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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) लघु असंख्य विचार ॥ ७६ ॥ इव्यनाव वैरी तणो, जेहथी थाये अंत ॥ते॥ शत्रुजय समरंत ॥ ७ ॥ पुंमरिक गणधर दूधा, प्रथम सिह इणे गम ॥ते॥ पुमरिक गिरि नाम ॥ ७ ॥ कांकरे कांकरे इणे गि रि, सिम दूया सुपवित्त ॥ ते ॥ सिक्षेत्र समचि त ॥ नए ॥ मल इव्यनाव विशेषथी, जेहथी जाए दूर ॥ ते०॥ विमलाचल सुखपूर ॥ ए०॥ सुरवरा ब हजे गिरें, निवसे निर्मल गण ॥ ते ॥ सुरगिरि ना म प्रमाण ॥ ए१ ॥ परवत सदु मांहे वडो, महागि रि तेणें कहंत ॥ ते ॥ दर्शन लहे पुण्यवंत । ए॥ पुण्य अनर्गल जेहथी, थाए पाप विनाश ॥ ते ॥ नाम नखं पुण्यराश ॥ ए३ ॥ लक्ष्मीदेवी जे जण्यो, कुंमे कमल निवास ॥ ते ॥ पद्मनाम सुवास ।। ॥ ए४ ॥ सवि गिरिमां सुरपति समो, पातक पंक वि लात ॥ ते० । पर्वत इंइ विख्यात ॥ ए५ ॥ त्रिनुव नमा तीरथ सवे, तेमां महोटो एह ॥ ते॥ महाती र्थ जस रेह ॥ ए६ ॥ आदि अंत नहीं जेहनी, कोश कालें न विलाय ॥ ते० ॥ शाश्वतगिरि कहेवाय॥ए॥ नए नला जे गिरिवरें, श्राव्या होय अपार ॥ ते ॥ नाम सुन संनार ॥ ए ॥ वीर्य वधे गुन साधुने, For Private and Personal Use Only
SR No.020710
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirnaysagar Press
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1885
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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