Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 11
________________ ( ख ) 'दोपहरो' का संपादन बहुत वर्ष पूर्व बीकानेर के अनूप-संस्कृत पुस्तकालय के एक कहानी संग्रह की प्रति के आधार पर किया गया था। बाद में दूसरी प्रतियां भी देखने में आई और उनमें यत्र-तत्र पाठभेद भी दिखाई पड़े पर उन पाठभेदों को संगृहीत करने का अवसर नहीं पाया। इसी प्रकार 'वात-वरणाव' का संपादन अपने संग्रह की प्रति के आधार पर करना प्रारंभ किया था। पर यह कार्य दो-ही-चार पृष्ठों तक बढ़ सका । मेरे प्रिय शिष्य दीनानाथ खत्री एम. ए. ने जो उन दिनों अतूप संस्कृत पुस्तकालय में राजस्थानी-असिस्टेंट का कार्य कर रहे थे, इसके बाकी अंश की प्रतिलिपि तैयार कर डाली । जब मुनि श्रीजिनविजयजी महाराज बीकानेर पधारे तो उन्होंने इन रचनाओं को देखा और इनको राजस्थान पुरातत्व-मंदिर-ग्रन्थमाला में प्रकाशित करने के लिये मांग लिया। 'वैरावत रामदासरी पाखड़ीरी बात' की प्रतिलिपि श्री अगरचंद नाहटा ने अपने संग्रहालय की एक हस्तलिखित प्रति से तैयार करवायी थी। 'दोपहरो' और 'पाखड़ी' की प्रतियां कई स्थानों पर मिलती हैं तथा 'वात वरणाव' की एक अन्य प्रति भी राजस्थान-पुरातत्व-मंदिर के संग्रह में बाद में निकल पाई । अच्छा होता कि इन रचनाओं को प्राप्य प्रतियों के प्राधार पर संपादित करके पाउ-भेदों के साथ प्रकाशित किया जाता। पर यह कार्य समय-मापेक्ष था और उधर पुरातत्व मंदिर का प्रार्थिक वर्ष समाप्त हो रहा था। इसलिये यही उचित समझा गया कि रचनाएं जिस रूप में हैं उसी रूप में अभी छाप दी जायं जिससे राजस्थानी साहित्य के ये विविध रूप एक बार साहित्य-प्रेमियों के सामने आ जायं । राजस्थानी गद्यकाव्यों और वर्णन-संग्रहों की परंपरा का संक्षिप्त परिचय कराने के लिये राजस्थान के सुप्रसिद्ध शोधकर्ता विद्वान् श्री अगरचंद नाहटा के दो निबंधों को उद्धृत किया जा रहा है। इनको उद्धृत करने की अनुमति देने के लिये में श्रीनाहटाजी का प्रत्यंत आभारी हूं। -नरोत्तमदास स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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