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मणे पासें, प्रभु पगला याप्या उल्लासें ॥ ५१ ॥ श्री नानि धने मरुदेवी, प्रासादचं मूरति करेवी || गज वर खंधे लइ मुक्ति, कीधी खाईनी मूरति नक्ति ॥ ॥ ५२ ॥ सुनंदा सुमंगला माता, ब्राह्मी सुंदरी बहि न विख्याता ॥ वली नाइ नवाणुं प्रसिद्ध, सवि मूर ति मणिमय कीध ॥ ५३ ॥ नीपाइ तीरथ माल, सु प्रतिष्ठा करावी विशाल ॥ यक्ष गौमुख चक्केसरी देवी, तीरथ रखवाल ठवेवी ॥ ५४ ॥ इम प्रथम उद्धारज कीथो, नरतें त्रिभुवन जस लीधो ॥ इंड्रादिक कीर्त्ति बोले, नही कोई जरत नृप तोलें ॥ ५५ ॥ शत्रुंजय महातम मांहिं, अधिकार जोजो चाहिं ॥ जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, सद्दहो सूत्र नववाइ निर खी ॥ ५६ ॥ वस्तु ॥ नरतें कीधो नरतेंकीधो, प्र थम उद्धार, त्रिभुवन कीर्त्ति विस्तरी ॥ चं सूरज ल में नाम राख्युं, तिरो समय संघपति केटला हवा || सो इस शास्त्रे नाख्युं, कोडी नवाणु नरवरा, हूया नेव्यासी जाख ॥ नरत समय संघपति वली, सहस चोरासी जाख ॥ ५७ ॥
॥ ढाल ॥ सातमी ॥ चोपाइनी देशी ॥ ॥ जरतपायें दूया यादित्ययसा, तसपाटें तस सु
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