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( १५ )
नवंसी नृप, जरत संख्याता पाट || मुकें सरवार्थे, एह गिरि शिवपुर वाट ॥ १०७ ॥ राममुनि नरतादि क, सुनित्रण कोडी एम ॥ नारदशुं एकालु, लाख मुनिसर तेम ॥ ११० ॥ मुनि शांव प्रद्युम्नशुं, शादी घाठकोडी साथ || वीश कोडीसुं पांव, मुगतें गया निराबाध ॥ १११ ॥ वली थावच्चा सुत, सुक मुनि वर इणेाम ॥ एक सहस्तसुं सिद्धा, पंचशत से लंग नाम ॥ ११२ ॥ इम सिद्धा मुनिवर, कोडाकोडी अपार ॥ वली सीज से इसे गिरि, कुण कही जाणे पार ॥ ११३ ॥ सात वह दो ग्रहम, गणे एक लाख नव कार ॥ शत्रुंजय गिरि सेवे, तेहने दोय अवतार ॥ ११४ ॥
॥ ढाला ॥ बारमी ॥ वधावानी देशी ॥
॥ मानव नवमें नजे लघुं, जह्योते यारज देश || श्रावक कुन लाधुं नलो, जो पाम्यो रे वाहालो रुपन जिनेशके ॥ ११५ ॥ नेटयोरे गिरिराज, हवे सीधारे म हारा वंदित काजके, मुने जुठोरे त्रिभुवनपति याजके ॥ नेट्यो ॥ ११६ ॥ ए यांकणी ॥ धन्य धन्य वंस कुल गर तो, धन्य धन्य नानि नरिंद ॥ धन्य धन्य मरुदेवा मावडी, जेणे जायोरे वालो कपन जिणंदके॥ ० ॥ ११७ धन्य धन्य शत्रुंजय तीरथ, रायण रूख धन्य धन्य ॥ धन्य
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