Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(५६)
जोग॥जे कंचे ते संपजे, शिव रमणी संयोग ॥३६॥ विमलाचन परमेष्टीनु, ध्यान धरे खट मास ॥ तेज अपूरव विस्तरे, पूगे सघली बाश ॥ ३७॥ त्रीजे नव सिदि लहे, ए पण प्रायिक वाच ॥ नत्कृष्टा परिणा मथी, यंतर मूहुर्त साच ॥ ३८ ॥ सर्व काम दायक नमो, नाम करी उलखाण ॥ श्रीगुन वीरविजय प्र तु, नमतां कोड कल्याण ॥३ए॥ सिदा ॥१॥ इति श्रीसिधाचलना एकवीस नाम आश्रयी एकवीश गुणना खमासमण संबंधी दोहा समाप्तः ।।
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॥ अथ सिक्षाचल चैत्यवंदनं ॥ ॥ विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिनुवन हितकरं ॥ सुरराज संस्तुत चरण पंकज, नमो या दिजिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमल गिरिवर शंग मंझण, प्रवर गुणगणनूधरं ॥ सुर असुर किन्नर कोडि सेवित ॥ नमो ॥ २॥ करति नाटिक किन्नरीगण, गाय जिन गुण मनहरं ॥ निरावली नमे अहनिश ॥ नमो० ॥३॥ मरिक गणपति सिदि साधी, कोडी पण मुनि मनहरं ।। श्री विमल गिरिवर शंगसिदा ॥ न मो० ॥ ४॥ निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोही
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