________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १८ )
हे, जस ध्याने मुनिराय ॥ ते० ॥ पातक दूर पंजाब ॥ १० ॥ श्रद्धानासन रमणता, रत्नत्रयीनुं हेतु ॥ ते ० ॥ जव मकराकर सेतु ॥ ११ ॥ महापापी पण निस्तखा, जेहनुं ध्यान सुहाय ॥। ते।ा सुर नर जस गुण गाय ॥ १२ ॥ पुंमरिक गणधर प्रमुख, सीधासाधु अनेक, ते० ॥ याणी ऋदय विवेक ॥ १३ ॥ चंद्रसेखर स्वसा पति, जेहने संगे सिद्ध || ते० || पानीजे निज कू ॥ १४ ॥ जल चर खेचर तिरिय सेवे, पाम्या बातम नाव ॥ते ॥ जवजल तारण नाव ॥ १५ ॥ संययात्रा जेसे करी, कीथा जेरो उद्धार ॥ ते० ॥ बेदीजें गति चार ॥१६॥ पुष्टि संवेग रस, जेहने ध्याने याय ॥ ते || मिथ्यामति सवि जाय ॥ १७ ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, सुरघट सम जसध्याव || ते० ॥ प्रगटे शु६ स्वभाव ॥ १८ ॥ सुरलोकें सुरसुंदरी, मली मली योके थोक || ते ॥ गावे जेहना श्लोक ॥ १९ ॥ जोगीश्वर जस दर्शने, ध्यान समाधि लीन ॥ ते ॥ दुया अनु नव रस लीन ॥ २० ॥ मानु गगने सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्य || ते० || महिमा देखण चित्त ॥ २१ ॥ सुर असुर नर किन्नरा, रहे बे जेहने पास || ते० ॥ पामे लीलविलास ||२|| मंगलकारी जेहने, मृतका
For Private and Personal Use Only