Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 02 Sootrakrut Churni Aagam 2
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 324
________________ आगम (02) प्रत सूत्रांक [१-१५] दीप अनुक्रम [६३३ ६४७] भाग-2 “सूत्रकृत” - अंगसूत्र - २ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [१], उद्देशक [-], निर्युक्ति: [ १४२-१६५ ], मूलं [१-१५] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र -[०२], अंग सूत्र -[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि : महद्वर्णनं श्रीसूत्रकृ ताङ्गचूर्णिः ॥३०९ ॥ आगासं, जइ वा खेचमहं जहा इह जम्बुदीवे महाविदेहं काल नहं सव्यद्धा, भावमहं उदइओ बह्वाश्रयत्वाद् सव्वसंमारिषु विद्यत इतिकृत्वा महान् भवति, कालतोवि सो चेव तिविहो- अणादीओ अपजवसितो सचिन अभवसिद्धिअस्स, अणादिओ सपञ्जवसिओ भवसिद्धिअस्स, सादीओ सपजवसितो णेरइयस्स, सादिरपर्यवसानस्तु नास्ति, खइए केवलणाणे, ण तत्राश्रयमहवं, किंतु सादिअपर्यवसितत्वात्, कालओ महं खड़ओ, खउपसमिओवि आश्रयत्वादेव महं, स च इन्द्रियादि, कालतो ठाणं एकेक पटुच साई सपअवसितो, परिणामिअस्स सर्वजीवाजीचाश्रयत्वाच सख्यं महत्, उदइयं यद्यपि पुद्गलाश्रयी तथापि न सर्वपुद्गलाश्रयी, केवलमेवमनन्तपए सिआणं खंधाणं अनंतर सरीरमणवायापाउगेसु वइति, कार्म अप्पतरो पारणामियो भात्रो, उतं महं । इदाणि अज्झयपि णामाइ छन्विहं दब्वे पत्तयपोत्थयलिहिअं, खेते जंबुदीवपण्णत्ती दीवसागर पण्णत्ती, जंमि वा खेते काले चंदसूरपण्णत्तीओ, जंमि वा काले, भावज्झयणं आगमतो जाणओ उपउत्तो, णोआगमओ इमाई महंती अझयणाणि । पिंडरथो | वण्णिओ समासेणं इत्तो इकिकं पुण अक्षयणं वण्णइस्सामि ||१|| तत्थ य अज्झयणं पोंडरीयं पढमं तस्स चत्तारि अणुओग| दाराणि उवकमादीणि परूवेऊण पुन्वाणुपुच्चीए, एताए सनगच्छगताए सेढीए, णामे खओवसमिअभावणामे समोअरड़, पमाणे जीवगुणष्पमाणे, तत्थचि लोगुत्तरिए आगमे कालियसुयपरिमाणसंखाए, बत्तव्बताए अवस्सगं सव्वज्ञयणा ससमयवत्तव्यताए, अत्याहिगारो पोंडरीउपमाए, जत्थ जत्थ सगोतरति तत्थ २ समोतरिय, तस्स छन्त्रिहो णिक्खेवो, णामं ठवणादविए ॥१४४॥ गाहा, दव्वे सचित्तादि तिविहो-जो जीवो भविओ खलु ॥ १४५ ॥ गाहा, पौण्डरीयमिति यद्यत् चैतं पद्म, एगभविए य डाउए य ॥१४६॥ गाहा, परगवजासु गइसु जो जीवो पहाणो सो पुंडरीओ भण्णइ, तं जहा-तेरिच्छिया मणुस्सा ॥ १४७॥ | अथ द्वितिय् श्रुतस्कन्धस्य प्रथमं अध्ययनं आरभ्यते [324] ॥३०९॥

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