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में पाते है । वैदिकधर्मावलम्बियों में आमिषाहार करने वालों की संख्या भी बढ़ी है और आमिषाहार का घोर विरोध करने वाले शाकाहारियों की भी कम नहीं | कुछ भी हो यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि वैदिकधर्म में भी अहिंसा परमो धर्मः इस सिद्धान्त का सम्मान हुआ है और वैदिक धर्मवलम्बी बहुत बड़ी संख्या में इसका पालन करते रहे हैं ।
॥ जैनधर्म में अहिंसातत्व की साधना ॥
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! वैदिक धर्म में जब हिंसा प्रवृत्ति व्यापक रूप में फैल गई थी तो हिंसा का विरोध करने वाले श्रामिषाहारियों के लिये क्षोभ का कारण बने किन्तु इस के विपरीत जैन धर्म के परम्परागत शास्त्रीय ज्ञान में जब कुछ पाश्चात्य विद्वानों मे मांसाहार का विधान बताया तो श्रहिंसा धर्म के पुजारी जैनसमाज में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ। । याकोत्री श्रादि जर्मन विद्वानों ने आचारांग के कुछ सूत्रों का मांसपरक अर्थ किया है जिससे यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जैवी लोग भी प्राचीन समय में मांसाहार कर सकते थे । इस से जैन समाज में बड़ा क्षोभ हुना और इसका विरोध वैदिक धर्म में श्रार्यसमाज के समान जैनधर्म के स्थानक वासी सम्प्रदाय ने किया । स्थानकवासी सम्प्रदाय के श्राचायों और विद्वानों ने सूत्रों में आए मांसपरक शब्दों का अर्थ वनस्थतिपरक किया और हिंसात्मक अर्थका खण्डन किया। जैनधर्म की दिगम्बर सम्प्रदाय के पूज्यपादादि श्राचार्यों ने तो सूत्रों का मांसमत्स्यपरक ही अर्थ मानकर उन सूत्रों को मानने वालों की निन्दा की और उपदेश दिया कि ऐसे सूत्रों को नहीं मानना चाहिये। सूत्रों के न मानने के लिये यह केवल बहाना मात्र है । वास्तव में दिगम्बर लोग सूत्रों को इस कारण नहीं मानते कि उन में यत्र तत्र वस्त्र का विधान है जिस से श्वेत. ग्वर मतकी
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