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(६५) राय ॥३॥ तेहथो मोहोटो संघवी कह्यो, नरत सु णीने मन गह गह्यो । जरत कहे ते किम पामीयें, प्रनु कहे शत्रुज यात्रा कोयें ॥ ४ ॥ नरत कहे संघवी पद मुज, ते थापो हुँ अंगज तुज ॥ ३ घाण्या अक्त वास, प्रनु आपे संघवो पद तास ॥ ५॥ ६३ तेणी वेला तत्काल, नरत सुन बेदुने माल ॥ पहे रावो घर संप्रेडीया,सखर सोनाना रथ आपिया ॥६॥ वनदेवनी प्रतिमा वली, रत्न तणी कीधी मनरल। जरतें गणधर घर तेडीया, शांतिक पुष्टिक सदु तिहां कीया ॥ ७ ॥ कंकोतरी मूकी सदु देश, बरतें तेड्यो संघ अशेष ॥ आव्यो संघ अयोध्या पुरी, प्रथम तीर्थ कर यात्रा करी ॥ ॥ संघ नक्ति कोधा अति घणी, संघ चलायो शत्रुजय नणी ॥ गणधर बाहुबली केव ली, मुनिवर कोडी साथें लिया वली ॥ए। चक्रवर्तीनी सपली कहि, नरतें साथें लीधी सि६ि ॥ दय गय रथ पायक परिवार, तेतो कहेतां नावे पार ॥ १०॥ नर तेसर संघवी कहेवाय, मारगें चैत्य उरतो जाय ॥ संघ आव्यो शत्रुजय पास, सहूनी पूगी मननोभाश ॥११॥ नयणें निरख्यो शत्रंजो राय, मणिमाणिक मोतोमु वधाय ॥ तिणें गमें रही महोत्सव कीयो,
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