Book Title: Shatkhandagama Pustak 16
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 27
________________ विषय पृष्ठ | विषय पष्ठ ४८५ ४२१ अल्पबहुत्व ४०० | तद्वयतिरिक्त द्रव्यलेश्याके छह पदनिक्षेपमें स्वामित्व ४०१ भेदोंका विचार अल्पबहुत्व ४०५ प्रकृत में नैगमनयकी अपेक्षा नोआगम वद्धिसंक्रममें स्वामित्व ४०६ | द्रव्यलेश्या और नोआगम भावलेश्या एक जीवकी अपेक्षा काल ४०६ का प्रकरण है इसकी सूचना एक जीवको अपेक्षा अन्तर ४०६ | छह द्रव्यलेश्याओंका वर्णन ४८५ अल्पबहत्व ४०७ |किस लेश्यामं किस क्रमसे कितने प्रदेशसत्कर्ममें अर्थपद ४०८ प्रमाणमें कौन कौन रंग होते हैं उत्तरप्रकृतिसंक्रमके पाँच भेद इसका विचार ४८७ कितनी प्रकृतियोंके कितने संक्रम भावलेश्याओंका विचार | ४८८ होते हैं इसका विचार ४०९ | लेश्याकर्म-अनुयोगद्वार ४९०-४९२ उद्वेलनप्रकृतियोंके उद्वेलनक्रमका निर्देश ४१९ कुंथुजिनकी स्तुति ४९० पाँच संक्रमभागहारोंका अल्पबहुत्व ४२१ | किस लेश्याका क्या कर्म है इसका विचार ४९० उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका लेश्यापरिणाम-अनुयोगद्वार ४९३-४९७ स्वामित्व | अभिनन्दनजिनकी स्तुति ४९३ जघन्य प्रदेशसंक्रमस्वामित्व लेश्यापरिणाम अनुयोगद्वारके उत्तरप्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका कथनकी सार्थकता ४९३ काल ४४१ छह लेश्याओंके परिणमनकी विधि ४९३ जघन्य प्रदेशसंक्रम तथा अन्य अनुयोग- जघन्य और उत्कृष्ट संक्रम और द्वारोंके जाननेकी सूचना ४४२ प्रतिग्रहोंका तीव्र-मन्दताकी अपेक्षा उत्तर प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश संक्रमका अल्पबहुत्व ४९५ अल्पबहुत्व ४४२ सातासात-अनुयोगद्वार ४९८-५०६ उत्तर प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशसंक्रमका अजितजिनकी स्तुति ४९८ अल्पबहुत्व ४४८ सातासातके पाँच अनुयोगद्वार ४९८ भुजगारसंक्रममें स्वामित्व ४५३ समुत्कीर्तना ४९८ एक जीवकी अपेक्षा काल ४५४ अर्थपद ४९८ अल्पबहुत्व ४५९ पदमीमांसा ४९८ पदनिक्षेपमें स्वामित्व ४६१ स्वामित्व ४९९ अल्पबहुत्व ४७९ प्रमाणानुगम ५०१ वृद्धिसंक्रम ४८१ अल्पबहुत्व ५०२ दीर्घ-ह स्व-अनुयोगद्वार लेश्या-अनुयोगद्वार ५०७-५११ ४८४-४८९ सम्भवजिनकी स्तुति भरजिनकी स्तुति ४८४ | दीर्घके चार भेद ५०७ लेश्याका चार प्रकारका निक्षेप विचार ४८४ | प्रकृतिदीर्घका विचार ५०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५०७ www.jainelibrary.org

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