Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(६६) ॥१॥ए बांकणी। सुरगिरि महागिरिने पुण्यराश,श्रीपद पर्वतेंप्रकाश ॥ महातीरथ पूरवे सुखकाम, ए शत्रु जना एकवीश नाम ॥ २ ॥ शाश्वत पर्वतने दृढश क्ति, मुक्तिनिलो तेणे कीजें नक्ति ॥ पुप्फदंत महाप असुगम ॥ ए० ॥ ३ ॥ पृथ्वीपीठ सुनइ कैलास, पाताल मूल अकर्मक तास ॥ सर्वकाम की गुणग्रा म ॥ ए॥ ४ ॥ शत्रुजयनां एकवीश नाम,जपेज बे ग धपणे वाम ॥ शत्रुज यात्रानुं फल लहे, म हावीर नगवंत एम कहे ॥ ए० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ शत्रुजो पहेले अरे, असी जोयण परिमाण ॥ पहोलो मूलें उंच पणे, बच्चोश जोयण जाण ॥१॥ सीत्तर जोयण जाणवो,बीजे बारे विशाल ॥वीश जो यण उचो कह्यो, मुज वंदन त्रए काल ॥ २ ॥ शाठ जोयण त्रीजे घरे, पहोलो तीरथ राय ॥ शोल योज न चंचो सही, ध्यान धरूं चित्त लाय ॥ ३ ॥ पञ्चाश जोयण पहोल पणे, चोथे घरे मकार ॥ उंचो दश जोयण अचल, नित्य प्रणमे नरनार ॥ ४ ॥ बार योजन पंचम अरे, मूल तणो विस्तार ॥ दोय जोय ण उचो कह्यो, शत्रुज तीरथ सार ॥ ५ ॥ सात हा
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