Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(६७) थ बहे अरे, पोहोलो पर्वत एह । उचो होशे सोध नुष, शासतुं तीरथ एह ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ जिनवरघु मेरो मन लोनो॥
॥ ए देशी ॥ राग याशावा।। ॥ केवलज्ञानी प्रथम तीर्थकर, अनंत लिवाण गम रे॥ अनंत वलो सिमशेणे गमें, तिणे करूं नित्य प्रणाम रे ॥१॥ शत्रुजे साधु अनंता लिक्षा, सीकशे वलीय अनंत रे ॥ जेणे शत्रुज तीरथ नहीं नेटयु, ते गर्भावास कहंत रे ॥ श० ॥२॥ फागुण शुदि आमने दिवसें, रुपनदेव सुखकार रे ॥रा यण रूंख समोसखा स्वामी, पूरव नवाणुं वार रे॥ ॥ श० ॥ ३॥ नरत पुत्र चैत्री पूनम दिन, इण शत्रु जे गिरि थाय रे ॥ पांच कोडिगं घुमरीक सीधा, तेणें पुंझरोक कहाय रे ॥ श॥ ४ ॥ नमो विनमि राजा विद्याधर, बे बे कोडी संघात रे ॥ फागुण गुदि दशमी दिन सीधा, तेणें प्रनु प्रणामुं प्रनात रे ॥ श०॥५॥ चैतर मास वदि चौदशने दिन,नमोपुत्री चोशहरे॥य पासण कर शत्रुज गिरि कपर, ए सहु सोधा एक रे॥ श०॥ ६ ॥ पोतरा प्रथम तीर्थ फर केरा,हाविडने वारिखिन्न रे॥ कार्तिक शुदिपूनम दिन सोया, दश
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