Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) श्रावक मेघ समा कह्या, करता पुरस्यनुं काम ॥ पुण्य निरासि वधे घणी, तेणे पुण्यरासि नाम ॥१॥सि॥ __संयमधर मुनिवर घणा,तप तपता एक ध्यान॥ कर्मवियोगें पामीया, केवल लक्ष्मी निधान ॥१॥ लख एकाएं शिववस्या, नारदलं अणगार ॥ नाम नमो तेणे याठमुं, श्रीपद गिरि निरधार ॥ १५ ॥ ति० ॥ ए श्रीसामंधर स्वामीय,एगार महिमाविलास॥ इंनी बागें वर्णव्यो,तेणे ए इंश प्रकाश ॥२०॥सि॥ १० दश कोटी अणुव्रत धरा, नक्तं जिमाडे सा र ॥ जैन तीर्थ यात्रा करी, लान तो नहीं पार ॥२१॥ तेहथकी सिहाचलें,एक मुनिने दान॥ देतां लान घणो दुवे, महा तीरथ अनिधान ॥श्शासि॥ ११ प्रायें एगिरिशाश्वतो,रहेशे कालवनंत ॥ शत्रु जय महातमसुणी,नमो शाश्वतगिरिसंत ॥३॥सि॥ १२ गौ नारी बालक मुनि, चन हत्या करनार ॥ यात्रा का कार्तिकी, नरहे पाप लगार ॥ २४॥ जे परदारा लंपटी, चोरीनां करनार ॥ देवाव्य गुरु व्य नां, जे वली चोरणहार ॥२५॥ चैत्री कार्तिक पूनमें, करे यात्रा इणे गम ॥ तप तपतां पातिक गले, तिणे दृढसक्ति नाम ॥ २६ ॥ सिदा ॥१॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96