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(२) मांहे दया धर्म वखाणु, व्रत मांहे जेम ब्रह्मवत जाणु ॥ पर्वत मांहे वडो मेरु होइ, तिम शत्रुजय सम तीरथ न कोई ॥ ५॥ ॥ ढाल ॥ बीजी ॥ त्रय पढ्योपम ए॥ ए देशी॥
॥ आगेए यादिजिनेसर, नानी नरिंद मलार ॥ शत्रुजय शिखर समोसस्या, पूरव नवाणु ए वार॥६॥ केवल झान दिवाकर, स्वामी श्री रूपन जिणंद ॥ साथै चोरासी गणधर, सहस्स चोरासी मुणिंद ॥७॥ बदु परिवार परवस्था, श्री शत्रुजय एकवार ॥ रुपन जिणंद समोसस्या, महिमा न लानुं ए पार ॥ ७ ॥ सु र नर कोडी मल्या तिहां, धर्म देशना जिन नाषे ॥ पुं मरिक गणधर घागले,शत्रुजय महिमा प्रकाशे ॥॥ सांजलो पुमरिक गणधर, काल अनादि अनंत ॥ ए तीरथ ने शाश्वतुं, यागें असंख्य अरिहंत ॥ १० ॥ गणधर मुनिवर केवल, पाम्या अनंती ए कोडि, मुक्ते गया इणे तीरथ वली, जासे कर्म विबोडि ॥ ११ ॥ क्रूर जिके जग जीवडा, तिर्यंच पंखी कहीजें ॥ ए तीरथ सेव्या थकी, ते सीजे नव त्रीजे ॥ १२ ॥ दी तो उरगती वारे ए, सारे वंडित काज ॥ सेव्यो ए शत्रु जय गिरिवर, थापे अविचल राज ॥ १३ ॥
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