Book Title: Shraman Sanskriti ki Ruprekha
Author(s): Purushottam Chandra Jain
Publisher: P C Jain

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Page 197
________________ ( १७८ ) सम्बन्ध रखने वानी क्रियात्मक खास २ यही बातें है। ये व्यावहारिक हैं और मनुष्य को अज्ञानता के अन्धकार से प्रकाश में लानी है । यही सत्कर्म की खास भित्ति थी जिस पर महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म को स्थापित किया था। बौद्ध परम्परा में क्षणिकवाद । महात्मा बुद्ध ने 'अत्तवाद' अर्थात्-अात्मवाद की निन्दा की है । सांसारिक सब पदार्थों को क्षणिक माना है। हर एक वस्तु का क्षण क्षण में नाश होता रहता है। उदाहरणार्थ छापेखाने से निकला हुई पुस्तक मौ या अनुमान से सबासौ वर्षों के पक्षात् बीर्ण होजाती है और तक हाथ से छुते ही उसके पत्र भुरने लगते हैं। म्या यह जीर्ण करने वाली शक्ति एक ही दिन में पैदा होजाती है ? नहीं, उस पुस्तक में क्षण क्षण में नाशरूर परिवर्तन होता रहता है और अन्त में उस पुस्तक के परमाणु अपनी जननी वसुन्धरा में हो जा मिलते हैं। इस तरह से बौद्ध धर्म की मान्यता के अनुसार संसार के सत्र सत् पदार्थ क्षणिकवाद में रखे जाते हैं। यहां तक कि श्रात्मा का भी नाश माना है। अब झर यह प्रश्न उठ जाता है कि अगर प्रात्मा का भी नाश होजाता है तो मृत्यु के बाद 'निर्वाण' या मुक्ति फिर किस तत्व की होती है ? ईश्वर को तो वैसे ही बौद्ध धर्म में महत्त्व नहीं दिया गया और श्रात्मा को नाशवान् मान लिया फिर ऐसा कौनसा तत्त्व अवशिष्ट रहा जिसकी मुन होने की सम्भावना की जासकती है ? इसका उत्तर यही है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस तत्त्व को प्रात्मा के नाम से कहा है वह वस्तु है जो संस्कार और कमों के कारण एक दूसरे में भिन्नता कर देती है और जो 'निर्वाण' की प्राप्ति होते ही नष्ट होजाती है। इस आत्मा का नष्ट होने वाला सम्बन्ध उस वस्तु मे है जो हर एक चराचर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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