Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(७३) म ॥ सूरि धनेसर इम कहे, महावीरें कडं एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दर्शनी, शत्रुजे पूजनीक ॥ नगवंतनो नेख मानतां, लान होवे तहकीक ॥ ॥ श्री शत्रुजा नपरें, चैत्य करावे जेह ॥ दल परिमाण समुं लहे, प व्योपम सुख तेह ॥३॥ शत्रुजा नपर देहरूं, न नी पावे कोय । जीर्णोधार करावतां, आठ गणुं फल हो य ॥ ४ ॥ शिर उपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार ॥ चक्रवत्तीनी स्त्री था शिवसुख पामे सार ॥ ५॥ का ती पूनेम शत्रुजें, चडीने करे उपवास ॥ नारकी शो सागर तणो, करे कर्मनो नाश ॥ ६ ॥ काती परव महोटुं कर्तुं, जिहां सोधा दश कोड ॥ ब्रह्म स्त्रीबा लक हत्या, पापथी नाखे बोड ॥ 9 ॥ सहस्त्र लाख श्रावक जणी, जोजन पुण्य विशेष ॥ शत्रुज साधु प डिलानतां, यधिको तेहथी देख ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल पांचमी॥धन्य धन्य गज सुकुमारने ॥ ए देशी ॥
॥ शत्रुजें गयां पाप बूटोयें, लोजें बालोयण ए मोजी ॥ तप जप कोजें तिहां रहो, तीर्थकर कह्यु तेमोजी ॥श ॥१॥ जण सोनानी चोरी करी,ए बालो यण तासोजी ॥ चैत्रीदिन शत्रुजय चढो, एक करेन पवासोजी ॥श ॥ २ ॥ रत्नतणी चोरी करी, सा
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