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संसार में हमें कोई उदाहरण ऐसा नहीं मिलता वहां श्रभाव से किसी वस्तु की उत्पत्ति होती हो। अंत: यह नहीं माना जासकता कि ईश्वर ने संसार को प्रभाव से पैदा कियं ।" :
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जो लोग यह कहते हैं कि ईश्वर ने अपने में से ही विश्व की रचना की उनकी मान्यता भी ठीक नहीं जचती । ईश्वर सर्वश: है और । पूर्ण है इस सत्य को सब स्वीकार करते हैं । उस सर्वज्ञ और पूर्ण
ईश्वर से उत्पन्न हुश्रा २. यह संसार अल्पज्ञ और अपूर्ण कैसे हो सकता है ! यदि ऐसा. मान लिया जाय.. तो ईश्वर में भी अल्पज्ञा और अपूर्णता के दोष अाजाते हैं। फिर संसार का तो बहुत बड़ा भाग बड़ भी है; सर्वश चेतन भगवान् . से. जड़ की उत्पत्ति किस प्रकार हो सकती है । इसके अतिरिक्त सृष्टि के आदि में बब ईश्वर ने सब श्रात्माओं को अपने में से निकाला तो उस समय सब आत्माएं ईश्वर में मिली होने के कारण सब प्रकार के कर्मबन्धनों से मुक्त थीं और इस कारण शुद्ध थीं। फिर उन सव. आत्माओं को किस दोष या गुण के कारण भिन २ ऊँच वा नीच योनियों में बाने के लिये बाध्य किया गया। इन प्रश्नों का कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिलता अतः यह सिद्ध है कि ईश्वर ने संसार की रचना अपने में से नहीं की।
इसके अतिरिक्त ईश्वर पूर्ण है और वहां पूर्णता होती है. वहां किसी वस्तु की भी कमी नहीं हो सकती। यह तो पूर्णता शब्द से ही स्पष्ट है । इच्छा वहां पैदा होती है वहां किसी वस्तु की कमी हो। ईश्वर में जब संसार को रचा तो उसने रचने की इच्छा अवश्य की होगी क्योंकि बिना इच्छा के संसार की रचना हो नहीं सकती। बब इच्छा होगई तो ईश्वर में अपूर्णता पाजाती है। अतः यदि ईश्वर को संसार का रचयिता मानें तो बह पूर्ण नहीं कहला सकेगा।
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