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(५२)
| अथ ॥ ॥ पंमित श्रीवीरविजयजीकृत ॥ श्रोशत्रुजय तीर्थना एकवीश नाम संबंधी एक वीश गुण याश्रयी एकवीश खमासमण
आपवाना दोहा प्रारंनः ॥ १ सिमाचल समरो सदा, सोरत देश मजार ॥ म णुय जनम पामी करी, वंदो वार हजार ॥ १ ॥ अंग वसन मन नूमिका, पूजोपगरण सार ॥ न्याय इव्य विधि शुश्ता, शुक्षि सात प्रकार ॥ ॥ कार्तिकशुदि पूनम दिने,दश कोटी परिवार ॥ज्ञाविड वारिखिन्नजी, सिह थया नरधार ॥३॥ तिणे कारण कार्तिकी दिने, संघ सकल परिवार ॥ थादिजिन सनमुख रही, ख मासमण बहु वार ॥ ४ ॥ एकवीश नामे वरणव्यु, तिहां पहेलुं अनिधान ॥ शत्रुजय शुक रायथी, ज नक वचन बदु मान ॥५॥ यहींयां “ सिक्षाचल स मरो सदा" ए हो प्रत्येक खमासमण दीठ कहेवो॥१॥
२ समोसस्या सिक्षाचलें, पुमरीक गणधार ॥ ला ख सवा माहातम कयुं, सुरनर सना मजार ॥ ६ ॥
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