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लेसे मंगल माल, कंठेजे धरसे रे || वली सुख संप ति सुविशाल, महोदय वरसे रे ॥ १५ ॥ तपगब गया दिद, रूपे बाजे रे || श्री विजयदेव सूरिंद, अधिक दिवाजे रे || रत्नविजय तस शिष्य, पंमित राया रे || गुरुराज विवेक जगीश, तास पसाया रे ॥ १६ ॥ कीधो एह धन्यास, घढार चालीशे रे ॥ उजल फागुण मास, तेरस दिवसे रे ॥ श्रीविमला चल चित्त, घरी गुण गाया रे ॥ कहे अमृत नवियण नित्य नमो गिरिराया रे ॥ १७ ॥ कलश ॥ इम तीर भाला गुण विशाला, विमल गिरिवर राजनी || कही स्वपर देतें पुण्य संकेते, एह जिनघर साजनी ॥ तप ग गया दिद गणधर, विजय जिणंद सूरिश्वरू ॥ रची तास राजे पुण्यसाजे, मृत रंग सुहंकरू ॥१८॥ ॥ इति श्री विमलाचल तीर्थमाला संपूरण |
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ए तीरथ माता का पती प्रेमचंद मोदीनी ट्रंक, हेमावसही, मोतीशा शेवनी अंजन शिलाका सहित तेमनी ट्रॅक, बालाजाइनी टुंक, केशवजी नायकना अं जनशिलाका सहित देरासरादिक जे कांइ ए तीर्थमा लानी रचना थया पढी नवा जिनालय थयाने ते सर्व नी यात्रालु सकनोयें यात्रा करवी ए विनंति बे.
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