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हाथ फेरा। तीसरे ने उसके पेट पर हाथ चलाया। चौथे ने हाथी के कान को पकड़ा। पांचवें का हाथ हाथी के दान्त पर जा पड़ा और छठे ने उसकी सूड पर जा हाथ फेरा । इस प्रकार वे छः अन्धे पुरुष हाथी को देखकर अपने घर लौट आए : सायंकाल जब वे सब इकट्ठ बैटे तो हाथी का वर्ण। करने लगे। जिसने केवल पूछ को छुआ था उसने हाथी को रस्से के समान बताया । जिसने टांग को पकड़ा था उसने हाथी को खम्भे के समान बताया। जिसने हाथ। के पेट पर हाथ फेरा था उसने उसे एक बड़े घड़े के समान बताया । जिमने केवन कान को छुअा थ. उसने हाथो को बड़े सूर के समान वर्णन किया । जिस ने केव न हाथी का दांत पकड़ा था उस ने उसे सींग के ममान बताया। जिस ने हाथी के सूड का स्पर्श किया था उस ने हाथी को मूमल जैसा वर्णन किया। इस प्रकार सब ने हाथी का भिन्न २ स्वरूप वर्णन किया । और अने समझे म्वरूा को सत्य मान कर वे अापस में झगड़ने लगे । उन में से प्रत्येक अन्धा जोरदार शब्दों में अपने देखे हस्ति के स्वरूप की हो पुष्टि करता था। इतने में अांखों वाला एक पुरुष वहाँ से गुज़रा। वह उन के झगड़े के मूल कारण को समझ गया और उस ने उन से कहा कि तुम व्यर्थ में ही आपस में झगड़ रहे हो । अनेकान्त के सिद्धान्त के अनुसार वास्तव में तुम सभी सच्चे हो । तुम में से किसी ने भी संपूर्ण हाथी को नहीं देखा किन्तु उस के भिन्न २ अंगों को देखा है और तुम उन भिन्न अंगों को ही हाथी समझ बैठे हो । तुम्हारी हर एक की बात उस अंग की अपेक्षा जो उस ने देखा है सच्ची है । पूछ की अपेक्षा हाथी रस्से के समान, टांग की अपेक्षा खंभे के समान, पेट की अपेक्षा घड़े के समान, कान की अपेक्षा सूप के समान, दांत की अपेक्षा सींग के समान, और सूड की अपेक्षा मूसल के समान कहला सकता है किन्तु एकान्त दृष्टि से हाथी.को रस्से या खंभे के समान समझना अज्ञानता है।'
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