Book Title: Rushimandal Stotra
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रोके रचियता महापुरुष बहुत सामर्थ्यवान होते हैं, और उनकी रचनामें विशिष्ट प्रकारको सिद्धियां समाई हुई होती हैं । जिनके प्रभावसे मंत्रके अधिष्टाता देव कार्यकी पूर्ती में सहायक होते हैं, और इस विषयके वहुतसे उदाहरण शास्त्रोंमें बताये हैं। मंत्रसिद्ध करनेवाले पुरुषको छंद पद्धति राग आलाप पदच्छेद शुद्धता पूर्वक उच्चार आदिपर पूरा लक्ष देना चाहिए । जो मनुष्य एकाग्रमनसे ध्यान करते हैं, उन्हे अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है, मंत्रबलसे कठिन समस्या भी शीघ्र हल हो जाती है। मंत्रआराधन करनेवालांको खयाल रखना चाहिए कि पुङ्गी बजानेसे सांप आता है, लेकिन हारमोनियम, सीतार, सारंगी, आदिके बजानेसे सर्प नही आता । जहां पुङ्गी बजीके बिलमेंसेही मस्त होते हुवे फणको फैलाकर मस्तीमें आये हुवे नागराज फोरन पुङ्गीके सामने आखडे होते है। इसी तरह मंत्र-स्तोत्रके लिये भी समझना चाहिए । यदिक्रिया शुद्ध है उञ्चारभी यथोचित है तो सिद्धिमेंभी विलम्ब नही हैं। इस पुस्तकमें लगभग उनचालीस विषयांपर प्रकाश डाला है, और मंत्र यंत्र आना विधिके लिये पृथक पृथक प्रकरण बनाकर समझनेमें सुविधाएं की गइ हैं। ऋषिमंडल मंत्र यंत्रको समझनेके लिए इस पुस्तकमें प्रथम ऋषिमंडल मंत्र महिमा बताकर ऋषिमंडल मूल पाठ दिया गया है। बादमें मूल पाठ को भावार्थ सहित बताकर ऋषिमंडल यंत्र बनानेकी तरकीबका बयान कर पदस्थ ध्यानका कुछ वर्णन किया गया है, और मायाबीज (ह) को मायाबीज सिद्ध करनेके For Private and Personal Use Only

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