Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३) करावीयो, ए इग्यारमो नदारोजी॥ श०॥ १२॥ पां मव कहे अमें पापीया, किम जुटुं मोरी मायोजी॥ कहे कुंती शत्रुजा तणी, जात्रा कीयां पाप जायोजी॥ श०॥ १३ ॥ पांचे पांमव संघ करी, शत्रुजय नेट्यो अपारोजी। काष्ठ चैत्य बिंब लेपनो, ए बारमो उ दारोजी॥ श० ॥१४॥ मम्माणो पाषाणनी, प्रतिमा सुदर सरूपीज।॥ श्रीशत्रजनो संघ कर, थापा सकल सरूपोजी॥ श॥ १५॥ अहोतर शो वरसां गयां, वि क्रम नृपथी जिवारोजी॥पोरवाड जावड करावीयो, ए तेरमो नारोजी॥ श०॥ १६ ॥ संवत बार तेरो त्तरें, श्रीमाली सुविचारोजी ॥ बाहडदे मुहतें करावी यो, ए चौदमो नारोजी ॥ श०॥ १७ ॥ संवत तेर एकोत्तरें, देश लहेर अधिकारोजी ॥ समरे शाह क रावीयो, ए पंदरमो नारोजी ॥ श०॥ १७ ॥ संवत पन्नर सत्त्याशीये, वैशाक शुदि शुन वारोजी॥ करमे दोशी करावीयो, ए शोलमो नदारोजी ॥ श॥१॥ सांप्रतकालें शोलमो, ए वरते ने नहारोजी ॥ नित्य नित्य कीजें वंदना, पामीजें नवपारोजी॥शा०॥ ॥दोहा॥ ॥ वली शत्रुज महातम कहुँ, सानलो जिम ने ते For Private and Personal Use Only

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