Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस टाडे नव फेरी ॥ संकट विकट सवि टले ए, शत्रुजय गिरिनामे ॥ सकल कर्मनो दय करी ए, ते शिवपुर पामे ॥ २१ ॥ तपगढ नायक गुण नि लो ए, गुरु हीरजी राया ॥ मन मोहन विजयसेन सूरि, तेहना प्रणमुं पाया ॥ विमलहरख शिष्य प्रेम विजय, कहे निसुणो देव ॥ नवनव शत्रुजे गिरि तणी ए, मुज देजो सेव ॥ १२ ॥ ॥ कलश ॥ इम थुण्यो स्वामी मुक्तिगामी,आदिजिन जगदेवए ॥ नित्य नमे सुर नर असुर व्यतर, करे य हनिप्त सेवए । जे नणे जगते नली युक्तं, तसवर ज यजय कारए ॥ कहे कवियण तुणो नवियण, जिम पामो नव पारए ॥ २३ ॥ इति श्रीशत्रुजय स्तवनं ॥ ॥अथ॥ ॥श्री अमृत विजयजीकृत श्री शत्रुजय तीर्थमाला प्रारंनः॥ ॥ ढाल पहेली गरबानी देशीमां ॥ जगजीवन जा लम यादवारे, तुमे शाने रोंकोजो रानमा ॥ तुमे स घले कहेवायो बो माधवारे, तुमे ॥ ए देशी ॥ ॥ विमलाचल विमला वारूरे, नवियण ने For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96