Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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( ७४ )
तांबिल शुद्ध थायजी ॥ काती सात दिन तप की यां, रत्नहरण पाप जायजी ॥ श० ॥ ३ ॥ कांसा पीतल तांबा रजतनी, चोरी कीधी जेणजी ॥ सात
दवस पुरिमड करे, तो छूटे गिरि एणजी ॥ ८० ॥ ४ ॥ मोती प्रवालां मुगीया, जेणें चोखां नरनारोजी ॥ श्रां बिल करी पूजा करे, त्रण टंक शुद्ध श्राचारो जी ॥ ॥ श० ॥ ५ ॥ धान्य पाणी रस चोरीयां, जे भेटे सि 5 खेत्रोजी ॥ शत्रुज तलहटी साधुने, पडिलाने गुन चित्तोजी ॥ श० ॥ ६ ॥ वस्त्राभरण जेणें दयां, ते बू टे इसे मेलोजी || श्रादिनाथनी पूजा करे, प्रह नवी बहु वेहेलोजी ॥ श० ॥ ७ ॥ देवगुरुनुं धन जे हरे, ते शुद्ध थाये एमोज | ॥ यधिकं इव्य खरचे तिहां, पाले पोषे बहु प्रेमोजी ॥ श० ॥ ८ ॥ गाय नॅश गो धा मही, गजग्रह चोरण हारोजी ॥ छूटे ते तप तीर थें, अरिहंत ध्यान प्रकारोजी ॥ श० ॥ ए ॥ पुस्तक देहरां पारकां, तिहां लखे श्रापणां नामोज | ॥ बटे मासी तप कीय, सामायिक तिल गमोजी ॥ श ० ॥ ॥ १० ॥ कुंवारी परिव्राजिका, सधव विधव गुरु ना रोजी ॥ व्रत जांजे तेहने कयुं, उमासी तप सारो जी ॥ श० ॥ ११ ॥ गो विप्र बालक ऋषि एहनो
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