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(२) ३ प्रत्याख्यान करके पाप कर्मोको रोका नहीं है । ४ पाप वैपार रूपक्रिया करके सहीत । ५ संबर करके आत्माकों संबरी नहीं है ।
६ एकांत दंड-मन वचन कायाके योगोंसे दंडा रहा है। . ७ एकान्त मोह कर्मकि धौर निद्रामें सुता हूवा है।
ऐसा बाल अज्ञानी जीव सदैव पाप कर्मोकों बान्धते है ?
(उत्तर) हा गौतम उक्त जीव सदैव पाप कर्मों का बन्ध करता है । आत्माके साथ कर्म दल तीव्र रससे, कर्म स्थितिकों बढाते हुवे भवान्तरमें दुःखोंका अनुभव करेगा।
(२) हे भगवान । इस घौर संसारके अंदर जो कीव असंयति, अवती, प्रत्याख्यान कर आते हूवे पाप कर्मों को रोका नहीं है, पाप कर्म सहित क्रिया, आतमा,. संवर रहित असंबरीत, एकान्त दडी (त्री दंडसे आत्माकों दंडावे ), एकान्त बाल अज्ञानी, एकान्त मोह निंद्रामें सुत्ता हुवा जीव मोहनिय कर्मका बन्ध करे ?
(उ) हा गौतम उक्त नीव मोहनिय कर्मका धन बन्ध करते है । क्योंकि प्रथम गुणस्थान पर जीव चिकण रस अर्थात् छठानिया रसके साथ मोहनिय कर्मका बन्धन करता है।
(३) हे दयाल । समुचंच जीव मोहनिय कर्म वेदता हूवा क्या मोहनिय कर्म बन्धे या वेदनिय कर्म बान्धे ?
(उ) हे इन्दभुति-मोहनिय कर्म वेदता हुवा जीव मोहनिय कम बान्धे और वेदनिय कर्मभी बान्धे । परन्तु चरम मोहनिय कर्म वेदता हुवा जीव वेदनीय कर्म बन्धे परन्तु मोहनिय