Book Title: Samraicch Kaha Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ १६ जं विरइऊण पुण्णं महाणुभावचरियं मए पसं तेण इहं भवविरहो होउ सया भवियलोयस्स ॥ मुनि कल्याणविजय ने हरिभद्र की दाशवैकालिक टीका, आवश्यकवृत्ति, प्रज्ञापनाप्रदेश, षड्दर्शनसमुच्चय और लोकतत्त्वनिर्णय को इस प्रकार की कृतियों में गिनाया है, जिनमें अन्त में विरहपद नहीं है। हरिभद्र का कार्यक्षेत्र गुजरात और राजपूताना रहा। कल्याणविजय जो के उल्लेखानुसार हरिभद्र ने पोरवाड़ जाति को जैन बनाया ।' हरिभद्र की रचनाएँ पं. सुखलाल जी संघवी ने अपने ग्रन्थ 'समदर्शी आचार्य हरिभद्र' के परिशिष्ट २ में हरिभद्र के ग्रन्थों की तालिका निम्नलिखित रूप से दी हैं [ समराइच्चकहा -- आगम ग्रन्थों को टीकाएँ १. अनुयोगद्वारविवृति, २. आवश्यक बृहत्टीका, ३. आवश्यक सूत्रविवृति, ४ चैत्रवन्दनसूत्रवृत्ति अथवा ललिता स्वित्तरा, ५. जीवाभिगमसूत्र लघुवृत्ति, ६. दशवैकालिक टीका, ७. न द्ययन टीका, ८. पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति, ६. प्रज्ञापनाप्रदेश व्याख्या | आगमिक प्रकरण, आचार, उपदेश - १. अष्टक प्रकरण, २. उरदेश पद ( प्राकृत), ३. धर्मबिन्दु, ४. पंचवस्तु ( प्राकृत स्वोपज्ञ संस्कृत टीका युक्त), ५. पंचसूत्र व्याख्या, ६. पंचाशक (प्राकृत) ७. भावना सिद्धि, ८. लघुक्षेत्र समास या जम्बूद्वीप क्षेत्र समासवृत्ति, ६ वर्गकेवलिसूत्रवृत्ति १०. बीस विशिकाएं ( प्राकृत), ११. श्रावकधर्मविधिप्रकरण, १२. श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति, १३. सम्बोधप्रकरण १४. हिंसाष्टक | दर्शन - १ अनेकान्त जर पताका (स्वोपज्ञ टीका युक्त), २. अनेकान्तवाद- प्रवेश, ३. अनेकान्तसिद्धि, ४. आ-मसिद्धि, ५. तत्त्वार्थसूत्र लघुवृत्ति, ६. द्विजवदन चपेटा, ७. धर्मसंग्रहणी ( प्राकृत), ८. न्यायप्रवेशटीका, ६. न्यायावतारवृत्ति, १०. लोकतत्त्वनिर्णय, ११. शास्त्र वार्तासमुच्चय (स्वोपज्ञ टीका युक्त) १२. षड्दर्शनसमुच्चय, १३. सर्वज्ञसिद्धि (स्वोपज्ञ टीका युक्त), १४ स्याद्वादकुचोद्यपरिहार । योग - १. योगदृष्टिसमुच्चय (स्वोपज्ञ टीका युक्त), २ योगबिन्दु, ३. योगविंशतिका [ ( प्राकृत ) affar के अन्तर्गत ], ४. योगशतक ( प्राकृत), ५. षोडशक प्रकरण । कथा - १ धूर्ताख्यान ( प्राकृत), २. समराइच्चकहा ( प्राकृत ) । ज्योतिष -- १. लग्नशुद्धि-लग्न कुण्डलिया ( प्राकृत) । स्तुति - १. वीर स्तव, २. संसारदावानल स्तुति । इसके अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रन्थ आचार्य हरिभद्र के नाम से चढ़े हुए हैं। परन्तु इसके निर्णय के लिए अधिक प्रमाणों की अपेक्षा है १. अनेकान्तप्रघट्ट, २ अर्हच्चड़ामणि, ३. कथाकोष, ४. कर्मस्तववृत्ति, ५. चैत्यवन्दनभाष्य, ६ ज्ञानपंचक विवरण, ७. दर्शनसप्ततिका, ८. धर्मलाभसिद्धि, ६. धर्मसार, १०. नाणायत्तक ११. नामचित्तप्रकरण, १२. न्यायविनिश्चय, १३. परलोक सिद्धि, १४. पंचनियठी, १५ पंचलिंगी, १६ प्रतिष्ठा कल्प, १७. बुहन्मिथ्यात्वमंथन, १५. बोटिक प्रतिषेध, १६. यतिदिनकृत्य, २० यशोधरचरित्र, २९. वीरांगदकथा, २२. वेदबाह्यतानिराकरण, २३. संग्रहणिवृत्ति, २४. संपंचासित्तरी, २५. संस्कृतआत्मानुशासन, २६. व्यवहारकल्प | हरिभद्र की विद्वत्ता - हरिभद्र की रचनाओं की तालिका देखने पर ज्ञात होता है कि हरिभद्र बहुश्रुत १. धर्म संग्रहणी, प्रस्तावना, पू. ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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