Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
४८
रामान राउतरो बात-बणाव मंगाहीजे छ. तिका किरण भातिरी भाग सुष काकापुरणि वासिंग नाग मारी नीपनी, सिंघरी गुफा माहे नोपनो, पोहरर बिड़ेरा, भाखररे खुरेरी, सूमरी पांख, परहरी मांख, रोज मारि, म्रिप मारि, भमर मारि, लटिमाळी, बापरी खाधी बेटना पाव, काकरी खाधी भत्रीजनां पावे, मसवाररी खाधी प्यादौ छक, इण भातिरी भांग मंगाड़ोज छ. मकराण पखापरं कूडे घातीमा, माल कांगणीरा गोटासू वाटीज छ. सांबरा प्राचारां जुवान घोटै छ ।
तठा उपरांति करि नै राजांद सिलामति मेलवणी जोळी जोळी मंगाड़ीजै छै. सो किण भांतिरी मेलवणी लंवग, गेग, जायफळ जावंत्री, नागकेसर, तज, तमाल पत्र, सींगी, मुहरा, धतुरो, भूटटी, एकखान, बहमदाबावी पान, हाया छटो रायागरण में परेती सात सात का होईना पण भाति बमोसी काडीजे . भातिरी मेलवणी जोळी जोकी मंगायी है. कसूभरी वास्तै मिसरी कोरा माटा मंगळोज छ, कस्पी पासा पटोळा बाणोज 2. कसूनी ऊजळा रूपोटा उळजे छ. कसू ऊचोप्रा बिलगिणिमा पारीण ब. कसूबो रातो मोखाडा पोछाड़ोज . काम में इसनाक पवन हाक के कसूरी पाणिगो मरित्रो छ।
तठा उपति करि नै राजांन सिलामति गोळी, पूरण, पासण, कबळ, कुटी, नागासिणी, विरंच, मुफर, तांबेसर, कामेसर, मदन कामेसर, जिता मारिमा पोखध फेरीज कै. बांह कुरा होस तरस हमें छै ताहन कपूर वासिमी पाणी ऊजळा रूपोटी झालियां उजळा खवास पासवान हाजर लियां ऊभा छ. इण भातरा पोखद उप राजांनरा साथ प्रारोगाडीजे छ. कितराइक तो राजांन कपूरतररा लोचन कियां गिड़भाग मेघ ज्यों विराजमान हुइ नै रहिमा छ।
तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति प्राटा मैदारी फांटां प्राणीज छ. सिवपुरीरा देवजीर चोखा, वांवळ, कपूर सारीखा ऊजळा वीणीज छ. नागरचालरा नोपनां गोहूँ, बजर कठकाळिमां मूछारा. त्रांबारी सिलाक हुमै तिण भांतिरा, बारां बारां परसारा डाउडारा कान वीधीजै. इण भांतिरा पांच पांच मण, दस दस मरण गेहूं, चावळ प्राडि जाजमां घातियां रोळोजे छ. कांकरा काढोजे छ. धूए अंबर धूधळियो छ. शरीराउतें जीही जरै छै. जांगडिप्रारी जोड़ी प्राडियार बांज झालियां थका हकळिन रही छै. वडा दांतरा सिरदारांरा खंभाइची मांहे दहा गाईजे छ. जस जांगड़ा गवाडीजै छै. ढाढिपारो जोडी गजराज पटाझर ज्यों झाकड़ी खाइ नै रही छै, इमिरितीरा झोला दे में रही छ जाणे सातम सररी सुहागण हमामरै झरोखे झापां खाइ नै रही नै च्यार टांक चावळ खामं तो सरोर महार-विकार थाए, गीत, संगीत, तालबंध, नदंग, वीणा, सारंगो, तवरारा साज लागि नै रहिमा छै. इण भांतिरी मालाई रंभा पात्र निरस कारणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88