Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(४६) दिशायें अनूप ॥ एहने॥ ४ ॥ ते श्री कृषन जिने सर चौमुख, बीजा जिन त्रेताल रे ॥ शुद्धनिमित्त का रण लही एहवा, ढुं प्रणमुं त्रस्य काल ॥ एहने ॥ ॥ ५ ॥ उपर चोमुख बबीश जिना, देखी उरित नि कंडं रे ॥ चोवीश वट्टो एक मलीने, चोपन प्रतिमा वंडं। एहने ॥ ६ ॥ साहामा पुमरिक स्वामी बेग, पुमरिक वरणा राजे रे ॥ तस पद वंदी जोडे देहरी, तेहमां थून विराजे ॥ एहने॥७॥षन प्रजुने पुत्र नवाणु, आठ जरत मुत संगे रे ॥ एकशो घाउ सम य एक सीधा, प्रणमुं तस पद रंगे ॥ एहने ॥ ७॥ फिरति नमति मांहे प्रतिमा, एकशोने बत्रीश रे॥ तेहमां चोवीश वट्टा साथे, एकशो शाठ जगीश ॥ ॥ एहने ॥ ए॥ पोल बाहेर मरुदेवी ढूंके, चोमुख एक प्रतिको रे ॥ धनवेलबायें निज धन खरची, नरनव सफलो कीधो ॥ एहने ॥ १० ॥ पश्चिमने मुख साहमां शोहे, देवलमा मनोहारी रे ॥ गजवर खंधे बेठा थाई, तीरथनां अधिकारी ॥ एहने ॥११॥ संप्रतिरायें नुवन कराव्यु, उत्तर सनमुख शोहे रे॥तेह मांअचिरानंदन निरखो,कहे अमृत मन मोहे ॥१॥
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