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(४५)
विलास ॥ नमो० ॥ तिहां त्रण पडिमायें नमु ए, श्री मन मोहन पास ॥नमो० ॥ १७ ॥ श्रामण साहामा
देहरा ए, श्रीशांतिनाथनां दोय ॥ नमो० ॥ एकमां प्रतिमा त्रस्य नमुं ए, बीजें पचाश तुं जोय ॥ नमो० ॥ १८ ॥ मूलकोट मांहे दण दिसें ए, देहरी त्रस्य बेजोड | नमो० ॥ तहां प्रतिमा खट वंदीयें ए, क हे अमृत मद मोड | नमो० ॥ १९ ॥
॥ ढाल खामी ॥ तपचं रंग लागो || ए देशी ॥
॥ उत्तर पूरव वचले नागें, देहरी त्रस्य शोहावे रे । दरखीने ते थानक फरसे, वरसी समता जावें ॥ एहने सेवोने, हांरे तुमे सेवो सदु नरनार || एहने ॥ ॥ एतो मेवो इसे संसार || एह ॥ एतो नवजल तारण हार || एहने० ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ तेहमां यावच्चा सुत सेजग, सूरि प्रमुख सुखदाइ रे || इगिरि सीधा तेहनां पगलां, वंडु सहस्त घढाइ || एहने ॥ २ ॥ पासें विहार उत्तंग विराजे, रंगमंरुप दिसि चार रे ॥ सेव शिवासोमजीयें कराव्यो, खरची वित्त उदार ॥ एहने० ॥ ३ ॥ अनंत चतुष्टय गुण निपज्याथी, सर खा चारे रूप रे ॥ परमेसर गुन समयें थाप्या, चारे
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