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00000तानचा-4,47249,
॥ श्री॥ शत्रुजय तीर्थमाला, रास, नधारा
दिक संग्रहग्रंथ.
Tamanna పదయం
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आ पुस्तक समस्त जैन भाइओने कार्तिक तथा चैत्री पूर्णिमादिक दिवसोमां तथा श्री शत्रुजय यात्रा जतां वरखत अवश्य पासें राखवा
योग्य जाणीने. यथा मति संशोधन पूर्वक
श्री मोहमयीमां
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"निर्णयसागर " प्रेसमध्ये छपावी प्रसिद्ध करचुं छे.
संवत् १९४१ ना पौष शुद्ध ११
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एतत्पुस्तकगतग्रंथानुक्रमणिका ॥ ग्रंथनां नाम.
अंक.
टष्ट.
५६
१ श्री सिद्धाचलजीनो उद्धार नयसुंदरजी कृत. १ २ श्री सि. ६ गिरिस्तुतिना दोहा. १०० १ ७ ३ यादिनाथ विनंतीरूप शत्रुंजयनुंमोहोस्त० ३६ ४ श्री शत्रुंजय तीर्थमाला मृतविजयजी कृत ३० ५ श्री वीरविजयजीविरचित शत्रुंजयनां एकवी श खमासमण संबंधी उगणचालीश दोहा. ५२ ६ विमल केवल ज्ञान कमला चैत्यवंदन. ७ सिद्धा चल शिखरें चढी, चैत्यवंदन. . ५७ ८ वीरजी याया रे विमलाचल के मेदान, स्तवन. ५८ ए शत्रुंजय मंमल कूपनजिणंद दयाल पोय. ५० १० श्री शत्रुंजय गिरि तीरथ सार, थोय... ६० ११ श्री शत्रुंजयनां एकवीरा नाम हेतु सहित ६२ १२ श्री शत्रुंजयनो रास, समय सुंदरजी कृत ६५ १३ शत्रुजो जोवानुं हो जोर बे जीराज, स्तवन, ७७ १४ शाश्वतजिन चैत्योना स्थानको .
..
49
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१५ चोवीश जिनना पांच कल्याणिकना दिवस. ८५ १६ दादा मोरा सासरीयें वलाव्य. १७ नानिराया वसे वारु उद्योजि
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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
॥अथ ॥ ॥ श्री नयसुंदरजी कृत सिहाचलजीनो
नहार प्रारंजः॥
॥ विमलगिरिवर विमलगिरिवर,मंझणो जिनराय॥ श्री रिसहेसर पायनमि, धरिय ध्यान सारदा देविय॥ श्री सिमाचल गायसुंए, हीये नाव निर्मल धरेविय ॥ श्री शत्रुजगिरि तीरथ वटुं, सिह अनंति कोडी॥ जिहां मुनिवर मुक्तं गया, ते वंड बे कर जोडी ॥१॥ ॥ ढाल पहेली ॥ श्रादनराय पुहतलाए ॥ ए देशी॥
॥बे कर जोडीने जिन पायलागुं, सरसती पासे वचन रस मागु ॥ श्री शत्रुजय गिरि तीरथ सार, यू एवा कलट थयो रे अपार ॥ ॥ तीरथ नही कोई शत्रुजय तोलें, अनंत तीर्थकर इणी परे बोले ॥ गु रु मुख शास्त्रनो लहिय विचार, वरणतुं शत्रुजा ती रथ नझार ॥३॥ सुरवर माहे वडो जेम इंश, ग्रह गण माहे वडो जेम चं ॥ मंत्र माहे जेम श्रीनव कार, जलदायक जेम जग जलधार ॥ ४ ॥ धर्म
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(२) मांहे दया धर्म वखाणु, व्रत मांहे जेम ब्रह्मवत जाणु ॥ पर्वत मांहे वडो मेरु होइ, तिम शत्रुजय सम तीरथ न कोई ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥ बीजी ॥ त्रय पढ्योपम ए॥ ए देशी॥
॥ आगेए यादिजिनेसर, नानी नरिंद मलार ॥ शत्रुजय शिखर समोसस्या, पूरव नवाणु ए वार॥६॥ केवल झान दिवाकर, स्वामी श्री रूपन जिणंद ॥ साथै चोरासी गणधर, सहस्स चोरासी मुणिंद ॥७॥ बदु परिवार परवस्था, श्री शत्रुजय एकवार ॥ रुपन जिणंद समोसस्या, महिमा न लानुं ए पार ॥ ७ ॥ सु र नर कोडी मल्या तिहां, धर्म देशना जिन नाषे ॥ पुं मरिक गणधर घागले,शत्रुजय महिमा प्रकाशे ॥॥ सांजलो पुमरिक गणधर, काल अनादि अनंत ॥ ए तीरथ ने शाश्वतुं, यागें असंख्य अरिहंत ॥ १० ॥ गणधर मुनिवर केवल, पाम्या अनंती ए कोडि, मुक्ते गया इणे तीरथ वली, जासे कर्म विबोडि ॥ ११ ॥ क्रूर जिके जग जीवडा, तिर्यंच पंखी कहीजें ॥ ए तीरथ सेव्या थकी, ते सीजे नव त्रीजे ॥ १२ ॥ दी तो उरगती वारे ए, सारे वंडित काज ॥ सेव्यो ए शत्रु जय गिरिवर, थापे अविचल राज ॥ १३ ॥
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॥ ढाल त्रीजी। राग धनासिरि॥ सहीय समाणी
_ आवो वेगें ॥ ए देशी॥ ॥ उत्शपिणी अवसर्पिणी घारो, बिहुँ मलीने बारजी ॥ वीश कोडाकोडी सागर तेहy, मान कह्यु निरधारजी ॥ १४ ॥ पहेलो थारो सूसम सुसमा, सागर कोडाकोडी चारजी॥ त्यारें ए श्री शत्रुजय गिरिवर, एंसी जोयण अवधारजी ॥ १५ ॥ त्रस्य कोडाकोडी सागर आरो, बीजो सुसम नामजी॥ त दा कालें ए श्री लिमाचल, सीतेर जोयण अनिराम जी॥ १६ ॥ त्रीजो सूसम दूसम यारो, सागर को डाकोडी दोयजो ॥ शाठ जोयगर्नु मान शत्रुजय, त दा काल तूं जोयजी ॥ १७ ॥ चोथो दूसम सूसम जागो, पांचमो दूसम थारोजी॥हो दूसम दूसम कहिजे, ए त्रय यश्य विचारोजी ॥ १७ ॥ एक को डाकोडीसागर केलं, एहनुं कहियें मानजी ॥ चोथें आरे श्री शत्रुजय गिरि, पचाश जोयण परधानजी ॥ १७ ॥ पांच में बहे एकवीश एकवीश, सहस्स वरस वखाणोजी ।। बार जोयएने सात हायनो, तदा वि मलगिरि जाणोजी॥२०॥ तेहनगी सदा काल ए ती रथ, शाश्वतुं जिनवर बोलेजी ॥ झपन देव कहे पुं
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मरिक निसुणो, नहीं कोई शत्रुंजय तोर्जेजी ॥ २१ ॥ ज्ञान धने निरवाल महाजस, जेहेसो तुमे इण में जी ॥ एह गिरि तीरथ महिमा इणे जगे, प्रगट हो से तुम नामेजी ॥ २२ ॥
॥ ढाल ॥ चोथी ॥ जिनवरशुं मेरो मन ली नोए ॥ ए देशी ॥
॥ सांगली जिनवर मुखथी साचुं, पुंमरिक गण धार रे ॥ पंचकोडी मुनिवरचं एगिरि, एसएल की ध उदार रे ॥ २३ ॥ नमो रे नमो श्री शत्रुंजय गिरि वर, सकल तीरथ मांहे सार रे || दीवो डुरगति दूर निवा रे, कतारे जवपार रे ॥ २४ ॥ नमो० ॥ केवल लही चैत्री पुनम दिन, पाम्या मुक्ति ठाम रे ॥ तदा कालयी पुहवी प्रगटीयुं, पुंरुरिक गिरि नाम रे ॥ २५॥ ॥ नमो० ॥ नयरी अयोध्याथी विहरता पोहोता, ता तजी कूपन जिलंद रे || शव सहस्स लगें षट्खंम साधी, थाव्या भरत नरिंद रे ॥ २६ ॥ नमो ॥ घरें जई मायने पाय लागा, जननी दीए याशीश रे || विमला चल संघाधिप केरी, पोहोचजो पुत्र जगीश रे २७ ॥ || नमो० ॥ जरत विमासे साठ सहस्स सम, साध्या देश अनेक रे || हवे हूं तात प्रत्यें जइ पूकुं, संघप
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(५) ति तिलक विवेक रे ॥ २७॥ नमो० ॥ समोसरणे पोहोता जरतेसर, वंदि प्रजुना पायरे ॥ इंसादिक सु र नर बहु मलिया, देशना ये जिनराय रे ॥ २५ ॥ ॥ नमो० ॥ शत्रुजय संघाधिप यात्रा फल, नाखें श्री जगवंत रे ॥ तव जरतेसर करे रे सजाइ, जाणीला न अनंत रे ॥ ३० ॥ नमो० ॥ ॥ ढाल पांचमी कनक कमल पगला
ए देशो ॥ राग धन्याश्री मारूणी॥ । नयरी अयोध्याथी संचस्या ए, लेइ ले दि अशेष ॥ नरत नृप नावगुंए ॥ शत्रुजय यात्रा रंग नरें ए,यावे यावे लट अंगान॥३१॥ यावे धावे
षननो पुत्र, विमलगिरि यात्रायें ए॥लावे लावे चक वर्तिन २६ ॥ न० ॥ ए अांकणी ॥ ममलिक मुकुट वईन घणाए, बत्रीश सहस नरेस ॥न०॥३२॥ उम उम वाजे बंदशुंए, लाख चोरासी निशान ॥ ज०॥ लाख चोरासी गज तुरीए, तेहना रत्ने जडित पता ए॥न ॥३३॥ लाख चोराशी रथ नलाए, वृषन धार। सुकुमाल ॥न ॥ चरणे जांजर सोना त गाए, कोटें सोवन घूघर माल ॥ ज० ॥ ३४ ॥ (मो हन रूप दीसे नलाए,सवाकोडी पुत्र जमाल न॥)
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बत्रीस सहस नाटिक सहीए, त्रण लाख मंत्री दद ॥ न०॥ देवी धरा पंच लख कह्याए, शोल सहस सेवा करे यह॥न०॥३५॥ दस कोडी अलंब ध्वजा धराए, पायक बन्न कोडीन॥ चोशठ सहस यंते उरीए, रूपें सरखी जोडी॥नम् ॥ ३६ ॥ एक लाख सहस अहावीशए, वारांगना रूपनी याति ॥ नम्॥ शेष तुरंगम सवि मलीए, कोडी बढार निहालि ॥न ॥३७॥त्रए कोडी साथ व्यापारीयाए, बत्रोश कोडी सूधार ॥ ज०॥ शेत सारयवाह सामटाए, रायराणा नो नही पार ॥॥३॥ नवनिधि चौद रयणशंए, लीधो लीधो सवि परिवार ॥ ॥ संघपति तिलक शोहा मणोए,नालें धराव्यो सार ॥न॥३॥ पग पग कर्म निकंदताए,याव्या याव्या आशन जास॥ नम्॥ गिरि देखी लोचन तस्याए, धन धन शत्रंजय नाम ॥ ॥ज॥ ४० ॥ सोवन फूल मुगता फलेंए, वधाव्यो गिरि राज ॥ न ॥ दीए प्रदक्षणा पाखतीए, सीधां संघलां काज ॥ ज० ॥४१॥ ॥ ढाल नही ॥ जयमालानी॥ प्रनु पास
जोतां ॥ ए देशी॥ ॥ काज सीधा सकल हवे सार, गिरी दी हरख
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(७) अपार ॥ ए गिरिवर दरिशण जेह, यात्रा पण कहिये तेह ॥४२॥ सूरज कुंम नदी शेव्रुजी, तीरथ जलें नाह्या रंजी॥रायण तलें झपन जिणंद, पहेला प गला पूजे नरिंद ॥ ४३ ॥ वली २५ वचन मन आ णी, श्रीषनगें तीरथ जाणी॥ तव चकी जरत न रेश, वार्दिकने दीधो आदेश ॥ १४ ॥ तेणे शत्रुजा ऊपर चंग, सोवन प्रासाद नतंग॥ नीपायो अति मनो हार, एक कोश उंचो चनबार ॥ ४५ ॥ गानदोढ वि स्तारें कहिये, सहस धनुष पहोल पणे लहियें। एकेके बारणे जोइ, मंझप एकवीशज होइ ॥ ४६॥ इम चिढं दिसें चोरासी, मंझप रचीया सुप्रकाशी ॥ तिहां रयणमय तोरण माल, दोसे अती जाक ज माल ॥४७॥ विचे चिढं दिसें मूलगंजारे, थापा जिनप्रतिमा चारे ॥ मणिमय मूरत सुखकंद, थापी श्रीयादिजिणंद ॥४॥ गणधर वर पुमरीक केरी,थापी बिहुँ पासें मूरति जलेरी ॥यादि जिन मूरति काउसगि या, नमि विनमी बे पासें उविया ॥४॥ मणि सोवन रूप प्रकार, रची समोवसरण सुविचार॥चिहुँदिसें चन धर्म कहंत, थापी मूरति श्रीनगवंत ॥५॥ नरतेसर जोडी हाथ,मूरत बागल जगनाथ ॥रायण तो जि
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मणे पासें, प्रभु पगला याप्या उल्लासें ॥ ५१ ॥ श्री नानि धने मरुदेवी, प्रासादचं मूरति करेवी || गज वर खंधे लइ मुक्ति, कीधी खाईनी मूरति नक्ति ॥ ॥ ५२ ॥ सुनंदा सुमंगला माता, ब्राह्मी सुंदरी बहि न विख्याता ॥ वली नाइ नवाणुं प्रसिद्ध, सवि मूर ति मणिमय कीध ॥ ५३ ॥ नीपाइ तीरथ माल, सु प्रतिष्ठा करावी विशाल ॥ यक्ष गौमुख चक्केसरी देवी, तीरथ रखवाल ठवेवी ॥ ५४ ॥ इम प्रथम उद्धारज कीथो, नरतें त्रिभुवन जस लीधो ॥ इंड्रादिक कीर्त्ति बोले, नही कोई जरत नृप तोलें ॥ ५५ ॥ शत्रुंजय महातम मांहिं, अधिकार जोजो चाहिं ॥ जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, सद्दहो सूत्र नववाइ निर खी ॥ ५६ ॥ वस्तु ॥ नरतें कीधो नरतेंकीधो, प्र थम उद्धार, त्रिभुवन कीर्त्ति विस्तरी ॥ चं सूरज ल में नाम राख्युं, तिरो समय संघपति केटला हवा || सो इस शास्त्रे नाख्युं, कोडी नवाणु नरवरा, हूया नेव्यासी जाख ॥ नरत समय संघपति वली, सहस चोरासी जाख ॥ ५७ ॥
॥ ढाल ॥ सातमी ॥ चोपाइनी देशी ॥ ॥ जरतपायें दूया यादित्ययसा, तसपाटें तस सु
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त महायसा ॥ अतिबलन थने बलवीर्य, कीरतिको र्य अने जलवीर्य ॥ ५॥ ए साते दूआ सरखी जो ड, नरत थकी गया पूरव कोड ॥ दमवीय याठ में पाट हवो, तिणे नधार कराव्यो नवो॥ एए ॥ ६ ३सोइ प्रशंस्यो घणु, नाम अजवाव्युं पूरवज तणु ॥ नरत तणीपरें संघवी थयो, बीजो उधार ते एहनो कह्यो ॥६० ॥ जरत पाटें ए आते वली, नुवन पारी शामां केवली ॥णे थावे सवि राखी रीत, एक न लोपी पूर्वज रीत ॥ ६१ ॥ एकसो सागर वोल्या जि सें, इशानेश् विदेहमां तिसें ॥ जिनमुख सिगिरि सु गी विचार, तेणे कीधोत्रीजो नहार ॥ ६॥ एकको डी सागर वोली गयां, दीग चैत्य विसस्थल थयां ॥ माहिंऽ चोथो सुरलोकें, कोधो चोथो नकार गरिं॥ ॥६३॥ सागर कोडो गया दश वली,श्रीब्रह्मघणु मन रुली ॥श्री शत्रुजय तीरथ मनोहार, कीधो तेणे पांच मो नकार ॥ ६५ ॥ एक कोडी लाख सागर अंतरें, चमरेशदिक नवन नरें ।। बो इंइ नवनपति त णो, ए उधार विमलगिरि नणे ॥ ६५ ॥ पचाश कोडी ताख सागर तणु, आदि यजित विचे अंतर जणु ॥ तेह विचे सूदम दूवा नकार, ते कहेतां नवी
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लाने पार ॥ ६६ ॥ हवे यजित बीजो जिनदेव, श जय सेवा मिसि देव || सि६ क्षेत्र देखी गह गह्या, अजितनाथ चोमासुं रह्या ॥ ६७ ॥ नाइ पितराइ अजित जिन तो, सगर नामे बीजो चक्रवर्त्ति नणो ॥ पुत्र मरण पाम्यो वैराग, इंदे प्रीवियो महानाग ॥ ६८ ॥ श्वचन हियडामांहे घरी, पुत्र मरण चिंता परिहरी ॥ जरत तणीपरें संघवी थयो, श्रीशत्रुंजय गिरि यात्रा गयो || ६ || जरत मणिमय बिंबवि शाल, करया कनक प्रासाद जमाल || ते देखी मन हरख्यो घणु, नाम संनायुं पूर्वज तषु ॥ ७० ॥ जाली पडतो काल विशेष, रखे विनास ऊपजे रेख ॥ सो वन गुफा पश्चिमदिसि जिहां, रयण बिंब नंमाया तिहां ॥ ११ ॥ करी प्रासाद सयल रूपना, सोवन बिंब करी थापना || को यजित प्रासाद नदार, एहस गर सत्तम उद्दार ॥ ७२ ॥ पञ्चाश कोडी पंचाणु लाख, उपर सहस पंचोत्तर नाख ॥ एटला संघवी नूपति यया, सगर चक्रवर्त्ति वारें का ॥ ७३ ॥ त्रीस कोडी दश लाख कोडी सार, सागर अंतर करे उद्धार ॥ व्यंतरेंड् याम्मो सुचंग, यनिनंदन उपदेश उत्तंग ॥ ७४ ॥ वारें श्रीचं प्रन तणे, चंदशेखर सुत
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यादर घणे || चंड्या राजा मनरंज, नवमो उद्धार को शत्रुंज ॥ ७५ ॥ श्रीशांतिनाथ शोलमां स्वाम, र ह्या चोमासुं विमलगिरि ठाम ॥ तस सुत चक्रायुद्ध रा जीयो, ति दशमो उद्धारज कीयो ॥ ७६ ॥ कीयो शांति प्रासाद उदाम, हवे दशरथ सुत राजाराम ॥ एकादशमो को उद्दार, मुनिसुव्रत वारें मनोहार ॥ ७७ ॥ नेमिनाथ वारें जोधार, पांव पांच करे उद्धार || शत्रुंजय गिरि पूगी रली, ए द्वादशमो जा यो वली ॥ ७८ ॥
॥ ढाल श्रावनी | राग वैराडी ॥
॥ पांव पांच प्रगट हवा, खोही होहणी य ढार रे || पोतानी पृथ्वी करी, मायने कीधो जुहार रें || ७ || कुंतारे माता इम जणे, वत्स सांगलो या परे ॥ गोत्र निकंदन तुमे कस्यो, ते केम बूटसो पाप रे ॥ कुं० ॥ ८० ॥ पुत्र कहे सुणो मायडी, कहो श्रम सोय उपाय रे ॥ ते पातिक किम बूटीयें, वलतुं पनले मायरे || कुं० ॥ ८१ ॥ श्रीशत्रुंजे तीरथ ज5, सूरज कुंमे स्नान रे ॥ कूपन जिद पूजा करो, धरो जगवंतनो ध्यान रे || कुं० ॥ ८२ ॥ मांता शिखामण मन धरी, पांव पांचे ताम रें | हत्या पातक बूटवा,
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( १२ )
पोहोता विमलगिरि ठाम रे ॥ कुं० ॥ ८३ ॥ जिनवर नक्ति पूजा करी, कोधो वारमो उद्धार रे || नवन नी पायो कष्टमय. जेएमय प्रतिमा सार रे || कु० ॥८४॥ पांव ina वीर विचें प्रांत, वरस चोरासी सहस्स रे ॥ चिकुंसय सीतेर वर्षे दुबो, वीरथी विक्रम नरेस रे ॥ ८५॥ ॥ ढाल ॥ नवमी पूर्वी देशी ॥
॥ धन्य धन्य शत्रुंजय गिरिवरू, जिहां हवा सिद्ध अनंत रे || वली होसे इसे तीरयें, इम नाखे जगवं तरे ॥ धन्य० ॥ ८६ ॥ विक्रमयी एकसो खावे, व रसें दू जावड शाह रे || तेरमो उद्धार शत्रुजें क यो याप्या यादिजिन नाह रे || धन्य० ॥ ८७ ॥ प्रतिमा जरावी रंग, नवा श्री प्रादिजिणंद रे || श्री शत्रुज शिखरे थापीया, प्रासादें नयणानंद रे ॥धन्य ॥ ॥ ८८ ॥ पांव जावड प्रांत रे, पंचवीश कोडी म याज रे || लाख पंचाणू ऊपरें, पञ्चोत्तर सहस्स नूपा ल रे ॥ धन्य० ॥ ८९ ॥ एटला संघवी हा हवे, चन्दसमो उद्धार विसाल रे ॥ बारतेरोत्तरें सोय क रे, मंत्री बाहडदे श्रीमान रे || धन्य ॥ ५० ॥ (प्रति मानवी रंग, नवी श्री रुपनजिद रे || बीजे शिख रें पावीया, प्रासाद नयणानंद रे ॥ धन्य० ॥ १ ॥ )
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( १३ )
बारब्यासीए मंत्रि वस्तपालें, यात्रा शत्रुंजय गिरि सार रे ॥ तिलका तोरणशुं करे, श्री गिरनारे अवतार रे ॥ धन्य० ॥ २ ॥ संवत तेर एकोते हैं, श्री सवं स शणगार रे ॥ शाह समरो इव्य वय करे, पंचदश मो उद्धार रे ॥ धन्य० ॥ ए३ ॥ श्री रत्नाकर सूरिसरू, वड तपगन्छ सणगार रे || स्वामी कृषनज थापीया, समरे शाहें उदार रे ॥ धन्य० ॥ ए४ ॥
॥ ढाल दशमी ॥ उलालानी ॥ देशीमां ॥ ॥ जावड समरा उद्धार, एह बच्चे त्रण लाख सा र || ऊपर सहस चोरासी, एटला समकेत वासी ॥ ॥ ५ ॥ श्रावक संघपति हूया, सत्तर सहस नावसा र जूया ॥ दत्री शोल सहस जाणु, पन्नर सहस वि प्र वखाणु ॥ ए६ ॥ ॥ कणबी बार सहस कहियें, जे उथा नव सहस लहियें ॥ पंच सहस पीस्तालोस, एटला कंसारा कहीश ॥ ए७ ॥ सवि जिनमति ना व्या, श्री शत्रुंजय यात्रायें श्राव्या ॥ अवरनी संख्या न जाणु, पुस्तक दीठे ते वखाणु ॥ ए८ ॥ सात सह स मेहर संघवी, जात्रा तलहटीयें तस हवी ॥ बहु श्रुत वचने ए राचुं, ए सवि मानजो साधुं ॥ एए ॥ भरत समराशाह अंतर, संघवी असंख्याता इलीप
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र॥ केवली विण कुण जाणे, किम बद्मस्थ वखाणे ॥ १० ॥ नवलाख बंधी बंध काप्या, नवलाख हेम टका तस बाप्या ॥ तो देश लहरी बन्न चाख्यु, समरे शाहे नाम राख्यं ॥ ११ ॥ पन्नर सत्यासीये प्रधान, बादरशाहें बहुमान ॥ करमे शाहें जस लीधो, उदार शोलमो कीधो ॥१७॥णे चोवीसीय विमल गिरि, विमलवाहन नृप यादरि ॥ उःप्रसह गुरु उप देशे, नदार बहेलो करेशे ॥१०३ ॥ एम वली जे गु एवंत, तीरथ नचार महंत ॥ लक्ष्मी लही वय करो, तस बदुनव कारज सरसे ॥ १० ॥ ॥ ढाल ॥ अगीधारमी॥ माश्यन्य सुपनतुं॥
॥ ए देशी॥ ॥धन्य धन्य शत्रुज गिरि, सिह खेत्र ए गम ।। कर्मक्ष्य करवा, बरें बेग जपो नाम ॥ १०५ ॥ चो वीसी इणे गिरि, नेमविना वोश ॥ तीरथ जागी, समोसस्या जगदीश ॥ १०६ ॥ पुंमरिक पंच कोडीशु, साविड वारिखिन्न जोड ॥ काति पूनम सी धा, मुनिवरशुं दशकोड ॥ १० ॥ नमि विनमि वि द्याधर, दोय कोडि मुनि संयुत्त ॥ फागुण शुदि दश मी, इगिरि मोद पदत्त ॥ १० ॥ श्री कृष
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नवंसी नृप, जरत संख्याता पाट || मुकें सरवार्थे, एह गिरि शिवपुर वाट ॥ १०७ ॥ राममुनि नरतादि क, सुनित्रण कोडी एम ॥ नारदशुं एकालु, लाख मुनिसर तेम ॥ ११० ॥ मुनि शांव प्रद्युम्नशुं, शादी घाठकोडी साथ || वीश कोडीसुं पांव, मुगतें गया निराबाध ॥ १११ ॥ वली थावच्चा सुत, सुक मुनि वर इणेाम ॥ एक सहस्तसुं सिद्धा, पंचशत से लंग नाम ॥ ११२ ॥ इम सिद्धा मुनिवर, कोडाकोडी अपार ॥ वली सीज से इसे गिरि, कुण कही जाणे पार ॥ ११३ ॥ सात वह दो ग्रहम, गणे एक लाख नव कार ॥ शत्रुंजय गिरि सेवे, तेहने दोय अवतार ॥ ११४ ॥
॥ ढाला ॥ बारमी ॥ वधावानी देशी ॥
॥ मानव नवमें नजे लघुं, जह्योते यारज देश || श्रावक कुन लाधुं नलो, जो पाम्यो रे वाहालो रुपन जिनेशके ॥ ११५ ॥ नेटयोरे गिरिराज, हवे सीधारे म हारा वंदित काजके, मुने जुठोरे त्रिभुवनपति याजके ॥ नेट्यो ॥ ११६ ॥ ए यांकणी ॥ धन्य धन्य वंस कुल गर तो, धन्य धन्य नानि नरिंद ॥ धन्य धन्य मरुदेवा मावडी, जेणे जायोरे वालो कपन जिणंदके॥ ० ॥ ११७ धन्य धन्य शत्रुंजय तीरथ, रायण रूख धन्य धन्य ॥ धन्य
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( १६ )
पगला प्रभुता, जे पेखीरे मोह्युं मुज मन्नके ॥ जे० ॥ ॥ ११ ॥ धन्य धन्य ते जग जीवडा, जे रहे शत्रुंजय पा स ॥ यहनिसि कपन सेवा करे, वली पूजेरे मनने उल्ला सके ॥ ० ॥ ११९॥ श्राज सखी मुज खांगणे, सुरतरु फलियो सार ॥ कूपन जिनेसर वांदीयो, हवे तरियोरे नवजलनिधि पारके ॥ जेंट्यो ० ॥ १२०॥ शोल डत्री यशो मासें, गुदि तेरसी कुज वार ॥ यहम्मदाबाद नयर मांहे, में गायो शत्रुज उद्धारके || नेट्यो | १२१ asana गुरु पति, श्री धन्नरत्न सूरिंद ॥ तस शिष्य तसपट जयकरु, गुरु पतिरे श्रमररत्न सूरिंद के ॥ जेटयो० ॥ १२२ ॥ विजयमान तस पटधरू, श्री देवरत्न सूरीश || श्री धनरत्न सूरिशना शिष्य पंमितरे नानुमेरू गलीशके ॥ नेट्यो ० ॥ १२३ ॥ तसपद कमल नमर जणे, नयसुंदर दे याशीश || त्रिभुवन नायक सेवतां, हवे पूगीरे श्रीसंघजगीशके ॥ नेट्यो ॥ १२४ ॥
॥ कलश ॥ इम त्रिजग नायक मुक्तिदायक, वि मल गिरि मंकण धणी ॥ उद्धार शत्रुंज सार गायो, थुयो जिन नक्के घणी ॥ जानु मेरु पंमित शिष्य दो य कर || जोडी कहे नयसुंदरी, प्रभु पाय सेवा नित्य करेवा, देहो दरिशन जयकरो ॥ १२५ ॥ इति ॥
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श्रीगौतमायनमः ॥ अथ श्रीसिद्धगिरिस्तुति प्रारंनः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ श्री शादीश्वर अजर अमर. अव्याबाध अर नीश ॥ परमातम परमेसरू, प्रणामुं परम मुनीश ॥१॥ जय जय जगपति ज्ञाननान, जासित लोकालोक । शुरूस्वरूप समाधिमय, नमित सुरासुर थोक ॥ ३ ॥ श्रीसिहाचल मंमणो, नानिनरेसर नंद ॥ मिथ्यामति मत जणो, नविकुमुदाकर चंद ॥३॥ पूरव नवाणु जस सिरे, समवसस्या जगनाथ ॥ ते सिक्षाचल प्रण मीयें, नक्तं जोडी हाथ ॥४॥ अनंतजीव इणी गिरि वरें, पाम्या नवनो पार ॥ ते सिक्षा॥ लहिये मंगत माल ॥ ५ ॥ जस शिर मुकुट मनोहरू, मरुदेवानो नद॥ ते सा॥का सदा सुखवद ॥६॥ माहमा जेहनी दाखवा, सुरगुरु पण मतिमंद ॥ ते तोर्येश्वर प्रणमी, प्रगटे सहजानंद ॥ ७॥ सत्ताधर्म समारवा, कारण जेह पमूर ॥ते तीर्थे०॥ नाशे बघ सवि दूर॥७॥ कर्म काट सवि टालवा, जेहनुं ध्यान दूताश ॥ ते तीर्थ ॥ पामीजें सुखवास ॥ ५ ॥ परमानंद दशा ल
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( १८ )
हे, जस ध्याने मुनिराय ॥ ते० ॥ पातक दूर पंजाब ॥ १० ॥ श्रद्धानासन रमणता, रत्नत्रयीनुं हेतु ॥ ते ० ॥ जव मकराकर सेतु ॥ ११ ॥ महापापी पण निस्तखा, जेहनुं ध्यान सुहाय ॥। ते।ा सुर नर जस गुण गाय ॥ १२ ॥ पुंमरिक गणधर प्रमुख, सीधासाधु अनेक, ते० ॥ याणी ऋदय विवेक ॥ १३ ॥ चंद्रसेखर स्वसा पति, जेहने संगे सिद्ध || ते० || पानीजे निज कू ॥ १४ ॥ जल चर खेचर तिरिय सेवे, पाम्या बातम नाव ॥ते ॥ जवजल तारण नाव ॥ १५ ॥ संययात्रा जेसे करी, कीथा जेरो उद्धार ॥ ते० ॥ बेदीजें गति चार ॥१६॥ पुष्टि संवेग रस, जेहने ध्याने याय ॥ ते || मिथ्यामति सवि जाय ॥ १७ ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, सुरघट सम जसध्याव || ते० ॥ प्रगटे शु६ स्वभाव ॥ १८ ॥ सुरलोकें सुरसुंदरी, मली मली योके थोक || ते ॥ गावे जेहना श्लोक ॥ १९ ॥ जोगीश्वर जस दर्शने, ध्यान समाधि लीन ॥ ते ॥ दुया अनु नव रस लीन ॥ २० ॥ मानु गगने सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्य || ते० || महिमा देखण चित्त ॥ २१ ॥ सुर असुर नर किन्नरा, रहे बे जेहने पास || ते० ॥ पामे लीलविलास ||२|| मंगलकारी जेहने, मृतका
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(१५) हरिनेट ते ॥ कुमति कदा ग्रह मेट ॥ २३॥ कुम ति कौशिक जेहने, देखी जांखा थाय ॥ ते ॥ सवि तल महिमा गाय ॥२४॥ सूरज कुंमना नीरथी, या धि व्याधि पलाय ॥ ते ॥ जस महिमा न कहाय ॥ २५॥ सुंदर ट्रंक शोदामणो, मेरुसम प्रासाद ।। ते दूर टने विखवाद ॥ २६ ॥व्य नाव वैरी त गा, जिहां आवे होय शांत ॥ ते ॥ जाये नवनी नांत ॥ २७ ।। जग हितकारी जनवरा, याव्या एणे गम॥ते ।। जस महिमा नदाम ॥ ७॥ नदी श त्रंजी स्नानथी, मिथ्यामन धोवाय ॥ ते ॥ सविज नने सुखदाय ॥श्णा थान कर्म जे सिवगिरें, न दीये तीव्र विपाक ॥ ते ॥ जिहां नविआवे काक ॥३०॥ सिशिला तपनीय मय, रत्नस्फाटिक खाण ॥ते॥ पाम्या केवल नाण ॥३१॥ सोवन रूपा रत्ननी, औ बधि जात अनेक ॥ ते० ॥ न रहे पातक एक ॥ ॥ ३२ ॥ संयमधारी संयमें, पावन होय जिण खे त्र॥ ते ॥ देवा निर्मन नेत्र ॥ ३३ ॥ श्रावक जि हां शुन व्यथी, उडव पूजा स्नान ॥ ते० ॥ पोषे पात्र सुपात्र ॥ ३४ ॥ सामिवत्सल पुण्य जिहां, थ नंत गुणुं कहेवाय ॥तेा सोवन फूल वधाय ॥३॥
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(२०) सुंदर जात्रा जेहनी, देखी हरखे चित्त । ते ॥ त्रि नुवन माह विदित्त ॥ ३६॥ पालीतागुं पुर नर्बु, सरोवर सुंदर पाल ॥ते॥ जाए सकल जंजाल॥३॥ मनमोहन पागे चढे, पग पग कर्म खपाय ॥ ते ॥ गुण गुणिनाव लखाय ॥३७॥ जेणे गिरि रूंख सो हामणां, कुंके निर्मलनीर ॥ ते ॥ नतारे नवतीर ॥३॥ मुक्तिमंदिर सोपान सम, सुंदर गिरिवर पाज॥ ते ॥ लहियें शिवपुर राज ॥ ४० ॥ कर्मकोटि अध विकटनट, देखी ध्रुजे अंग ॥ ते ॥ दिनदिन चढते रंग ॥४१॥ गौरी गिरिवर नपरे, गावे जिनवर गीत ॥ ते ॥ सुखे शासनरीत ॥४५॥ कवड यद रखवाल जस, अहनीश रहे हजूर ॥ ते० ॥ असूरां राखे दूर ॥४३॥ चित्त चातुरीचकेसरी, विघ्न विनासणहार ॥ ते०॥ संघतण। करे सार ॥४३॥ सुरवरमा मघवा यथा, ग्रहगणमां जिम चंद ॥ ते ॥ तिम सवि ती रथ इंद ॥४५॥ दी। उर्गति वारणो, समस्यो सारे काज ॥ ते ॥ सवि तीर्थ सिरताज ॥ १६ ॥ घुम रिक पंच कोडोसुं, पाम्या केवल नाण ॥ ते ॥ कर्म तणी होए हाण ॥४७॥ मुनिवर कोडी दस सहित, इविड अने वारिखेण ॥तेा चढिया शिव निश्रेण ॥
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( ११ )
॥४ जानमि विनमि विद्याधरा, दोय कोडी मुनि साथ ॥ ते । पाम्या शिवपुर खाय ॥ ४९ ॥ कृपनवंसी नरपति घणा, इणे गिरि पोता मोह || ते० ॥ टाव्या घातिक दोष ॥ ५० ॥ राम जरत बिंदु बंधवा, त्रण कोडी मुनियुत्त ॥ ते० ॥ इणेगिरि शिव संपत्त ॥ ५१ ॥ ना रद मुनिवर निर्मलो, साधु एकाएं लाख || ते० ॥ प्रवचन प्रगट ए जाख ॥ ५२ ॥ सांब प्रद्युम्न कृषि कला, साढी खाठे कोड ॥ ते० ॥ पूर्वकर्म विछोडि ॥ ॥५३॥ यावच्चासुत सहससुं, अणसंण रंगें कीध ॥ ते || वेगे शिवपद लीध ॥ ५४ ॥ शुक परमाचारज वली, एक सहस अणगार || ते० || पाम्या शिवपुर द्वार ॥ ५५ ॥ शैल सूरि मुनि पांचसें, सहित दुधा शिवनाह ॥ ० ॥ अंगे घरी उत्साह || ५६ || इस बहु सिद्धा इसे गिरें, केतां नावे पार ॥ ते० ॥ शास्त्रमांदे अधिकार ॥ ५७ ॥ बीज इहां समकित तलु, रोपे यातम जोम ॥ ते० ॥ टोले पातक स्तोम ॥ ए८ ॥ ब्रह्म स्त्री चूण गो हत्या, पापें नारित जेह ॥ ते ० ॥ पोहोता शिवपुर बेह ॥ ५९ ॥ जग जोतां तीरथ सवे, ए सम अवर न दीव |ते ॥ तीर्थमांहे कि ॥६०॥ धन धन सोरत देश जिहां, तीरथ मांहे सार ॥ ते ॥
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(१२) जनपदमा शिरदार ॥ ६१ ॥ अहनिश थावत ढू कडा, तेपण जेहने संघ ॥ ते० ॥ पाम्या शिव वधू रंग॥ ६॥ विराधक जिनवाणना, तेपण दुया वि शु६॥ ४०॥ पाम्या निर्मल बुझ॥ ६३ ॥ महा म्लेड साशन रिपु, ते पण ह्या उपरांत ॥ ते० ॥ महिमा देखी अनंत ॥ ६४ ॥ मंत्र योग अंजन सवे, सिम द्रवे जिणाम ॥ ते ॥ पातकहारो नाम ॥ ६५ ॥ सुमात सुधारस वरसते, कमेदावानल संत ॥ ते० ॥ उपशम तस ननसंत ॥६६॥ श्रुतधर नितु नितु नप दिशे, तत्त्वातत्त्व विचार ॥ ते ॥ ग्रहे गुणयुत श्री तार ॥६॥ प्रियमेलक गुणगण तणु, कोर्तिकमला सिंधू ॥ ते ॥ कलिकालें जगबंधु ॥ ६७ ॥ श्रीशां ति तारण तरण, जेहनी नक्ति विशाल ॥ ते ॥ दिन दिन मंगलमाल ॥ ६ए ॥ श्वेतध्वजा जस लहकती, जांषे नविने एम ॥ ते ॥ भ्रमण करो डो केम ॥ ७० ॥ साधक सिम दिसा जणी, बाराधे एक चि त्त ॥ ते ॥ साधन परम पवित्त ॥ ७१ ॥ संघपति
था एहनी, जे करे नावें यात्र ॥ ते ॥ तस होये निर्मल गात्र॥७॥ शुभातम गुण रमणता,प्रगटे जे हने संग ॥ ते ॥ जेहनो जस अनंग ॥ ३ ॥
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( २३ )
रायणवृक्ष सोहामणो, जिहां जिनेश्वर पाय ॥ ते० ॥ सेवे सुरनर राय ॥ ७४ ॥ पगलां पूजी कवनतां, उपराम जेहने चंग ॥ते ॥ समता पावन अंग ॥ ७५ ॥ विद्याधरज मजे बहु विचरे गिरिवर श्रृंग || ते० ॥ चडते नवरस रंग ॥ ७६ ॥ मालती मोगर केतकी, परिमन मोहे भृंग ॥ ते० ॥ पूजो नवि एकंग ॥ ७७ ॥ जित जिनेसर जिहां रह्या, चोमासुं गुणगेह ॥ ॥ ते० ॥ बाणी यविहड नेह ॥ ७८ ॥ शांति जि नेसर शोलमां, शोल कषाय करि अंत ॥ ते० ॥ च तुर मास रहंत ॥ ७९ ॥ नेमिविना जिनवर सवे, या व्या जेसे ठाम ॥ ० ॥ शुद्ध करे परिणाम ॥ ८० ॥ नमि नेम जिनयंतरें, यजित शांतिस्तव कीथ ॥ ते ० ॥ नंदिषेण प्रसिद्ध || १ || गणधर मुनि उवद्याय तिम, जान लह्या केइ लाख ॥ ते० ॥ ज्ञानप्रमृत रस चाख ॥ ॥ १८॥ नित्य घंटा टंकारवें, रणजये जल्लरी नाद ॥ ते ॥ डुडुनि मादल वाद ॥ ८३ ॥ जेणे गिरें नरत नरेश्व रें, कीथो प्रथम उद्धार ॥ ते॥ मणिमय मूरति सा र ॥ ८४ ॥ चौमुख चनगति दुःख हरे, सोवनमय सुविहार || ते० ॥ यय सुख दातार ॥ ८५ ॥ इ त्यादिक महोटा कह्या, शोल नार सफार ॥ ते ० ॥
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(२४)
लघु असंख्य विचार ॥ ७६ ॥ इव्यनाव वैरी तणो, जेहथी थाये अंत ॥ते॥ शत्रुजय समरंत ॥ ७ ॥ पुंमरिक गणधर दूधा, प्रथम सिह इणे गम ॥ते॥ पुमरिक गिरि नाम ॥ ७ ॥ कांकरे कांकरे इणे गि रि, सिम दूया सुपवित्त ॥ ते ॥ सिक्षेत्र समचि त ॥ नए ॥ मल इव्यनाव विशेषथी, जेहथी जाए दूर ॥ ते०॥ विमलाचल सुखपूर ॥ ए०॥ सुरवरा ब हजे गिरें, निवसे निर्मल गण ॥ ते ॥ सुरगिरि ना म प्रमाण ॥ ए१ ॥ परवत सदु मांहे वडो, महागि रि तेणें कहंत ॥ ते ॥ दर्शन लहे पुण्यवंत । ए॥ पुण्य अनर्गल जेहथी, थाए पाप विनाश ॥ ते ॥ नाम नखं पुण्यराश ॥ ए३ ॥ लक्ष्मीदेवी जे जण्यो, कुंमे कमल निवास ॥ ते ॥ पद्मनाम सुवास ।। ॥ ए४ ॥ सवि गिरिमां सुरपति समो, पातक पंक वि लात ॥ ते० । पर्वत इंइ विख्यात ॥ ए५ ॥ त्रिनुव नमा तीरथ सवे, तेमां महोटो एह ॥ ते॥ महाती र्थ जस रेह ॥ ए६ ॥ आदि अंत नहीं जेहनी, कोश कालें न विलाय ॥ ते० ॥ शाश्वतगिरि कहेवाय॥ए॥ नए नला जे गिरिवरें, श्राव्या होय अपार ॥ ते ॥ नाम सुन संनार ॥ ए ॥ वीर्य वधे गुन साधुने,
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(२५) पामी तीरथ नक्ति ॥ ते॥ नामें जे दृढ शक्ति॥ए॥ शिवगति साधे जे गिरे, तेमाटे अनिधान । ते॥ मु क्ति निलय गुणखाण ॥ १० ॥ चंद सूरज समकित धरी, सेव करे गुन चित्त ॥ ते० ॥ पुप्फदंत विदित्त ॥ ॥ ११ ॥ जी न रहे नव जलयको, जे गिरिलहे नि वास ॥ते॥ महापद्म सुविलास ॥१०॥ नमि धरीजे गिरिवरें,नदधिन लोपे लीह॥ते॥ टथिवीपीत अनीह ॥१३॥ मंगल सवि मलवा तj, पीठ एह अनिराम ॥ते॥न पीठ जसनाम ॥१०॥ मूलजस पाताल में,रत्नमय मनोहार ॥ते॥ पाताल मूल विचार॥१०॥ कर्मदय होये जेहां, होय सि-६ सुखकेल ॥ ते ॥ कर्मकरे मन मेल ॥१०६॥ कामित सवि पूरण होए, जेदनं दरिसण पामते॥सर्वकाम मन नाम॥१०॥ इत्यादिक एकवीश नला, निरुपम नाम नदार॥जे स मखां पातक हरे, बातम शक्ति अनुहार ॥ १० ॥
॥ कलश ॥ इम तीर्थ नायक स्तवन लायक, सं थुण्यो श्री सिगिरि ॥ अहोत्तरसय गाह स्तवनें, प्रे मनक्तं मनधरी ॥ श्री कल्याण सागर सूरि शिष्ये, शुन जगीशे सुख करी ॥ पुण्यमहोदय सकल मंगल, वेति सुजसे जयसिरि ॥१०॥इति। सिगिरि स्तुति
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( २६ )
॥ अथ श्री आदिनाथ विनंतिरूप श्री शत्रुंजय स्तवन ॥
॥ पणमविसयल जिणंद पाय, मन वंदित कामी ॥ सयज तीरथनो राजीन ए, प्रणमुं सिरनामी ॥ जस दरिशन डरगति टले ए, नासे सवि रोग ॥ स्वज न कुटुंब मेला मजे ए, मनवंडित जोग ॥ १ ॥ नानि कुमर जगजालीयें ए, मरुदेवीनो नंद ॥ वदन कमज दीपे प्रति ननुंए, जाणे पुनम चंद ॥ शत्रुजा केरो राजीयो ए, सोवन मय काया | उंचपणे सय धनुष पंच, प्रणमें सुर राया ॥ २ ॥ चोराव इंड् यादे दइ ए, सुर सेवा सारे ॥ त्रिभुवन तारण वीतराग, नव पार उतारे || चालाने शत्रुजे जाइयें ए, दरखे कीजें जात्र ॥ सूरज कुंके स्नानकरी, कीजे निर्मल गा
॥ ३ ॥ खीरोदक सम धोतीया ए, उदय बादर चीर ॥ कनक कलश सायें लइ, नरीयें निर्मल नीर ॥ बावना चंदन घसी घणो ए, कवोला जरीयें ॥ युगा दिदेव पूजा करी ए, नव सायर तरीयें ॥ ४ ॥ चंपक केतकी मालती ए, मांहे दमणो शोहे ॥ कुसुममाल कंठे ठवोए, नवियण मन मोहे ॥ कर
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( १७ )
जोडीने वीनवुं ए, सुणो स्वामी वात ॥ धर्मविना नर जव गयो ए, नवि जाल्यो जात ॥ ५ ॥ कामक्रोध मद लोन वसें, जे में कीधा पाप ॥ प्रेम धरीने मुक्ति यो यादिशर बाप ॥ शांतिनाथ मरुदेवी भुवन, वेदु जमणां सोहे ॥ खागल यदबुद वदतां ए, नवि जन मन मोहे ॥ ६ ॥ परव एक वडव धबे, पासें पांच देहरी ॥ इंड् यंत्र यागे निरखतां ए, टा ले नव फेरी ॥ कूंतासर कोमेंकरी ए, ललिता सर जोड | नीरविना शोने नहीं ए, एतो महोटी खोड ॥ ७ ॥ ते घागल राम पोल ने, दीसे यनि राम || पासें वाघण तप तपे ए, तस सीधा काम ॥ खरतरवसहीने विमलवसही, बेदु जिमणां देखो ॥ मूलकोट मांहे पेसतां ए, पहिलां खादिसरदेखो ॥ ८ ॥ कावे पासें जिमणे पासें, प्रतिमा यति दीपे ॥ पुंम रिक बिंब यति नलो ए, रूपें त्रिभुवन जीपे ॥ महो टी प्रदक्षिणा देहरे ए, एकसो एक जाणुं ॥ तेम नान्दी दरखे कहुं ए, पच्चास वखाणुं ॥ ए ॥ कवड यह गोमुख जलोए, चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सानिध करे ए, संघ विघ्न हरेवी ॥ रायण हेठें पगला घले, यादिसर केरां ॥ नावे नविपूजा करो ए, टालो
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( २८ )
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नव फेरां ॥ १० ॥ शत्रुंजय बिंब संख्या सुणो ए, पन्नरसेंने पांस ॥ न्हाना महोटा देहरां देहरी, त्र
बारा || सीतरिसय जिनवर तथा ए, रूप पा टीयें दीसे ॥ खरतर वसहीमां पेसतां ए, जोतां मन ह्रीं ॥ ११ ॥ एकावन घोरसा जलाए, जेणे शूकड घ सीयें ॥ [श्रादिदेव पूजा करी ए, जई शिवपुर वसीयें ॥ देहरा उपर गोमटी ए, संख्या सुयो वात ॥ एकसो एकशठ में गणी ए, मूकी परनी तात ॥ १२ ॥ जिन वन शिर उपरे ए पांच चोमुख शोहे ॥ सुर नर नारी सदु तं ए, दीठे मन मोहे ॥ त्रण कोट यति मनोहरु ए, जाणे त्रिगडुं दोसे, खरतर वसही मांहे जलाए, जोतां मनडो हींसे ॥ १३ ॥ पांच मूरति पांव तणी ए, जोतां धनिराम ॥ चौमुख प्रतिमा शोजती ए, सुरकरे गुणग्राम ॥ कलखा जोल चेलणा तलावडी ए, सिद्ध सिल्ला तिहां रूडी ॥ सिवड सिद्ध तलु ाम ए, नही वातज कूडी ॥१४॥ यादिसरनी मूल प्रतिमा, नरतेसरें कीधी ॥ पांचसें धनुषनी रत्नमय, करी मुक्तिज जीधी ॥ ते प्रतिमा शत्रुजे खबे, पण कोइ न पेखे || जव त्रीजे जे मुक्ति लहे, नर तेहीज देखे ||१५|| यादिसरने मूल देहरे,
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( ए) पावडीयां बत्रीश ॥ नाग मोरनां रूप देखो, नवीकीजें रीश ॥ रायण वडपीपल कटुंए, अांबलीय जगीश ॥ त्रण कोट मांहे महोटा ए, जाड एकवीश ॥ ॥१६॥ कोट देहराना कांगरा ए, बारशें बारा॥ थेन ग्यारसे में घण्या ए, उपर पांशह ॥ इसर कुं मने नोमकुंम, जुज कुंम वखाणुं ॥ खोडीधार कुंभ शिलार कुंझ, तेहनो पार नजाणुं ॥ १७ ॥ सोवन सिघरस कूपीका ए, चोखा फिटकनी खाण ॥ चार पाज शत्रुजे चढी ए, कीजें कर्मनी दाण ॥ नीली धोली पर्व बेदु, होवे तेहिज नाम ॥ संघ यात्रा करी तिहां मले ए, वीसामा गम ॥ १७॥ या दिपुरो रलियामणु, दीनां पापज नासे ॥ शत्रुजी जली नदीवहे, शत्रुजेगिरि पासे ॥ इंदपुरी समोवडे ए, पालीताणो नयर ॥ उत्तंग प्रासाद जिहां जिनत पा, दो नासे वयर ॥ १ए॥ मानसरोवर समो वडें ए, ललिता सर सोहे ॥ वनवाडी याराम नाम, इंशदिक मोहे ॥ शत्रुजो शिवपुर समोवडें ए, झानी इम बोले ॥ त्रिनुवन मांहे तीरथ नहींए, शत्रुजा गिरि तोले ॥ २०॥ ए तीरथ संख्या में क ही ए, शत्रुजय गिरि केरी ॥जे नरनारी जणे गुणे ए,
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तस टाडे नव फेरी ॥ संकट विकट सवि टले ए, शत्रुजय गिरिनामे ॥ सकल कर्मनो दय करी ए, ते शिवपुर पामे ॥ २१ ॥ तपगढ नायक गुण नि लो ए, गुरु हीरजी राया ॥ मन मोहन विजयसेन सूरि, तेहना प्रणमुं पाया ॥ विमलहरख शिष्य प्रेम विजय, कहे निसुणो देव ॥ नवनव शत्रुजे गिरि तणी ए, मुज देजो सेव ॥ १२ ॥
॥ कलश ॥ इम थुण्यो स्वामी मुक्तिगामी,आदिजिन जगदेवए ॥ नित्य नमे सुर नर असुर व्यतर, करे य हनिप्त सेवए । जे नणे जगते नली युक्तं, तसवर ज यजय कारए ॥ कहे कवियण तुणो नवियण, जिम पामो नव पारए ॥ २३ ॥ इति श्रीशत्रुजय स्तवनं ॥
॥अथ॥ ॥श्री अमृत विजयजीकृत श्री शत्रुजय
तीर्थमाला प्रारंनः॥ ॥ ढाल पहेली गरबानी देशीमां ॥ जगजीवन जा लम यादवारे, तुमे शाने रोंकोजो रानमा ॥ तुमे स घले कहेवायो बो माधवारे, तुमे ॥ ए देशी ॥
॥ विमलाचल विमला वारूरे, नवियण ने
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(३१) टो नावमां ॥ तुमे सेवो ए तीरथ तारुरे, जिम नप डो जवना दावमां ॥जलें ॥१॥ए घांकणी ॥ जग सघला तीरयनो नायक,हारे तुमे सेवो शिवसुख दायक रे ॥ नसें ॥२॥ ए गिरिराजने नयणे निहाली, हारे तुमे सेवो अवधि दोष टाली रे॥जलें ॥३॥ मुक्ता सोवन फूलें वधावो,हारे नमी पूजीने नावना नावो रे ॥ना॥४॥ कांकरे कांकरे सिह अनंता, हारे संनारो पानें चढंता रे ॥नलें ॥५॥ आदि अजित शांति गौत म केरा, पहेला पगनां पूजो जलेरा रे ॥ जलें ॥६॥ थागें धोली परब टुंके चढियें, तिहां नरतचक्री पद न मीयें रे ॥ नलें ॥ ७ ॥ नीली परब अंतराले आवे, हारे नेमी वरदत्त पगला शोहावे रे ॥ नलें ॥ ७॥ यादिशुन नमिकूम कुमारा, हिंगलाजहडे चढो प्या रा रे ॥ नसें ॥ ए॥ तिहां कलिकुंम नमी श्रीपास, हारे चढो मान मोडी नन्नास रे ॥नलें॥१॥ गुणवं तगिरिना गुणगाई, बाला कुंके विसमोनाई रेनलें ॥ ॥ ११ ॥ तिहाथी मकागाली पंथें धसी, प्रनु गढ दे खीने ननसीय रे ॥ नलें॥ १२ ॥ नमीये नारद थ इमत्तानी मूरति, वली साविड वारिखिन्न सुरतिरे ॥ जलें ॥ १३ ॥ तीरथनमी देखी सुख जागे, निरखो
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( ३२ )
हेमकुंमने खारे ॥ न लें ० ॥ १४ ॥ राम नरत शुक सेन ग स्वामी, हांरे यावच्चा नमुं शिरनामीरे ॥ नवें ॥ १५ ॥ चूषणकुंम वाडी जोइ वंदो, शुकोशल मुनि पद सुख कंदोरे ॥ ० ॥ १६ ॥ यागल हनुमंतवीर कहाये, हांरे तिहांथी वे वाटें जवायेरे ॥ नसें ० ॥ १७ ॥ मावी दिसा रासपोज हुं रंजी, साहामी दीसे नदी शत्रुजी रे ॥ ज० ॥ १८ ॥ जातां जमली दिसें वंदो नाली, मुनि जाली मयाली नवयालीरे ॥ नजें० ॥ १९ ॥ तिहांथी मावी दिसें साहामा शोहावे, नमो देवकी पट सुत नावेरे ॥ नजें० ॥ २० ॥ इम गुननाव थकी उत्कर्षे, रामपोलमां पेसीयें हरखेंरे ॥ नजै० ॥ ॥ २१ ॥ कुंतासर पालें नवघण नालो, जेह कीधी शाह सुगालोरे ॥ नलें० ॥ २२ ॥ धाइ सोपान चढी यति दरखो, जइ वाघण पोजें निरखोरे ॥ नलें० ॥ ॥ २३ ॥ थिरतायें न योग जगावो, कहे अमृत जावना जावोरे ॥ नलें० ॥ २४ ॥
॥ ढाल बीजी ॥ सीता हरखीजी, उग्रायो हनु मंतको लस्कर, घटाज्युं उमटी श्रावनकी सीता हरखीजी दरखीजी ॥ ए देशी ॥
॥ निरखीजी निरखीजी, हूंतो हरखुरे निरखीजी ॥
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(३३)
हरखीजी हरखीजी, हूंतो प्रणमुं रे हरखीजी ॥ ए
आंकणी ॥ अति हरखें संचरतां जोतां, जिनघर । ला उलेंजी ॥ जीव जगाडी सीस नमाडी, यावी हाथीपोलें ॥ दूतो प्रणमुंरे हरखीजी० ॥ १ ॥ श्रा गत पुंमरिक पोलें चढतां, प्रणमुंबे कर जोडीजी॥ तीरथपती नुवन निहाली, कर्मजंजीर में तोडी । हूंतो० ॥ ॥ मूलगंनारे जातां मार्नु, सुरूत सघना तेडोजी ॥ तत्कण कृत दूरे पलाया, नाखी कुगति नखेडी ॥ हूं० ॥ ३ ॥ दीगो लामण मरुदेवीनो, बेगे तीरथ थापीजी॥ पूरव नवाणुं वार श्राव्याथी, जग मां कीर्ति व्यापी ॥ढुं० ॥ ॥ श्रीपादोश्वर विधियु वांदी, बोजा सर्व जुहारुंजी ॥ नेमि विनेमि कानस गिया पासें, जोइ जो पातम तारूं ॥ ढुं० ॥ ५ ॥ साहामां गजवर खंधे बेठा, जरत चकीनी माडीजी॥ तिम सुनिंदा सुमंगला पासे, प्रणमु धन ते लाडी ॥ ढुं०॥ ६ ॥ मूल गनारामां जिनमुश, एकें नंणी पञ्चा शजी ॥ रंगमंझपमा पडिमा एंसी, वंदो नाव नल्ला सें ॥ढुं० ॥७॥ चैत्य उपर चोमुख थाप्यो, फिरती प्रतिमा बागुंजी.॥ वली गौतम गणधरनी गवणा, सो तारीफ वखाणुं ॥ ढुंग॥ ७ ॥ देहरा बाहेर फरती
३
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(३४) देहरी, चोपन रूडी दीसेजी ॥ तेहमा प्रतिमा एकशो त्र्याए, देखी हीयहूं हीसे ॥ ढुं० ॥ ए॥ नीलडी रायण तरुवर हेग्ल, पीडला प्रमुजीना पायजी॥ पूजी प्रणमी नावना नावी, कलट अंग नमाय ॥ ढं ॥१०॥ तस पद हेतल नाग मोरनी, मूरति बेद शोहावेजी ॥ तस सुर पदवी सिक्षाचलनां, माहात्म माहे कहावे ॥ढुं० ॥ ११ ॥ साहमा पुमरिक स्वामी बिराजे, प्रतिमा बबीश संगेंजी ॥ तेहमा एक बौधनी प्रतिमा, टाली नमीयें रंगें ॥ ढुं० ॥ १२ ॥ तिहाथी बाहिर उत्तर पासें, प्रतिमा तेर देदारुजी ॥ एक रूपानी यवर धातुनी, पंच तीरथ वारू ॥९० ॥ ॥ १३ ॥ नत्तर सन्मुख गराधर पगला, चनदसया बावननांजी, तेहमां शांतिजिणंद जुहारी, पुग्या कोड ते मनन ॥ दु० ॥१४॥ ददग पासे सहस कूटने, देखी पाप पलायजी ॥ एक सहस्स चोवीश जिनेसर, संख्यायें कहेवाय ॥ ९० ॥ १५ ॥ दश दे मली त्रीश चोवीसी, वली विहरमान विदेहेंजी॥ एकशो सीतेर उत्कृष्ट कालें, संप्रति वीश स्नेहे ॥ हुँ॥ ॥१६॥ पाठांतर ॥ दश दे मला त्रीस चोवीसी, एक शो शाठ विदेहें जी॥ उत्कृष्टा विहरमान विनजी, संप्र
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(३५)
ति वीरा स्नेहें || हुं० ॥ चोवीश जिननां पंच कल्याणिक, एकशो वीश संजारीजी ॥ शाश्वता चार प्रभु सरवाले, सहसकूट निरधारी ॥ ॥ १७ ॥ गोमुख यक्ष चक्केसरी देवी, तीरथनी रखवालीजी ॥ ते प्रजुनां पदपंकज सेवे, कहे अमृत निहाली ॥ हुं० ॥ १८ ॥
॥ दाल त्रीजी ॥ मुनिसुव्रतजिन घरज मारी ॥ ए देशी ॥
|| एक दिशाथी जिनघर संख्या, जिनवरनी संन लावुं रे ॥ यातमथी उलखाण करीने, ते यहिगण बता रे || त्रिभुवन तारण तीरथ वंदो ॥ १ ॥ ए
कली ॥ रायणथी दणने पासें, देहरी एक नले रे ॥ तेहमां चौमुख दोय जुहारुं, टालु नवनी फे री रे ॥ त्रिनु ॥ २ ॥ चौमुख सर्व मलीने लूटा, वीश संख्यायें जालो रे || बूटी प्रतिमा या जुहारी, करी यें जनम प्रमाणो रे ॥ त्रिनु ॥ ३ ॥ संघवी मोती चंद पटणीनुं, सुंदर जिनघर शोहे रे ॥ तिहां प्रतिमा उगणीश जुहारी, हीयडुं हरखित होये रे ॥ त्रिनु || ॥ ४ ॥ श्रीसमेत शिखरनी रचनां कीधोबे नली नां ते रे ॥ वीश जिनेसर पगला वंडु, बावोशजिन संघा तेरें ॥ त्रिजु ॥ ५ ॥ कुशलबानां चोमुख मांहे,
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सत्तर जिन शोदावे रे ॥ अचलगबना देहरा मांहे, बत्रीश जिनजी देखावेरे॥त्रिनु०॥६॥ शाह मूलानां मंझप मांहे, बेतालीश जिनंदोरे ॥ चोवीश वट्टो एक तिहां ,प्रणम्ये परमानंदो रे ॥ त्रिनु० ॥ ॥ अष्टा पद मंदिरमा जश्ने, अवधिदोप तजीश रे॥ चार पाठ दस दोय नमीने, वीजा जिन चालीश रे ॥ त्रिनु०॥ ॥७॥शेठजी सरचंदनी देहरीमां, नव जिन पडिमा
जे रे ॥ घीया कुंधरजीनी देहरीमां, प्रतिमा त्रस्य बिराजे रे ॥ त्रिनु० ॥ ए ॥ वस्तुपालनां देहरा मांहे, थाप्या षन जिणंद रे ॥ कानसगीया बे एकत्रीश जिनवर, संघवो ताराचंद रे ॥ त्रिनु० ॥ १७ ॥ मेरु शिखरनी ग्वणा मध्ये, प्रतिमा बार नजेरी रे ॥ ना
णा लींबडीपानी देहरीमा, दश प्रतिमा जो हेरी रे ॥ त्रिनु० ॥ ११ ॥ संघवी ताराचंद देवल पासें, देहरी त्रस्य अनेरीरे ॥ तेहमां दश जिनप्रतिमा निरखी, थिर परिणिति थइ मेरीरे ॥ त्रिनु० ॥१२॥ पांच नाश्याना देहरा मांहे, प्रतिमा पांचढे महोटी रे ॥ बीजो तेंत्रीश जिन पडिमा, एह वात नही खोटीरे ॥ त्रिनु०॥ १३ ॥ अमदावादीनुं देहरुं क हियें, तेहमा प्रतिमा तेर रे॥ ते पनवाडे देहरी मांहे,
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(३७) प्रणमुं धान सवेर रे ॥ त्रिनु॥ १४ ॥ शेत जगन्नाथ जीयें कराव्युं.जिनमंदिर नले जावे रे।। तेहमां नव जि नपडिमा वंदी, कवी अमृत गुणगावे रे॥त्रिनु॥१५॥ ॥ ढाल चोथा ॥ तुमे पीता पीतांबर पहेयाजी
मुखने मरकलडे ॥ ए देशी॥ ॥रायणथी उत्तर पासेंजी, तीरथना रसीया ॥ जिनवर जिनघर नन्नासेंजी ॥ मुज दीयडे वसीया ॥ ए बांकणी ॥ सहु नां जोड शिरनामीजी॥ ती० ॥ मुज मननां यंतर जामीजी । मु०१॥ जिनमुायें रूषन जिणंदोजी ॥ ती० ॥ तिम नरत बाहुबलि वं दोजी ॥ मु० ॥ नमि विनमी कासगीया सामाजी। ती० ॥ ब्राह्मी सुंदरी एक देहरीमांजी ॥मु॥॥ पद कृष्ण शुकल ब्रह्मचारीजी ॥ तो० ॥ शेत विजयने वि जया नारीजी ॥ मु०॥ एहवा कोए न दूया अवता रीजी ॥ ती० ॥ जावं तेहनी हुँ बलिहारोजी ॥ मु॥ ॥३॥ ग अंचल चैत्य कहावेजी॥ती॥ वीश पडि मा वंड नावेजी ॥ मु०॥ तस मंझप थना मांहिजी ॥ती॥ चौद पडिमा वंडं त्यांहिजी ॥मु॥१॥ नूषण दासनां देहरा मांहेजी ॥ ती० ॥ तेर पडिमा थापीठ बांहेजी ॥ मु० ॥ वाबरडा मंगल खंनातीजो ती० ॥
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.(३७) तस चैत्यमांत्रण्य शोहातीजी ॥ मु० ॥ ५॥ शाकर बाइनी देहरीयें वंदोजी॥ती॥ सात प्रतिमा निरखी पाणंदोजी ॥ मु० ॥ तिहांथी वली आगल चालो जो॥ ती० ॥ माता विसोतनुं देहरुं नालोजी ॥ मु॥ ॥ ६॥ पण ते वस्तु पालें कराव्युंजी॥ ती० ॥ यात प्रतिमायें सोहाव्युंजी ॥ मु०॥ ते उपर चोमुख रा जेजी ॥ ती० ॥ चार शाश्वता जिन बिराजेजी॥ मु॥ ॥॥उगमणी बे ने देहरी जी॥ ती० ॥ जिनपडिमा इग्यार नलेरोजी ॥१॥ शाहेमचंदनी दखणाती जी॥ ती० ॥ देहरीमा जोडी सोहातीजी ॥ मु० ॥ ७ ॥ शा रामजी गंधारी कीधोजी ॥ ती॥प्रासाद उतंग प्रसिदोजी॥ मु॥ तिहां चौमुख देखी आणंजी॥ ती० ॥ सात प्रतिमा साथें वंजी।मु०॥ ए॥ खट देहरी तस संगेजी॥ ती० ॥ जिन नमीयें तेंतालीश रंगेजी ॥ मु०॥ तिहां चोवीश जिननी मांमोजी ॥ ती० ॥ जिन संगे लेइने ठहाडीजी ॥ मु०॥ १०॥ मूलकोटनी जमती मांहेजी। ती० ॥ फिरती ने चार दिशायेंजी ॥ मु० ॥ पांचशे सडसह सुखकंदोजी॥ ती० ॥ फिरता सघले जिन वंदोजी ॥ मु०॥११॥ मूलकोटना चैत्य निहाले जी॥ ती० ॥ एकशो पां
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(३५)
शठ सरवालेजी ॥ मुं० ॥ तिहां प्रनु सगवीसमें वं दोजी ती॥ कहे अमृत ते चिरनंदोजी ॥मु॥१॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ वात करो वेगला रही
विसरामी रे॥ ए देशी ॥ ॥ हवे हाथोपोलनी बाहेरें ॥ विसरामी रे ॥ बै गोखें जिनराज ॥ नमु शिर नामी रे ॥ तेहथी द क्षण श्रेणीयें ॥ वि०॥ कहुँ जिनघर जिननो साज ॥ न ॥१॥ कुमर नरिंदें करावीयो॥ वि०॥ धन खरची सार विहार॥न॥बावन शिखरें वंदी॥वि०॥ तिहोत्तर जिन परिवार ॥ न ॥२॥ वली धनराजने देहरे ॥ वि०॥ प्रतिमा वंड सात ॥ न० ॥ देहरे वर्ष मान शेठ ने ॥ वि०॥ प्रतिमा सात विख्यात न०॥ ॥३॥ शाह रवजी राधणपुरी ॥ वि० ॥ तेहतुं जिन घर जोय ॥ न० ॥ तिहां पनर जिन दीपता वि॥ प्रणमो पातिक धोय ।। न० ॥ ४॥ तेहनी पासें रा जता ॥ वि०॥ मंदिरमां जिन चार ॥न ॥ ति हाथी पागल जोश्य। वि०॥यन्त रचना सार । न० ॥ ५ ॥ जगत शेठजीये कीयो ॥ वि०॥ त्रस्य शिखरो प्रासाद ॥ न० ॥ तिहां पन्नर जिन पेखतां ॥ वि०॥ मुज परणति दूर थाल्हाद ॥ न० ॥६॥
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(४०)
पासें नुवन जिनराजनुं ॥ वि० ॥ तिहां खट प्रतिमा धार॥न ॥ मूर्जा उतारी कीयो ॥ वि० ॥ ते होर बाईयें सार ॥ न० ॥ ७ ॥ कुंअरजी लाधा तणुं ।। वि०॥ दीपे देवल खास ॥ न ॥ तेंत्रीश जिनगुं था पीया ॥ वि० ॥ सहस्त फणा श्रीपास ॥ न ॥ ७॥ विमल वसहियें चैत्य ॥ वि०॥ जून नलिवणिमां चार ॥ न ॥ वली नमति चोमुख वे मनी ॥ वि०॥ तिहां एक्यासी जिनदार ॥ न० ॥ ए॥ नेमीसर चोरी जिहां । वि०॥ तिहां एकसो सीतेर देव ॥ न० ॥ मूल नायकगं वंदीये विणावली लोकनाल ततखेव न ॥ १०॥ विमलवसही पासें अ॥ वि०॥ देहरा दो य निहाल ॥ न०॥ प्रतिमा घाउ जुहारीयें ॥ वि०॥ श्रातम करी नजमाल ॥न॥११॥ पुरस्य पापर्नु पार ॥ वि० ॥ करवाने गुणवंत ॥ न॥ मोद बारी नामे घडे ॥ वि०॥ तिहां पेसी निकसो संत ॥ नः ॥ १२॥ तीरथनी चोकी करे ॥ वि० ॥ वली संघतणी रखवाल ॥ न ॥ करमांशाहें थापीया ॥ वि०॥ सदु विघ्न हरे विसराल ॥ न० ॥१३॥ सघले अंगें शोनता ॥ वि० ॥ नषण जाकजमाल ॥ न०॥ चर णा चोली पेहेरणे ॥ वि० ॥ शोहे घाटडी लाल गु
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(४१) लाल ॥ न० ॥१४॥ चतुरनुजा चकेसरी॥ वि०॥ तेहना प्रणमी पाय॥न ॥ संघ शकल उलंघ करे॥ वि०॥ बुध अमृत जर गुण गाय ॥ न० ॥१५॥ ॥ ढाल बही॥ नवितुमे वंदोरे, संखेश्वर
जिनराया ॥ ए देशी॥ ॥ नवितुमे सेवो रे,ए जिनवर उपगारी ॥ कोनही एहवो रे, तीरथमां अधिकारी॥ ए थांकणी॥ हाथी पोलथी उत्तर श्रेणे, जिनघर जिनजी जे ॥ समो सरण सुंदर तेहमां, प्रतिमा चार विराजे ॥ नवि० ॥१॥ समोवसरण पनवाडे देहरी, थावे अनोपम शोहे ॥वीश जिनेसर तेहमां बेग, नवियानां मन मोहे ॥ नवि० ॥ ॥ रत्नसिंघ नंमारी जेणे, कीg देवल खास ॥ तिहां जिन चार संघात थाप्या,विजय चिंतामणी पास ॥ नवि० ॥३॥ तेहनी पासें चारले देहरी, तिहां जिनपडिमा वीश ॥ प्रेमजी वेलजी शा हने देहरे, प्रणामुं पांच जगीश ॥ नवि०॥ ४ ॥ नथ मन थाणंदजीये कीधुं, जिनमंदिर सुविशाल ॥ तिहां जइ पांच जिनेसर नेटे, मेटे नव जंजाल ॥ नवि० ॥ ५॥ वधसा पटणीने देहरे, अष्टादश जिनराया ॥ पासें देहरी चिना बिंबनी, देश बंगाल कहाया ॥
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(४२)
नवि०॥ ६॥ यति थपूत जिनमंदिर रूडं, साधा वोहोरा केरुं ॥ तेहमां जे षट प्रतिमा वंदे, तेह नाग्य नलेलं ॥ नवि०॥७॥ शामीताचंद लाया जा गुं, पाटण सहेरनां वासी॥ जिनमंदिर सुंदर करी पडिमा, पांच नवी ने खासी॥ नवि०॥ ॥ मुणोत जयमलजीने देहरे, चोमुख जश्ने जुहारूं ॥ प्रतिमा दोय दिगंबर जुवने, निरखी नाखुं सारं ॥ नवि० ॥ ॥ ए॥ षन मोदीयें प्रासाद कराव्यो, तिहां दश पडिमा वंदो ॥ राजसी शाहनां देहरा मांहे, नेट्या शांतिजिणंदो ॥ नवि० ॥१०॥ तीरथ संघ तणो रख वालो, यद कपर्दी कहियें ॥ बोजी मात चक्केसरी वंदी, सुख संपति सदु लहियें ॥ नवि० ॥११॥ न्हाना महोटा जुवन मलीने, बेतालीश अवधारो॥ संख्यायें जिनजीनी पडिमा, पांचशे शोल जुहारो ॥ नवि०॥ १३ ॥णीपरें सघला चैत्य नमीने, नाही सूरजकुंम, जयणायें सुची अंग करीने, पहेरो वस्त्र अखंग ॥ नवि० ॥ १३॥ विधिपूर्वक सामग्री मेली, बहु नपचार संघाते ॥ नानिनंदन पूजी सदु पूजो, जिनगुण अमृत गाते ॥ नवि० ॥ १४ ॥ इति ॥ प्र थम टुंक प्रतिमा संख्या ॥
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(५३) ॥ ढाल सातमी ॥ नरतनृप जावा ए॥ ए देशी॥
॥ बीजो टुंक जुहारीयें ए, पावडीयें चढी जोय ॥ नमो गिरि राजने ए ॥ ए आंकणी ॥ पहेलांते अद बुद देखीने ए, मुज मन थचरिज होय ॥ नमो० ॥ ॥ १ ॥ तिहाथो बागल चालतां ए, देहरी एक निहा ल ॥ नमो॥ तेह नामे जर वंदीयें ए, पासजी शांति कृपाल ॥नमो॥॥ खोडीयार कुंमने उपरें ए.कीयो प्रासाद उत्तंग ॥नमो॥ संघवी प्रेमचंद लवजीयें ए, निजधन खरची उमंग ॥न॥३॥ गोख सटावट कोर गीए, नन्नत रचना जास ॥ न० ॥ ध्वज कलशे करी शोहतोए, दोपे जेम कैलाश ॥ न० ॥ ४ ॥ तपगह नायक दिनमणीए, विजय जिनेश सूरिंद ॥ न० ॥ अहाणु जिन परिवारलॅ ए, थाप्या पन जिणंद ॥ ॥ नमो० ॥ ५ ॥ संघवी प्रेमचंदें कयो ए, जिन मंदिर सुखकार ॥ नमो० ॥ सर्वतोनइ प्रासादमा ए, बिंब नवाणु सार ॥नमो॥६॥ शाहेमचंद लवजी कस्यो ए, देहरो तिहां गुननाव ॥ नमो० ॥ बिंब प चवीश तिहां वंदीयें ए, नवोदधी तारण नाव ॥नमो० ॥ ७॥ पानांतर ॥ संघवी हेमचंदने देहरे ए,तेत्रीश जि नवर वार ॥न॥ वंदी परमानंदथी ए, सफल कसो
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( ४४ )
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अवतार |||||| आगल पांव वंदीयें ए, पांच रह्या कासग्ग || नमो० ॥ कुंता माता शैौपदी ए, गुणम पिनां ते वग्ग ॥ नमो० ॥ एए ॥ खरतर वसहीनो बा रीयें ए, पहेतु शांतिनवन्न || नमो ॥ बहुतेर जिनचुं वंदीयें ए, चोवीश वहा त्रन्न ॥ नमो० ॥ १० ॥ पासें पासजिनेसरु ए, बेठा भुवन मजार || नमो० ॥ चो वीवो एक तेहमां ए, साधुमुझ दोय धार ॥ नमो० ॥ ११ ॥ तेहमां नंदिसर थापना ए, बावन जिन परि वार || नमो० ॥ अवधि प्राशातना टालीने ए, बिंब योगस्यासी जुहार ॥ नमो० ॥ १२ ॥ एकजिन घरमां थापीया ए, सीमंधर जिनराय || नमो० ॥ प्रतिमा चारचं वंदीयें ए, परिणति शुद्ध ठहराय ॥ नमो० ॥ ॥ १३ ॥ त्रण जिनरायचं जुवनमां ए. बेठा श्रीश्रजित जिणंद ॥ नमो० ॥ पासें मात चक्केसरी ए, अष्टनूजा ते मंद ॥ नमो० ॥ १४ ॥ चौमुख त्रणले तेहनी ए, प्रतिमा वंदो बार || नमो० ॥ रायणतले चनपादिका ए, तिहां एक पडिमा सार ॥ नमो० ॥ १५ ॥ गण धर पाडुका वंदीयें ए, चउदसयां बावन्न ॥ नमो० ॥ पासें बे देहरी दीपती ए, कीधी धन्यते जन्न ॥ नमो० ॥ १६ ॥ शाहेमचंद शिखरे कीयो ए, जिनमंदिर सु
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(४५)
विलास ॥ नमो० ॥ तिहां त्रण पडिमायें नमु ए, श्री मन मोहन पास ॥नमो० ॥ १७ ॥ श्रामण साहामा
देहरा ए, श्रीशांतिनाथनां दोय ॥ नमो० ॥ एकमां प्रतिमा त्रस्य नमुं ए, बीजें पचाश तुं जोय ॥ नमो० ॥ १८ ॥ मूलकोट मांहे दण दिसें ए, देहरी त्रस्य बेजोड | नमो० ॥ तहां प्रतिमा खट वंदीयें ए, क हे अमृत मद मोड | नमो० ॥ १९ ॥
॥ ढाल खामी ॥ तपचं रंग लागो || ए देशी ॥
॥ उत्तर पूरव वचले नागें, देहरी त्रस्य शोहावे रे । दरखीने ते थानक फरसे, वरसी समता जावें ॥ एहने सेवोने, हांरे तुमे सेवो सदु नरनार || एहने ॥ ॥ एतो मेवो इसे संसार || एह ॥ एतो नवजल तारण हार || एहने० ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ तेहमां यावच्चा सुत सेजग, सूरि प्रमुख सुखदाइ रे || इगिरि सीधा तेहनां पगलां, वंडु सहस्त घढाइ || एहने ॥ २ ॥ पासें विहार उत्तंग विराजे, रंगमंरुप दिसि चार रे ॥ सेव शिवासोमजीयें कराव्यो, खरची वित्त उदार ॥ एहने० ॥ ३ ॥ अनंत चतुष्टय गुण निपज्याथी, सर खा चारे रूप रे ॥ परमेसर गुन समयें थाप्या, चारे
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(४६) दिशायें अनूप ॥ एहने॥ ४ ॥ ते श्री कृषन जिने सर चौमुख, बीजा जिन त्रेताल रे ॥ शुद्धनिमित्त का रण लही एहवा, ढुं प्रणमुं त्रस्य काल ॥ एहने ॥ ॥ ५ ॥ उपर चोमुख बबीश जिना, देखी उरित नि कंडं रे ॥ चोवीश वट्टो एक मलीने, चोपन प्रतिमा वंडं। एहने ॥ ६ ॥ साहामा पुमरिक स्वामी बेग, पुमरिक वरणा राजे रे ॥ तस पद वंदी जोडे देहरी, तेहमां थून विराजे ॥ एहने॥७॥षन प्रजुने पुत्र नवाणु, आठ जरत मुत संगे रे ॥ एकशो घाउ सम य एक सीधा, प्रणमुं तस पद रंगे ॥ एहने ॥ ७॥ फिरति नमति मांहे प्रतिमा, एकशोने बत्रीश रे॥ तेहमां चोवीश वट्टा साथे, एकशो शाठ जगीश ॥ ॥ एहने ॥ ए॥ पोल बाहेर मरुदेवी ढूंके, चोमुख एक प्रतिको रे ॥ धनवेलबायें निज धन खरची, नरनव सफलो कीधो ॥ एहने ॥ १० ॥ पश्चिमने मुख साहमां शोहे, देवलमा मनोहारी रे ॥ गजवर खंधे बेठा थाई, तीरथनां अधिकारी ॥ एहने ॥११॥ संप्रतिरायें नुवन कराव्यु, उत्तर सनमुख शोहे रे॥तेह मांअचिरानंदन निरखो,कहे अमृत मन मोहे ॥१॥
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(४७)
॥ ढाल नवमी॥ पाठ कूवा नव वावडी हुँ सेमिसें दे खण जानं माहाराज, दधीनो दाणी कानुडो।एदेशी॥
॥हवे बीपावसहीमा वाहाला,हारे तुमे चालो चेतन लाला राज ॥धाज सफल दिन ए रूडो॥ ए बांक गी। जिनमंदिर जिन मूरत नेटो, नव नवना पा तिक मेटो राज ॥ बाज॥१॥ तिहां पांच गंनारे जर अटकलिया, मानु पांच परमेष्टी मलिया राज ॥ था० ॥ रायण तले पगलां सुखदाइ, तिहां षन प्रजुने गाई राज ॥था॥॥ नेमिजेनेसर शिष्य प्रवीणा, मुनि नंदिषेण नगीना राज॥था॥ श्रीश
जय नेटण आया, तिहां अजित शांति गुण गा या राज॥या ॥३॥ तेह तवन महिमाथी जो डें, बिहुँ जिनवर वंद्या कोडें राज ॥ आ० ॥ तेह मंदिर बे जोडें निरखी, में नेटया बेहु जिन हरखी राज । बा ॥ ४ ॥ नयर मनोही तणोजे वासी, मनु पारख धर्म अन्यासी राज । आ० ॥ तेणे जि नमंदिर की, सालं, तिहां त्रस्य प्रतिमाने जुहार रा ज॥था०॥ ५॥ एक नुवनमां त्रस्य जिनराजे, बीजामां नेम विराजे राज ॥ था०॥ देवल एक देखी उरित निकं, तिहां पास प्रजुने वंड राज ॥ आण
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( ४ ८ )
॥ ६ ॥ बावन देहरी पाउन फरती, जिनमंदिर शोना करती राज ॥ या० ॥ तेहमां अजित जिनेसर राया, में प्रणमीने गुण गाया राज || खा० ॥ ७ ॥ न्हाना महोटा जुवन निहाली, सगतीस गएया संजाली रा ज ॥ ० ॥ संख्यायें जिनप्रतिमा जलीयें, पांचसें नेव्यासी गणीयें राज ॥ या० ॥ ८ ॥ ए तीरथमाला सुविचारी, तुमे यात्रा करो हित कारी राज ॥ या०॥ दर्शन पूजा सफली थाये, शुन अमृत नावे गाये
राज ॥ ० ॥ ए ॥
॥ ढाल दशमी ॥ मुने संभवजिनचं प्रीत य विहड लागी रे || ए देशी ॥
॥ तुमे सिद्धगिरिनां बेदु ट्रॅक, जोइ जूहारो रे ॥ तुमे मूल अनादिनी मूक, ए नव यारो रे ॥ तुमे व मी जीव संघात, परणति रंगे रे ॥ तुमे करजो तीरथ यात्र, सुविहित संगे रे ॥ १ ॥ वावरजो एक वार, सचित सदु टालो रे ॥ करी पडिक्कमला दोइ वार, पाप पखालो रे ॥ तुमे धरजो सील शृंगार, भूमि सं थारो रे || खाणे पाय संचार, बहरि पालो रे ॥ ॥ २ ॥ इम सुणी यागम रीत, हीयडे धरजो रे ॥ करी सहा प्रतीत, तीरथ करजो रे ॥ श्रा दूषम
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(
ए)
कालें जोय, विघन घणेरां रे ॥ कीg ते सीधुं सोय, गुंडे सवेरां रे ॥ ३ ॥ ए हितशिदा जाण, सुगुणा हरखो रे ॥ वली तीरथनां यहिताण, थामें निरखो रे ॥ देवकीनां खट नंद, नमी अनुसरिये रे, बातम शक्ते अमंद, प्रदक्षणा करिये रे ॥ ४ ॥ पहेली नल खा जोल, नरीते जलशु रे ॥ जाणे केशरनां जब कोल, नमणनां रसशुं रे ॥ पूजे इंश थमोल, रयण पडिमाने रे ॥ ते जल अांख कपोल, वो शिर ठामें रे ॥ ५॥ धागल देहरी दोय, समोपे जा रे ॥ ति हां प्रतिमा पगलां दोय, नमी गुण गा रे ॥ वली चित्रणा तलावडी देख, मनमां धारूँ रे ॥ तिहां सि ६ सिल्ला संपेख, गुण संनाऊं रे ॥ ६॥ नाडवे नवि यण वृंद, आपण जाणुं रे ॥ जे थानक अजितजिणं द, रह्या चोमासुं रें॥ जिहां संब प्रद्युम्न मुनिरंग, थया यविनासी रे ॥ ते धन्य कृतारथ पुण्य, थुणे गुण रासी रे ॥ ७ ॥ हुँतो सिवड पगला साथ, नमुं हि त काजे रे ॥ इहां शिवसुख की, हाथ, बहु मुनिरा में रे॥ इम चढतां चारे पाज, चनगति वारे रे॥ए तीरथ जग जिहाज, नव जल तारे रे ॥७॥ जेज ग तोरथ संत, ते सङ करिये रे ॥ पण ए गिरि नेटे
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(५०)
अनंत, गुणो फल वरियें रे ॥ पुंरुरिकादिक नाम, एकवीरा लीजें रे || जिम मनवंबित काम, सघला सीजे रे ॥ एए ॥ करिये पंच स्नात्र, रायण यादे रे ॥ तिम रुडी रथ यात्र, प्रभु प्रसादे रे ॥ वली नवाणु वार, प्रदक्षणा फिरियें रे, स्वस्तिक दीपक सार. तेता करीयें रे ॥१०॥ पूजा विविध प्रकार, नृत्य बनावो रे ॥ इम सफल करी अवतार, गुणी गुण गावो रे ॥ निज अनुसारें सक्ति, तीरथ संगे रे ॥ तुमे साधु साहमी न क्ति, करजो रंगे रे ॥ ११ ॥ पालीताणु धन्य, धन्यते प्राणी रे ॥ जिहां तीरथ वासी जन्न, पुण्य कमाणी रे ॥ प्रह नगमते सुर, कपनजी नेटो रे || करी दस त्रिक याद पूर, पाप समेटो रे ॥ १२ ॥ जिहां जनितासर पाल, नमी प्रभु पगलां रे ॥ मूंगर जणी उजमाल ॥ जरीयें मगलां रे ॥ वचमां भूखण वाव्य, जोइने चा लो रे ॥ तुमे गुण गातां शुन नाव, सायें माहलो रे ॥ १३ ॥ तुमे धूपघटी करमांहिं, जूला देता रे ॥ व डनी बाया मांहिं, ताली लेता रे || यावी तलेटी ग ए, तनु सुची करियें रे ॥ पूरव रीत प्रमाण, पढी परवरियें रे || १४ इणीपरें तीरथ माल, नावे नए से रे ॥ जिणे दीतुं नयण निहाल, विशेषे सुपाड़ो रे ॥
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(५१)
लेसे मंगल माल, कंठेजे धरसे रे || वली सुख संप ति सुविशाल, महोदय वरसे रे ॥ १५ ॥ तपगब गया दिद, रूपे बाजे रे || श्री विजयदेव सूरिंद, अधिक दिवाजे रे || रत्नविजय तस शिष्य, पंमित राया रे || गुरुराज विवेक जगीश, तास पसाया रे ॥ १६ ॥ कीधो एह धन्यास, घढार चालीशे रे ॥ उजल फागुण मास, तेरस दिवसे रे ॥ श्रीविमला चल चित्त, घरी गुण गाया रे ॥ कहे अमृत नवियण नित्य नमो गिरिराया रे ॥ १७ ॥ कलश ॥ इम तीर भाला गुण विशाला, विमल गिरिवर राजनी || कही स्वपर देतें पुण्य संकेते, एह जिनघर साजनी ॥ तप ग गया दिद गणधर, विजय जिणंद सूरिश्वरू ॥ रची तास राजे पुण्यसाजे, मृत रंग सुहंकरू ॥१८॥ ॥ इति श्री विमलाचल तीर्थमाला संपूरण |
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ए तीरथ माता का पती प्रेमचंद मोदीनी ट्रंक, हेमावसही, मोतीशा शेवनी अंजन शिलाका सहित तेमनी ट्रॅक, बालाजाइनी टुंक, केशवजी नायकना अं जनशिलाका सहित देरासरादिक जे कांइ ए तीर्थमा लानी रचना थया पढी नवा जिनालय थयाने ते सर्व नी यात्रालु सकनोयें यात्रा करवी ए विनंति बे.
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(५२)
| अथ ॥ ॥ पंमित श्रीवीरविजयजीकृत ॥ श्रोशत्रुजय तीर्थना एकवीश नाम संबंधी एक वीश गुण याश्रयी एकवीश खमासमण
आपवाना दोहा प्रारंनः ॥ १ सिमाचल समरो सदा, सोरत देश मजार ॥ म णुय जनम पामी करी, वंदो वार हजार ॥ १ ॥ अंग वसन मन नूमिका, पूजोपगरण सार ॥ न्याय इव्य विधि शुश्ता, शुक्षि सात प्रकार ॥ ॥ कार्तिकशुदि पूनम दिने,दश कोटी परिवार ॥ज्ञाविड वारिखिन्नजी, सिह थया नरधार ॥३॥ तिणे कारण कार्तिकी दिने, संघ सकल परिवार ॥ थादिजिन सनमुख रही, ख मासमण बहु वार ॥ ४ ॥ एकवीश नामे वरणव्यु, तिहां पहेलुं अनिधान ॥ शत्रुजय शुक रायथी, ज नक वचन बदु मान ॥५॥ यहींयां “ सिक्षाचल स मरो सदा" ए हो प्रत्येक खमासमण दीठ कहेवो॥१॥
२ समोसस्या सिक्षाचलें, पुमरीक गणधार ॥ ला ख सवा माहातम कयुं, सुरनर सना मजार ॥ ६ ॥
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(५३) चैत्री पुनमने दिने, कररी अणसण एक मास ॥ पांच कोडी मुनि साथसुं, मुक्ति निलयमा वास ॥ ७ ॥ तिणे कारण पुमरिकगिरि, नामथयुं विख्यात ॥ मन वच कायें वंदोय, मी नित्य प्रनात नासि॥
३ वीश कोडीसुं पांमवा, मोद गया इणे नाम। इम अनंत मुक्तंगया, सिषक्षेत्र तिणे नाम ॥णासिक
४ अडशठ तीरथ न्हावतां, अंगरंग घडीएक ॥ तुंबी जल स्नाने करी, जाग्यो चित्तविवेक ॥ १० ॥ चंदशेखर राजा प्रमुख, कर्मकठिन मलधाम ॥ अचल पढ़ें विमला थया, तिरो विमलाचल नाम॥११॥सि०॥
५पर्वतमां सुरगिरि वडो, जिन अनिषेककराय ॥ सिम दूधा स्नातक पदें, सुरगिरि नामधराय ॥१२॥ अथवा चनदेहेत्रमा, ए समो तीरथन एक ॥ तिणे सुरगिरिनामें नमं. जिहां सुरवात अनेक॥१३॥सि
६ अयसी योजन पृथुलो,उंचपणे दबीश ॥ महि मा ए महोटो गिरि,महागिरि नामनमीस॥१४॥ति॥ ___गणधर गुणवंता मुनि, विश्व माहे वंदनीक ॥ जेहवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीक ॥ १५॥ विप्र लोक विखधर समा,उःखीया नूतल मान॥ इव्य लिंगी कण क्षेत्र सम, मुनिवर बीप समान ॥ १६ ॥
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(५४)
श्रावक मेघ समा कह्या, करता पुरस्यनुं काम ॥ पुण्य निरासि वधे घणी, तेणे पुण्यरासि नाम ॥१॥सि॥ __संयमधर मुनिवर घणा,तप तपता एक ध्यान॥ कर्मवियोगें पामीया, केवल लक्ष्मी निधान ॥१॥ लख एकाएं शिववस्या, नारदलं अणगार ॥ नाम नमो तेणे याठमुं, श्रीपद गिरि निरधार ॥ १५ ॥ ति० ॥
ए श्रीसामंधर स्वामीय,एगार महिमाविलास॥ इंनी बागें वर्णव्यो,तेणे ए इंश प्रकाश ॥२०॥सि॥
१० दश कोटी अणुव्रत धरा, नक्तं जिमाडे सा र ॥ जैन तीर्थ यात्रा करी, लान तो नहीं पार ॥२१॥ तेहथकी सिहाचलें,एक मुनिने दान॥ देतां लान घणो दुवे, महा तीरथ अनिधान ॥श्शासि॥
११ प्रायें एगिरिशाश्वतो,रहेशे कालवनंत ॥ शत्रु जय महातमसुणी,नमो शाश्वतगिरिसंत ॥३॥सि॥
१२ गौ नारी बालक मुनि, चन हत्या करनार ॥ यात्रा का कार्तिकी, नरहे पाप लगार ॥ २४॥ जे परदारा लंपटी, चोरीनां करनार ॥ देवाव्य गुरु व्य नां, जे वली चोरणहार ॥२५॥ चैत्री कार्तिक पूनमें, करे यात्रा इणे गम ॥ तप तपतां पातिक गले, तिणे दृढसक्ति नाम ॥ २६ ॥ सिदा ॥१॥
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( ५५ )
१३ नवनय पामी नीकल्या, यावच्चा सुत जेह ॥ सहस्स मुनिशुं शिव वखा, मुक्ति निलयगिरि तेह || ॥ २७ ॥ सिद्धा० ॥ १३ ॥
१४ चंदा रज बिंदु जणा, उना इलेगिरि अंग ॥ करी व वने वधावियो, पुष्पदंत गिरिरंग ॥ २८ ॥ सि० ॥ १५ कर्मकला नवजल तजी, इहां पाम्या शिवस ॥ प्राणी पद्म निरंजनी, वंदो गिरिमहापद्म ॥ २९॥ सि० ॥ १६ शिववडु विवाह उत्सवें, मंमप रचियो सार ॥ मुनिवर वर बेठक नी, पृथ्वी पीठ मनोहार॥३०॥ सि०
१७ श्रीगुन गिरि नमो, जड़ते मंगलरूप ॥ जल तरुरज गिरिवर तणी, शीस चढावे नूप ॥ ३१ ॥ सि०॥
१८ विद्याधर सुर अपहरा, नदी शत्रुंजी विलास ॥ करता हरता पापने, नजीयें नवि कैलास ॥३२॥ सि० ॥
१५ बीजा निरवाणी प्रभु, गइ चोवीशी मजार ॥ तस गणधर मुनिमां वडा, नामे कदंब अणगार ॥ ३३ ॥ प्रभु वचने यस करो, मुक्ति पुरिमां वास ॥ नामे कंद गिरि नमो, तो होय लील विलास ॥ ३४ ॥ सि० ॥
२० पातालें जस मूलबे, उज्वल गिरिनुं सार ॥ त्रिकरण योगें वंदतां, अल्प होये संसार ॥ ३५॥ सि० ॥ २१ तन मन धन सुत वल्लना, स्वर्गादक सुख
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(५६)
जोग॥जे कंचे ते संपजे, शिव रमणी संयोग ॥३६॥ विमलाचन परमेष्टीनु, ध्यान धरे खट मास ॥ तेज अपूरव विस्तरे, पूगे सघली बाश ॥ ३७॥ त्रीजे नव सिदि लहे, ए पण प्रायिक वाच ॥ नत्कृष्टा परिणा मथी, यंतर मूहुर्त साच ॥ ३८ ॥ सर्व काम दायक नमो, नाम करी उलखाण ॥ श्रीगुन वीरविजय प्र तु, नमतां कोड कल्याण ॥३ए॥ सिदा ॥१॥ इति श्रीसिधाचलना एकवीस नाम आश्रयी एकवीश गुणना खमासमण संबंधी दोहा समाप्तः ।।
-
॥ अथ सिक्षाचल चैत्यवंदनं ॥ ॥ विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिनुवन हितकरं ॥ सुरराज संस्तुत चरण पंकज, नमो या दिजिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमल गिरिवर शंग मंझण, प्रवर गुणगणनूधरं ॥ सुर असुर किन्नर कोडि सेवित ॥ नमो ॥ २॥ करति नाटिक किन्नरीगण, गाय जिन गुण मनहरं ॥ निरावली नमे अहनिश ॥ नमो० ॥३॥ मरिक गणपति सिदि साधी, कोडी पण मुनि मनहरं ।। श्री विमल गिरिवर शंगसिदा ॥ न मो० ॥ ४॥ निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोही
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( 49 )
नंत ए गिरिवरं || मुक्ति रमणी वस्या रंगें ॥ नमो० ॥ ॥ ५ ॥ पाताल नर सुरलोक मांहे, विमल गिरिवर तो परं ॥ नही अधिक तीरथ तीर्थपति कहे ॥ नमो० ॥ ६ ॥ एम विमल गिरिवर शिखर मंगल, दुःख विहं म ध्यायें || निजशुद्ध सत्ता साधनार्थ, परम ज्यो तिने पाइयें ॥ ७ ॥ जित मोह कोह विछोह निश, परमपद स्थित जयकरं || गिरिराज सेवा कर तत्प र, पद्मविजय सुहितकरं ॥ ८ ॥ इति ॥ १ ॥ ॥ अथ द्वितीय चैत्यवंदन ॥
|| सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यान धरो जगदीश ॥ मनवच काय एकाग्र शुं, नाम जपो एकवीश ॥ १ ॥ १ शत्रुंजय गिरि वंदीयें, २ बाहुबलि गुणधाम ॥ ३ म रुदेवने ४ पुंमरिकगिरि, ए रेवतगिरि विसराम ॥ २ ॥ ६ विमलाचल ७ सिद्धराजजी, नाम नगीरथ सा र || सिध क्षेत्रने १० सहस्र कमल, ११ मुक्ति नि जय जयकार ॥ ३ ॥ १२ सिद्धाचल १३ शतकूट गिरि, १४ ढंकने १५ कोडीनिवास ॥ १६ कदंब गिरि १७ लो हित नमो, १८ तालध्वज १९ पुण्यरास ॥ ४ ॥ २० म हाबल २१ दृढशक्ति सही, ए एकवोशह नाम ॥ सा ते शुद्ध समाचरी, करीयें नित्य प्रणाम ॥ ५ ॥ दग्ध
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(40)
शून्यने यविधि दोष, प्रतिप्रवृत्ति जेह ॥ चार दोष बंकी नजो, नक्किनाव गुण गेह ॥ ६ ॥ मय जन्म पामी करीए, सदगुरु तीरथ योग ॥ श्रीगुनवीर ने शा सने, शिवरमणी संयोग ॥ ७ ॥ इति चैत्यवंदन ॥
॥ अथ पुंकरगिरि स्तवन प्रारंभः ॥ ॥ वीरजी खायारे विमलाचलके मेदान, सुरपति नायारे समोवसरण मंमाण ॥ एयांकणी ॥ देखना देवे वीरजी स्वाम, शत्रुंजय महिमां वरणवे ताम ॥ जाखे या ऊपर सो नाम, तेहमा जाख्युं रे पुंकर गिरि
निधान || सोहम इंदोरे तव पूढे बदु मान, किम थयुं स्वामीरे नांखो तास निदान ॥ वीर० ॥ १ ॥ प्रभुजी नांखे सांनल इंद, प्रथमजे हुआ रिपन जिणं द || तेहना पुत्रते जरत नरिंद, जरतना हुआ रे कूप नशेन पुंमरिक || रुपनजी पासे रे देखना सुणी तह कीक, दीक्षा लीधी रे त्रिपदी ज्ञान अधिक ॥ वीर० ॥ |||| गणधर पदवी पाम्या जाम, दादशांगी गुंथी अनिराम ॥ विचरे महियलमां गुण धाम, अनुक्रमे याव्या रे श्रीसिद्धाचल सार ॥ मुनिवर कोडी रे पंच तो परिवार अनशन कीधुंरे निज धातमने उपगार ॥ वोर० ॥ ३ ॥ चैत्री पूनम दिवसें एह, पाम्या केव
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(एए)
रें
ल ज्ञान घबेह || शिव सुख वरिया अमल खदेह, पूर्णानंदीरे गुरु लघु यवगाह ॥ अज अनिवासी निजगुण जोगी बाद, निज गुण करता रे पर पु जल नहीं चाह || वीर० ॥ ४ ॥ तेणे प्रगटयुं पुंम रिकगिरि नाम, सांनलो सोहम देवलोक स्वाम || एनो महिमा यतिहि नद्दाम, इो दिन कीजे रे तप जप पूजाने दान ॥ व्रत वली पोसो रे जेह करे नि दान, फल तस पामेरे पंच कोडी गुण मान ॥ ॥ वीर० ॥ ५ ॥ नक्तें नव्य जीव जे होय, पंच नवें मुक्ति लहे सोय || तेहमां बाधक बे नही कोय, व्यव हार केरीरे मध्यम फलनी ए वात ॥ उत्कृष्टे योगेंरे यं तरमूहूर्त विख्यात, शिव सुख साधेरे निज प्रातमने यवदात ॥ वीर० ॥ ६ ॥ चैत्री पूनम महीमा देख, पूजा पंच प्रकार विशेष ॥ कीजे नही कमि कांइ रेख, इणीपरे नांखेरे जिनवर उत्तम वाण ॥ सांजली बू ज्यारे केइक नविक सुजाण, इलीपरे गायारे पद्म विजय सुप्रमाण || वीर० ॥ ७ ॥ इति ॥ स्तवनं ॥ ॥ अथ श्री शत्रुंजय स्तुति ||
॥ श्रीशत्रुंजय मंगण, कूपन जिणंद दयाल || मरुदेवा नंदन, वंदन करूं त्रस्य काल ॥ ए तीरथ
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जाणी, पूरव नवाणु वार ॥ आदिश्वर याव्या, जा णी लान अपार ॥ १॥ त्रेवीश तीर्थकर, चडिया ऐगिरि नावे ॥ ए तीरथनां गुण, सुर असुरादिक गा वे॥ ए पावन तीरथ, त्रिजुवन नही तस तोले ॥ ए तीरथनां गुण, सीमंधर मुख बोले ॥ २ ॥ पुंमरि गिरिमहिमा, बागममां परसि ॥ विमलाचल नेटी लहियें अविचल २६ ॥ पंचमी गति पोहोता, मुनि वर कोडाकोड ॥ एणे तीरथ थावी, कर्मविपाक वि बोड ॥३॥ श्रीशत्रुजयगिरि, अहोनिस रक्षा कारी॥ श्रीयादिजिनेसर, बाण दयमांधारी ॥ श्रीसंघ वि घ्न हर, कविडयद जरपूर ॥ श्रीसंघनां संकट, रवि बुध सागर चूर ॥ ४ ॥ इति स्तुति ॥
॥अथ श्रीशत्रुजय स्तुति ॥ ॥श्रीशजय गिरि तीरथ सार, गिरिवर मांहें जेम मेरु उदार, नाकुर राम थपार ॥ मंत्रमांहे नव कारज जाणुं, तारा मांहे जेम चंद वखाणुं, जलधर माहे जल जाणुं ॥ पंखीमाहे जेम उत्तम हंस, कुल माहे जेम ऋषननो वंश, नानि तणो जे अंश ॥ छ मावंत मांहे जेम अरिहंता, तपसूरा मुनिवर महंता, शत्रुजय गिरि गुणवंता ॥ १ ॥ षन अजित संन
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( ६१ )
व निंदा, सुमतिनाथ मुख पूनमचंदा, पद्म व्रज सुख कंदा ॥ श्रीसुपार्श्व चंप्रन सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति सुद्धि ॥ वि मल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु र मनि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत सुद्ध पंथि ॥ नमी पासने वीर चोवीश, नेम विना एंजिन त्रेवीश, सिद्धगिरि याव्या ईश ॥ २॥ नरतराय जिन सायें बोले, स्वामी शत्रुंजय गिरि कुण तोले, जिननुं वचन अमोले ॥ कषन कहे सुणो जरतराय, बहरी पालतां जे नर जाय, पातिक नूको थाय ॥ पशु पंखी जे इलगिरि खावे, नवत्रीजे ते सिज थावे, अजरामर पद पावे || जिनमतमें शत्रुजो वखाएयो, ते में यागम दिल मांहे थाल्यो, सुतां सुख नर आयो || ३ || संघ पति नरत न रेसर यावे, सोवन तयां प्रासाद करावे, मणिमय मूरति गवे ॥ नानिराया मरु देवी माता, ब्राह्मी सुं दरी बेहेन विख्याता, मूर्ति नवाणुं त्राता ॥ गोमुख ने चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सार करे नित्य मेवी, तप ग उपर हेवी ॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वर राया, श्रीवि जयदेवसूरि प्रणमी पाया, रूपनदास गुण गाया ॥४॥
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॥ श्रीशत्रुजयना एकवीश नाम कहीयें बैयें ॥ ॥विमलगिरि मुत्तिनिल, शनुंजो सिखित्त पुंमरि ॥ सिरि सिझसेहर, सिपवन सिघराज्य ॥१॥ बादुबलि मरुदेवो, जगीरदो सहस्तपत्त सयवत्तो ।। कू डसयहत्तर, नगाहिरा सहस्सकमलो॥ ५॥ ढंको कनडि निवासो, लोहियो तालुन कयंबुत्ति ॥ सुरनर मुणिकय नामो, सो विमलगिरि जय तिळ ॥३॥ अर्थः-१ प्रथम जेने वांदवायी,फरसवाथी,पूजवाथी तथा गुणस्तुति करवायी जीव कर्म मल रहित थाय विमल थाय तेथी ए तीर्थनुं नाम विमल गिरि जाणवो.
२ श्रीनरतचक्रवर्तिथी यात पाट बारीशा नुवनमां के वलझान पामी मोक्ष पद पामसे माटे मुक्तिनिलय नाम
३ जीतारी राजा, ए तीर्थ सेवी ब मास आयंबिन तप करो शत्रुने जीतशे माटे शत्रुजय नाम जाणवो.
Hए तीर्थ नपरे कांकरे कांकरे अनंता जीव सिदि वस्थाले माटे (सिखित्तके) सिचदेव नाम जाणवो. ___५ हे पुमरिक गणधर तमे चैत्र शुदि पुनेमनां दिवसें पांच कोडी मुनि सहित सिदि पामसो अथवा सर्व तीर्थरूप कमलमा पुमरिक कमल समान सर्वो त्तम ए तीर्थडे माटे एर्नु पुमरिकगिरि नाम जाणवो.
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(६३) ६ बीजा सर्व तीर्य तथा अढीवीपने विषे जेटला जीव सिदिपाम्या तेथी पण घणा जीवो था तीरथने विषे सिदिने पाम्याने माटे श्रीसिम शेखर नाम. ___७ सर्व तीर्थोथको तथा सर्व पर्वतो थकी ए पर्वत प्रसि डे माटे एनुं सिपर्वत एवं नाम जाणवो. ___ घणा राजा केवलज्ञान पामी ए तीर्थने विषे सिहि पाम्या माटे एनुं सिह राज एवं नाम जाणवू.
ए श्री बाहुवल कृषीश्वरें कानस्सग्ग कस्यो माटे एनुं (बाहुबत्ति के०) बाहुबलि एवं नाम जाए.
१० श्री पन देवनी माता मरुदेवाजीनी टुंक ए तीर्थ उपर माटे एy(मरुदेवो के०) मरुदेव नाम.
११ ए तीरथनी रक्षा करवा सारूं इंश्ना कहेवा यकी सगरचक्रवर्ति, समुनी खाइ लाव्या तेथी एर्नु (नगीरहो के०) नगीरथ एवं नाम जाणवू.
१२ ए पर्वतनी पडवाडे सहस्त्र कूट माटे एनुं (सहस्तपत्त के० ) सहस्त्र पत्र एवं नाम जाणवू.
१३ ए पर्वतनी पनवाडे सेवंत्रानी टुंक ने माटे एनुं (सयवत्तो के०) सयवत्तो एवं नाम जाणवू.
१४ ए पर्वतनी पुंते एकशो बाउ कूट अथवा शि खर डे माटे एर्नु अष्टोतरशत कूट एवं नाम जाणवू.
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( ६४ )
१५ बोजा सर्व पर्वतोमां ए पर्वत राजा समानबे माटे (नगाहिरा के० ) नगाधिराज नाम जाणं. १६ ए पर्वतनी पुंठे कमलनी पेरें सहस्र टुंकडे माटे ( सहस्सकमलो के० ) सहस्र कमल नाम जाणवो. १७ ढंग नामे हुंकडे माटे ढंक गिरि नाम जाएं. १० कवड नामा यनुं देरासरखे माटे एनं (क उडिनिवासो के० ) कनडिनिवास एवं नाम जाणवुं.
१७ लोहीतध्वज नामे पर्वत बे माटे एनुं ( लो हिच्चो के ० ) जोहितगिरि एवं नाम जाणवुं.
२० तालध्वज नामे पर्वतले माटे एनुं ( तालनो के० ) तालध्वज एवं नाम जाणवुं.
२१ अतीत चोवीसीमां निरवाणी नामा तीर्थकर ना कदंब नामे गणधर कोडी मुनि सायें या तीर्थनी टुंके सिद्धि वा माटे कदंबगिरि एवं नाम जाणवुं.
ए एकवीरा नाम ते (सुरनरमुणिकय के ० ) देवता, मनुष्य तथा मुनिर्जना कस्या थका थयां करशे माटे ए तीरथ कूपन कूटादिकनी परें प्रायें शाश्वतोळे काजें करी वटवध थाय परंतु सर्वथानास न थाय (सो के० ) ते विमलगिरि तीर्थ (जय के० ) जयवंतो वर्त्तो.
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(६५)
॥ अथ ॥ ॥ श्री सिद्धाचलजीनो रास प्रारंभः॥
॥ दोहा ॥ ॥ श्री रिसदेसर पाय नमी, पाणी मन थाणं द ॥ रास जणुं रलियामणो, शत्रुजय सुखकंद ॥ ॥ १ ॥ संवत् चार सीत्तोतरें,दुवा धनेसर सूर ॥ ति में शत्रुजय महातम कयुं, शीलादित्य हजूर ॥२॥ वीरजिणंद समोसस्या, शत्रुजय उपर जेम ॥ शादि कागल कां, शत्रंजय महातम एम ॥३॥श @जय तीरथ सारिखं, नही ले तीरथ कोय ॥ स्वर्ग मृ त्यु पातालमें, तीरथ सघलां जोय ॥ ४ ॥ नामें नव निधि संपजे, दीवे उरित पलाय । नेटतां नवनय टले, सेवंतां सुख धाय ॥ ५ ॥ जंबूनामें दीप ए, द दिण जरत मजार ॥ सोरत देश शोहामणो, तिहां ने तोरथ सार ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥नयरी बारामती॥ ए देशी॥
॥राग रामग्री॥ ॥ शत्रुजयने श्रीपुंमरिक, सिमखेत्र कहूँ तहकीक । विमलाचलने करुं प्रणाम, ए शत्रुजना एकवीश नाम
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(६६) ॥१॥ए बांकणी। सुरगिरि महागिरिने पुण्यराश,श्रीपद पर्वतेंप्रकाश ॥ महातीरथ पूरवे सुखकाम, ए शत्रु जना एकवीश नाम ॥ २ ॥ शाश्वत पर्वतने दृढश क्ति, मुक्तिनिलो तेणे कीजें नक्ति ॥ पुप्फदंत महाप असुगम ॥ ए० ॥ ३ ॥ पृथ्वीपीठ सुनइ कैलास, पाताल मूल अकर्मक तास ॥ सर्वकाम की गुणग्रा म ॥ ए॥ ४ ॥ शत्रुजयनां एकवीश नाम,जपेज बे ग धपणे वाम ॥ शत्रुज यात्रानुं फल लहे, म हावीर नगवंत एम कहे ॥ ए० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ शत्रुजो पहेले अरे, असी जोयण परिमाण ॥ पहोलो मूलें उंच पणे, बच्चोश जोयण जाण ॥१॥ सीत्तर जोयण जाणवो,बीजे बारे विशाल ॥वीश जो यण उचो कह्यो, मुज वंदन त्रए काल ॥ २ ॥ शाठ जोयण त्रीजे घरे, पहोलो तीरथ राय ॥ शोल योज न चंचो सही, ध्यान धरूं चित्त लाय ॥ ३ ॥ पञ्चाश जोयण पहोल पणे, चोथे घरे मकार ॥ उंचो दश जोयण अचल, नित्य प्रणमे नरनार ॥ ४ ॥ बार योजन पंचम अरे, मूल तणो विस्तार ॥ दोय जोय ण उचो कह्यो, शत्रुज तीरथ सार ॥ ५ ॥ सात हा
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(६७) थ बहे अरे, पोहोलो पर्वत एह । उचो होशे सोध नुष, शासतुं तीरथ एह ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ जिनवरघु मेरो मन लोनो॥
॥ ए देशी ॥ राग याशावा।। ॥ केवलज्ञानी प्रथम तीर्थकर, अनंत लिवाण गम रे॥ अनंत वलो सिमशेणे गमें, तिणे करूं नित्य प्रणाम रे ॥१॥ शत्रुजे साधु अनंता लिक्षा, सीकशे वलीय अनंत रे ॥ जेणे शत्रुज तीरथ नहीं नेटयु, ते गर्भावास कहंत रे ॥ श० ॥२॥ फागुण शुदि आमने दिवसें, रुपनदेव सुखकार रे ॥रा यण रूंख समोसखा स्वामी, पूरव नवाणुं वार रे॥ ॥ श० ॥ ३॥ नरत पुत्र चैत्री पूनम दिन, इण शत्रु जे गिरि थाय रे ॥ पांच कोडिगं घुमरीक सीधा, तेणें पुंझरोक कहाय रे ॥ श॥ ४ ॥ नमो विनमि राजा विद्याधर, बे बे कोडी संघात रे ॥ फागुण गुदि दशमी दिन सीधा, तेणें प्रनु प्रणामुं प्रनात रे ॥ श०॥५॥ चैतर मास वदि चौदशने दिन,नमोपुत्री चोशहरे॥य पासण कर शत्रुज गिरि कपर, ए सहु सोधा एक रे॥ श०॥ ६ ॥ पोतरा प्रथम तीर्थ फर केरा,हाविडने वारिखिन्न रे॥ कार्तिक शुदिपूनम दिन सोया, दश
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( ६ )
कोडी मुनि निःशव्य रे || श० ॥ ७ ॥ पांचे पाव इ णें गिरि सीधा, नव नारद ऋषिराय रे || संब प्रद्युम्न गया तहां मुक्त, या कर्म खपाय रे ॥ श० ॥ ८ ॥ नेम विना वीश तीर्थकर, समोसा गिरि शुंग रे ॥ अजित शांति तीर्थकर बेहु, रह्या चोमासुं रंग रे ॥ श ० ॥ ॥ ए ॥ सहस्स साधु परिवार संघातें, थावच्चासुत सा धरे ॥ पांचों साधुगुं शैलंग मुनिवर, शत्रुजे शिवसु ख लाभ रे ॥ श० ॥ १० ॥ असंख्याता मुनि शत्रु जे सीधा, जरतेसरने पाट रे ॥ राम घने जरतादि क सीधा, मुक्ति ती ए वाट रे ॥ श० ॥ ११ ॥ जाली मयाजीने नवयालो, प्रमुख साबुनी कोडी रे ॥ साधु अनंता शत्रुजे सीधा, प्रणमुं वे कर जोडी रे ॥ श ० ॥ १२॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ चोपाइनी देशी ॥
॥ शत्रुंजना करूं शोज उद्धार, ते सुएजो सदु को सुविचार || सुतां यानंद अंग न माय, जन्म जन्मनां पातक जाय || १ || कूपनदेव अयोध्या पु रो. समोसा सामी हित करो || जरत गयो वंदनने काज, ए उपदेश दियो (जनराज ॥ २ ॥ जगमां म्होटो अरिहंत देव, चोशन इंड् करे जसु सेव ॥ ते हथी मोहोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमे जिनवर
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(६५) राय ॥३॥ तेहथो मोहोटो संघवी कह्यो, नरत सु णीने मन गह गह्यो । जरत कहे ते किम पामीयें, प्रनु कहे शत्रुज यात्रा कोयें ॥ ४ ॥ नरत कहे संघवी पद मुज, ते थापो हुँ अंगज तुज ॥ ३ घाण्या अक्त वास, प्रनु आपे संघवो पद तास ॥ ५॥ ६३ तेणी वेला तत्काल, नरत सुन बेदुने माल ॥ पहे रावो घर संप्रेडीया,सखर सोनाना रथ आपिया ॥६॥ वनदेवनी प्रतिमा वली, रत्न तणी कीधी मनरल। जरतें गणधर घर तेडीया, शांतिक पुष्टिक सदु तिहां कीया ॥ ७ ॥ कंकोतरी मूकी सदु देश, बरतें तेड्यो संघ अशेष ॥ आव्यो संघ अयोध्या पुरी, प्रथम तीर्थ कर यात्रा करी ॥ ॥ संघ नक्ति कोधा अति घणी, संघ चलायो शत्रुजय नणी ॥ गणधर बाहुबली केव ली, मुनिवर कोडी साथें लिया वली ॥ए। चक्रवर्तीनी सपली कहि, नरतें साथें लीधी सि६ि ॥ दय गय रथ पायक परिवार, तेतो कहेतां नावे पार ॥ १०॥ नर तेसर संघवी कहेवाय, मारगें चैत्य उरतो जाय ॥ संघ आव्यो शत्रुजय पास, सहूनी पूगी मननोभाश ॥११॥ नयणें निरख्यो शत्रंजो राय, मणिमाणिक मोतोमु वधाय ॥ तिणें गमें रही महोत्सव कीयो,
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(30) जरतें थाणंदपुर वासीयो॥ १२॥ संघ शत्रुजय न पर चड्यो, फरसंतां पातक जडपडयो ॥ केवलझानी पगलां तिहां, प्रणम्या रायण रूंख ने जिहां ॥१३॥ केवलज्ञानी स्नात्र निमित्त, ईशाने पाणी सुपवि त्त ॥ नदी शत्रुजी शोहामणी, नरतें दीनी कौतुक जणी॥१४॥ गणधर देव तणे उपदेश, इं३ वली दीधो थादेश ॥ आदिनाथ तणो देहरो, बरतें करा व्यो गिरि सेहरो॥ १५ ॥ सोनाना प्रासाद उत्तंग, र नतणी प्रतिमा मनरंग ॥ बरतें श्रीश्रादेसर तणी, प्रतिमा थापी सोहामणी ॥ १६ ॥ मरुदेवीनी प्रति मा वली, माही पूनम थापी रती॥ ब्राह्मी सुंदरी प्रमुख प्रासाद, बरतें थाप्या नवले नाद ॥ १७ ॥ एम अनेक प्रतिमा प्रासाद,नरतें कराव्या गुरुप्रसाद ॥ एह नस्यो पहेलो नदार,सघलोही जाणे संसार॥१७॥
॥ढाल चोथी॥ राग अाशावरी॥ ॥ नरत तणे पाट आत्मे, दंमवीर्य थयो रायोजी॥ जरत तणी परें संघ कीयो, शत्रुजय संघवी कहायो जी॥ १ ॥ शत्रुज नदार सांजलो, शोल मोहोटा श्रीकारोजी ॥ असंख्याता बीजा वली, ते न कहूँ अधिकारो जी॥श०॥ ॥ चैत्य कराव्युं रूपात',
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(७१) सोनानां बिंब सारोजी॥ मूलगां बिंब मारीयां, प श्चिम दिशि तेणी वारोजी ॥ श०॥३॥ शत्रुजनो या त्रा करी, सफल कीयो अवतारोजी ॥ दंमवीर्य राजा त एणो. ए बीजो नहारोजी॥ श॥१॥ शो सागरोपम व्यतिकम्या, दमवीरजथो जेवारोजी॥ ईशाने करा वीयो, ए त्रीजो नहारोजी। श०॥ ५॥ चोथा देव लोकनो धणी, माहें नाम उदारोजी ॥ तिणें शत्रुज यनो करावीयो,ए चोथो नहारोजी॥श०॥६॥ पां चमा देवलोकनो धणी, ब्राँड समकित धारोजी॥ तिणें शत्रुजयनो करावीयो, ए पांचमो नहारोजी श० ॥७॥जवनपति इंड तणो कीयो,ए बहोना रोजी ॥ चक्रवर्ती सगर तणो कियो, ए सातमो नमा रोजी॥ श॥ ७॥अजिनंदन पासें सुण्यो,शत्रुजयनो अधिकारोजी॥ व्यंतरें करावीयो, ए आतमो नमा रोजी॥ श०॥॥ चंशन स्वामीनो पोतरो, चशे खरनाम मन्नारोजी॥ चंयश रायें करावीयो, ए न वमो नारोजी॥ श॥ १०॥ शांतिनाथनी सुणी देशना, शांतिनाथ सुत विचारोजी ॥ चक्रधर राय क रावीयो, ए दशमो नारोजी॥श० ॥ ११ ॥ दशरथ सुत जग दोपतो, मुनिसुव्रत सुवारोजी॥ श्रीरामचं
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(७३) करावीयो, ए इग्यारमो नदारोजी॥ श०॥ १२॥ पां मव कहे अमें पापीया, किम जुटुं मोरी मायोजी॥ कहे कुंती शत्रुजा तणी, जात्रा कीयां पाप जायोजी॥ श०॥ १३ ॥ पांचे पांमव संघ करी, शत्रुजय नेट्यो अपारोजी। काष्ठ चैत्य बिंब लेपनो, ए बारमो उ दारोजी॥ श० ॥१४॥ मम्माणो पाषाणनी, प्रतिमा सुदर सरूपीज।॥ श्रीशत्रजनो संघ कर, थापा सकल सरूपोजी॥ श॥ १५॥ अहोतर शो वरसां गयां, वि क्रम नृपथी जिवारोजी॥पोरवाड जावड करावीयो, ए तेरमो नारोजी॥ श०॥ १६ ॥ संवत बार तेरो त्तरें, श्रीमाली सुविचारोजी ॥ बाहडदे मुहतें करावी यो, ए चौदमो नारोजी ॥ श०॥ १७ ॥ संवत तेर एकोत्तरें, देश लहेर अधिकारोजी ॥ समरे शाह क रावीयो, ए पंदरमो नारोजी ॥ श०॥ १७ ॥ संवत पन्नर सत्त्याशीये, वैशाक शुदि शुन वारोजी॥ करमे दोशी करावीयो, ए शोलमो नदारोजी ॥ श॥१॥ सांप्रतकालें शोलमो, ए वरते ने नहारोजी ॥ नित्य नित्य कीजें वंदना, पामीजें नवपारोजी॥शा०॥
॥दोहा॥ ॥ वली शत्रुज महातम कहुँ, सानलो जिम ने ते
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(७३) म ॥ सूरि धनेसर इम कहे, महावीरें कडं एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दर्शनी, शत्रुजे पूजनीक ॥ नगवंतनो नेख मानतां, लान होवे तहकीक ॥ ॥ श्री शत्रुजा नपरें, चैत्य करावे जेह ॥ दल परिमाण समुं लहे, प व्योपम सुख तेह ॥३॥ शत्रुजा नपर देहरूं, न नी पावे कोय । जीर्णोधार करावतां, आठ गणुं फल हो य ॥ ४ ॥ शिर उपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार ॥ चक्रवत्तीनी स्त्री था शिवसुख पामे सार ॥ ५॥ का ती पूनेम शत्रुजें, चडीने करे उपवास ॥ नारकी शो सागर तणो, करे कर्मनो नाश ॥ ६ ॥ काती परव महोटुं कर्तुं, जिहां सोधा दश कोड ॥ ब्रह्म स्त्रीबा लक हत्या, पापथी नाखे बोड ॥ 9 ॥ सहस्त्र लाख श्रावक जणी, जोजन पुण्य विशेष ॥ शत्रुज साधु प डिलानतां, यधिको तेहथी देख ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल पांचमी॥धन्य धन्य गज सुकुमारने ॥ ए देशी ॥
॥ शत्रुजें गयां पाप बूटोयें, लोजें बालोयण ए मोजी ॥ तप जप कोजें तिहां रहो, तीर्थकर कह्यु तेमोजी ॥श ॥१॥ जण सोनानी चोरी करी,ए बालो यण तासोजी ॥ चैत्रीदिन शत्रुजय चढो, एक करेन पवासोजी ॥श ॥ २ ॥ रत्नतणी चोरी करी, सा
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( ७४ )
तांबिल शुद्ध थायजी ॥ काती सात दिन तप की यां, रत्नहरण पाप जायजी ॥ श० ॥ ३ ॥ कांसा पीतल तांबा रजतनी, चोरी कीधी जेणजी ॥ सात
दवस पुरिमड करे, तो छूटे गिरि एणजी ॥ ८० ॥ ४ ॥ मोती प्रवालां मुगीया, जेणें चोखां नरनारोजी ॥ श्रां बिल करी पूजा करे, त्रण टंक शुद्ध श्राचारो जी ॥ ॥ श० ॥ ५ ॥ धान्य पाणी रस चोरीयां, जे भेटे सि 5 खेत्रोजी ॥ शत्रुज तलहटी साधुने, पडिलाने गुन चित्तोजी ॥ श० ॥ ६ ॥ वस्त्राभरण जेणें दयां, ते बू टे इसे मेलोजी || श्रादिनाथनी पूजा करे, प्रह नवी बहु वेहेलोजी ॥ श० ॥ ७ ॥ देवगुरुनुं धन जे हरे, ते शुद्ध थाये एमोज | ॥ यधिकं इव्य खरचे तिहां, पाले पोषे बहु प्रेमोजी ॥ श० ॥ ८ ॥ गाय नॅश गो धा मही, गजग्रह चोरण हारोजी ॥ छूटे ते तप तीर थें, अरिहंत ध्यान प्रकारोजी ॥ श० ॥ ए ॥ पुस्तक देहरां पारकां, तिहां लखे श्रापणां नामोज | ॥ बटे मासी तप कीय, सामायिक तिल गमोजी ॥ श ० ॥ ॥ १० ॥ कुंवारी परिव्राजिका, सधव विधव गुरु ना रोजी ॥ व्रत जांजे तेहने कयुं, उमासी तप सारो जी ॥ श० ॥ ११ ॥ गो विप्र बालक ऋषि एहनो
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घातक जेहोजी ॥ प्रतिमा आगें आलोचतां, बूटे तप करी एहोजी ॥ ॥ १ ॥ इति॥
॥ ढाल बही॥षन प्रनुजीयें ॥ ए देशी॥
॥ संप्रतिकालें शोलमो ए, ए वरते जे नदार ॥ श मुंजय यात्रा करूं ए, सफल करूं अवतार ॥॥१॥ बहरि पालतां चालीयें ए, शत्रुज केरी वाट ॥ पाली ताणे पोहोंचीय ए, संघ मल्या बहु थाट ॥॥॥ ललित सरोवर पेखीयें एवली सत्तानी वाव ॥ तिहां विसामो लीजीयें ए, वडने चोतरे आव ॥ श० ॥३॥ पालीताणे पावडी ए,वढीयें नठी प्रनात ॥ शेजी नदी सोहामणी ए, दूरथकी देखात ॥ श० ॥ ४ ॥ चढियें हिंगलाजने हडे ए कनिकुं नमी पास ॥ वारी मां हे पेशीय ए, बाणी अंग उल्लास ॥ श० ॥ ५॥ मरुदे वी टुक मनोहरु ए, गजचढी मरुदेवी माय ॥ शांतिना थजिन शोलमो ए. प्रणमीजें तमु पाय ॥ शमा ६ ॥ वंश पोरवाडें परगडो ए, सोमजी शाह मलार ॥ रूप जी संघवी करावीयो ए, चोमुख मूल नकार ॥ श॥ ॥७॥ श्री जिनराज मूरिसरू ए,खरतर गढ गणधार ॥ खहाथै जेणें प्रतिष्ठा करी ए, शुन दिवस शुन वार ॥शाजा चोमुख प्रतिमा चरचीयें ए,जमतीमांह नला
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( ७६ )
बिंब ॥ पांचे पांव पूजीयें ए, यदबुद आदि प्रलंब ॥ श० ॥ ए ॥ खरतर वसही खांतसुं ए, बिंब जुहारु अनेक || नेमनाथ चोरी नमुं ए,टानुं अलग उद्वेग ॥ ॥ श० ॥ १० ॥ धर्मारमादे नीस ए, कुगति करूं यति दूर ॥ यातुं यादिनाथ देहरे ए, कर्म करूं चक चूर ॥ श० ॥ ११ ॥ मूलनायक प्रणमुं मुदा ए, यदि नाथ नगवंत || देव जुहारुं देहरे ए,जमतीमांहे जगवं त ॥ श० ॥ १२ ॥ शत्रुंजा नपर कीजीयें ए, पांचे में स्नात्र ॥ कलश ग्रहोत्तर शो करी ए, निर्मल नीरशुं गा त्र ॥ श० ॥ १३ ॥ प्रथम यादीसर यागलें ए, पुंमरीक गणधार ॥ राय तल पगलां वली ए, शांतिनाथ सुख कार ॥ श० ॥ १४ ॥ रायण तजे पगलां नमुं ए, चो मुख प्रतिमा चार ॥ बीजी नूमें बिंब वली ए, पुंमरी क गणधार ॥ श० ॥ १५ ॥ सूरजकुंम निहालीयें ए, यति नली उलखा जोल || चेल तलाइ सिद्ध शिला ए, अंगें करीशुं उल्लोल ॥ श० ॥ १६ ॥ श्रादिपुर पा जें उतरुं ए, सिवड लनं विश्राम ॥ चैत्य प्रवाडी इणी परें करी ए, सीधां वंबित काम ॥ श० ॥ १७ ॥ जा त्रा करी शत्रुज ती ए, सफल कीयो अवतार ॥ कु शल देमशुं खावीया ए, संघ सदु परिवार ॥ ० ॥
श
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(७७) ॥ १७ ॥शत्रुजय महातम सांजली ए, रास रच्यो अ नुसार ॥ जे नवि गावे नावगुंए, आनंद होए अपा र ॥ श० ॥ १५ ॥ शत्रुजय रास शोहामणो ए, सान लजो सदु कोय ॥ घर बेठांजणे नावझुं ए,तसु जात्रा फल होय ।। श० ॥ २०॥नणशाली थिरु अतिजलो ए, दयावंत दातार ॥ शत्रुजय संघ करावीयो ए, जेस लमेर मकार ॥ श० ॥ २१ ॥ शत्रुजय महात्म्य ग्रंथ थीए,रास रच्यो अनुसार ॥ नाव नक्ते नएतां थकां ए, पामोजें नव पार ॥ श० ॥ १२ ॥ संवत शोल याशीयें ए, श्रावणशुदि सुखकार ॥ रास नस्यो शत्रु जा तणो ए,नगर नागोर मकार ॥ २० ॥ २३ ॥ गि रुगब खरतर तणो ए, श्रीजिनचंद सूरीश ॥ प्रथम शिष्य श्रीपूज्यना ए, सकलचंद सुजगीश शाश्॥ तास शिष्य जग जाणीयें ए, समय सुंदर उवद्याय, रास रच्यो तेणें रूअडो ए, सुणतां यानंद थाय ॥ ॥ श० ॥ २५॥ इति श्री शत्रुजयरासः संपूर्णः
॥ अथ श्री सिक्षाचलजीनुं स्तवन ।। ॥शेजो जोवानुं हो जोर से जी॥राज जोर जे जी राज ॥ नानोनो किशोर ॥ महाराजा ॥ शेजो० ॥ ॥ १ ॥ सोरत देशनो साहेबोजी राज,शेजानो शण
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(96)
गार ॥ महाराजा॥ कलिमल करिकुल केशरीजी राज, मरुदेवी मात मन्नार ॥ महा
॥ तोरथ तीरथ गुं करोजी राज, अवर बाल पंपाल ॥ म हाराजा ॥ त्रिभुवन तीरथ एक जो राज, श्रीलिमा चल सुविशाल ॥ महाराजा ॥ शेवं० ॥३॥ नाग्य होय तो जेटोयें जीराज, विमलाचल वारोवार ॥ म हाराजा॥ जेणें अक वार दीठो नहींजी राज, अफल तेहनो अवतार ॥ महाराजा ॥ शे० ॥ ४ ॥ सत्तर नेव्याशीया समेजो राज, जोर बनी नतंग ॥ महारा जा ॥ प्रतिष्ठान पुरे पूज्या तणीजो राज, अधिक प्रांगीनो नमंग ॥ महाराजा ॥ शेg ॥ ५ ॥ चैतर शुदि बारस दिनेजी राज, नदयरतन नवद्याय । म हाराजा ॥ परिकरगुं प्रनु पेखोनेजी राज, गेलेगुं गु । गाय ॥ महाराजा ॥ शे॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ जे जे स्थानकें शाश्वत जिनालय ले ते ते स्थानकोनां नाम तथा त्यां जिनमंदिरनी संख्या अने प्रत्येक मंदिरमा प्रतिमाजीनी संख्या तथा एकत्र प्रति माजीनी संख्या, प्रतिमाजीना शरीरनु प्रमाणु मंदिरनी लंबाइ तथा चोडाइ अने लंचपणाना प्रमाण- यंत्र लखीयें बैयें जेथी वंदना करवाने अनुकूल थाय.
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अनुत्तर में ग्रैवेयक में सौधर्मे
स्थानकनां | जिनमंदिर नी संख्या.
नाम.
प्रत्येक प्रतिमा
जी सं०
१२
१२०
३१ लाख
१७०
६७६००००००
१८०
408000000
ईशानदेव० २० लाख १० लाख सनत्कुमारें | १२ लाख १०० २१६००००००
माहें में
८ लाख
१४४००००००
४ लाख
92000000
००००००
७२०००००
20G0000
( १७ )
प्राणातमें
यारण में यच्युतमें
३१७
१८०
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१८०
ब्रह्मलोकें लांतकमें
शुकदेव०
४० हजार १८०
सहस्रार में ६ हजार १८० |
थान में
२००
१८०
२००
१ ८०
१५०
१८०
१५०
१८०
११५२००००००
असुरकुमारें ६४ लाख १०० नागकुमारें ८४ लाख
८४ लाख १८०
१५१२००००००
सुवर्णकुमारें ७२ लाख १०० | १२०६००००००
५० हजार १००
सर्व प्रतिमाजीनां
सरवालानी संख्या.
६००
३८१६०
३६०००
३६०००
१७००
१७०००
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प्रतिमाजीनां शरीरप्रमाण
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( ८० )
मंदिरनी मंदिरनी लिंबाइनुं चोडाइनुं
प्रमाण. प्रमाण.
धनुष १||| योजन१००
धनुष १ || | |योजन १०० धनुष १ || योजन१००
धनुष १॥॥ धनुष १ ॥ | धनुष १॥
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योजन १०० योजन १००
योजन ५०
योजन ५० योजन ५०
योजन १०० योजन ५०
योजन ५० योजन ५०
योजन ५०
धनुष १॥ ॥ | योजन१०० धनुष १ || योजन१०० योजन ५०
धनुष १ ॥
योजन १०० योजन ५०
धनुष १ || योजन१०० योजन ५०
योजन१०० योजन ५०
धनुष १ ||
धनुष १ || योजन१०० योजन ५०
मंदिरनां नं
चपणानुं
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प्रमाण.
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ३२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन ७२
योजन १२
योजन ७२
धनुष १ || योजन१०० योजन ५० धनुष १
योजन ५०
|| योजन१०० धनुष १ || | |योजन ५० योजन २५ धनुष २ || योजन २५ योजन१२|| धनुष १||| | योजन २५ योजन१२॥ योजन १८
योजन ३६ योजन १८
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स्थानकनां जिनमंदिर नाम. नी संख्या.
जंबुर दें कंचन गिरिये १०००
कुं
विद्युत्कुमारें ७६ लाख श्रमिकुमारे ७६ लाख दीपकुमारें | ७६ लाख उदधिकुमारें | ७६ लाख दिशि कुंमारे ७६ लाख वायुकुमारें ए६ लाख स्तनितकुमारें ७६ लाख
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( ८१ )
ܐ ܐ
नशालवनें २० नंदनवनें १० सोमनसवनें २०
E
प्रत्येक प्रतिमा
जी सं०
१०० १०० १००
१००
१००
१००
१००
१२०
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सर्व प्रतिमाजीनां
सरवालानी संख्या.
१४०४००
१२०
१२००००
३८०
१२०
४५६००
दीर्घवाढ १०० १२० २०४००
१२०
G४००
महानदीयें 90 गजदंतें १०
नंदीश्वर दीपें ५२
१२०
१२०
१२०
१३६०००००००
१३६८००
१३६८००००००
१३६८०००
१३६८०००००० 0000
१७२८००००
१३६८००००००
११० २४००
१ २४
६४४८
२४००
२४००
२४००
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प्रतिमाजीनां शरीरप्रमाण
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मंदिरनी
मंदिरनी
लंबाइनुं चोडाइनुं
मंदिरनां नं
चपणानुं
प्रमाण. प्रमाण.
प्रमाण.
धनुष १॥ योजन १५ योजन१२|| योजन १८
धनुष १||| |योजन २५ योजन१ ॥ धनुष १॥ योजन २५ योजन१ २॥ धनुष १॥ पोजन २५ योजन१ २ ॥
योजन १७ योजन १७
योजन १८
धनुषं १ || |योजन २५ धनुष १॥ | योजन २५ धनुष १ || | |योजन २५
धनुष ५०० गाव १ धनुष ५०० गान १
धनुष ५०० गाउ १
धनुष ५०० गाउ १
धनुष ५०० गाव १ धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन १०० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन ५० धनुष ५०० योजन ५०
योजन१ २॥ योजन१ २ || योजन१२॥ योजन १८
योजन १८ योजन १८
गाव० ॥
धनुष १४४०
गाय० ॥
धनुष १४४०
गाउ० ॥
धनुष १४४०
गान० ॥
धनुष १ ४ ४ ०
गान० ॥
धनुष १४४०
योजन ३६
योजन २५ योजन ५० योजन ७२ योजन २५ योजन ३६ योजन २५ योजन ३६ योजन २५ योजन ३६
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pr 0 mm 15
.
२०
(७३) स्थानकनां जिनमंदिर प्रत्यक मर्म
सर्व प्रतिमाजीनां नाम. नी संख्या.
जी संग
सरवालानीसंख्या पंझगवनें
१२० २००० वदस्कारायें
१२० ए६०० कुलगिरि
१२०
३६०० दिग्गजें ४० १२० 1000
१२० ए६०० यमकपर्वतें
२४०० वृत्तवैताढयें
२४०० राजधानी
१२० ए० मेरुचूलिका
१२० रुचके
१२४ ए कुंमलदीपें । १२४ ए६ इतुकारें
१२०
| ម ច ច मानुष्योत्तरें । | १२० ४० कुरुदसमें १० १२० १२०० व्यंतरमा असंख्यात. १७० असंख्याती. ज्योतिष्कं असंख्यात. १७० असंख्याती. ज्योतिष्करा. असंख्यात. १७० असंख्याती.
.
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(७४) प्रतिमाजीनां
मंदिरनी मंदिरनी मंदिरनां में
संबाचें चोडाश्र्नु चपणानु शरीरप्रमाण.
प्रमाण. प्रमाण. प्रमाण. धनुष ५०० योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष ५०० योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष ५०० योजन ५० योजन १५ योजन ३६ धनुष ५०० गाउ १ गाउ०॥ धनुष १४४० धनुष ५०० गाउ १ गान०॥ धनुष१४४० धनुष ५०० गान ? गाउ०॥ धनुष १४४० धनुष ५०० गान १ गाउ०॥ धनुष १४०० धनुष ५०० गान गान॥ धनुष१४४० धनुष ५०० गान १ गान०॥ धनुष १४४० धनुष ५०० योजन १०० योजन ५० योजन ७२ धनुष ५०० योजन१०० योजन ५० योजन ७२ धनुष ५०० योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष ५०० योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष ५०० योजन ५० योजन २५ योजन ३६ धनुष ५०० योजन १॥ योजन ६। योजन ए धनुष ५००० धनुष ५०० योजन ॥ योजन ६। योजन
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(५)
॥अथ ॥ ॥ श्रचोवीशजिननां एकशोने वीश
कल्याणिकनी तिथि प्रारंन ॥ ॥ तिहां प्रत्येक तीर्थकरनां पांच पांच कल्याणिक ने ते एकेका कल्याणिकने दिवसें गणणो गणाय ने ते भावी रीतें के जे दिवसें श्रीतीर्थकर परगतिथीच वीने माताना उदरने विषे थावे ते दिवसें चवन कल्याणिक कहेवाय ने तेवारें “ परमेष्टीनमः” एवो जाप जपाय ३ तथा जे दिवसें श्री तीर्थकरनुं जन्म थाय ने ते दिवसें जन्मकल्याणिक कहेवाय ने ते वारे "थर्हतेनमः" एवो जाप जपाय ले तथा जे दिवसें तीर्थकर दीक्षा लइ मुनिपणो धारण करे ले ते दिवसें दीक्षा कल्याणिक कहेवाय ले तेवारे "ना थायनमः” ए जाप जपाय बे तथा जे दिवसें श्रीती थकर नगवानने केवल ज्ञान उत्पन्न थाय ले तेदिव में संपूरण ज्ञान कल्याणिक कहेवाय ने तेवारें "सर्व शायनमः" ए जाप जपाय तथा जे दिवसें श्रीती थैकर नगवानने मोदनी प्राप्ति थायले ते दिवसें नि रवाण कल्याणिक कहेवाय जे तेवारें “पारंगतायन मः” ए जाप जपाय जे ए रीतें पांच कल्याणिक एके
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( ८६ )
का तीर्थकरनां गणतां चोवीश जिननां एकशोने वीश कल्याणिक थाय तेनां दिवसोनुं यंत्र नीचे बाप्युंबे.
तेनी समज या प्रमाणे बे के प्रथमनां कोठामां जे त्रण बावीश इत्यादिक यांकडा नखाने ते जिहां त्रणनो यांक होय तिहां त्रीजा तीर्थंकर श्रीसंभव नाथ समजवा घने जिहां बावीशनुं यांक होय तिहां बावीशमां तीर्थंकर श्रीनेमिनाथ समजवा ए रीतें जिहां जे खांक होय तिहां तेटलामां तीर्थंकरनो नाम समजी लेवो देवार पक्षी प्रत्येक महीनानां शुक्क अथवा कृष्ण पक्ष महिलां जे जे पक्षमां श्रीतीर्थंकर प रमात्माना जन्मादि कल्याणिक थयाने ते पक्ष जणा व्या बे तेवार पछी पांच बार इत्यादिक जे यांक लखे ला बे ते वद पांचम तथा बारस इत्यादिक तिथि सम जव तेवार पी केकलज्ञान तथा चवन इत्यादिक जे लखेला ते सर्व प्रजुना कल्याणिक समजवा तथा उ पर जे कार्त्तिक वदि शुदिपक एवो करीने तेनी पासें जे सातडानुं यांक लखेलुं बे ते कार्त्तिक महीनामां सर्वमली सात कल्याणिक थयाबें एरीतें बारेमहीनी घागल जे यांक लख्यावे ते सर्व यांक ते ते महीना नां कल्याणिकनी संख्यानां समजवा.
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( ८७ )
॥ कार्त्तिकव दिशुदिप ॥ ७ ॥ ३ वदि ५ केवलज्ञान ०
॥
२२ वदि १२ चवन० ॥ ६ वदि १२ जनम्या. ६ वदि १३ दिवालीधी. २४ वदि ३० मोक्षपाम्या. एदि ३ केवलज्ञान ० १८ शुदि १२ केवलज्ञान० || माग शिरवदि शुदि ॥ १३ ॥
वदि ५ जनम्या. एवदि ६ दिकालीधी. २४ वदि १० दिवालीधी.
६ वदि ११ मोक्षपाम्या.
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३ शुदि १४ जनम्या.
३ शुदि १५ दिवालीथी. ॥ पौषवदिशुदिप ॥ १०॥ २३ वदि १० जनम्या. २३ वदि ११ दिवानीधी. वदि १२ जनम्या.
G
८ वदि १३ दिवालीधी. १० वदि १४ केवलज्ञान १३ शुद्धि ६ केवलज्ञान ० १६ शुदि ए केवलज्ञान ० २ शुदि ११ केवलज्ञान ० ४ शुंदि १४ केवलज्ञान ० १५ चुदि १५ केवलज्ञान ० महावदिच्छुदिप ॥ १४ ॥ ६ वदि ६ चवन० ॥ १० वदि १२ जनम्या. १० वदि १२ दिकालीधी.
॥
१० शुदि १० जनम्या. १. दि १० मोक्षपाम्या १८ वृदि ११ दिवालीधी. १० शुदि ११ जनम्या. १० गुदि ११ दिवालीधी.
१ वदि १३ मोक्षपाम्या.
१० शुदि ११ केवलज्ञान० ११ वदि ३० केवलज्ञान ०
२१ दि ११ केवलज्ञान ०
४ शुदि १ जनम्या.
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(60) १२ शुदि २ केवलज्ञान० १ए शुदि ४ चवन ॥ १५गुदि ३ ननम्या. ३शुदि चवन० ॥ १३ गुदि ३ जनम्या. २० शुदि १२ दिवालीधी. १३ शुदि ४ दिवालीधी. १ए गुदि १ मोकृपाम्या. श्शुदि जनम्या. ॥ चैत्रवदिशुदिपद ॥१३॥
शुदि ए दिवालीधी. २३ वदि ४ चवनम् ॥ ४ शुदि १३ दिवालीधी. २३ वदि ४ केवलज्ञान १५ शुदि १३ दिवालीधी. वदि ५ चवन० ॥ फागुणवदिशुदिपद॥१५॥ १ वदि जनम्या. ७ वदि ६ केवलज्ञान १ वदि नदिदातीधी. ७ वदि ७ मोक्षपाम्या. १७ शुदि ३ केवलज्ञान जवदि.७ केवलज्ञान०१४ शुदि ए मोहपाम्या. ए वदि ए चवन०॥ गुदि ए मोहपाम्या. १ वदि ११ केवलज्ञान ३ शुदि ५ मोक्षपाम्या. २० वदि १२ केवलज्ञान ५शुदि ए मोहपाम्या. ११ वदि १३ जनम्या. यदि ११केवलज्ञान ११ वदि १३ दिदातीधी. शुदि १३ जनम्या. १२वाद १४ जनम्या. ६ शुदि १५केवलज्ञान १२ वदि ३० दिक्षालीधी. वैशाखवदिशक्षिपद.१७॥ १शुदि चवन० ॥ १७ वदि १ मोपाम्या.
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(नए) १० वदि २ मोक्षपाम्या. १६ वदि १३ जनम्या. १७ वदि ५ दिदालीधी. १६ वदि १३ मोपास्या. १० वदि ६ चवन० ॥ १६ वदि १४ दिवालीधी. २१ वदि १० मोहपाम्या. १५ शुदि ५ मोक्षपाम्या. १४ वदि १३ जनम्या. १२ शुदि एचवन० ॥ १४ वदि १३ दिवालीधी. ७ शुदि १२ जनम्या. १४ वदि १४ केवलझान शुदि १३ दिवालीधी. १७ वदि १४ जनम्या. ॥षाढवदिशुदिपद॥६॥
४ गुदि चवन०॥ १ वदि ४ चवन० ॥ १५ गुदि ७ चवन० ॥ १३ वदि ७ मोक्षपाम्या.
शुदि मोदपाम्या. २१ वदि ए दिवालीधी. ५ गुदि जनम्या. २४ शुदि ६ चवन० ॥ ५ शुदि ए दिवालीधी. २२ गुदि मोकपाम्या. २४ गुदि १० केवलज्ञान. १२ शुदि १४ मोहपाम्या. १३ गुदि १२ चवन ॥ ॥श्रावणवदिशुदिपदाए॥
शुदि १३ चवन०॥ ११ वदि ३ मोपाम्या. ॥ज्येष्टवदिशुदिपद।।१०॥ १४ वदि ७ चवन० ॥ ११ वदि ६ चवन ॥ १ वदि जनम्या. २० वदि जनम्या. | १७ वदि एचवन०॥ २० वदिए मोक्षपाम्या. । ५गुदि २ चवन॥
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(ए) २२ गुदि ५ जनम्या. वदि ७ मोक्षपाम्या. २२ गुदि ६ दिवालीधी. ७ वदि चवन॥ २३ गुदि मोक्षपाम्याः ए शुदि ए मोहपाम्या. २० गुदि १५ चवन ॥ ॥धाशोवदिशुदिपद ॥२॥ ॥नावाव दिशुदिपदाथा २२ वदि ७ केवलझाना १६ वदि ७ चवन० ॥ २१ शुदि १५ चवन० ॥
॥ अथ श्री शत्रुजय पद ॥ ॥ दादा मोरा सासरीए वसाव्य,सासरीयां जाए ले रे शेजो नेटवा ॥ जाशे जाशे जेवगणोनी जोड, देरा गीयो जाशे रे उरितने मेटवा ॥ १ ॥ धियडी मारी शेजेजो दूर,सासर वासो रे नथी सज्यो वली ॥ कठण ने था ननालानो काल, जूनी लहरें रे शरीर रहे बली ॥२॥ दादा मोरा पापीने से दूर,सासरवासोरे मुने पोहोतो सवे ॥ नलें लह्यो उनालो ए वाट, न वमा नमतां रे जाणुं बुं बहु नवें ॥३॥घेली बेटी घेलडीयां श्यां बोल, देशावर जातां रे फुःख बहु दे खq ॥ दादा मोरा नजरें देखं ए देश तो फुःख सघलां रे सुख करी लेखq ॥ ४ ॥ उर्गतिनां पार्दु हो दांत,
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(ए? ) सुगति वसावुरे सहजें हाथमां ॥ जागुं जागुं शे जानी हो जात्र, समकितधारी रे सामीनी साथमा ॥ ५ ॥ दादा मोरा सहज वलावे लोक, माडीनो जा यो रे साथें मोकलो॥ अगान चलावो हो श्राज, ख बर देवाने पंमयो खोखलो ॥ ६ ॥ पूरूं मारा मनडा ना कोड,हल हल करीने होंशें हालगुं ॥ लेवा लेवा मुगतिनी मोज,चोंप करीने रे पंथें चालशं ॥॥ एवो एवो करे हे बालोच, स्वामीनु तेथु रे थाव्युं ते स मे ॥ वोलावी दीधी ले तेने वेग, शेजेजे जश्ने ष नने ते नमे ॥ ॥ नांगी नांगी नवनी हो नख, गिरिवरियो देखीने मनडुं गहगर्दा ॥ वुग वुना दूधडे हो मेह,हर्षनेपूरे हैयडं हसी रह्यं ॥ए॥ जमडा तणुं तिहां नहीं हो जोर, जेणें प्रनु पूज्यां रे फुले फुटरें।
शुं करे तेहने हो रोग, अमीरस पीधो रे जे नरें धूं टडे ॥ १० ॥ देशमाहे ने शोरत देश, तीरथ माहे रे शेव॒जो तेम लहो ॥ हारमाहे हो हारमा नगीनो जेम, उदयरत्न कहे साचुं सहहो ॥ ११ ॥ इति ॥
॥ अथ पद ॥ ॥ नानिरायावशें वारु उदयो दिणंद,देवनो में देव
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(ए) दोगे थादिजिणंद ॥थादिजिणंद हांजी मरु देवीनो नंद ॥ना०॥१॥ मीठो लागे माहाराज रूप ताहारो
आज, मुजरो लीयो माहारो सारोने काज ॥ दिवस घणे दीठो तुने नाथ मुने नेह, उपनो आनंद तेहनो कोण लहे लेह ॥२॥ मी॥ ताथे ताथे तानवाजे थीनगीन दों,मृदंग देव उंडनि ते वाजे दोंदों॥ शंख वाजे तालकंसाल, धपमप मादल भ्रमके रसाल ॥ मी० ॥३॥ दंकिटि दंकिटि थे थर थाप, पधनी धपमधप थइ अतिव्याप ॥ घणपण घुघरा घमके रे पाय, नगणण नाकारा नेरीना थाय ॥ मी०॥ ॥४॥नाची कूदीपाय वंदीनविजन नावें, जगतिगुं जगवंतने शीस नमावे || मुगतिनी मोज थापो मागु बे कर जोड, उदयरतन कहे नवःख बोड ॥मी॥५॥ इति श्री शत्रुजय स्तवन समाप्त ॥
बना इति श्री शत्रुजय महातीर्थनां रास ! से नधारादि ग्रंथोनां संग्रहनु
पुस्तक समाप्त॥
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मारातारू कामासातासाचालाक्ताकालाजामा
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