Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras
Author(s): Nirnaysagar Press
Publisher: Nirnaysagar Press
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(३५)
शठ सरवालेजी ॥ मुं० ॥ तिहां प्रनु सगवीसमें वं दोजी ती॥ कहे अमृत ते चिरनंदोजी ॥मु॥१॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ वात करो वेगला रही
विसरामी रे॥ ए देशी ॥ ॥ हवे हाथोपोलनी बाहेरें ॥ विसरामी रे ॥ बै गोखें जिनराज ॥ नमु शिर नामी रे ॥ तेहथी द क्षण श्रेणीयें ॥ वि०॥ कहुँ जिनघर जिननो साज ॥ न ॥१॥ कुमर नरिंदें करावीयो॥ वि०॥ धन खरची सार विहार॥न॥बावन शिखरें वंदी॥वि०॥ तिहोत्तर जिन परिवार ॥ न ॥२॥ वली धनराजने देहरे ॥ वि०॥ प्रतिमा वंड सात ॥ न० ॥ देहरे वर्ष मान शेठ ने ॥ वि०॥ प्रतिमा सात विख्यात न०॥ ॥३॥ शाह रवजी राधणपुरी ॥ वि० ॥ तेहतुं जिन घर जोय ॥ न० ॥ तिहां पनर जिन दीपता वि॥ प्रणमो पातिक धोय ।। न० ॥ ४॥ तेहनी पासें रा जता ॥ वि०॥ मंदिरमां जिन चार ॥न ॥ ति हाथी पागल जोश्य। वि०॥यन्त रचना सार । न० ॥ ५ ॥ जगत शेठजीये कीयो ॥ वि०॥ त्रस्य शिखरो प्रासाद ॥ न० ॥ तिहां पन्नर जिन पेखतां ॥ वि०॥ मुज परणति दूर थाल्हाद ॥ न० ॥६॥
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