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पर रक्खी थी? क्या धर्म का आविष्कार मानव जाति के संहार के लिये किया गया ? क्या धर्म का प्रधान लक्ष्य संमार में फूट डालकर परस्पर कलह और अत्याचार करवाना ही था? इन सब प्रश्रों का उत्तर भी निषेधरूप में हो मिनता है। इन प्रश्नों का उत्तर जैनधर्म का अनेकान्तवाद देता है। अनेकान्तवाद का कहना है कि धर्म का उद्देश्य बहुत ऊंचा है धर्म उतम शिक्षा देता है और संसार को उन्नति पथ की ओर ले जाता है। धर्म फूट नहीं किन्तु सगठन और शान्ति के संदेश का प्रचार करता है। कि तु समझने वानों ने उस का ठीक स्वरूप नहीं समझा। उन्हों ने उसे गलत समझा और उस गलत समझने का परिणाम यह हुआ कि संसार में धर्म के नाम पर अनेक उत्गत और अत्याचार हुए धर्म का नाम बदनाम हुअा। अतएव संसार में जो अत्याचार हुए वे धर्म को समझने वालों की अज्ञानता के कारण हुए, धर्म का इस में कोई दोष नहीं था। धर्म की नींव तो सत्य पर ही रकवी गई थी. और उस का आविष्कार मानव जाति के कल्याण और सुखशान्ति के लिये ही किया गया। धर्म का प्रधान लक्ष्य संसार से कलह और वैमनस्य मिटाकर संगठन का ही प्रचार करना रहा है किन्तु समझने वालों ने धर्म के पूर्णस्वरूप को न समझ कर उम के एकान्त स्वरूप को समझा और उसी के कारण भिन्न धर्मों में कलह का बीजारोपण हुआ। उदाहरण के लिये जैन साहित्य में एक कहानी बातो है जो काफी प्रसिद्ध है।
___किसी देहात में दो अन्धे पुरुष रहते थे। उ ह ने कभी हाथी नहीं देखा था। एक दिन अकस्म त् कोई धनी पुरुष हाथी पर चढ़कर उस देहात में आया। यह समाचार उन सब अन्धों को मिला उन्हें हायो देखने की वी उत्कण्ठा हुई और वे उसे देखने को गए । एक
अन्धे ने जाकर हाथी को पूछ को पकड़ा । दूसरे ने हाथी की टांगों पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com