Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 02 Sootrakrut Churni Aagam 2
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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गम
(०२)
भाग-2 “सूत्रकृत" - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [६], उद्देशक [-], नियुक्ति: [१८४-२००], मूलं [गाथा ६६९-७२३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] “सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक
आद्रेकवृत्त
श्रीसूत्रकताङ्गचूर्णिः ॥४१॥
||६६९७२३|| दीप अनुक्रम [७३८७९२]
चिन्तेमाणस जाइसरणं उप्पण्णं, अहो मम अभएण णाई किर्च कय, रहस्सिगं तं च काऊग परिभोग उचित ण परि जति, ताहे रष्णा कथितं-जहा कुमारस्स जप्पमिति आयरियविसयातो पाहुडं आणीतं तप्पमिई जहोचितं परिभोग न परि जति, रायाए चिंतित-गट्ठो कुमारो भवति, वच्चंतस्स अण्योहिं आइक्खिाति, तेण चिन्तितं-जइ किहइ नस्सामि तो नट्ठ कजं भवति, सबधाधि जहोचितं भोगं मुंजामि, रण्णा सुतं परि जति, तस्सगासे पंचण्हं कुमारामचसताणं पंच पुत्तसयाई आणविदिण्णाई, भणियाइओजइ कुमारो णस्सति तो सब्वे विणासेमि, ते तं कुमार आदरेणं रक्खंति, कुमारणोवायो चिंतितो, आमवाहणियाए जिग्गच्छामि, एवं विस्तासेण पलाओ आसं विसजेऊग, देवताए य भणियं-सउवमग्गं, इतरेऽवि पविसित्ता अडवीए चोरियं करिता अच्छिति, इतरोऽवि णाओ एकारसमं सावगपडिम पडिजित्ता आगतो वसंतपुरं णगरं, आया।तस्स पाडिहेर कतै देवताए, तत्थ आतवितो अच्छति, ताए दारियाए भण्णति-अहो मम पती आहेसि, ताहे अद्भतेरमहिरण कोडिओ पाडियाओ, राया ओडितो घेतुं, सप्पा उडेति, देवताए भणितं-एतं तीसे दारियाए, पितुणा संगोवितं, सोऽवि पगतो, सा सेट्ठिधूता अण्योहिं वरिजति, तीए मातापितुं भणइ-एकस्स दिष्णा, जस्सेतं धणं मुंज, तुम जाणसि कहि सो ?, णधि, णवरं पाए जाणामि, ताहे सा ताहि भिक्खा दवाविज्ञति, जति जाणसि तो गेण्हेजासि, इतरो बारसण्हं वरिसाणं आगतो, सो तीए पाएहिं गातो, तस्स पन्छातो विसजिता, तो चिंतियं-उडाहो, पडिभग्गो, तस्स तहिं पुचो जातो, बारसह परिमाणं तहिं आपुच्छति, सातहि परुनिया, सोदारओ भगतिकिं कसि ?, पिता ते पाइउकामो तो सुहं जीविस्सानि, सोऊण पुत्रेण वेदितुमारद्धो, तेणवि चिंतितं-जइएहि तंतूहि वेदिति तत्तिगाणि यरिसाणि अच्छामि, तेण बारसहिं रेढितो ताहे वारस बरिमाणि, पच्छतो पुणोहिं पचहतो, ताए अडवीए बोलेति जीए
॥४१६॥
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