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( ६ )
कोडी मुनि निःशव्य रे || श० ॥ ७ ॥ पांचे पाव इ णें गिरि सीधा, नव नारद ऋषिराय रे || संब प्रद्युम्न गया तहां मुक्त, या कर्म खपाय रे ॥ श० ॥ ८ ॥ नेम विना वीश तीर्थकर, समोसा गिरि शुंग रे ॥ अजित शांति तीर्थकर बेहु, रह्या चोमासुं रंग रे ॥ श ० ॥ ॥ ए ॥ सहस्स साधु परिवार संघातें, थावच्चासुत सा धरे ॥ पांचों साधुगुं शैलंग मुनिवर, शत्रुजे शिवसु ख लाभ रे ॥ श० ॥ १० ॥ असंख्याता मुनि शत्रु जे सीधा, जरतेसरने पाट रे ॥ राम घने जरतादि क सीधा, मुक्ति ती ए वाट रे ॥ श० ॥ ११ ॥ जाली मयाजीने नवयालो, प्रमुख साबुनी कोडी रे ॥ साधु अनंता शत्रुजे सीधा, प्रणमुं वे कर जोडी रे ॥ श ० ॥ १२॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ चोपाइनी देशी ॥
॥ शत्रुंजना करूं शोज उद्धार, ते सुएजो सदु को सुविचार || सुतां यानंद अंग न माय, जन्म जन्मनां पातक जाय || १ || कूपनदेव अयोध्या पु रो. समोसा सामी हित करो || जरत गयो वंदनने काज, ए उपदेश दियो (जनराज ॥ २ ॥ जगमां म्होटो अरिहंत देव, चोशन इंड् करे जसु सेव ॥ ते हथी मोहोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमे जिनवर
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