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( २६ )
॥ अथ श्री आदिनाथ विनंतिरूप श्री शत्रुंजय स्तवन ॥
॥ पणमविसयल जिणंद पाय, मन वंदित कामी ॥ सयज तीरथनो राजीन ए, प्रणमुं सिरनामी ॥ जस दरिशन डरगति टले ए, नासे सवि रोग ॥ स्वज न कुटुंब मेला मजे ए, मनवंडित जोग ॥ १ ॥ नानि कुमर जगजालीयें ए, मरुदेवीनो नंद ॥ वदन कमज दीपे प्रति ननुंए, जाणे पुनम चंद ॥ शत्रुजा केरो राजीयो ए, सोवन मय काया | उंचपणे सय धनुष पंच, प्रणमें सुर राया ॥ २ ॥ चोराव इंड् यादे दइ ए, सुर सेवा सारे ॥ त्रिभुवन तारण वीतराग, नव पार उतारे || चालाने शत्रुजे जाइयें ए, दरखे कीजें जात्र ॥ सूरज कुंके स्नानकरी, कीजे निर्मल गा
॥ ३ ॥ खीरोदक सम धोतीया ए, उदय बादर चीर ॥ कनक कलश सायें लइ, नरीयें निर्मल नीर ॥ बावना चंदन घसी घणो ए, कवोला जरीयें ॥ युगा दिदेव पूजा करी ए, नव सायर तरीयें ॥ ४ ॥ चंपक केतकी मालती ए, मांहे दमणो शोहे ॥ कुसुममाल कंठे ठवोए, नवियण मन मोहे ॥ कर
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