इस प्रकार के विषयों पर वितण्डावाद करने वालो का प्रकरण 'सब्बास सुत्त' में अाता है जो इस प्रकार है:
"वह मूर्ख है जो इस प्रकार के विनार करता है कि मैं भूतकाल में था या नहीं। भूतकाल में मैं क्या था और भविष्यत् काल में मैं रहूंगा या नहीं । भविष्यत् काल में मेरा क्या स्वरूप होगा
और वर्तमान काल में भी अपने दिल में ऐसे विचार करता है कि मेरा वास्तव में अस्तित्त्व है भी या नहीं ? मैं क्या वस्तु हूं? यदि मैं कुछ वस्तु हूं तो कहां से भागया और मृत्यु के बाद कहां चला जाऊँगा"
महात्मा बुद्ध अपने उपदेशों में दूसरों की भलाई और सदाचार पर जोर देते थे। ईश्वर की सत्ता के विषय में उनके कुछ विचार 'तेविन मुत्त' में भी मिलते हैं । इस सूत्र के प्रारम्भ में दो ब्राह्मण युवक बसिड और भारद्वाज वादविवाद करते हैं। उनके विवाद का विषय है कि ब्रह्म की प्राप्ति के लिये सच्चा मार्य कौनसा है! वे दोनों अपनी शंका के निवारणार्थ महात्मा बुद्ध की सेवा में जाते हैं। उनके संशयं को महात्मा बुद्ध इस प्रकार दूर करते हैं:
"हे. वसिष्ठ ! इस प्रकार के ब्राह्मण को तीनों वेदों को पढ़ कर भी उन गुणों का तिरस्कार करते हैं जिनसे मनुष्य बामण बनता है. और वे पेसा पाठ करते हैं "हम इन्द्र को पुकारते हैं, साम को पुकारते हैं, वरुण को पुकारते हैं, ईशान को पुकारते हैं, प्रजापति को पुकारते हैं, ब्रह्म को पुकारते हैं, महिद्धि को पुकारते हैं, यम को
* धर्म का आदि स्रोत पृ० ४५ ।
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