Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) अपार ॥ ए गिरिवर दरिशण जेह, यात्रा पण कहिये तेह ॥४२॥ सूरज कुंम नदी शेव्रुजी, तीरथ जलें नाह्या रंजी॥रायण तलें झपन जिणंद, पहेला प गला पूजे नरिंद ॥ ४३ ॥ वली २५ वचन मन आ णी, श्रीषनगें तीरथ जाणी॥ तव चकी जरत न रेश, वार्दिकने दीधो आदेश ॥ १४ ॥ तेणे शत्रुजा ऊपर चंग, सोवन प्रासाद नतंग॥ नीपायो अति मनो हार, एक कोश उंचो चनबार ॥ ४५ ॥ गानदोढ वि स्तारें कहिये, सहस धनुष पहोल पणे लहियें। एकेके बारणे जोइ, मंझप एकवीशज होइ ॥ ४६॥ इम चिढं दिसें चोरासी, मंझप रचीया सुप्रकाशी ॥ तिहां रयणमय तोरण माल, दोसे अती जाक ज माल ॥४७॥ विचे चिढं दिसें मूलगंजारे, थापा जिनप्रतिमा चारे ॥ मणिमय मूरत सुखकंद, थापी श्रीयादिजिणंद ॥४॥ गणधर वर पुमरीक केरी,थापी बिहुँ पासें मूरति जलेरी ॥यादि जिन मूरति काउसगि या, नमि विनमी बे पासें उविया ॥४॥ मणि सोवन रूप प्रकार, रची समोवसरण सुविचार॥चिहुँदिसें चन धर्म कहंत, थापी मूरति श्रीनगवंत ॥५॥ नरतेसर जोडी हाथ,मूरत बागल जगनाथ ॥रायण तो जि For Private and Personal Use Only

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