Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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तस टाडे नव फेरी ॥ संकट विकट सवि टले ए, शत्रुजय गिरिनामे ॥ सकल कर्मनो दय करी ए, ते शिवपुर पामे ॥ २१ ॥ तपगढ नायक गुण नि लो ए, गुरु हीरजी राया ॥ मन मोहन विजयसेन सूरि, तेहना प्रणमुं पाया ॥ विमलहरख शिष्य प्रेम विजय, कहे निसुणो देव ॥ नवनव शत्रुजे गिरि तणी ए, मुज देजो सेव ॥ १२ ॥
॥ कलश ॥ इम थुण्यो स्वामी मुक्तिगामी,आदिजिन जगदेवए ॥ नित्य नमे सुर नर असुर व्यतर, करे य हनिप्त सेवए । जे नणे जगते नली युक्तं, तसवर ज यजय कारए ॥ कहे कवियण तुणो नवियण, जिम पामो नव पारए ॥ २३ ॥ इति श्रीशत्रुजय स्तवनं ॥
॥अथ॥ ॥श्री अमृत विजयजीकृत श्री शत्रुजय
तीर्थमाला प्रारंनः॥ ॥ ढाल पहेली गरबानी देशीमां ॥ जगजीवन जा लम यादवारे, तुमे शाने रोंकोजो रानमा ॥ तुमे स घले कहेवायो बो माधवारे, तुमे ॥ ए देशी ॥
॥ विमलाचल विमला वारूरे, नवियण ने
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