Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि (सम्मान्य संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर) ग्रन्थाङ्क 27 राजस्थानी साहित्य - संग्रह भाग-1 (खीची गंगेव नींबावत रो दो-पहरो, राजान राउतरो वात-वणाव मादि) सम्पादक पं. नरोत्तमदासजी स्वामी, एम.ए. (अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग, महाराणा भूपाल कॉलेज, उदयपुर) प्रकाशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur द्वितीयावृत्ति 1997 मूल्य :43.00 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि | (सम्मान्य संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर) ग्रन्थाङ्क : 27 राजस्थानी साहित्य - संग्रह भाग-1 (खीची गंगेव नींबावत रो दो-पहरो, राजान राउतरो वात-वणाव आदि) सम्पादक _ पं. नरोत्तमदासजी स्वामी, एम.ए. (अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग, महाराणा भूपाल कॉलेज, उदयपुर) प्रकाशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur द्वितीयावृत्ति मूल्य : 43.00 1997 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिल भारतीय तथा विशेषतः राजस्थानप्रदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी आदि भाषा-निबद्ध विविध वाङ्मय प्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावली . प्रधान सम्पादक पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि ग्रन्थाङ्क : 27 राजस्थानी साहित्य - संग्रह भाग-1 सम्पादक पं. नरोत्तमदासजी स्वामी प्रकाशक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur प्रथमावृत्ति : 1957 द्वितीयावृत्ति : 1997 . . मूल्य : 43.00 95/..... .. . . Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान सम्पादकीय - संस्कृत साहित्य में गद्यलेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। दण्डी का दशकुमार चरित, सुबन्धु की वासवदत्ता, कादम्बरी एवं हर्ष चरित्र प्राचीन गद्य के निदर्शनरूप में उपस्थापित किये जाते हैं। हिन्दी भाषा में गद्य काव्य की परम्परा सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से मिलती है। हालांकि राजस्थानी एवं गुजराती गद्य काव्य इससे पूर्व के भी मिलते हैं। प्रस्तत प्रकाशन में प्राचीन राजस्थानी की तीन गद्य रचनायें क्रमशः-(1) खीची गंगेव नींबावत रो दोपहरो; (2) रामदास वैरावत री आखड़ी री बात; (3) राजान-राउतरो बात-बणाव, पुनर्मुद्रण रूप में पुनः प्रस्तुत की जा रही है। आशा है राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति में रुचि रखने वाले अध्येताओं हेतु यह उपादेय सिद्ध होंगी। आनन्द कुमार आर.ए.एस. निदेशक Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान सम्पादकीय वक्तव्य प्राचीन भारतीय साहित्य में पद्य के साथ गद्य का भी यथोचित रूप में प्रयोग किया गया है। वेदों, जैनागमों, संस्कृत नाटकों और कथा-ग्रन्थों आदि में गद्य की छटा विशेष द्रष्टव्य है। संस्कृत-साहित्य में पंचतंत्र, कथासरित्सागर, दशकुमारचरित्, शुकबहुत्तरी सिंहासनबत्तीसी, बैतालपच्चीसी आदि भी गद्य के अनूठे उदाहरण हैं। राजस्थानी भाषा भी गद्य-साहित्य का निर्माण विशेष रूप में इबा है। हजारों की संख्या में ऐतिहासिक ख्यातें, वाताएं और वचनिकाएं आदि लिखी गई हैं, जिनमें मुख्यतः राजस्थानी गद्य का व्यवहार किया गया है। साथ ही संस्कृत के गद्य-ग्रन्थों के अनुवाद भो प्रचुर मात्रा में राजस्थानी भाषा में किये गये हैं। राजस्थानी वार्तामों में राजस्थानी संस्कृति का वड़ा ही अनूठा चित्रण किया गया है। इन वार्तामों में राजस्थानी जनता की दिनचर्या, हाट, उपवन, घर-प्राङ्गण, उत्सव, युद्ध, क्रीड़ा आदि का विस्तृत और सजीव वर्णन मिलता है। राजस्थान और बाहर के ग्रन्थ-भण्डारों में राजस्थानी वार्तामों के छोटे-बड़े कई संग्रह मिलते हैं । राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर (Rajasthan Oriental Research Institute) के संग्रहालय में भी ऐसी वार्तामों के कई हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं जिनको यथाशक्य शीघ्र ही सुसम्पादित रूप में प्रकाशित किया जावेगा। प्रस्तुत संग्रह में तीन वर्णनात्मक राजस्थानी वार्ताओं को प्रकाशित किया जा रहा है। इन वार्तामों में आदर्श राजपूतों की दिनचर्या का विस्तृत वर्णन मिलता है जिससे राजस्थानी संस्कृति के कई अंगों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। वार्तामों का सम्पादन राजस्थान के प्रसिद्ध विद्वान् श्री नरोत्तमदासजी स्वामी द्वारा हा है और प्रारम्भ में राजस्थान के प्रसिद्ध अन्वेषक श्री अगरचन्दजी नाहटा के दो निबन्ध भी सम्बन्धित विषय पर प्रकाशित किये गये हैं जिनसे पुस्तक की उपयोगिता बढ़ गई है। जयपुर ता० १० अगस्त, १९५६ ई० मुनि जिनविजय सम्मान्य संचालक राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * राजस्थान पुरातन गन्दरमाला प्रधान-सम्पादक . पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजय [भू० पू० सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राध्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर] ग्रन्यांक २७ [राजस्थानी-हिन्दी साहित्य-श्रेणी] राजस्थानी साहित्य-संग्रह भाग १ (जीची गंगेव नावावत रोबो-पहरी, राजांन राउतरो वात-वरणाव आदि) सम्पादक पं० नरोत्तमदासजी स्वामी एम. ए. tant प्रकाशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. 1995-96 द्वितीयावृत्ति 500 मूल्य १० 50.00 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - राजस्थान पुरातन गन्माला के प्रधान-सम्पादक पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजय [भू० पू० सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर] ग्रन्यांक २७ [राजस्थानी-हिन्दी साहित्य-श्रेणी] राजस्थानी साहित्य-संग्रह भाग १ (खीची गंगेव नीबाबत रो बो-पहरो, राजान राउतरो वात-वरणाव प्राषि) सम्पादक पं० नरोत्तमवासजी स्वामी एम. ए. - ... ' __ : प्रकाशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. 1995-96 हितीयावृत्ति 500 मूल्य १० 50.00 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिल भारतीय तथा विशेषतः राजस्थान प्रदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी मादि भाषा-निबद्ध विविध वाङमय प्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावली प्रधान सम्पादक पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजय ग्रन्थांक २७ प्रथमावृत्ति ७५०; सन् १९५७ प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) वि० सं० २०८० x ई० सन् १९८४ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राचीन राजस्थानी साहित्य की तीन महत्वपूर्ण रचनामों का संग्रह किया गया है । इनमें प्रथम दो अर्थात खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरो और रामदास वैरावतरी प्राखड़ीरी वात बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रचनायें रही हैं और राजस्थानी कहानी-संग्रहों में स्थानस्थान पर उनकी प्रतियां मिलती हैं । खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरो' एक सुन्दर गद्य-काव्य है जिसके काव्यमय वर्णनों की छटा निराली है और सहृदय को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकती । इसमें खीची-वंशीय नींबा के पुत्र गंगेव या गंगा की और उसके साथियों की एक दिन की दिनचर्या का वर्णन है । दुपहर का वर्णन प्रधान होने से इसका नाम दोपहरो या बे-पहरो है । उत्तर-मध्यकालीन राजपूत सामंत के जीवन और रहन-सहन पर इससे अच्छा प्रकाश पड़ता है। दूसरी रचना में मारवाड़ के राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र वैरा के पुत्र रामदास राठौड़ का वर्णन है । रामदास अपने समय में नामी वीर हुा । इस 'वात' में उसके १९ विरुदों और ८४ पाखड़ियों का उल्लेख किया गया है । अन्त में उसके पराक्रम की एक कथा भी दी गई है । 'पाखड़ी' का अभिप्राय 'न करने की मानता' (मनौती) से अथवा शपथ या सौगन्ध से है। रामदास ने इन चौरासी बातों के न करने की मानता ले रखी थी। इन विरुदों तथा पाखडियों से जीवन के प्रादर्श का चित्र खड़ा हो जाता है। तीसरी रचना 'राजान-राउत रो वात-वरणाव' में विविध प्रकार के विविध अवसरोपयोगी वर्णनों का विस्तृत संग्रह है । कथानों के कहने वाले (और लेखक) कथा कहते समय स्थान-स्थान पर ऐसे वर्णनों का उपयोग करते आये हैं । जैनों के प्राचीन आगम ग्रन्थो में इस प्रकार के सुन्दर वर्णन प्राये हैं । मैथिल विद्वान ज्योतिरीश्वर ने पंद्रहवीं शताब्दी में वर्ण-रत्नाकर नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें कथा के विविध प्रसंगों और अवसरों के वर्णन संहीत हैं । संस्कृत के कवि-शिक्षा नामक ग्रन्थ में भी काव्य के विविध प्रसंगों और विषयों के वर्णन में किन-किन बातों का वर्णन करना चाहिए यह बताया गया है। राजस्थानी में वाग्विलास नाम से अनेक संग्रह प्रथवा कथाकाव्य तैयार हुए जिनमें विविध प्रसंगों और विविध प्रवसों के वर्णनों को संकलित किया गया। जिनमाणिक्य सूरि का पृथ्वीचंद्र चरित्र अपर नाम वाग्विलास (संवत् १४७० के लगभग) इस प्रकार का सुन्दर कथा-काव्य है जिसके विविध वर्णन बडे ही भावपूर्ण हैं । 'वात-वरणाव' उसी परंपरा की रचना है। रचना प्राचीन नहीं है, पर वर्णन प्राचीन है । ऋतु-वर्णन में महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ की 'क्रिमन-रुकमणीरी वेलि' का प्रभाव है, वह वेलि के पद्यों का गद्यानुवाद-सा ही जान पड़ता है। 'दोपहरो' के वर्णनों के साथ भी उसका पर्याप्त साम्य है । इस वात-वणाव' के वर्गन-संग्रह में उक्त अन्यान्य ग्रन्थों के वर्णन-संग्रहों से एक विशेषता है। उन ग्रन्थों में जहां वर्णनों का केवल संग्रह-मात्र है वहां 'वात-बगगाव' में उनको एक क्रमबद्ध कथा के रूप में ग्रथित कर दिया गया है, जिससे यह केवल वर्णनों का संग्रह न रह कर एक सुन्दर कथा-काव्य बन गया है। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ख ) 'दोपहरो' का संपादन बहुत वर्ष पूर्व बीकानेर के अनूप-संस्कृत पुस्तकालय के एक कहानी संग्रह की प्रति के आधार पर किया गया था। बाद में दूसरी प्रतियां भी देखने में आई और उनमें यत्र-तत्र पाठभेद भी दिखाई पड़े पर उन पाठभेदों को संगृहीत करने का अवसर नहीं पाया। इसी प्रकार 'वात-वरणाव' का संपादन अपने संग्रह की प्रति के आधार पर करना प्रारंभ किया था। पर यह कार्य दो-ही-चार पृष्ठों तक बढ़ सका । मेरे प्रिय शिष्य दीनानाथ खत्री एम. ए. ने जो उन दिनों अतूप संस्कृत पुस्तकालय में राजस्थानी-असिस्टेंट का कार्य कर रहे थे, इसके बाकी अंश की प्रतिलिपि तैयार कर डाली । जब मुनि श्रीजिनविजयजी महाराज बीकानेर पधारे तो उन्होंने इन रचनाओं को देखा और इनको राजस्थान पुरातत्व-मंदिर-ग्रन्थमाला में प्रकाशित करने के लिये मांग लिया। 'वैरावत रामदासरी पाखड़ीरी बात' की प्रतिलिपि श्री अगरचंद नाहटा ने अपने संग्रहालय की एक हस्तलिखित प्रति से तैयार करवायी थी। 'दोपहरो' और 'पाखड़ी' की प्रतियां कई स्थानों पर मिलती हैं तथा 'वात वरणाव' की एक अन्य प्रति भी राजस्थान-पुरातत्व-मंदिर के संग्रह में बाद में निकल पाई । अच्छा होता कि इन रचनाओं को प्राप्य प्रतियों के प्राधार पर संपादित करके पाउ-भेदों के साथ प्रकाशित किया जाता। पर यह कार्य समय-मापेक्ष था और उधर पुरातत्व मंदिर का प्रार्थिक वर्ष समाप्त हो रहा था। इसलिये यही उचित समझा गया कि रचनाएं जिस रूप में हैं उसी रूप में अभी छाप दी जायं जिससे राजस्थानी साहित्य के ये विविध रूप एक बार साहित्य-प्रेमियों के सामने आ जायं । राजस्थानी गद्यकाव्यों और वर्णन-संग्रहों की परंपरा का संक्षिप्त परिचय कराने के लिये राजस्थान के सुप्रसिद्ध शोधकर्ता विद्वान् श्री अगरचंद नाहटा के दो निबंधों को उद्धृत किया जा रहा है। इनको उद्धृत करने की अनुमति देने के लिये में श्रीनाहटाजी का प्रत्यंत आभारी हूं। -नरोत्तमदास स्वामी Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थानी गद्यकाव्य की परम्परा भारतीय प्राचीन ग्रन्थों में कवि की कृति को काव्य माना गया है और कबि को क्रान्तदर्शी harat और पंडित कहा गया है। पीछे से 'कवि' शब्द छन्दोबद्ध रचना करने वाले विद्वानों के लिए रूढ़ हो गया और छन्दोबद्ध रचना 'काव्य' के नाम से सम्बोधित की जाने लगी । प्राचीन विद्वानों ने 'काव्य' शब्द की व्याख्या भिन्न-भिन्न प्रकार से की है। भामह और रूद्रट ने "शब्दार्थी सहितौ काव्यम्", "शब्दार्थी काव्यम्" अर्थात, शब्द और अर्थ मिल कर काव्य होता है, ऐसा कहा है। किसी विद्वान् ने मलंकारयुक्त शब्द और अर्थ को ही काव्य माना है । विश्वनाथ कविराज ने " वाक्यं रसात्मकं काव्यम्" काव्य का लक्षण बताया है अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है । मुझे यह व्याख्या बहुत ही उपयुक्त और सुन्दर लगती है । काव्य के दृश्य और श्रव्य, दो प्रधान भेद हैं । नाटकों को दृश्य-काव्य कहा जाता है और श्रव्य-काव्य के गद्य, पद्य श्रौर मिश्र ये तीन भेद किये गये हैं । पद्यकाव्य छन्दोबद्ध होता है और उसके महाकाव्य, खण्डकाव्य और कोषकाव्य ये तीन भेद माने गये हैं । महाकाव्य और खण्डकाव्य तो प्रसिद्ध ही हैं । कोषकाव्य में स्तोत्र और सुभाषित संग्रह को माना गया है । गद्यकाव्य में छन्द का बन्धन नहीं रहता, अन्य सब काव्य-गुरण पाये जाते हैं । वामन ने गद्य तीन प्रकार का बताया है- वृत्तगन्धि, उत्कलिकाप्रायः और चूर्णक | साहित्यदर्पण- कार ने मुक्तक नामक चौथा भेद भी माना है। जिस गद्य में किसी छन्द के पाद व पादार्थ मिलते हैं उसे वृत्तगन्धि, लम्बे-लम्बे ममास वाले गद्य को उत्कलिकाप्रायः, छोटे-छोटे समस्तपदयुक्त गद्य को चूर्णक और समस्त पदों के प्रभाव वाले गद्य को मुक्तक के नाम से सम्बोधित किया गया है । गद्य-काव्य के, कथा और आख्यायिका, दो भेद भी हैं। कादम्बरी को कथा व हर्षचरित्र को आख्यायिका के नाम से सम्बोधित किया गया है। मिश्रकाव्य में गद्य और पद्य का मिश्रण होता । इसके चम्पू, विरुद और करम्भक, ये तीन भेद हैं। वर्णनात्मक मिश्रकाव्य को चम्पू, गद्य और पद्य में की गयी राजस्तुति को विरुद एवं अनेक भाषा युक्त मिश्रकाव्य को करम्भक की संज्ञा दी गयी है । गद्य की अपेक्षा पद्य सरलता से कंठस्थ हो सकता है और अधिक समय तक स्मरगा रह सकता है, अतः इसकी उपयोगिता व स्थायित्व अधिक है। इस सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय विद्वानों ने शब्दकोष, वैद्यक, ज्योतिष यादि विषयों के उपयोगी ग्रन्थ पद्यबद्ध ही अधिक बनाये हैं । पद्य में कल्पना की उड़ान, लयसरलता, मनोहरता व श्रवणसुखदला होने से ग्रन्थकारों का ध्यान उस और अधिक जाना स्वाभाविक था । इसी आकर्षा के फलस्वरूप भारतीय साहित्य पद्य रूप में अधिक मिलता है । मुद्रण-युग के प्रसार के साथ-नाथ गद्य साहित्य निरन्तर अभिवृद्धि को प्राप्त हुआ है। पूर्व लोक भाषाओं में गद्य रचनाएँ बहुत ही थोड़ी मिलती हैं । हिन्दी भाषा में तो प्राचीन गद्य राजस्थानी और गुजराती भाषा की अपेक्षा भी ग्रल्प है । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) जैसा कि ऊपर बताया गया है रसात्मक काव्यगुणोपेत विशिष्ट शब्दसंचयरूप, पर छन्दों के बन्धन से रहित रचना गद्यकाव्य के नाम से अभिहित है । साधारण गद्य को इसमें सम्मिलित नहीं किया जा सकता । गद्य होते हुए भी जिसके पढ़ने और सुनने में पद्य का-सा प्रानन्द या रस मिले वही गद्यकाव्य है। ___ भारतीय साहित्य में गद्यकाव्य का विकास पद्यकाव्य के साथ-साथ ही हुया प्रतीत होता है, अतः उसकी प्राचीनता पद्य की अपेक्षा कम नहीं है। वेदों में कहीं-कहीं वाक्य बड़े ही सुन्दर और पद्य का-सा आनन्द देने वाले मिलते हैं । जैनागमों और महाभारत के समय में तो गद्य को व्यवस्थित रूप मिल चुका विदित होता है। भास और कालिदास प्रादि के नाटकों में गद्यकाव्य की सुन्दर झलक पायी जाती है। प्राकृत भाषा के कई प्राचीन जैन-ग्रन्थों में कहीं-कहीं गद्य लेखन में शब्दयोजना की सुन्दर छटा देखते बनती है। ईस्वी पूर्व दूसरी से छठी शताब्दी तक के शिला-लेखों के गद्य में भी काव्य का-सा मानन्द मिलता है, जिसे गद्यकाव्य का पूर्वरूप कहा जा सकता है। गद्यकाव्य की संज्ञा दी जा सके ऐसे प्रन्थों में दण्डी कवि का दशकुमारचरित सर्वप्रथम है, जिसका समय ईसा की छठी शताब्दी के लगभग का है। इस चरित की भाषा सरल एवं ललित है । इसके पीछे सुबन्धु की वासवदत्ता की कथा पाती है । कवि के कथनानुसार इसके प्रति अक्षर में श्लेष है । तत्परवर्ती गद्यकाव्य बाणभट्ट की कादम्बरी और हर्षचरित्र हैं । कादम्बरी विश्व-साहित्य में उल्लेखनीय गद्यकाव्य है । इसकी कथा छोटी-सी, पर वर्णन के विस्तार से वह बहुत विस्तृत हो गयी है अर्थात उसमें कथा गौण और वर्णन प्रधान है । ऐसा ही अन्य गद्यकाव्य, जिसे इसी के टक्कर का कह सकते हैं, जैन कवि धनपाल की तिलक मंजरी की कथा है। धनपाल महाराजा भोज के सभा-पंडित थे। पुरातत्वाचार्य मुनि जिनविजयजी ने इस तिलकमंजरी के सम्बन्ध में लिखा है- “समस्त संस्कृत साहित्य के अनन्त अन्थ-संग्रह में बाण की कादम्बरी के सिवाय इस कथा की तुलना में खड़ा हो सके, ऐसा कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है। बारण पुरोगामी है, उसकी कादम्बरी की प्रेरणा से ही तिलकमंजरी. रची गयी है, पर यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि धनपाल की प्रतिभा बाण से चढ़ती हुई न हो तो उतरती हुई भी नहीं है: अतः पुरोगामी ज्येष्ठ बन्धु होने पर भी गुण-धर्म की अपेक्षा दोनों गद्य के महाकवि समान आसन पर बैठाने के योग्य हैं । धनपाल का जीवन भी बाण के जैसा ही गौरवशाली रहा है । इस कथन में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है।" तिलकमंजरी के बाद गद्यकाव्य के रूप में दिगम्बरजन कवि वादीभसिंह का गद्यचिन्तामणि ग्रन्थ उल्लेखनीय है । इसके बाद के लगभग चार सौ वर्षों में कोई उल्लेखनीय गद्यकाव्य नहीं है। वैसे फुटकर वर्णन गद्यकाव्य की झलक अवश्य दिखा जाते हैं । पन्द्रहवीं शताब्दी में बामन भट्ट ने 'वेम भूपाल चरित' नामक गद्यकाव्य बनाया । इसका पद-विन्यास, माधुर्य, सरसालंकार-योजना, विप्रलंभ शृगार बाग के सदृश माने गये हैं । भाषा सरल और मधुर है । कवि ने अपने लिए 'गद्यकवि सार्वभौम' विशेषण प्रयुक्त किया है। भारतीय गद्यकाव्य की परम्परा का दिग्दर्शन कराने के लिए ऊपर कुछ संस्कृत गद्यकाव्यों का उल्लेख करना प्रावश्यक समझा गया । अब मूल विषय पर प्रकाश डाला जाता है । हिन्दी भाषा में गद्यकाव्य को परम्परा प्राचीन नहीं दिखाई देती। वैसे हिन्दी की गद्य-रचना ही सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पूर्व की नहीं मिलती ! गोरखनाथ की कुछ रचनाए गद्य में लिखी बतायी जाती हैं । इन रचनामों की भाषा को तेरहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य की माना गया, पर उसके लिए कोई सबल आधार नहीं प्रतीत होता, इन रचनात्रों का गोरखनाथ की Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतियों होना सम्भव नहीं जान पड़ता । किसी प्रसिद्ध साम्प्रदायिक नेता या मस प्रवर्तक के अनुयायी स्वयं ग्रन्थ बना कर नेता के नाम से या मतप्रवर्तक के नाम से प्रसिद्ध करते रहते हैं । गोरखनाथ के इन ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां अद्यावधि अठारहवीं शताब्दी से पूर्व की प्राप्त नहीं हैं। उनके अन्य पद्य-ग्रन्थों की प्रतियाँ भी अभी तक सत्रहवीं शताब्दी से पहले की मेरे अवलोकन में नहीं पायीं । अतः जब तक उनकी हिन्दी गद्य-रचनाओं की इससे पूर्ववर्ती प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त न हो जाएं', वल्लभ सम्प्रदाय के प्राचीन ब्रजभाषा के गद्य-ग्रन्थों को ही हिन्दी के प्राचीन गंद्य ग्रन्थ कहा जा सकता है । बीकानेर राज्य की अनूप-संस्कृत लाइब्रेरी में 'कुतुबुद्दीन की बात' संवत् १६३३ में लिखित प्राप्त है, जिसका गद्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हिन्दी की अपेक्षा राजस्थानी और गुजराती गद्य अधिक प्राचीन मिलता है। जैन-भंडारों की ताड़पत्री प्रतियों में चौदहवीं शताब्दी का गद्य पाया जाता है। संवत् १३३६ के संग्रामसिंहरचित 'बाल शिक्षा' ग्रन्थ में तत्कालीन गद्य के उदाहरण पाये जाते हैं । यह संस्कृत व्याकरण का ग्रन्थ है, जिसमें समझाने के लिए राजस्थानी का प्रयोग किया गया है। पन्द्रहवीं शताब्दी में 'पृथ्वीचन्द चरित' या 'वाग्विलास' नामक विशिष्ट ग्रन्थ मिलता है, जो राजस्थानी गद्यकाव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस गद्य से वर्णनात्मक गद्य शैली की यह परिपक्वता का पता चलता है। इससे पूर्व भी कुछ ऐसे ग्रन्थ बने होंगे, ऐसी संभावना होती है। पर अब वे प्राप्त नहीं हैं । इसके बाद तुकान्त गद्य वाले और वर्णनात्मक विशिष्ट गद्य-ग्रन्थ राजस्थान में निरन्तर बनते रहे हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय कराना ही प्रस्तुत लेख का उद्देश्य है । संस्कृत ग्रन्थों में गद्यकाव्य के जो लक्षण दिये हुए हैं, उनमें समय-समय पर रचयिताओं की रुचि के अनुकूल परिवर्तन होता रहा है। राजस्थानी में गद्यकाव्य किसे कहा गया है और इनमें कितने प्रकार हैं, यह जान लेना परमावश्यक है। राजस्थानी के सुप्रसिद्ध छन्दग्रन्थ 'रघनाथ रूपक' में प्रसिद्ध छन्दों एवं गीतों के लक्षण एवं उदाहरण देने के पश्चात् गद्य के दो भेद दिये हैं-दवावैत और वनिका । इन दोनों के भी दो-दो भेद किये गये है-दवावत के शुद्धबध और गद्दबन्ध, (प.वाध) और वनिका के पदवन्ध और गदबन्ध । यथा-- तवं मंछ कवि हतिके, दवावत विध दोय । एक शुद्धबन्ध होत है, एक गद्दबन्ध होय ।। इसकी व्याख्या करते हुए आधुनिक टीकाकार श्रीमहताबचन्द खारंड लिखते हैं-“दवावंत कोई छन्द नहीं है, जिसमें मात्राों , वर्णों अथवा गणों का विचार हो । यह अंत्यानुप्रास रूप गद्य जाल है । अंत्यानुप्रास, मध्यानुप्रास और किसी प्रकार का सानुप्रास या यमक लिया हुअा गद्य का प्रकार है । यह संस्कृत, प्राकृत, फारसी, उर्दू और हिन्दी भाषा में भी अनेक कवियों और ग्रन्थकारों द्वारा प्रयोग में लाया हुआ मालूम देता है । प्राधुनिक लल्लू जीलाल के 'प्रेमसागर' प्रादि ग्रन्थों में तथा उर्दू के 'बहारवेखि जा' 'नोवतन' आदि ग्रन्थों में तथा फारसी के ग्रन्थों में देखा जाता है। यह दवावत दो प्रकार की होती है-एक शुद्धबन्ध अर्थात् पदबन्ध, जिसमें अनुप्रास मिलाया जाता है और दूसरी गद्दबन्ध जिसमें अनुप्रास नहीं मिलाते हैं । पदबन्ध का उदाहरण "प्रथम ही अयोध्या नगर जिसका वरणाव, बार जोजन तो चौड़े, सौल जोजनको धाव, Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतरफ के फैलाव चौसठ जोजनके फिराव, तिसके तले सरिता, सरिजूके घाट, प्रत उतावल सूवहे, चोसर कोसों के पाट ।" गद्दबन्ध का उदाहरण-- हाथियों के हलके खभू गणाते खोले, परापत के साथी भद्रजाती के टोले । प्रत देहु के दिग्गज विन्ध्याचल के सुजाव. रंग-रंग चित्रे सुंडा डंडके बणाव । झूल की जलूस वीर घटू के ठणके, बादलों की जगमपा मेरे मेरे भोरों की भको भंणक । कल कदमू के लंगर भारी कनक की हूंस, जवाहर के जेहर दीपमाला की रूस । बचनिका के दो प्रकार"दोय भेद बचनकारा एक पदबंध दूजी गदबंध, सू पदबंध दोय भेद एक तो बारता दूजी बारता में मोहरा राखणां । दोय गदबंध वचनका है.एक तो माठ मात्रारो पद हुई, दूजी गदबंध में बीस मात्रारो पद हुदै.-" ___टोकाकार ने इसके विशेष विवरण में लिखा है कि ये यचनिकाए दवावत के ही भेद मालूम होते है। इतना-सा भेद मालूम होता है कि वचनिका कुछ लंबी और विस्तृत होती है और 'गद्दबंध' में तो कई छन्दों के जोटे अर्थात् युग्म वचनिका रूप में जुड़ते चले जाते हैं। इसके बाद पदबन्ध का जो उदाहरण दिया गया है, उपयुक्त नहीं मालूम देता । दूसरे उदाहरण का ही कुछ अंश यहां दिया जाता है-- 'तिरण सभा में श्रीमुख वाणी, लिखमरणजी तारीफ प्राणी । प्रातो साराही जाण पाई, इण बल रावणसू जीता ने सीता पाई॥" गद्दबन्ध वचनिका-- "चक्री विचाल, रघुवर विसाल, अँपे जरूर, सुण भरथ सूर, हणमंत एह, इण गुण प्रछेह, सेवा सुसेव किनी कपेस । वे कहूं बैरण, सुरण विगत संण, पंचवटी प्रीत रहतां सुरीत, उरण ठौम प्राय अवसारण पाय, प्रासुर अभीत तिण हरी ।" गद्दबद्ध वचनिका के दूसरे भेद को सिलोकों की संज्ञा दी है-- "बोले सीतापंत इसडी जी बाणी, सुरनर नागाँ नै लग सुहाणी । संसाजल हणमंत जिम ही सरसाई, बीरां अंबरारी कीधी बढ़ाई।।" उपयुक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि संस्कृत गद्यकाव्यों की अपेक्षा राजस्थानी गद्यकाव्य की व्याख्या में अन्तर है । राजस्थानी गद्यकाव्य में तुक मिलाने का ध्यान रखा गया है। हिन्दी में भी कविवर वनारमीदासजी आदि की वर्तनका--संगत रचनाए मिलती हैं, उनमें तुक नहीं मिलती। साधारण गद्य और विवेचनात्मक टीका ही हिन्दी में वचनिका मानी गयी है। राजस्थानी में वह तुकान्त-प्रधान है।। १ रघुनाथरूपक में वचनिका और दवावंत के जो भेद बताये गये है उनके नामों में थोड़ा उलटर हो गया है, गद्यबद्ध को पद्यबद्ध और पञ्चबद्ध को गद्यवद्ध कह दिया गया है । टीकाकार ने जो टिप्पणियां दी हैं वे भी भ्रांतिपूर्ण हैं । शुद्ध विवेचन इस प्रकार है।। वचनिका के दो भेद हैं-(क) पद्यबद्ध ( या पदबद्ध ), जिसमें मात्रामों का नियम होता है। इसके दो भेद होते हैं-(१) जिसमें पाठ-पाठ मात्राओं के तुक-युक्त गद्य-खंड हों, और Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) दवावत और वचनिका-संज्ञक रचनाएं तो राजस्थानी भाषा में भी अधिक नहीं मिलती, अभी तक जिनलाभसूरि और नरसिंहदास गौड़की 'दवावत' ये दो दवावतें और अचलदास खींची की वनिका' और 'रतन महेसदासोतरी वचनिका' ये दो ग्रन्थ ही मुझे ज्ञात है। इनमें से 'रतन मेहेसदासोतरी वचनिका' एल. पी. तेसीतोरी ने सम्पादित कर के रायल एशियाटिक सोसायटी, बंगाल से प्रकाशित की थी । अन्य तीनों रचनाएं अप्रकाशित हैं । "जिनलाभसूरि की दवावत' की भाषा हिन्दी है । सलोका-संज्ञक छोटे-छोटे देवी-देवताओं की गुण-वर्णनात्मक रचनाएं पचासों की संख्या में उपलब्ध हैं। राजस्थानी गद्य को कहीं-कहीं वार्ता या वार्तिक संज्ञा भी दी हुई मिलती है । वार्तिक के रूप में 'शिखरवंशोत्पत्ति काव्य' नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हो चुका है। 'केहर प्रकाश' ग्रन्थ में तुकान्त गद्य की संज्ञा वार्ता में पाई जाती है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, सर्वप्रथम राजस्थानी गद्यकाम्य 'पृथ्वीचन्द चरित्र' है, जिसका प्रपर नाम 'वाग्विलास' है । इसकी रचना संवत् १४७८ में जैनाचार्य माणिक्यसुन्दर सूरि ने की है। इसमें पृथ्वीचन्द राजा की कथा तो बहुत छोटी-सी है, पर वर्णन का विस्तार अधिक है । ग्रन्थकार ने कोई भी प्रसंग बिना वर्णन या विवरण के खाली नहीं छोग। विवरणास्मक नामों के अतिरिक्त प्रायः सम्पूर्ण प्रन्थ तुकान्त गद्य में लिखा गया है, जिसे पढ़ते हुए काव्य का सा ग्रानन्द मिलता है । उदाहरणार्थ दो-एक वर्णन यहाँ दिये जा रहे हैं। मरहठ्ठदेश वर्णन "जिण देसि ग्राम अत्यन्त प्रभिराम । भला नगर जिहाँ न मागीयई कर । दुर्ग, जिस्या हुई स्वर्ग । धान्य, न नीपजह सामान्य । आगर, सोना रूपा तणा सागर । जेइ देस माहि नदी वहई,लोक सुषहं निर्वहइ । इसिउ देस पुण्य तरणउ निवेश गरुप्रउ प्रदेश । तिरिण देसि पहठाणपुर पाटण वर्तई, जिहां प्रन्याय न वर्तई। जीणइ नगरि कउसीसे करी सदाकार, पालि पोढउ प्राकार, उदार प्रतोली द्वार । पाताल भणी धाई, महाकाय पाई, समुद्र जेहनु भाई । जे लिइ कैलास पर्वत सिउवाद, इस्या सर्वश देव तरणा प्रासाद । करई उल्लास, लक्षेश्वरी कोटीध्वज तणा आवास प्रानन्दई मन, गरुड़ राजभवन । उपारी अपंड सुवर्णमय दण्ड, ध्वजपट लहलहई प्रचंड । हिव हूउप्रभात, फीटी राक्षसनी वात, टलिउ अंधकारवात, प्रदश्य नक्षत्र पटल, गगन उज्ज्वल, निःशब्द धूक कुल, निर्मल, दिग्मण्डल, प्राश्रित पूर्वाचल , हूउ रविमंडल, विहसई कमल, विस्तरई परिमल, वायु वाई शीतल, प्रसन्न महीतल, जिस्यां रातां पारेवा तणा चरण, तिस्यां विस्तरइ सूर्य तणा किरण । (२) जिसमें २०-२० मात्रामों के तुक-युक्त गद्य खंड हों। (ख) गद्यबद्ध-जिसमें मात्राओं का नियम नहीं होता। इसके भी दो भेद होते हैं-(३) वारता * या माधारण गद्य (४) तुक- युक्त गद्य । दवावैत के भी इसी प्रकार दो भेद होते हैं-(१) पद्यबद्ध ( या पदवद्ध )-इसमें २४.२४ मात्रामों के तुक-युक्त गद्य-खंड होते हैं । (२) गद्यबद्ध-इसमें तुक-युक्त गद्य-खंड होते हैं, मात्रामों का नियम नहीं होता। दवावत और वनिका में क्या अन्तर है ? यह अभी तक समझ में नहीं आ पाया है। वनिका के चतुर्थ भेद और दवावत के द्वितीय भेद में कोई अन्तर नहीं दीख पड़ता । उपलब्ध दवावतों की भाषा राजस्थानी से प्रभावित खड़ी बोली हिंदी है जबकि वचनिकारों की राजस्थानी। * कहीं-कहीं तुकान्त गद्य के लिये भी वात, वार्ता या वार्तिक नाम का प्रयोग देखा जाता है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) महोत्सव वर्णन - "अलंकरित प्राकार, श्रृंगारिया प्रतोली द्वार । मंच प्रति मंच तणी रचना हुई, स्वर्गपुरी तरणी शोभा लई | ध्वज पताका लहकई, पुष्प परिमल वह कई । नाचई पात्र, राजभवनि श्रावइ प्रक्षत पात्र | सोमाई भरतां नाव छात्र, लोक अलंकरई आमररिण गात्र, उत्सव करिया एहइज वात । df aai aऊई कोररण, बांधीयई तोरण, बांधीयई बंदरवाल, उत्सव विशाल । गुल घीउ लाहीय, मन ऊमाहीयई । ईण युक्ति जन्म महोत्सव हुआ ।" इस ग्रन्थ के चार वर्ष बाद ही जिनवर्द्ध नगरण ने "तपो गच्छ गुर्वावली" लिखी उसमें भी पचानुकारि गद्य विशेष रूप से मिलता है। यहाँ उसका थोड़ा-सा उद्धरण दिया जाता है"जिम देव माहि इन्द्र, जिम ज्योतिश्चक्र माहि चन्द्र, जिम वृक्ष माहि कल्पद्र ुम, जिम रक वस्तु माहि विद्र ुम, जिम नरेन्द्र माहे राम, जिम रूपवंत माहे काम, जिम स्त्री माहे रम्भा, जिम वादित्र माहे भंभा, जिम सती माहि सोता, जिम स्त्री माहि गीता, जिम साहसीक माहि विक्रमादित्य, जिम ग्रहगण माहि श्रादित्य, जिम रत्न माहि चितामरिण, जिम ग्राभरण माहि जूड़ामणि, जिम पर्वत माहि मेरु भूधर, जिम गजेन्द्र माहि ऐरावा सिन्धु, जिम रस माहि घृत, जिम मधुर वस्तु माहि श्रमृत, तिम सांप्रति कालि, सकल गच्छन्तरालि, ज्ञानि विज्ञान तपि जपि शमि दमि संयमि करी तुच्छ, ए श्री तपोगच्छ, प्राचन्द्रार्क जयवंत वर्त्तई । " इस ग्रन्थ के तीन वर्ष बाद सं. १४८५ में हीरानन्द सूरि द्वारा रचित 'वस्तुपाल तेजपाल राम' में निम्नोक्त प्रकार का गद्य श्राया है इस एक श्री शत्रुञ्जय तरगउ विचारू महिमा नउ भण्डारु मन्त्रीश्वर मन माहि जाणी उत्सरंग प्ररणी । यात्रा उपरि उद्यम कीधर, पुण्य प्रसादन नउ मनोग्य सिधउ ।। ९ ।। शिवदास रचित 'अचलदास खीची की वचनिका' का रचना - काल १५ वीं शताब्दी माना जाता है। उसमें पद्य के साथ-साथ बात रूप गद्य पाया जाता है। यद्यपि यह सर्वत्र तुकान्त नहीं है, फिर भी वचनिका संज्ञक सबसे प्राचीन रचना यही है । उदाहरण "गि पनि पउलि पउलि हस्तीकी गज घटा, ती ऊपरि सात-सात मइ धनक-धर माँठा सात-सात श्रोति पाइककी बदली, सात-सात ग्रोलि पाइककी उठी । बेड़ा उडगा मुद फरफरी चुहँचकी टांड़ ठाँड ठररी इसी एक त्यापट उडि ऋत्र दिसी पड़ी, निशा वाजि तक निनादि घर प्राकाम चड़हड़ी, । बाप बाप हो ? भाग प्रारम्भ पारम्भ लागि गढ़ लेया हार, किना बाप बाप हो ? थारा सत तेज अहँकार, राड दुग राखगा द्वार ।" १६ वीं शताब्दी में लिखित एक विशिष्ट वर्णनात्मक जैन ग्रन्थ जैसलमेर के 'जैन - भण्डार' प्राप्त हुआ है। उसका नाम हासिये में मुत्कलानुप्रास' लिखा हुआ है। उसके कुछ उद्धरण मैंने अपने वर्णनात्मक राजस्थानी गद्य ग्रन्थ' शीर्षक लेख में दिये हैं। यहां उसमें से उदाहरणार्थ ग्रीष्म ऋतु का वर्णन दिया जा रहा है Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) "महा पित्रुनउ प्रालउ, प्राथ्यो उन्हालउ । लूय वाजइ, कान पापड़ि दाइ, । झाझूनां वल, हेमाचलना शिखर गलई, निवांगे खुटइ नीर, पहिरइ माछा चीर । एवडऊ ताप गाढउ, भावइ करवउ टाढउ । वाइ बाजइ प्रबल, उडइ धूलिना पटल । सीयालइ हुति मोटी रात्र, ते नान्ही थई रात्रि, सूर्य प्रारण पर ताप, जगत्र संताप, जे जीव यल चर, तेहि जलासय अनुसरह ", यह ग्रन्थ वर्णनों का सुन्दर संग्रह - ग्रन्थ है । सम्भवत: इसकी रचना १५ वीं सदी के अन्त या १६ वीं सदी के प्रारम्भ में हुई है। पूर्ण प्रति मिलने पर इसका महत्व और भी बढ जायगा । १६ वीं शताब्दी की अन्य दो रचनाएँ 'राजस्थानी' भाग २ में प्रकाशित की गई हैं । इनका भी थोड़ा सा उद्धरण नीचे दिया जाता है "रायाँ महि वडउ राउ श्री सातल, जिरणइ मालविया सुरताण तराउ दल, भांजी कीधउ तहल । खुदाई - खुदाई तोब तोब करतउ नाठउ, जातउ गरणउ घाठउ माल्हाला हिरण ती परित्राठउ | धरणी गाes घाली बंदि छौडावी, रेख रहावी, खाडइ जइत्र प्रणावी नव कोटो मारुयाड़ि भली माल्हावी । मोटउ साहस कीधउ, वडउ पवाड़उ सीधउ । " श्रीकरणराय रिणमल्लानी, तई कँपाव्या सेन सुरतानी । तई हंस-नइ परि निवेडया दूध न पाणी, कवी गुरु करि कहाणी । " जिइ ठाकुर प्रवेसक महोत्सव कराव्या, तरिया तोरण बँधाव्या, बंदरवालि ठाम ठाम सोहाव्या, व्यवहारिया साम्हा इरिण परि वांदिवा श्रव्या कुरंगही जो तस्या वहिलई कल्होड़ा, कुरण ही पल्ला या प्रसरण होड़ा, केइ करहि चडी द्यइ दह दिसि छोड़ा, केइ मुखि मारणइ तंबोललवंग-डोड़ा | " तिमरी प्राविया, पइसारा मोटर मँडाण कराविया, जांगी ढोल झालरि संखि वादित्र, वजाविया । बिहु पासे पटकूल तरणा नेजा लहकाविया, परि-परि खेला नचाविया, तरिणया तोरण बँधाविया । गीत गान कीधा, पून कलस सुहव सिरि दीधा, भला मांगलिकं कीधा । घरि-घरि गुडी उछली, श्री सघतरणी पूगी रली ।" १७ वीं शताब्दी के वर्णनात्मक गद्य दो संग्रहों की प्रतियाँ मिलती हैं, जिनके कुछ उद्धरण अपने अन्य लेख में दे चुका हूँ। वर्णन बड़े सुन्दर हैं । लेख-विस्तार के भय से यहाँ इस शताब्दी की अन्य दो रचनाओं के उद्धरण दे करके ही संतोष करना पड़ता है। पहली रचना 'कुतबद्दीन शहजादे की बात' है । उनकी १७ वीं शताब्दी की लिखित प्रति श्रनृप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर में उपलब्ध है। हिन्दी गद्य के प्राचीन रूप की जानकारी के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है । कुतबबीन साहिजादेरी वारता "प्रावि प्रथ कुतबदीन साहिजादैरी वारता लिख्यते ।' बडा एक पातिस्याह । जिसका नाम सवल स्याह । गड मौडव थांरगा । जिसके साहिजादा दाना । मौजे दरियाव तीर । जिसके सहरमें वसे दान समंद फकीर जिसकी भौरत का नाम Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मौजूम खातू । सदा वरत का नेम चलातू । जो ही फकीर प्राव । तिसकु खाँणा खुलावै । एक रोज इक दीवान फकीर पाया। दावल दोन घरां न पाया। अन्त-बेटे बाप विसराया, भाई वीसा रेह । सूरी पुरा गल्लडी, मांगण चीता रेह ॥१०७।। ऐसा कुतबदीन साहजादा दिल्ली बीच पिरोसाह पातस्याह का साहजादा भया । दांवलदान फकीर की लड़की साहिवां से प्रासिक रह्या । बहुत दिनां प्रीत लागी। दुख पीड़ आपदा सहु भागी। पोरोसाहि का तखत पाया साहजादा साह कहाया । यह सिफन कुतबदीन साहजादे की पढे, बहुत ही वजन सुख से बढे । यह बात गाहजुग से रहि । ढढीणी ने जोड़ कर कही।" दूसरी रचना राजस्थान के सुप्रसिद्ध कवि समयसुन्दर रचित 'भोजन विच्छित्ति' नामक है। 'कल्प-सूत्र' की टीका मैं, महावीर के जन्म के पश्चात् कुटुम्बोजनों को जो भोजन कराया गया, उसका वर्णन बड़ी छटापूर्ण भाषा में किया गया है । खाद्य पदार्थों का इतना सुन्दर वर्णन पढ़ कर पाठकों को भी भोजन करने की इच्छा जाग उठेगी । परोसने वाली स्त्री का वर्णन करके खाद्य पदार्थों का वर्णन किया गया है __"मांडयउ उत्तग तोरण मांडवउ, तुरत नवउ । बेसवानउ प्रांगणउ, तेतउ नील रतन तराउ । सखरा मांडया प्रासण, बैसतां किसी विभासण प्रीसणहारी पइठी । ते केहवी ?-सोल शृगार सज्या, बीजा काम त्यज्या । हाथनी रूड़ी, बिहे बांहे खलकइ चूड़ी । लघ लाघवी कला, मन कीधा मोकला । चितनी उदार, अति घणी दातार । दउलती हाथ, परमेसर देजे तेहनो साथ । धसमसती प्रावी, सगलारइ मन भावी। "हिव पकवान प्राणइ, केहवा वखाणइ-सत्तपुडा खाजा, तुरतना ताजा, सदला नइ साजा, मोटा जाणे प्रासादना छाजा । पछे प्रीस्या लाडू, जाए नान्हा गाडू । कुण कुण ते नाम, जीमतां मन रहे ठाम । मोतीया लाडू, दालिना लाडू, सेविया लाडू, कोटीरा लाड, नांदउलिरा लाडू, तिलना लाडू, मगरिया लाइ, भूगरिया लाडू, सिंह केसरिया लाडू।" १८ वीं शताब्दी के सभा-शृगार, कुतुहलम् प्रादि कई वर्णनात्मक ग्रन्थ मिले हैं, जिनके उद्धरण अपने अन्य लेख में दे चुका हूँ । इस शताब्दी की दो सुन्दर रचनाएं चारण कवियों की भी प्राप्त हैं, जिनमें से 'खिची गंगेव नीबांवतरो दो-पहरौ' और 'राजान राउतरो वात-वरणाव' बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इनका एक एक उदाहरण नीचे दिया जा रहा है। पहली रचना के प्रारम्भ में वर्षा का वर्णन तो बहुत ही सुन्दर है जिसको मैंने 'राजस्थानी साहित्य' में वर्षा वर्णन लेख में दे दिया है। उसे यहां भी दिया जा रहा है। "वरखा रितु लागी, विरहणी जागी। प्राभा झर हरै, बीजां प्रावास करै। नदी ठेवा खावै, समुद्र न समावै । पाहाडा पाखर पड़ी, घटा ऊपड़ी। , मोर सोर मंडै, इन्द्र धार न खंड । पाभो गाज, सांरग वार्ज । द्वादश मेघन दुवो हुदो, सु दुखियारी प्रांख हुवो। . झड़ लागौ, प्रथोरो दलद्र भागौ । दादुरा डहिडहै, सावण प्राणवैरी सिध कहै । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी समइयो वरण रह्यो छ, बरखा मंडनै रही छ। बिजलो झिलोमिल कर ने रही है, बादलों झड़ लायो छ । सेहरा-सेहरा वीज चमक नै रही छ। जाणे कुलटा नायक घरसूनीसर अंग दिखाय दूसर घर प्रवेस कर छ । मोर कुहकै छ, डेडरा डहकै छ । भाखरारी नाळा बोल नै रह्या छ। पाणी नाडा भर नै रह्या छ, चोटडियाल उहक नै रही छ । बनसपतीसू वेला लपट नै रही छै । परभातरी पोर छ । गाज-प्रावाज हुय न रही। जाणे घटा घणं हरखसू जमीसू मिलण पायी छ। इस वखत समइय में गंगेव नीबाबत बोल छ, मनरी उमंग खोल छ । सला-सिकारांरो दुवा हुवो छ । "तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हमें आगे वसंत रितरा वणाव बखाणीज छ, दखिण दिसा मलयाचल पहाडरी पर्वन वाजिनो छ । सीत मंद सुगन्ध गति पर्वन मतवाला मंगल ज्यू परिमल झोला खावती बहे छ । अढ़ार भार वनसपती मकरंद फूलादिरा रस माणतो थको वहे छ । अंबर मोरीजे छ . कूपला फूटीज छ । वरणराइ मंजरी छ । वासावली फूटि रही छ । केसू फूलि रहिया छ । रितिराजप्रगटियो छ । वसंत पायो छ । भमर मधुकर झंकार करी रहिया छ। मधुरी वाणीरा सुर करि कोकिला बोलि रही छ । बार बगीचा दरखत गुलकारी झिलि फूल रही छ ।” सं० १७८८ के लगभग रतवीरभारण कृत 'राजरूपक' ग्रन्थ राजस्थानी भाषा का एक वृहद् ऐतिहासिक काव्य है, जिसे पंडित रामकरणजी प्रासोपा ने नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित कराया है । इस ग्रन्थ में कई जगह वार्ता का भी प्रयोग हुआ है। यहां उसका एक उदाहरण दिया जा रहा है । इसमें प्रौरंगजेब का वर्णन है "औरंगसा पातसा पासुर प्रवतार, तपस्याके तेज पुज एक से विस्तार । मापका विहाई सा प्रतापका निदान, मारतंड मागे जिसी जोतसी जिहांन । जापका पैगंबर प्रापका दरियाव, तापका सेस ज्वाल दापका कुरराव । सकसेका जैतवार प्रकसेका वाई, परिदल समुद्र पाए कुभज के भाई । रहणी में जोगेश्वर वहणी में जगदीस, ग्रहणी में सिवनेत्र सहरणी में ग्रहोस । जाके जप तप प्रागे ईश्वर प्राधीन, ताकू छल बोह बल कुरण कर हीन । १८ वीं शताब्दी में ही दवावंत-संशक दो रचनाएं प्राप्त हुए हैं, जिनमें से पहली रचना 'नरसिंहदास गौड़ की दवावंत' भाट मालीवास-रचित है । इसकी प्रति अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में १८ वीं शताब्दी पूर्वाद को लिखित प्राप्त हुई है। मादि-अन्त के उदाहरण इस प्रकार हैप्रावि-"हीदवाण छात हीदवाण मूर, अजमेर जोधपुर माण पूर, पजवाल बंस प्रस गांव मरोड़, ढीलड़ी बीच महिपत्यां मोड़।" अन्त-"रंग छहरते हैं । कपड़े पहरते हैं। तोसक सील्यावता है । हजूरी पावता है । चढ़ते उतरते पाव दे सलाम करांवदे है। जरबफत पाटता है । अम्बर फटते हैं । सभा विराजती है । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) कीरत राजते है । घोड़े फिरते हैं । पायक पड़ते हैं। गुणी जरा राग पटता है। वह वषत वणता है। सोभा बणती है । श्री दिवाण पधारते हैं। दुसमण को जारते हैं। देसों दूर डरते हैं । साहो काम सरते हैं। कवीसुर बोलते हैं । भरणा षोलते हैं। . कामका सूरत । जेतला दिहाड़ा तेतला प्रवाड़ा। जग जेठराम नरसिंह जेत. कवि मालीदास कहै दवावेत । दूसरी दवावेत जैनाचार्य जिनलाभसूरिजी की है जिसे याचक विनयभक्ति (वस्तुपाल) ने १९ वीं सदी के प्रारम्भ में बानायी है। इससे पूर्ववर्ती जैनाचार्य जिनसुख सूरिजी की दवावेत उपाध्याय रामविजय ने संवत् १७७२ में बनायी थी । इसका दूसरा नाम 'मजलस' भी है । दोनों दवावेतों के उद्धरण नीचे दिये जा रहे हैं - "अहो प्रावो वे यार बैठो दरबार । ए चांदणी रात, कही मजलीसको बात । कही कोरण कौंण, मुलक कोण कोण राजा देष, कौंण कौंण पातिस्या देष कौंण कौंण दईवांन देष, कौंग कौंण महिवान देष । तो कहे दिल्ली दईवान फररुष्साह सुलतान देष । चित्तोड़ संग्रामसिंघ दईवान देष । जोधाण राठौड़ राजा प्रजीतसिह देषे। बीकाणराज सूजाणसिंघ देष । प्राबेर कछवाहा राजा जयसिंघ देषे । जेसाण जादव रावल बुघसंघ देषै । ए कैसे हैं- वडे सु विहान हैं, बडे महिर्वान हैं, बड़े सिरदार हैं । वडे बूझदार हैं, वडे दातार हैं । जमी प्रासमान वीच संभू अवतार हैं। प्राचार्य श्रीजिन सुखसूरि का वर्णन करते हुए लिखा गया है - _ "दुस्मन् दूर है, सब दूनीमें हुक्म मंजूर है। मगरूरांकी मगरूरी दफै करते हैं, छत्र धारीकी सी गैंस धरते हैं। बड़े-बड़े छत्रपति गढ़पती देसोत डंडौंत करते हैं, चिकारे मुकारे भुज मरते हैं। (और) भी कैसे हैं- गुनुनके गाहक हैं, गुनुके जान हैं, गुनुके कोट है, गुनुके जिहाज हैं विजजिनराज है । षट्दर्शनके महाराज हैं सब दुनियां बीच जस नगारेकी अवाज है।" . जिनलाभसूरि - दवावेत उपयुक्त दवावेत से चौगुनी बड़ी है । इसमें कुछ पद्य य गीत भी सम्मलित हैं । यहां वचनिका-संशक गद्य काव्य के भी कुछ उद्धरण दिये जाते हैं।" 'फिरि जिनुका जसका प्रकास मनु हसका सा विलास, विधु हरजूका हास किधु सरद पुन्युका सा उजास । फिर जिनुका रूप अति ही अनूप मनु सब रूपवतुका रूप, जाकु देव्यै चाहे सुरनके भूप कामदेवका सा अवतार । किधु देवका सा कुमार, तेज पुज की भलक मनु कोटिन सूरन को जलक ।" उपर्युक्त दोनों दवावेतों में फारसी शब्दों का प्राचर्य है, क्योंकि इन दोनों की रचना सिन्ध प्रांत में हुई है। पंजाब और सिन्ध की भाषा में उस समय फारसी शब्दों का बाहुल्य था। २० वीं शताब्दी की रचनाओं में 'शिखर वंशोत्ात्ति' नामक ऐतिहासिक काव्य संवत १९२६ में कविया गोपाल ने बनाया, जिसे पुरोहित हरिनारायणजी ने सम्पादित कर काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया है । इसका अपर नाम 'पीढी वार्तिक' भी है । इसका प्रधान Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिल पार्ता नामक है, जिसे श्लोक की तरह मापात्रों प्रादि के प्रतिबन्ध रहित गद्य ही समझिए । उदाहरण इस प्रकार है - "स्याम ताज कफनी कमंडलमै नीर । हाटी सुपेत सेष सुवरण शरीर ।।१४।। मोकल राबमातोदेषि माथाको नवायो। साई स्यां भुरानी सेष नामी पंथ पायो ।।१।। जंगल में चरे छी सो अध्याई झोटी पाई। मोकलका कनांसू सेष चीपीमें दुहाई ।।१३।। बोल्यो दूध पीकै सेष नीकी भाति रैणां । तेरे पुत्र होगा राव सेषा नॉव करणां ।।१७।। ___इसी कवि का अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थ 'लावा रासा' है, जो राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, से प्रकाशित हमा है। उसमें भी दवावेत गद्य-छंद प्रयुक्त हैं । इसकी परवर्ती रचना कविराव बख्तावर के सं० १९३६ में रचित 'केहर प्रकाश' है। यह भी एक ऐतिहासिक काव्य है। बीच-बीच में वार्ता एवं वचनिका विशेष रूप से पाई जाती है। यहां उन दोनों का एक उदाहरण दिया जा रहा है। जवाहर वेश्या की पुत्री कंबलप्रसरण के रूप का वर्णन वार्ता में इस प्रकार किया गया है "पुत्री जिणरे कंवलप्रसरण रूपरी निधान । सुकेशियासू सवाई साव रम्भारे समान ।। साहित्या शृंगार काव्य जबानी पर कहे। रमाताल परिजत संगीतमें रहे ।। वीगांधर सहजाई गाये किण भात । तराज पर नहें पावे नारद वीणारी सांत ।। जिणने सुण्या कोकिला मयूर लाज भाग जाये। कुरंग पो भमंग बन पातालसू भावे ।।" . उसके रूप को देख कर अन्य मारियों ने उसे बाग-बगीचों में जाने का निषेध करते हुए क्या ही सुन्दर कहा है। "सुघर जठे बोली या नवेली सहल सारे ही सिधाबज्यो । पण बाग बन सरोवर कदे भी मत जावज्यो। जाबेला बाग तो पिक शुक प्रली उड़ जावसी, ने बिम्बफल श्रीफल मनाङ सेवा जो सुखावसी, जावेला जो वन तो खञ्जन कपोत चोघ चूरेला । मणधर मृगराज गजराज बिवर बूरेला। जावेला सरोवर राज हंस बूड जावसी । कंवल काला पड़ेला सिवाल प्रवटावणे पावसी । रातने या प्रटारी माथे कदेई जो जावेला । तो चन्द्रमारे भरोसे राहूसू खताहीज खावेला। राहू कदाक न पायो तो चकोर तो प्रायसी। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) जावसी न प्राग माथे चहराने च जावसी । सावरण प्रायां घरे यारे हींदा जिको घालेला । हीदिया छ तो परियां धोके परियो खांच जादेला। कंवल उरवसी प्रात भातमें कहात । परस्थानी परियों सी सहेल्यों ले माथ । जरकस वट जेवर मलामल के जोत । हेरी जात चारों पोर चानणी सी होत ॥ छुद्रघण्टा बिछियोंका छुटे छण छणाव । ज्यों हंसे बच्चोंकी बारणीका बणाव।। जां झरूका झरणकार व्है जोरें पर जोर । सावरणके मौसम ज्यों झिल्ल्योंका शोर । फबरणी में अनुरागमें प्रगणितके फैल | गुम्मजके महल पाई मिजाजोंके गेल ॥६३॥" प्राधुनिक शैली के गद्यकाव्य की परम्परा भी राजस्थानी भाषा में चालू है। यहां कविवर कन्हैयालालजी सेठीया के गद्यकाव्यों के हो उदाहरण देखिए - "प्रासोजगे महीनू । नान्हींसी'क एक बादली प्रोसरगी। रेवड़ बालरो अलगोजी गूज उठ्यो । रिमझिम-रिमझिम मेवलो बरसै । प्रतैमें ही प्रचारण चूको पूनरो एक लहरो प्रायो पर बादली उड़गी । करड़ी ताबड़ी निकल पाई । खेतमें निनाण करतो करसो बोल्यो-प्रासोगारा तप्या तावड़ा काचा लोहा पिण गलग्या-'मिनखरी जबानमें कई पल कोनी' । बादलवाईरो दिन । मधरो मधरो प्राथणु बायरो चाके । खेजड़ी पर बैठी कमेडी बोली-'टमरकटू'। __ नीचे छियांमें सूतो मिनख सोच्यो किस्योक सोवणू पंखेल है ? प्रतेमें ही कमेसी बीड करी-सीधी प्रा'र मिनखरे ऊपर पड़ी मिनख मुझला'र बोल्यो-किम्योक नवजात जीव है ?" हिन्दी भाषा में तो राजस्थान के कई विद्वानों ने अनेकों गद्यकाव्यं लिखे हैं, जिनमें ठाकुर राममिहजी (बीकानेर), भंवरमल सिंधी (जयपुर), दिनेशनन्दिनी गलमिया (उदयपुर), मादि प्रधान हैं । श्रीयुत् कन्हैयालालजी सेठिया का मातृभाषा का प्रेम विशेष उल्लेख योग्य है। हिन्दी के अच्छे कवि होने के साथ इन्होंने राजस्थानी भाषा में भी समय-समय पर बहुत सुन्दर रचनाएं की । इनके राजस्थानी के गद्यकाव्यों का संग्रह 'पाखडल्या' के नाम से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। -श्री अगरबन्द नाहटा Jain Education international For Private & Perse Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिपय वर्णनात्मक राजस्थानी गद्य-ग्रन्थ बाक-शक्ति मनुष्य को दी हुई प्रकृति की विशेष देन है । वैसे तो नेत्रधारी सभी प्राणी सभों और घटनाओं को निरंतर देखते ही रहते हैं, पर मनुष्य का देखना उनकी अपेक्षा बहुत महत्व रखता है । देखने के पीछे अनुभव करने की विशेष भक्ति आवश्यक है और वह केवल मानव को ही प्राप्त है । इतर प्राणी उन्हें देख भर लेते हैं, पर जैसा अनुभूतिपूर्ण वर्णन मानव कर सकता है अन्य कोई भी प्राणी नहीं कर सकता । वस्तुओं का ज्ञान कर लेना एक बात है और अपने अनुभव को सुन्दर एवं साकार रूप में दूमरों के समक्ष वाणी द्वारा उपस्थित करना दूसरी बात है । किमी भी बात का वर्णन करते समय श्रोता के सामने उसका चित्र-सा उपस्थित हो जाय-यह वर्णन करने की विशेष कला है। वैसे रसीले 4 चमत्कारपूर्ण वाक्य लिपिबद्ध हो जाने पर वे साहित्य की संज्ञा पाते हैं। भारतीय प्राचीन साहित्य में वर्णन करने की विशेष छटा स्थान-स्थान पर देखने को मिलती है । कहीं कहीं तो निरूपण शैली इतनी सजीव होती है कि पढ़ने और सुनने वाले बरबस प्राकर्षित हो कर मंत्र-मुग्ध से हो जाते हैं । यह वर्णन-शैली कई प्रकार की होती है । किसी में वस्नु के बाह्य रूप की, किसी में भीतरी गुणों की, और किसी में भेद-प्रभेदों के विस्तृत विवरण की प्रधानता होती है। किसी किसी रचना में भाषा का चमत्कार देखते ही बनता है । मम्मों का चयन बड़ा सुन्दर होता है और वर्णन गय में लिखे जाने पर भी (तुकान्त होने से) पढ़ने वाले को पचका सामानन्द मिलता है। संस्कृत में गद्य-काम्य में जिस प्रकार लंबे-लंबे समास प्रधान होते हैं उसी प्रकार लोक-भाषा के वर्णनात्मक गव-ग्रन्थों में तुकान्त शैली बहुत विस्तुत पाई जाती है। इसमें एक के बाद एक दुकान्त शब्द ऐसे सुन्दर एवं सहज ढंग में सजाये जाते है कि मानों मोतियों को चुन चुन कर माला ही पिरो डाली हो । सहृदय पाठक व श्रोता उस तुकान्त शब्दावली प्रौर वर्णन-शैली का नमस्कार देख कर मानव विभोर हो उठते हैं और लेखक के प्रति बरबस उनके मुंह से 'बाह वाह', 'खूप.बूब' शम्ब फूट निकलते हैं। प्राचीन नामों का अध्ययन करते समय प्राज से ढाई हजार वर्ष पूर्व की वर्णन शैली का पन्छा पता चलता है । भेद-प्रभेदों का विवरण देने वाले स्थानांग, समवायांग प्रश्न-व्याकरण पारि पागम तो मानार्धक है ही, पर उबवाई मूत्र जैसा कई ग्रन्थों में वर्णनों को मच्छी बहार है। उपवाई सूत्र में चम्पानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, बनखंड, अशोक वृक्ष, महाराजा श्रेणिक, के पुत्र मंथसार (कोणिक-प्रजात शत्रु), धारणी राणी, भगवान् महावीर का प्रागमन, समवसरण महाराजा कोणिक का वंदनार्थ गमन, श्रमणों की तप साधना प्रादि का प्रच्छा वर्णन है । इसी प्रकार अम्प जैनागमों में भी प्रसंगानुरूप अनेक प्रसंगों के सुन्दर वर्णन पाये जाते हैं। जैसे कल्पसूत्र में भगवान् महावीर की माता चौदह स्वप्न देखती है-उनका विस्तार से वर्णन मिलता है इस संबंध में स्वतंत्र लेख द्वारा प्रकाश डाला जायगा प्रतः लेख-विस्तार भय से यहां उदाहरण नहीं दिये जा १४ परवर्ती संस्कृत काव्य प्रादि ग्रन्थों में प्राचीन वर्णनशैली को और अधिक आगे बढाया गया है । जैसे देश वर्णन, नगर वर्णन, हाट बाजार वर्णन, राजा और राज सभादिक का वर्णन, Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) फिर राणियों और अन्य नगर की रमणियों के रूप का वर्णन, बनखंड, पाराम, उद्यान, महल प्रादि के वर्णनों के साथ साथ छः ऋतुषों, उत्सवों और क्रीड़ानों मादि का वर्णन भी कविगण अपने काव्य में अवश्य ही करते हैं। सुकवि वर्णन-योग्य प्रसंगों को कभी खाली हाथ नहीं जाने देते, जिससे काव्य में सजीवता सरसता मा जाती है और श्रोता एवं मध्येता विविध रसों का पान कर निमग्न हो जाते हैं। पद्य ग्रन्थों की भांति गद्य काथ्यों (कादम्बरी, तिलकमंजरी मादि) में भी स्थान-स्थान पर वर्णनों की छटा देखते ही बनती है। कहीं-कहीं तो वर्णन बहुत ही घमस्कारिक एवं कलापूर्ण पाये जाते है। कई ऐसे स्वतंत्र ग्रन्थ भी भारतीय-साहित्य में पाये जाते हैं। जिनका उईश्य केवल वर्णन करने का ही होता है । ऋतुसंहार प्रावि ऐसे ही काम्य है। कतिपय ऐसे संग्रह-पन्य भी उपलब्ध हैं जिनमें भिन्न भिन्न वस्तुपों के वर्णन सं होत मिलते हैं। उनके वर्णनों का उपयोग दूसरे पम्प प्रणेता अपनी रुचि के अनुकूल बटा बनाकर स्वरचित प्रमों में कर लेते हैं। कथा-परिक मादि अन्यों में स्थान-स्थान पर ऐसे सजीव वर्णन जुर जाने से उसकी शोभा बहुत अधिक बढ़ जाती है। संस्कृत-प्राकृत की भांति लोक-भाषामों में भी ऐसे वर्णनात्मक ग्रन्थ समय समय पर रचे गये हैं । मैथिली भाषा का "वर्ण रत्नाकर" अन्य इसी प्रकार का है। यह डा. सुनी तिकुमार चाटुा प्रौर बाबू मित्र द्वारा संपादित हो कर एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता द्वारा सन् १९४० में प्रकाशित हुआ था। यह १५ वीं शती की रचना है और इसमें भेद-प्रभेद रूप वर्णन ही अधिक है। संजीव कथात्मक महत्वपूर्ण वर्णन ग्रन्थ सं.१४७८ में माणिक्यसुग्गरसूरि रचित पृथ्वीचंद चरित्र है । लोकभाषा में वर्णनों का ऐसा सुन्दर · संदर्भ प्रन्थ पन्य नहीं है। इसका सार्थक व पर नाम "वाग्विलास" रपिता ने स्वयं रखा है। क्योंकि पृथ्वीचन्द्र के परिण की अपेक्षा इसमें वाग्विलास रूप चमत्कारिक वर्णनों की ही प्रधानता है। पाठकों को इसकी जैली का रमास्थाव कराने के लिये दो बार उदाहरण नीचे दिये जाते हैं। वर्षाकाल बर्णन"विस्तरिउ पर्षाकाल, जे पंथी तणउ काल, माठ दुकाल । जिगिइ वर्षाकालि, मधुर ध्वनि मेह गाजर, दुभिभ तणा भय भागह, जाणे सुभिक्ष भूपति प्रावता जय डबका बाजा। चिहं दिशि वीज झलहलइ, पंथी पर भरणी पुलइ । बीपरीत भाकाश, चन्द्र सूर्य परियास । गति धारी, लवई तिमिरि । उत्तर नऊ उनयण, छाया गयण । दिसि पोर, नाचई मोर । सधर वरसइ धाराधर । पाणी तणा प्रवाह खलहला, वाड़ी ऊपर वेला वलइ । चीखलि चालतां सकट स्खलई, लोक तणा मन धर्म ऊपरि क्लइ । नदो महा पूरि प्रावई, पृथ्वी पीठ जावई'। नका किसलय गहगहई, वल्ली वितान लहलहइ । कुटुम्बी लोक माचह, महात्मा बैठा पुस्तक वाचई। पर्वत तउ नीझरण विटइ, भरिया सरोवर फूटइ । इसिई वर्षाकालि । १. कविवर सूरचन्द्र के 'पदैक विशति ' कथा-संग्रह अन्य की अपूर्ण प्रति हाल ही में मुनि श्रीजिनविजयजी से अवलोकन को मिली है। मूल ग्रन्थ संस्कृत में है, पर स्थान-स्थान पर सुन्दर वर्णन राजस्थानी गद्य में दिये हैं । वे कवि के स्वयं रचित भी हो सकते हैं, पर कई वर्णन अन्य प्रान प्रतियों वाले भी हैं। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसन्त ऋतु वर्णन ( १५ ) तिसिह प्राविउ वसंत, हूड शीत ताउ अंत । दक्षिण दिशि तर उ शीतल वाउ बाई विहसह वरणराई । दोहा सब्वे भला मासड़ा, परण बहुसाह न तुल्ल । जे दवि दाधा रूखड़ा, तीहं माथइ फुल्ल ॥ अरिया सहकार, चंपक उदारं । बैल बकुल, भ्रमर कुल संकुल, कलरब करद्द कोकिल तशा कुल । प्रियंगु पाजल, निर्मल जल, विकसित कमल । राता पलास. सेवंत्री धाम । कुव सुचकुन्द महमहद, नाग भाग गहगह ! सारस ती श्री रिण, दिसि बासी' कुसुम रेरिग | लोक तणे हाथि वीणा, वस्त्राईबर भीणा । अङ्गारसार, मुक्ताफल तथा हार। सर्वाग सुन्दर, बन माहि रमई भूप पुरंदर । एक गीत गवार, दान विवाह । विचित्र वाजिन बाजई, रमलि तथा रंग छाजइ । एक बाद फूल त्रुट', वृक्ष तरणा पल्लब खू' टइ। हिंडोलह हींचर, भीलता बादि अलि सींच' । केलिहरों कउतिग जोग्रई, प्रीतमंत होई । पालक अवसर लही, ववंत अवतरिया तरणी वार्ता कही ।। ' उपमा व तुलना आदि प्रधान विभिन्न शैली के वन १. तुम्हें कहवउ धर्म परिण नमी जाणता मर्म । सांभलउ वन ते वरणवीर जे वृक्षवंत, नदी से जे नीरवत, कटक ते जे बीरवंत, सरोबर ते जे कमलवंत, मेघ ते जे समावंत, महात्मा से जे क्षमावंत, प्रसाद से जे धजावत, धर्मी ते जे दयावंत, प्रादि । २. माहरी लक्ष्मी इह सरीखी हुई। तब कहीइ ग्राम तरणी छांह, कुपुरिस तणी बांह, । दासीनु स्नेह, शरद कालतु मेह | मोड़ा मेह न ह, बहिल प्रावद छेह । अंतर दही नह खासि ३. जेटलु अंतर राणी मनइ दासी, जेतलु जेटलु अंतर मधुर ध्वनि न धासि । जेटलु अंतर समुद्र नद्द कूया, जेटल अंतर सोनइया नह रूपा, जेटलु अंतर बाप नइ फूपा । जेटलु अतर लूग नइ कपूर, जेटलइ अंतर खजुइमा नइ सूर । जेटलइ अंतर डाकिली नइ तूर, जेटलइ अंतर खाल नइ गंगा पूर । जेटलइ अंतर साधु नइ चोर, जेटलइ अंतर हार नइ दोर । ४. सूर्य पाखइ दिवस नही, पुण्य पाखइ सौख्य नहीं, पुत्र पाखइ कुल नहीं, गुरु उपदेश पाखइ विद्या नहीं, हृदय शुद्धि पाखड़ धर्म नहीं, भोजन पाखइ त्रिपति नहीं । साहस पावs सिद्धि नहीं, कुलस्त्री पाखई घर नहीं । १. इस वाग्विलास ग्रन्थ के कई बर्णन प्रस्तुत लेख में दिये गये अन्य वर्णनात्मक ५ प्रतियों में भी ज्यों के त्यों मिलते हैं व कई वनों में शब्दों का बहुत अधिक साम्य पाया जाता है । भेद-प्रभेद रूप वर्णनों को इस लेख में उद्धृत नहीं किया गया, जैसे कि जातियों का प्रसंग प्राया तो वहां ८४ जातियों के नाम हैं | आदि आदि । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. जिमि विलंब विणसइ काज, कुठाकुरी विणसइ राज । कुसंगति विणसइ संतान, स्वर पाखड विरणसइ गान । वर्णनात्मक ग्रंथों के प्रति मेरा आकर्षण - श्वेताम्बर जैन समाज में कल्पसूत्र का वाचन प्रतिवर्ष पर्युषणों में होता है । बचपन से ही मैं उसे सुनता रहा हूं। बीकानेर में उसकी खरतरगच्छीय 'लक्ष्मीवल्लभी' टीका ही विशेष रूप से बांची जाती है । इस टीका में व इससे पूर्ववर्ती 'कल्पलता' टीका में भगवान महावीर के जन्माभिषेक के प्रसंग में भोजन विच्छित्ति प्रादि का लोकभाषा में सरस वर्णन पाता है । जो मनोविनोद के लिए अच्छा है। उसमें विस्तार से जानने के लिए "वाग्विलास" * ग्रन्थ का निर्देश होने से उक्त ग्रन्थ के प्रति मेरा अाकर्षण बढ़ा। जब उस ग्रन्थ के दो चार वर्णन जो इस संस्कृत टीका में दिये हुए हैं वे इतने सुन्दर हैं तो वाग्विलास ग्रन्थ में तो न मालूम ऐसे कितने सुन्दर वर्णन संगृहीत होंगे। यही उस प्राकर्षण का कारण था । कुछ बड़े होने पर (साहित्यान्वेषण एवं अध्ययन की वृद्धि के समय) उपर्युक्त माणिक्यसुन्दरसूरि का 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' देखने में पाया जो बड़ोदा प्रोरियंटल सिरीज से प्रकाशित "प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' और मुनि जिनविजयजी द्वारा संपादित "प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ" में प्रकाशित हुआ है । इस चरित्र का अपरनाम 'वाग्विलास' भी है । यह जानने पर वाग्विलास ग्रन्थ का स्वरूप तो स्पष्ट हो गया, पर लक्ष्मीवल्लभी टीका में उल्लिखित भोजन विच्छिति आदि का वर्णन इस ग्रन्थ में नहीं मिलने से वह वाग्विलास नामक ऐसा ही कोई अन्य ग्रन्थ होना चाहिये-यह अनुमान किया गया। पर कई वर्षों तक ऐसा कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुा । फिर क्रमशः ५ ग्रन्थ उपलब्ध हुए जिनका परिचय प्रस्तुत लेख में दिया जा रहा है। १ कुतुहलम्बीकानेर के जैन ज्ञान-भंडार में एक 'कुतुहलम्" संज्ञक प्रति सर्व प्रथम मिली जिसमें गज नाम, समाना सभा नाम वस्त्रनाम प्रादि नाम और वर्षाकाल प्रादिका कछवगन था। इसके अन्त में 'इति कौतूहलम्' शब्द लिखे थे जिससे चमत्कारपूर्ण वर्णन वाली रचना को कौतूहलोत्पादक होने से 'कौतूहल' नाम दिया गया प्रतीत हया । इस ग्रन्थ के चार वर्णन पाठकों की जानकारी के लिए यहां दिये जाते हैं। . १. वर्षाकाल वर्णन ऊमटी घटा, बादला होई एकठा, पड़ई छटा, भाजइ भटा, भोजइ लटा । मेह गाजइ, जागे नाल गोला बाजइ. 'दुकाल लाजइ, सुवाव, इन्द्र राज इ, ताप पराजइ। बीज झबके, मेह टबके, हीया दबके, पाणी भभके, नदी उबके, वनचर लबके, पाभो प्रवके । बोलइ मोर, डेड करे मोर. अंधार घोर. पेंइसर चोर, भीजई ढोर । खलके खाल. वहै परनाल, चूये साल साप गया पयाल । झड़ लागी, लोक दसा जागी, घर पड़े, लोक ऊचा चड़े। प्राभा राता, मेह माता। २. एता किसी काम का नहीं ऊनालानो मेह. दासीनों नेह, रोगीनी देह, स्त्री विरण गेह । पर घरनी छासि, कंठ विहूणो रासि, अवसर बिना भास, कुकुलनो दास । फूसनी प्राग. जमाहनो भाग, काचो ताग, पागणीनो माग । दीवानो तेज, दुरजननो हेज । उधारानो वैपार, गंडनो सिणगार । पावइयानो प्यार । * अथ पुनः वाग्विलास ग्रन्थाइ भोजन युक्ति कथ्यते (पंचम ब्याख्यान) Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ३. विशेषताएं प्रथम पिंड पाणीरो, रूपो तो जावररो, दरसण तो परमेसररो. ताल मानसरोवररो, हस्ती तो कजलो वनरोः पदमणी तो सिंहल द्वीपरी, चतुराई गुजरातरी, वासो तो हिंदुस्तानरो, स्वाद तो जीभरो, मतो तो पंचांरो, खेती तो बाड़री, धीणो तो भैसरो, देणो तो माथारो, गाळ तो मातारी, चूड़ो दांतरो, प्रादि-प्रादि । ४. ये वस्तुएं भली प्रमल खारा भला, खड़ग धारा भला, हेत मारा भला, धात पारा भला, हाथ वहता भला, माल खरचता भला, दांन मानसूभला, काथा पानसू भला । साहिब। जससू भला, खेत नीचा भला । घर ऊचा भला । राणी, पाणी पातळा भला । प्रमल जोरका भला । निसांग पोरका भला । इत्यादि। २-सभा श्रृङ्गार इस प्रति की प्राप्ति के पश्चात् 'सभा-शृङ्गार' नामक ग्रन्थ की एक प्रति सं० १७६२ में महिमा विजय लिखित ७५९ श्लोक परिमाण को मिली जिसमें पूर्व प्रति से वर्णन बहुत अधिक व सुन्दर प्राप्त हुए। यहां उसमें से दो चार वर्णन देकर हमें संतोष करना पड़ता है । वैसे इस ग्रन्थ में बहुत से वर्णन पाठकों का मनोरंजन कर सकते हैं। वर्षा का वर्णन इसमें दो बार पाता है । जिसमें पहला वर्णन उपयुक्त प्रति जसा है, पर अधिक विस्तार से है । दूसरा वर्णन इस प्रकार है१. वर्षाकाल हुउ, अहिती रहिउ कुयउ, वावि पाणी भरता रया । बादल उनया। मेष तणा पाणी बहै, पंथी गामइ जाता रहै । पूर्व ना बाजइ वाय, लोक सहु हर्षित पाय । प्राकाश धड़हड़े, खाळ खड़हई । पंखी तड़फड़ाइ, वडा माणस लड़थड़इ, काठ सड़इ, हाळी हळ खड़इ । प्रापणा परि कादम फेडइ, बीजा काज मेड़इ । पार पार न लीई', साध विहार न करी। अनेक जीव नीपज, विविध धान्य उपजे । लोकनी मास पूज, गाय भैस दूज । इत्यादि। २. धनी और निर्धनो का अन्तर निर्धनी वर्णन ऊचों तो एरंड, खाटरो तोहि नाग, घणो भोळो लांफु', बहु बोले तो लबोळ । धणु जीमे तो भूखो, थोड़ो जीमे तो प्रभोगियो । भला वस्त्र पहिरे तो इतर, सामान्य पहिरे तो दरिद्री । गोरो तो पांडु रोगियो, काळो तो कबाड़ी। व्यापारी तो भइङ्ग, बीखै तो सर्वधन बाह्य, विषयहीन तो नपुसक। धनी वर्णन ऊंचो तो अजुन बाहु, वामनो तो वासुदेव, गोरो तो कंदर्प, कालो तो कृष्ण, घणो जीमे तो अहारी, थोड़ो जीमे तो पुण्यवंत, ऊचा वस्त्र पहिरे तो राजेश्वर, सामान्य पहिरे तो मो, दाता तो कर्णावतार, जो न दे तो छाना गुण्य करई', पणो बोले सो भोळो, न बोल तो मितभाषी, जो लंपट तो भोगी, जो नपुसक तो परनारी सहोदर । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) ३. प्रभात व संध्या वर्णन प्रभात हवई कूकड़ा बोल्या, लगारेक नींदथी डोल्या। नींव कोल्या, मूकी संभोगनी लोल्या, स्त्री भार उमडोल्या। प्रावइ नारि, बारि उघारि. राति अंधारि । दही संभाल्यू, विलोवरणो पाल्यू। रातिज दीस छ, घटी पीसइ छ । इतरइ संख वाग्या, झवकीने जाग्या । तितरई झालर वागी, स्त्रियो पण जागी, उठवाने लागी। मुहड़े बोली-उठो भाई ! जागो भाई ! राति विहाई ! प्रह पीळी थई ! राति डरी गई ! चड़कलड़ी चहचई ! मालण वाड़ी गई ! नोबत गड़गड़े छ, पारसी भणे छै, खुदा खुदा करे छ । . संध्या सूरजना किरण पच्छिम ढल्या, पंथी सगां नइ मिल्या । विरहीना हीया वल्या, गोवाळ घरे वल्या । चौपू लाव्या, आप आपना घरे प्राध्या। पंखी टळवल्या, माळे जावा ने खळभल्या, चोर सळसल्या, पावइ हळफल्या। पाकास राता, मेह करि माता । क्या किरण नीला, क्या किरण पोला । नाना प्रकारना रंग, भला सुरंग । वाध अनंग, जंगी करै जंग, भोगी पीये भंग, स्त्री वंछ संग । आदि। ४. शीतकाल वर्णन भोगी भमरने प्यारो, जोगीश्वराने न्यारो। महा टाढो, वाजइ गाढो, जावानो नहीं मिळे किंहां साढो। दाहे रूख बाल्या, सज्जन ही साल्या। स्त्री सूधरणी गोठ, खावा लाडू सोंठ । वासइ सगड़ी धख, प्रवल चीज भखई, ठारे करि ठऱ्या, हाथ सोड़ में धर्या । हाथे न लेवई वस्त्र, प्राधा मोठे वस्त्र । लोक सीसिपाट करइ, चौपू उछरई', ताढह न चरई धूजे बाळगोपाळ, विरहीमां पड़इ हवाल, सहु बंठा चौसाल, साचव्या देहरा नइ पोसाळ, एहवो सीतकाळ ।। उनालोगयो सियाळो प्रायो ऊनाळो । लू बाजइ छै, सीत लाजइ छ, पग दाझइ छ। तावड़ो तपीजइ छै । पंथी पसीजइ छ, चन्दण घसीजइ छ । रूख पात झड़इ छ, परिणहार पांणी माटइ लड़इ छ ।। वाव कूवा सूके छै । पंथी मारग मूकै छ, कंठ सूकै छ। प्रादि २ । ६. अंधारी रातरो वर्णन सांझ परी गई, गुदड़ी परी थइ, दीवइ जोति भई । चोहटइ भीड़ मिटी, व्यापारीनी महिमा घटी, हाटइ ताला जड़इ। पाप प्रापरै घर प्राया, कूची लाया । स्त्री सोलह सिंगार सजे, गणिका जारने भजे । हाथे हाथ न सूझइ, कोई कोने न बूझइ, विचार मारणस मुझइ । चोर ते धसइ छ, बूतरा ते भुसइ छ । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) ७. वस्तु स्वभाव चंद्रमाने कुण शीतल करइ, अग्निने कुण दाह करइ । दूधने कुण धोळे छ, समुद्रने कुण हिलोळे छ । मयूर पखने कुण चितरै । लक्ष्मोने कुरण नोतरे, गंगोदक कुण पवित्र करे । हंसने गति कुण सिखावे, वृहस्पति ने कुण बंचावे । कृपणन कुण संचा। तिम सज्जनन स्वभावे जाणवो। ८. शोभा कुल बहू ते शीळे शोभ, रजनी चन्द्रमा शोभ, प्राकाश सूर्य करि शोभ, वदन चंदन शोभ, कुल सुपुत्र शोभै ! कटकइ राजा शोभ, इत्यादि । ९. न शोभे जिम लवण रहित रसवती, वचन रहित सरस्वती, कण्ठ रहित गायन, नृत्य रहित वादन, फल रहित वृक्ष, तप रहित भिक्षुक । वेग रहित घोड़ो, केस रहित मोढ़ो, वस्त्र रहित सिणगार, स्वर्ण रहित प्रलंकार । इत्यादि । १०. पणिहारी बहरांनी भीड, हुई पीड़, तुटई चौड़। एक उतार्वाळ दौड़इ छ, एक माथइ बेहड्डु चउड़इ छ, लूगडू ते माथे प्रोढई छ, वेहडू ते फोड़इ छ । एक एक नइ अडइ छ, धडाधड़ पड़इ छ-मांहो माह लड़ा छ, हवइ नानी लाडी, चीख लथी पड़इ प्राडी. बीजानी भीजइ साड़ी, ते माटे करइ राडी, सोक सोकनी करइ चाड़ी, डील जाडी, खीजइ भाडी, सासूइ पाथी ताड़ी। एक परिणहारी भमरइ छ, वातो ते करइ छ, निजर ते परइ-परइ फिरे छ, एक एक नइ हस छ, पाणी मांहे धस छ । प्रादि। ३-मुत्कलानुप्रास उपयुक्त प्रति प्राप्ति के पश्चात् दो वर्ष हए जैसलमेर के जैन ज्ञान-भंडारों का पुनरावलोकन करने के लिए जाने पर वैद्य यतिवर लक्ष्मीचन्द्रजी के संग्रह की अपूर्ण प्रतियों में १६ वीं शताब्दी के लिखे हुए पत्र प्राप्त हुए, जिनमें १०८ वर्णन लिखे हुए हैं। इनमें से कुछ वर्णन संस्कृत भाषा में हैं, पर अधिकांश राजस्थानी में ही हैं। यहां इस प्रति से भी कुछ वर्णन उद्धृत किये जा रहे हैं। प्राप्त वर्णनात्मक प्रतियों में यह सबसे प्राचीन है। १. रसवती वर्णन उपलह मालि, प्रसन्न कालि । भला भंडप निपाया, पोयणी न पाने छाया। केसर कुकमना छड़ा दीधा । मोतीना चौक पूर्या । ऊपरि पंच वर्णा चंद्रवा बांध्या, अनेक रूपे पाछी परियछीना रंग साध्या । फूलांना पगर भर्या, अगरना गंध संचर्या । धान गादी चातुरि चाकळा, बइसण हारा बइठा पातळा । सारुवा घाट, मेलाच्या प्रागलि पाट । ऊची पाडणी, झलकती कुडली । ऊपरि मेलाव्या सुविसाल थाळ, वाटा वाटली, सुवर्णमई कचोली। रूपानो सीप दूकी, इसी भांति मूकी । मादि २ । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) फिर विविध रसबतियों के नाम हैं। इससे प्राचीन खाद्य-पदार्थों के नामों की विस्तृत विगत मिल जाती है । २. विरहिणी - किसी एक विरहगी हुई विरहावस्था, प्रहार ऊपरि करइ अनास्था | सर्व सिगार, मानि अंगार । तिहाइ अबला ( अंतर्गत) फुला कीधा वेगला । चंद्र तप पान, यया विखवान । विरहानल प्रज्वलइ अंगु, सखिजनस् विरंगू | एह कोई यू विग्र वित्त, न बुलाई गीत्त । न कुणहीसू' हँसइ, सदा नीससइ, बोलावि बीजइ, दिहाड़ दिहाड़ देह खीजइ । प्रादि २ । ३. वर्षा - प्रासाद संसादु मेघ प्राध्या, कुणइए नइ मनि उछरंगि न भाव्या । कालंबिणी वली, जगत्रइ नइ मनि रली। उत्तर वाय वाज्या, प्रकाश मेघ गाया | कूड़ा बहूक्या, केवड़ा महक्या । कुद उलस्या, करसरि हरखया । प्रांथ महमया, मयूर गहगह्या । बप्पिहा वासई, बिरहणी उसासई | बूढा मेह, उलस्था स्नेह । नदी महा पूरि बहिया लागी, देस बिदेसनी वाट भागी । जल भरिया निवारण, पृथ्वी प्रवर्ती मेहनी प्राण । आादि । ४. हेमंत ऋतु प्रति वसंतु, प्रावियो रितु हेमंतु । जिहां सीयमा भर, सेवई निर्वात घर । तुलाइए पुढीइ, भली तुलाइ उढीइ । प्रति ही मोटी, प्रलंब दोटी । प्रोढ़ि बेस, सोयाल हुई हसइ । शरद ऋतु उन्हाला नउ भाई अनिलेइ वैश्वानर नइ अंगु कोई न जारणीइ । किहाई इंतउ, दिसि सप्रकास शरद ऋतु पहुतउ । फुल्या कास, प्रगस्ति ऊगउ । श्रादि । ५. वसत ऋतु विरहणी हसंतु, पुहतउ वसंतु । फूलइ वरणराइ, नगर माहि न फिराइ । मेल्हइ वंराग, खेल फाग । श्रति सूविसाल प्रांबानी डाल । तिहा वाधहि हिंडोळा, रमइ नर भोळा । यादि । ग्रीष्म ऋतु महा पित्रु नउ माळउ, श्राव्यो उन्हाळउ । लूय वाजइ, कान पापड़ि दाइ । झाप्रा वल, हेमाचलना शिखर गळई । निवाणे खुटइ नीर, पहिरइ श्राछा चीर । एवड़ऊ ताप गाउ, भावइ करबउ टाढउ । बाइ बाजइ प्रबल, उडइ धूलिना पटल । सीयालाई हुन्ति मोटी रात्र ते नान्ही थई रात्रि । सूर्य आपण पइ ताप, जगत्र संताप | जे जीव थल चरई, तेहि जलासय अनुसरह । ७. कलिकाल वर्णन - इ अवसर पिणी काळि, समझ समझ मनंत गुरिण हाणि । रस निरस्वाव, लोक स्तोक मरयाद। प्रविवेकु वासु, धर्मवंत नासु । प्रतुच्छ मच्छर, करकस स्वर, तुच्छ धर्म रगु, गुरुजन प्रसंसा भंगु । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुकृत करणे प्रमादु, बहु मृषावादु । सांप्रति वर्तइ-इस उ कलिकालु, जिहां को नहीं कृपालु । दरसरण उच्छल । पार्यजन स्वल्प, घरणा कुविकल्प । बहु भाराकांत देश मंडल, पृथ्वी मंद फल । साधुलोक प्रांकुल, राजा तुच्छ बल । प्रादि २ । यह प्रति अपूर्ण प्रतीत होती है। किनारे में अन्य का नाम 'मुत्कलानुप्रास' लिखा है जो ऐसी रचना का सार्थक व प्राचीन नाम प्रतीत होता है। ४-वर्णनात्मक बड़ी प्रति जैसलमेर से प्राते समय बड़ोदा युनिवर्सिटी के गुजराती भाषा के प्राध्यापक डा. भोगीलाल सा सरा मेरे साथ बीकानेर माये । साहित्य-गोष्ठी के प्रसंग में जब ऐसी रचनामों की चर्चा चली तो. मापने भी ऐसी एक प्रति मिली बतलाई। मैंने उसे उनसे मंगवा कर प्रतिलिपि. करवा ली। उपलब्ध प्रतियों में यह सबसे बड़ी है। इसके ४० पत्र हैं। फिर भी अपूर्ण है । लेख-विस्तार भय से इस ग्रन्थ के विशेष उरण न दे कर कुछ वर्णन ही दिये १. प्रथ भाद्रपद मास. पूरह विश्वनी प्रास । लोक नइ मनि थाइ उल्लास । जिह नह प्रागमि वरसइ मेह, न लाभइ पारणीनो छेह । पुनर्नव थाह देह । भला हुइ दही, परीश्यां कोई कहे मबि सही। पृथ्वी रही गहगही । साचई कादम माचई, करसणि नाचइ । नीपजइ सातइ धानि, देखतां प्रधान । नासइ दुकाळ. भाद्रवे दूइ सुगाळ । प्रादि । २. गंगा पाखा जल नहीं, बंधु पाखइ बल नहीं। मित्र पाखइ हेज नहीं, रवि पाखइ तेज नहीं। पुत्री जन्म३. जउ पहिलउ बेटी जाई, माइ बाप काळ मुंहा थाइ । जसु घर बेटी प्रावी, पूठि लागि चिन्ता प्रावी । बेटी घर सम्महो पाउ चालइ, दरिद्र बाटि दिखाइइ । जां हुई बालि, ताउ हुइ लालि पालि । हुई वरेरी, थइ अनेरा केरी । अवाटइ चालती, देह मरोड़इ हालती। कुल कलंक प्राणइ, अपहुंती कलि सामूहि ताणइ । आपणु घर सोमइ, पिरयु घर पोसइ । आपणु कुल ईख इ, पिरायुभूखइ । घणइ न तूसइ, थोड़लइ अपमान रूसइ । न जाइ बेटी, मनरथ खाणि भेटी । ५-महत्वपूर्ण अपूर्ण प्रति उपयुक्त प्रति के बाद जोधपुर के केशरियानाथ के भंडार का अवलोकन करते समय एक प्रपूर्ण प्रति प्राप्त इई जो १७ वीं शताब्दी की लिखी हुई है। इसमें १५७ वर्णन पूर और १५८ का अधूरा रह गया है । कई वर्णन बड़े ही अच्छे हैं। प्रत: चार-पांच वर्णनों के देने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) १. कलिकाल सम्प्रति वत्तई कलिकाल, महा का कपट काल । पाइपबार साक्षात् हलाह लि, सासु बहु परस्पर कलि । गुरू शिष्य मा बाध बलि, अम्पाय कुरीति देश मडलि । राज कुळ धा बलि, राय राणा पत्ता बलि। भत्रिय नामहं वोठा बलि, भला माणस हुई तांतलि । पृथवी मंद फल, मंत्र सर्व नि:फल, बड़ी मूळी रस विकल। कुल स्त्री निरंगल, न्यायी राय तुच्छ दल । चरह बहुल, वाट पाडा तणा कलकल । धर्मगुरु चपल । पापोपदेस कुसल । मिथ्यात्व निश्चल, लोक माया बहुल, अल्प मंगल । इणि कुकालि, अवसपिणी काली। अल्प भीर गाइ, निस्नेह माइ । भक्ष भोज निरास्वाद, स्त्री तणी जाति अमर्याद । रहस भेद, रसच्छेद । क र संचना, गुरु बंचना।। प्राउखां स्तोक, निवाणिजा लोक । देव वातली, भक्ति पातली। अल्प मृत्यु, पगि पगि प्रकृत्यु । बाप बेटी तणा गरथ सातई, मापरणा छोरू कुखेत्रि धातई। पाप जउ, धर्मी बउ। साचउ अवगणियह, झूठउ वखारिणयाद । गुरु शिष्य तराउ खमइ, वाप बेटा नमः । सासू पाटलइ, बहु खाटलइ । ए कलि तणा भाव । २. विरहणी हारु कोड़ती, वलय मोड़ती। प्राभरण भांजती, वस्ज्ञ गांजती । किकरणी कलाप छोड़ती, मस्तक फोड़ती। वक्षस्थल ताड़ती, कंचुत फाड़ती। केश कलाप रोलावती, पृथ्वी तलि लोटती। मांसू करी कंचुक सोचती, डोडली दष्टि मोचती। वीम वचन बोलती, सखीजन अपमानती। थोड़ई पाणी माछळी जिम तालोचलि जाती, शोक विकल थाती। भरिण जोयइ, अणि रोयइ । क्षणि हसइ, मरिण रूसह । आणि पाकन्दइ, मरिण निदइ । मरिण मूझइ, क्षणि झह । तेह तनु, सतापद चंदणु । कमलनाल, पुण मेला जाल । चन्द्रकांति ज्वलइ, पुष्प शय्या बलइ । हार भावइ अंगारु, कदली हर, मानह महर, जे जल सीकर, ते उद्वेग कर । जउ शीतलोपचार, ते करइ विकार । इणि परि प्रज्वलित, स्नेह पटल, विरहानल नोपजइ । ३. युद्ध वर्णन विहु पखा वृहत् पुरुष साँचरिया, क्षम मूडाविउ । विहु गमा मना-बद्ध नीपना, सुभटे जरहि जीएसाल लीधी। मय गल.गुडिया, सुडादंडि सुहव हि थातिया । पन वल्लह किमोर पाखरिया. जाति तरंगम पमारिणया । वीर पुरुष महामुभट प्रगुणा नोपना, चक्रव्यूह, गरुडव्यूह तणी रचना नीना । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मागेवारणी सींगड़िया तणी श्रेणी, पछेवाणी फारक तणी पवति । सतो हस्ती घट सीत्कार करती, पाखरियानी श्रेणी हैखारव मेल्हती। पंच शब्द सणा निर्घोष जमला उच्छलइ, रण तूरी वाजई। निसाए थाय गाजई । बिहु गमे भाट पढाइ । बिहुं गमे सुभट तणा सिंघनाद हवा लागा. सिल्ल, भल्ल,तीर, तोमर, नाराच प्रहरण पड़वा लागा बिहुँ पखा हाकि हाकि, हिरिण,-हिरिण, मारि-मारि। नाठउ-नाठउ, भागउ-भागउ । इणि परि सुभट शब्द नीपजावइ । गयण प्राछादिउ । सूर्य किरण रूध्या। तेवळ समइ- फूटेवा लागा कपाळ मंडळ, भाजवा लागा धनुमंडल। जाएवा लागा शिरखंड, पड़वा लागी खांडा तणी झड । वाजिवा लागी सुभटनी काट कड़ि, नाचेवा लागा धड़-कबंध । पाड़िवा लागा ध्वज चिंध, प्रहार जर्जर कुजर पड़ई। सुनासणा तुरंगम तड़फड़ई, भाले भरड़ीता गजेन्द्र अरड़इ । रीरीया करता राउत हथियार हलइ, घाइ धूमिया सुभट ढळई। पड़िया पाइक न ऊससीयई। हिव हाथियां पाश्वासीयइ। मउड़उ धाम उडपडई। रवंत रड़वड़ई। पड़िया पंचायणनी परि हाकइ, रोस लगि मुछ मुछ फरकावइ । रथ चक्र चांपी ती. किरोडि कड़हडइ । भाग्यवंत जयलक्ष्मी वरई, पापण काज करइ ॥ ११४ ॥ ४. प्रभात वर्णन - प्रभात समउ हुउ, अन्धकार फीटउ । गाय तणा गाळा छूटा, तारागण विरल हुउ , चन्द्रमा विछाय थिउ । कूकड़ा तणी उळि लवइ, देव तणा बार ऊघड़िया, प्राभातिक तूर्य बाजियां । राज भवनि वैतालिक पतुइ, विलोणा तणा झरड़का उपजई. पथिक मागि थया । ब्राह्मण तो धरि वेद ध्वनि विस्तरी, धार्मिक लोक प्रतिक्रमण पर हूया ॥ १४८ ।। ५. ऊनालो - उष्ण काल पहुतउ जिसि दाबानळ तणी ज्वाला तिसि लू वाई। जिसिउ बावन्न पळ तणउ गोळउ धमिउ हुई तिसिउ प्रादित्य तपइ । जिसी भाड़ तणी बेलू, तिसि भूमिका धगधगइ । मस्तक तरण उ प्रस्वेद पान्ही उतरइ, मि जीव लोक गलगल इ. श्रीमंतना चउबारा झळहळई। जलंद्रा शरीरि लगाड़ीयइ', गुलाब तणा अभ्यंग कीज इ, बावन श्रीखंड वसीयई। चउदिसि वीजण फिरई, द्राक्षा प्रांबिली पान कीजइ । कलम शालि तणा साधउरा करवा कीजई। पाछा कापड़ा पहिरीपइ । लूमा हण्या पाणी पीजई । १५० । । फिर संस्कृत श्लोक हैं )। जिन पांचों प्रतियों का परिचय प्रस्तुत लेख में दिया गया है- सभी जैन रचनाए हैं। इनके अतिरिक्त १५ वीं और १६ वीं शताब्दी की अन्य तीन ऐतिहासिक तुकान्त रचनाए हमारे संग्रह में हैं जिनमें से सं० १४८२ लिखित तपागच्छ गुर्वावली 'भारतीय विद्या' में प्रकाशित हो Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) चुकी है और जिनसमुद्रसूरि और शांतिसागरसूरि संबंधित १६ वीं शताब्दी के वर्णन 'राजस्थानी' भाग २ में प्रकाशित हो चुके हैं। ऐसी ही कतिपय वर्णनात्मक रचनाए चारण कवियों की प्राप्त होती हैं जिनमें से खिडिया जगा की 'रतन महेशदासोतरी वचनिका' एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता से प्रकाशित है और 'खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरो' और 'राजान राउतरो वात वरणाव' राजस्थान पुरातत्व मंदिर से प्रकाशित हो रहे हैं । ये दोनों भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। राजस्थान में लोकवार्तामों को कहने का ढंग भी बहुत छटादार, वर्णनात्मक, तुकान्त और निराला है । उसका वर्णनीय प्रसंग साकार हो उठता है। बात कहने वाला जहां जहां भी प्रसंग मिलता है उसका पनि बड़े ही विस्तार से प्रसंग के अनुकूल करके श्रोतामों को अपनी मोर ऐसा प्राकर्षित कर लेता है कि वे अन्य सारी बातें भूल कर बात सुनने के रस में निमग्न हो जाते हैं । श्रोता रातभर उसी रस में सराबोर रहता हुमा समय का अन्दाजा भूल जाता है कहानीकार छोटी सी बात को इतनो लम्बी और छटावार बनाये जाता है कि जिससे कई दिनों तक वह बात चलती ही रहती है । शहरी वातावरण अब इसके अनुकूल नहीं रहने से राजस्थान में वातों के कहने की जो विशेष शैली थी, अब लुप्त होती जा रही है । रसिक व्यक्ति गांवों में माज भी इसका रसास्वाद कर सकते हैं । प्रस्तुत लेख द्वारा विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जाने वाली इस वार्ता-शैली और बातों को चिरस्णयी बनाने के लिए ध्यान प्राकर्षित किया जाता है। गुजरात में लोक-साहित्य और वार्तादि के संग्रह का जैसा अच्छा प्रयत्न हुमा है, राजस्थान के साहित्य-प्रेमियों के लिए भी अनुकरणीय है । प्रस्तुत लेख में जैसी वर्णनात्मक रचनाओं का परिचय दिया गया है-खोज करने पर और भी कई रचनाए मिल जाने की पूर्ण संभावना है । जैसा कि पहले कहा गया है उपलब्ध प्रतियों में तीन महत्वपूर्ण प्रतियें प्रभी अपूर्ण रूप में उपलब्ध हुई हैं। उनकी पूर्ण प्रतियें भी अन्वेषणीय हैं। - ऐसी वर्णनात्मक रचनाओं के विविध नाम प्राप्त हुए हैं। वाग्विलास, मभाशृङ्गार, मुस्कलानुप्रास, वचनिका-ये पुराने नाम तो मिलते ही हैं । स्व० देसाई ने तुकान्त की विशेषता को लक्ष्य करते हुए इनकी संज्ञा 'पद्मानुकारी गद्य' शैली बतलाया है । यद्यपि १५ वीं शताब्दी से पहले की कोई ऐसी रचना लोक-भाषा में अभी तक प्राप्त नहीं है, पर पृथ्वीचन्द्र चरित्र में इस ग्रन्थ से पहले भी यह शैली प्रचलित रही होगी ऐसा प्रतीत होता है। १६ वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक राजस्थान और गुजरात की भाषा एक जैसी ही थी अतः इन रचनाओं में से सभाशृङ्गार में गुजराती भाषा का पुट अधिक देखा जाता है। प्रथम शुद्ध राजस्थानी में है और अवशेष तीन अपूर्ण रचनाओं की भाषा दोनों प्रान्तों के लिये समान सी होने से इनका रचना काल १६ वीं शताब्दी ही होना विशेष संभव है। -श्री अगरचन्द नाहटा Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खोची गंगेव खीची काग भड़ा किवाड़, बैरियां जड़ां उपाड़, जिरकी सेल कहूं बरणाय, सुगियां मन प्रसन थाय. वरखा रितु लागी, विरहणो जागी, प्राभा भरहरे, atri प्रावास करे. नदी ठेवा खावै, समुद्र े न समावे पहाडा पाखर पड़ी, घटा ऊपड़ी. मोर सोर मंड, इंद्र धार न खडे. श्राभो गार्ज, सारंग वाजे. द्वादस मेघ नं दुवो हवी, सू दुखियारी प्रांख हुवा. झड़ लागौ, प्रथीरो दळत्र भागो. दादुरा हिड है, सावर आणवैरी सिध कहै. गंगेव नींबावतरो दो-पहरौ इसी समइयौ वरण रह्यो छे, वरखा मंडने रही है. बिजली झिलमिल करने रही छे, वादळां झड़ लायो छं. सेहरा - सेहरा वीज चमकन रही छै. जार कुळटा नायका घरसू नीसर अंग दिखाय दूसरे घर प्रवेश करै छे. मोर कुहकै छ, डेरा हक है. भाखरांरा नाळा बोलनै रह्या छे. चोड़ियाळ डकनै रही छं, areपती' वेला लपटने रही है. परभातरी पोर छै. गाज- प्रावाज हुयनै रही छे, जाणं घटा घर हरखसू ं जमीसू, मिलरण आयी है. इसे वखत समइयं मैं गंगेव नtarad बोलं छं, मनरी उमंग खोले छे. सैला- सिकारांरी दुवी हुवी छे, भाई अमराव साहरिणयांनं हुकम Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो दो-पहरौ हवी छ बे पख भला, ऊचा अलला, तयारी कीजै छै. कटोरा नखा, पारसी सारीखा. मन-जाणिया हथियार-पोसाख तिअंगला गाळा,मुठिया बील फळा. ली छ. निमंसी नळा, गोडा नाळे र फळा. घोड़ा दही कटोळसू संपड़ाइज छ, उर ढाल अंसा, कूकड़ कध तैसा. फेर उजळं पाणी नहाइज छै.. अांख पाणी मोती तवा, लिलाड़का बेठा नवां. हजार घोड़ा तयार की छं. चौकड़ा-लगाम दीजै छ. जळ अंजळ पीवं, .. सूघोड़ा कुरण जातरा छ, कुरण रंग कनोती लोय दी. भातरा छै? -औराकी प्रारबी तुरकी मगर लादक पछी, खंधारी ताजी सिकारपुरी धारी काछी छोटी पड़छी. माळवी हबसानी पूरबी टांघरण पहाड़ी पूठ बाथां न मावे, चिन्हाई-और ही अनेक जातरा घोड़ा पूछी चवर दावं. तयार कीजै छै. फीचा धनख जैसी, कुमेत नीला समंदा मकड़ा सेली काछ नारंगी तसी. समंद, भूवरबोर सोनेरी कागड़ा गंगाजळ असा घोडे राव चाकरारे हाथों में नुकरा केला महुवा घूमरा हरिया लीला काढणा.. गुलदार पंचकल्याण पवण गुरड़ संजाब संदली सीहा चकवा प्रबलख सिराजी. सू मोर ज्यूतंडब करै छ, फेर ही अनेक रगरा घोड़ा तयार निकुली ज्यू अंग भांज छ, कीजे छ. सन ज्यू उल्हसे छ, भागा काला मांकड़ा ज्यू झांकी साखत जीण काढ़ी छ. भरे छ. तिके जीण किण भांतरा छ निरत कारण ज्यू नार्च छ, गुजराती कसमीरी कसूरी मारवाड़ी नट ज्यू उळटां खा छै. दखणी मिरजाई भटनेरी लाहोरी हजार डोरमे थका अकी-बेकी कर छ. मेखी घणो रंग-रंगरो वनात मुखमल प्रांखका गोसा सिन्धके जैसा. कलाबूती सोनै रूपैरा वणिया जीरा मनका गंगाजळ, हाजर की छै. सुकलीगी ज्यू छंदां ऊजळ. जीण मांडजे छै. केसवाळी रंग-रंगरी गुथजै छै. असा हजार घोड़े राव प्राण हाजर अगाड़ी-पछाड़ी खोलजै छ. हूवा छै. रेसमरी बागडोरांसू प्राण हाजर तठा उपरायंत गंगेव नीबावतका कोजै ..."किसा हेक घोड़ा छ ? भाई-भतीजा उमराव हजूरी पोसाखां Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो बो-पहरी कर छ. कसूमल केसरिया हरी सबज सपतालू सोसनिया नारंगिया सपेत. जाणं तिजाराकी वाड़ी फूली छ ऊपर उपहीज वणता हथियार बांधज छै. ग्यानरो गोरख, सहदेव ज्यूसारी बात समरथ ; अरजुन ज्यू बाग, करण ज्यूदान-पाण; वत्तीस आखडीरो निवाहणहार, . वैरियां विभाडणहार, पर भोम पंचायण, घण दियरण, जस लियरण, कळायरो मोर, सू भीने गात, तरवार कटारी ढाल छुरी तरगस बंदूक बरछी गिलोल गोफण चूकमार. और ही भांत भातरा प्रावध सझिया थका चौक पधार छ. केसरिया पौंसाख कियां, पांच हथियारां बांधां प्राण, घोड़े प्रतवार हुवै छै. सू किरण भातरा छैकाल्हीरो कळस, सतीरो नाळेर, तोरण प्राखा, कुवारी घड़ारा वींद, गाहरा गाडा, फोजारा लाडा, काचा कुभ ज्यू कापा जाणे, परायी छठी जागै, रिडतो तेज, भूखियो लोह लियां रहे, काछ-वाच निकळक. नगार इक डंको बागो छै, मीर सिकाराने हुकम हुवो छै. बाज, जुररा, कुही, बहरी, सिकरा, लगड़, चिपक, तुरमती साथ लीज छ. चीतेवाणाने हुकम हुवो छ. चीता साथ लीज छ, घोडारी पूठ तखतां ऊपर बैठा छै. प्रख्यां प्राडी कुल्हे छ. सकळायतरा पटा, रूपैरी भंवर कड़ी, रेसमरी डोर. तिके चीता कठारा छ ? मरोटरा, अाधोरा, देरावररा, रोहरा, थटैरै पहाड़ारां, ईडररा डूगरांरा, जाळोररा पहाडांरा, पावररा थळारा, पारकररा विहडारा. इसा चीता साथ लीज छ. तठा उपरायंत गंगेव नींबावत बाहर पधारै छै. सू किरण भांतरो छ ? ऊगतो सूरज. पावासररो हांस, कुवरांपत कुवर, जळहर जबाध भोगी भंवर; कसतूरियो निघ, लांधियो सिंघ; सीळ गंगेव, दुरजोधन अहमेव; जुजठळ ज्यू साच, दुरवासा वाच; . __ ""हतरांनै हुकम हुई छ. कुतारा डोर छटै छ. लाहोरी ताजी लूच बाण गिलजी पहाड़ी. जिकांरी मूडहथ मोह नाळ, हाथ भर नस, वडर पान जिसा Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो दो-पहरी कान, ताजणासेद पूछ, नाहरसा पंजा, प्याला. ठकरणी, लोटा, पाला, बाजोट. बाघसी अांख, पालळो लीक जाड प्रांठू'. और ही सब छकड़ा गाडा घात जै छै. इण भातरा कुता. बनातो पटा, रुपेरी भंवरकड़ी, रेसमी डोर, कानांमें रूप सोनेरा वेढला, गळं में निजरा ताइत. तठा उपरायंत मौदियांन हुकम हुवी इण भात सू प्राण हाजर हुवा छ. छ. भूजाई मारू सारी ही वसत सीधो मीठाण वेसवार परब लेय राती-नाडी चालज्यो, म्हे सिकार रम उण नाडी आवां छा.सू मोदी भोई तोपाधरा नाडीर, इकां वेहलां रहकलां ऊपर बैसाणज मारग वहीर हुवा छै.आपरमरणर मारग छै.सू इका वेहला रहकला किण भांतरा भाखरांने खुडार मारग चालिया छै. छ ? गुजराती, सुरती, खंभाइची, भृज घोडारा पोडांसू जमी गूंज रही छ. नगरी, हेसारी, उजीरणरा, बरिणया धणे खेहरो डोरो आकासन जाय लागो छः सी सूरा, पीतल लोह दांतरा जड़िया, घूघरमाळ घोडारी बाज रही छ. हीस लाल सलहटीरा गदरा बिछाया थका, कलल होफ हुयनै रही छ. वहलियांरा चांदणी ढालिया थकां प्राण हाजर हुवा घूघरां जंगारो झमकार हुयने रह्यो छ. छ. वेहलियांरी फुरणी बाज रही छै. जग वहलांरा वांस पइयांरो खडबडाट हुयने घुघरा बाज रह्या छ. सू वेहलिया किरण रह्यो छै, होकारा हुयनै रह्या छै. भांतरा छ ? थेट काकरेचरा छ,सोरठरा नगार इक उंको हुयनै रह्यो छ सहनायां छ, हालाररा छ, सुवालखरा छ, देस- में मलार राग हुयनै रह्यो ऊं. निसारण देसरा इकरंग सपेत छै. जांहरो सपेती मुहडं आगे फरहरनै रह्या छै. नकीब, प्रागै बगला ही मगसा नजर प्राव, चोपदार नजर दौलत.सू सूरजरी किरणने मंहदी सुरंगियावनातरामोहरालाले सुतरी वरछियारी के किरण हुयन रही नाथा. रेसमरी रास, सींगा पीतळरी. छै. इसो समीयो वरणनं रह्यो छ. खोळी. वनाती झूला घातियां रहकलां इकां खड़सला जूता छ. सू हालियां थकां घोड़ारी माम पाई. इसा बेहली जूता तठा उपरायंत ऊठां चढियां रहकला इका खड़सल प्राण हाजर रबारियां प्राण मुजरो कियो छै. सूऊठ हुवा छ. कुण-कुरण दिसावररा छ ? काछी बोदला छपरी जालोरी वगरू बलोची सिववाडिया खाडालिया. औरही अनेक जात-भांतरा ऊठ छ. सूसाथरो घूमरो तठा उपरायंत भोइयांनै हुकम हुवौ कियां थका रमण सिर पारण खड़ा छै. भूजाईरा वासण तयार कर राती हुवा छं. नाडी चालज्यो. सू वासरा तयार की छ. देगां, चरू, कढाई, कुड़छी, खरपा, डहोला, झरहर, चालणी,थाळ,कटोरा, हमै तीतरां ऊपर बाज छुट छै. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नौंबावतरो दो-पहरी रवानका ऊपर जुरराष्टै छ. तिलारां ऊपर वासा छुटै छ. लवां ऊपर सिकरा छटै छै. बटेरा ऊपर तुरमती छटै छ. बोवड़ा ऊपर चिपक छुट छ. बुरजांऊपर लगड छुटै छ. कुलंगा ऊपर कुही छूट छै. इण भांत देसौत राजेसर सिकार खेले छै. . घोडादौड रह्या छ. होकारा हंगामो हय रह्यो छ. जितरंबीच थोहर झाडारा विडा मांहां खरगोस उठिया छै. मू किरण भांतरा छै? मोटा घेदा छ. तोबडिया छ. घगा लील जडी-बूटीरा चरणहार,पांहरै पाणीरा पीवणहार.तिका ऊपर कुनारी डोर छटी छ. बांठ-बोझा कूदै छ.धुचली खाय रह्माछ. ठुलीरी,गोफणरी,तीरांरी चोटां हुय रही छ. के घोडा पाखड छे. घोड़ारापगांसू कांकरा-पथर उछळं छ. पड़ छै. मसूबर किरण भांतरा छ ? भूरा, कवळा कई अवलख छ.डार अकं पार्म छ. अवाल अंक तरफ छ सू अकल किरण भांतरो छ. जैरो वारहं प्रांगळ खग लीडीकट छ, कांधो-पूठ अक सारखो, छ. गुळवाड़ गोहं जव चिरणांरो, जुवाररो चरणहार छ. मयमत छै. सू चर चर फरणियां पाया छै माछूरांरा संताया. थोहरनै झाड़रा बिड़ा सुखसे छे घूड वाहै छै सू जड़ा समेत उखाड़ नाखै छै. इसा सुवरांरा मोरां ऊपरां राजानां घोड़ा लगाया छै. वरछियाराधमोड़ालाग रह्या छै. चूकमारांरी खाटखड़ लाग रही छै. कई घोड़ासुवरांरातू डांसू उछळ पर पड़े छ. तरवारां वहि रही है. कटारी वहि रही छ. कई सेल्ह तुटै छ. कैई ग्राधी सलै छ. सुवर मारजै छ. ऊँटा ऊपर घातजै छै. . इतरै बीच हिरगणारा डार आय नीसरे छ. तिके किरण भातरा हिरण छै? काळा वडा बेगड छै,मूहडार डारमें मेघ हुय रह्या छं.माहे राग छ जिके कूद-उछळ छ, रोगटा हिरण छ.सु रुत प्राइ हिरणीने घंचता फिरै छै. सबळो हिरण निवळं ने घेचे छ. इव डार करोलां मुहाग आगा काठियो छ. तिकां ऊपर चीता इट है. कुल फां दूर कीज छ तमासी वगा रह्यो छ. इस समइयमें धूप तपै छ. रानग अमलारी खुमारियां देमौना-जानांने तिल लार्ग छ. नद नाडी माम्ही बाग वाळी छ. सिकार मरव अंक ठोकर रहकला ऊठा ऊपर घातजै छ होस माणगा तळाव पाया छै. इस समइयमें भालुवां प्राग अरज कीवी छै. भाखरांरा खुडां वहां माहां सूवर नीचा उतरिया छै. राजानां देमोला 'सूवरां सामी वाग लोवी छ. फडकडा फड़वडायां जावं छ. इसमें सूवर नजरां तिको तळाव किण भांतरौ छै.रानी वरडीरी. पांइरी नीर. पवनगै मारियो फीगग पाछटतोयको झोला खाय रह्योछ. लहगं लिय है. अथग डोव छै. कड़ियां भुवै पागीमें पंटा पगारा नख झाब छै. दुधरे भोळावै विलाव वागो छ. ऊपर कुजा, सारसां गहकन रही है. डेडरा Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नीबावतरो दो-पहरौ पाप-प्रापरा घोड़ानू देसौत बाफतारी चादरांसू पवन कर रह्याछै. इहकनै रह्या छ.टीटोड़ी टहकने रहीछ. जळ-काग गुटकनै रह्या छै. मुरगाबी तिरनै रही छ. अढार भार वनस्पती झुकनै रही छ. तळावरै छेहड़ा कुवळ फूलनै रह्या छ. हजार पांवड़ा ईस छै. आठसे पांवड़ा उपळे छै. इण भांतरौ तळाव छै. घोड़ा लोह चाब रह्या छै. जीणांरी साखां-जनाखां ऊंची नाखज छै. तंग खोळा कीजै छै.. ___ सू पाडा नाळां भरियो छै, जाणे दूसरी मानसरोवर छ. तिरण ऊपर धरणा वड़ा पींपळां बोर बकायरण नींब नाळे र प्रांबा प्रांबली सीस् सरेस खेजड़ जाळ प्रासापालो खिजूर गूदी लेसड़ी केसला खिरणी मौलसिरी फरवास रायसेरण/ महवा ढाक कुभरा कीकर टूला झुकने रह्या छै. डाहळांसू डाहळा अडनै रह्या छै. छायमैं सूरज नजर नावं छ.तावड़े री कुण चलावं? आछौ सौ मेह आवै तौ पण छांट पुहचण न पावै छै... तठा उपरायंत पताखांसू बादळा छोडजै छै. सू किरण भातरा बादळा छ? हळवदरा,मोरवीरा,अंजाररा, भरवछर हालोररा छै. रूपैरी टूटी सांकळी लागी छै. घरणी सिलेहटी अटायरणमें बींटिया थका, ऊपरा बेवड़ी-तेबड़ी झालरीमें गरकाब किया थका छै. स उरण ही बादळांसू घोड़ांरा लालिया छांटजे छ. फेर बादळा खंखोळ उणहीज तळावर पाणीसू छाण भरज है उगाहीज वड़ा-पीपळारी साखांस टांगजै छै.झौटा दीजै छै. पवन खुवाय पाणी ठंढो कीजै छै. * इसी सांघरणी वनसपती मिलने रही छ. जाण दुसरी घग कै. दरखतां ऊपर मोर कुहक रह्या छै. सुवा केळ कर छ. . तूती बोल रही छ. लाल हाक मार रह्यो छै. तठा उपरायंत जाजमां गिलमांरा विछावणा हवनै रह्या है. ऊपरा गदरा. चांदरणी विछायज छै. ते ऊपर सुजनी ढाळजे छ सू किरण भांतरी छ? भड़ोछी वाफतैरी, घणं कलाबूत रेसमरं कारचोभोरै कामरी. गुजरातरे कारीगररी कीवोछ. तकिया लगा जै छै. ऊपर बगला पावस बंठा छ, स किसाहेक सोहै छै, जारणे . कलाइण कागोळड़ नाखती आवै छै. तठा उपरायंत देसौत राजान आपरा टोळी मजल रा जुवान लियां विराजमान हवा छै.कमरा खोलजै छै. वरछीरा झूला कोजे छै. सू वरछी कुण भांतरी छै. ताड़रा, बड़ पीतळरा भर तावूड़ा गजबेल दाणैरा फळ रामपुरैरा तिकारी छांहड़ी प्राय राजानांदेमौतां पागड़ा काढिया है. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नीबाबतरो दो-पहरी बिडियोड़ा, रूपैरा सोनेरा नकस छै. फोफलिया रूपैरा लागा छे. फळां ऊपर । बिनातरा मुखमलरा चकारा लगायज छै. सिलहटी छ. सुध गैंडारी प्रारणांरी छै. घणारी मारी बधै छ. बाहरै महीनां संचे में रहै छै.-मोहर तोलरो रोगान रंग लागो छ. तरवार कटारी वरछीरा दाव ही न लागे छ. सुवररी दांतरी लागतो पण रड़क न ऊतर. गोळी लागै तो उछळ पाछी पड़े. सौन-रूपैरा चांद-फूल, मुखमलरी गादी, सांबरा हथौसा, बोयदाररी डाबा कसा इण भांतरी ढाला सूउपहीज दरखतारी साखासू नागळीजै छै. . तठा उपरायंत तरगसारा कुलावा छुटै छ. सू तरगस कुण भांतरा छ ? लाहोर कसूररी वरणो ठावी,धरणीवनातमें लपेटो थकी, घरण कलाबूतसूमूथी थकी, रूपैरी कुहरी फुलड़ी जीभी लागी थको, तिके ठावी साठ-साठ तीरासू भरी थकी. तिके किण भातरा तीर छ ? गुजरातरी नीपनी सांठी, गाडे गाही, सात वार संचै मारी, लाल स्याह रंग, गजवेल दारगरापैगाम छै, ऊपर सोन्हैरी नकस छै, खुरसागरा उतारिया,माठीरा तिलारिया, ऊपर रूपैरासांबा छ,पीतळ तांबराछला छ, दांतरी चौकड़ी छ, तिलौररापंखारा छ, दांतरा सुफाळा छ, सोन्हैरी हळ लिखी छ, नचमूठरा तीर छै. इसा तीरांसूठाठा भरिया थका. सू उरणहीज बड़ां-पींपळारा दरखतांसू नांगळ छ. तठा उपरायंत तरवारियांरा कमसारिया खुलै छै. सू तरवार्यो किरण भांतरी छै ! सीरोहीरी नीपनी, वे आं अगला बाढ भेरिया थकां जनैब मगरेब पुड़तकाळ सेफ विलायती मुजरी बिरांणपुरी हबसानी फिरंगी. सू म्यान माहां काढ घासमें नांखजै तो पारणीरे भौळावै जनावर ठूग' बाहै. बगतरमें वाही दोय टूक कर. चौरंगमें वाही थकी सो कसिरो चलणिया सार बाढ. लोहमें वाह्यां थकां बालछो ही न पड़े. सू घरण मुखमल वनातरा म्यानां मांहे लपेटी थकी, घणो सौन- रूपमें जड़ी थकी, घरणी बुलगारर साज में लपेटी थकी, उणहीज ढालारा गड़गदांमें मेलज छै. तठा उपरायंत कमारणां कुरमारणां माहे मेलज छ. तिके कमाणां किरण भांतरी छै ? बार वरस दरियावां मांहि जहाजां हेठ बंधी प्राइ चिलेवाइ हकारा करती गुण-भार-बंकी अढार-टंकी असली जादी पठागरी बेदी ज्यू तुही-तुही करतीथकी,बलोचरणी ज्यूलचकार करतो थकी, इण भांतरी कमाणां उणहीज। दरखतारी साखांसूनागळजे छ. तठा उपरायंत कटार्यारा कमर बाँधा छुटै छ. सू कटारी किरण भांतरी छै? विराणपुररो, रामपुरारी, बूदीरी, राजासाही, पोडारी, अढाई, भोगलीरी. कोताखानी, पाडाजीभी, घरण सोनमें झकोळी थकी,नव नगां राछांसू भरीथकी, तठा उपरायंत ढालांरा अलीबंध खुलै छै. सू ढालां किरण भांतरी छै. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खोची गंगेव नींबाबत वो पहरौ उहीज सेल्हां बाफतारा कमरबंधांमें लपेटी थकी, उही ढालांरी प्रांचा में मेलजं छे. तठा उपरायंत पेटीरा कसा छुटै छै. सू पेटी कुरण भांतरी छै ? असल दागदार बोयदाररी छै. तैरी खसबोयरा लिया भंवरा गुजार करै छै. बीस-बीस पांवड़ा खसबोयरा डोरा छूटै छे. जा गांधी हाट पसारी है. तठा उपरायंत वागांरा चिहरबंद छूटै छै. सू किरण भांतरा वागा छै ? सिरोसाप भंरव चोतार कसबो महमूदी फूलगार अध-रस सेला बाफता डोरिया मोमनी तनजेब सासाहिबी तर तरैरे कपड़े रा बागा छे.सू उतार उतार उरणहीज दरखतांरी साखां ऊपर उरळा कोर्ज छै. तठा उपरायंत चरणांरा गिरदाना मोकळा करजाजमा गिलमां ऊपर बैसजै छै. पाघां लपेटा उतारढालांरा गड़गदामें राखजै छै. बाफतारा सेलारा रूमाल केसरिया छै स माथां ऊपर राखजे छे. वीणां बायेरा लीजं छं. सू कि भांतरा वीणां छे ? लाहोररा कियोड़ा छै. रूपेरी डांडी जरी मढी, टुकड़ीरी झालरी. तू वणी थकी खवासपासेवारणारे हाथ छै, फरास वडां फरासी पंखां वायेरो घात रह्या छे. मात हाथी ज्यू हींड रह्या छे. तीन भांतरो पवन बाज रह्यो छै-सीतळ मंद सुगंध. गरमी मिटायजै छं. • तठा उपरायंत राजानां मलूक कुबरा साथ सारू कलालीरो हुकम हुवौ छै. तिजारो मंगायजे छं. तिको तिजारो किरण भांतरो छँ ? तासणीरी बाडीरो नीपनो इकतीस ताड़ीरो, नाळे रसोमोट खोपरा बढरो, गरीरं दळरो, हाथसू छूट पड़े तो काचरी सीसी ज्यू किरचाकिरचा हुये जावं. पाणीमें घातियां rai ढह जाय. इण भांतरो तिजारो सू गोरो भूवरिया पुचांस दुजण साह्या कटोरांमें भला जुवान मचकाव है. बेवड़ी गळणी खिची चाढछारगजं छं. ऊजळा रूपोटांमें घात मुनहारां हुयनं रही छे. तठा उपरायंत अमल मंगायजं छं. अमल किरण भांतरो छ ? थेट आगरा ही काळ केकीनरो नीपनो. भूरो थटाई अरोड़ी नहलिया भोजपुरावटी. सृ आगराही अमलरी चकी बंक्यां मिरोवढ कीजं छं. केसरिया पोत रुमालां में घातजै छै. अरोडी गाळजे छे भोजपुरीरा पला कीजै छै मुनहार हृयनै रही छै. अमलोरा जमाव कीजं है श्रमलांरा तंडल रोपर्ज है. अमलोरी नोवो दीजं छै. इसमें भांगेसुर मंगायजै छै. सू किए भांत छै ? केसरी क्यारी दोलळी वासग माथारी. थोहररा बिडारी भाखररा खुडारी, भूरे मोरी, काळ पानरी, श्रावुरा विडारी, भमरमार मिरघमाळ लरियाळ चिडिया चोटडियाळ. ओक पानगरियां पान अंक पान ग्रहमदाबाद. पान-पानरो रस लीजं छै तिए भांग साल महाला Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो दो-पहरी गायज छै. जायफळ लांग इळायची मिरच विरहाळी अजूनागकेसर भमरटंटी तिज तमालपत्र तंबोल प्रत संथी.और ही मसाला मंगायजै छै. मिश्री कालपी गंगापाररी मंगाय कोरा घड़ामें भिजोथ छै. तठा उपरायंत इलूरारी कडो क्षेजवळरो घोटो धोय तयार कीज छ. भांगण बीण मोकळा पाणीतू धोयज ई. फेर कोरी हांडीमें रांधज छै. तठा पछ घोटज छ. भला मोटियार होसनाक जुबान बरणाय छ. बेयड़ा गळरणांतू मचकाय काढज छै. इसी जाडी कादर्ज • माथं टीको काढ़जं तो नीसरे, पयनरी मारी सींक ठाहर. इण भांतरी भांग काढ तयार कीजं छ. कसूबांनू होसनाक पवन करै छै. सू रूपोटां में लियां खवास पासेवाण हाजर करै छ. मुनहारां हवै छै. देसौत आरोग छै. अमलां चाक हुयज छै. जाणं काळा- वासग तिरै छै. जळ डोहि रह्या छ. जाणं रेवा-नदीन हाथ डोहळ रह्या छै. इसौ समइयो वरणनै रह्यो छै. जिसमें पारणोमें तिरता मुरगावी नजर आवै छ. तिकार सिकारै पगा बंदूकां गिलोलां मंगायज छै. सू बंदूकां किरण भांतरो छै. ? गगा-पाररी, सीहनंदसमियागकी लाहोररी करनाटकरी फिरंगरी थटारो. घरी सोन-रूपमें गरकाब कीवी थकी. नकसदार जाणे गोडिय नागण लांबी कीवी छै. दूसरो बीजरो सळाव सीस पीळियै दुधरी लकड़ीरा कुदा छ,रूपैरीताराराकोकड़ी सीरम सपेतंरा बंध छै. बोयदाररी डाब छ. कसमल सूतरी लपेटी जामकी छै. रूपरी बनातरी मुखमलरी कुदारे पीदी वरण रही छ. सुइया सांकळी रूपैरा चमकनै रह्या छ. सात-सात विलंदारी लांबी खोळी मेरण कपड़रीस बाहर काढज छ. जाणं बादळ मांह वीज नीसरी, पाकासरी, कना तीज र तमासै मारू पातळी कामणी पोसाख कर नीसरी, इण भांतरी बंदूकां मोटवार तिरता-तिरता लेय उग घड़नांवां पाया छै. . तठा उपरायंत जांगड़ियांनै हुकम हवै छै. सू भजन ख्याल गाव छै. माता हाथी गजराज पटाझर ज्यू झोला खावै छ. सहनायची सहनायां मांहे सारंग वगायो छ. तठा उपरायंत सिरदारां देसौतां । नळावमें लणरो हांस करै छै. लाल लांगीरो पोतां पहरजै छ. घड़नांवा वणायज छ. सू लै तळाव में वड़जैछे. हासो-तमासो कर रह्या छै, माथा जड़ा केसांरा छटा छै. सू किसा नजर त्रावै । 'गिलोला किरण भांतरी छ ? घण सींग लकड़ोरी जोड़ी, पणी पय सरेसरी पचायी, कमाणरै घाटरी, दांतरां मोगरां लागां थकां घरगी सोनरी हळरी लिखी जंगाळी रंगरी, नवे चढ़ावरी तांत, रेनमैरो मेदान गूथियां थकां. राजानां Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरी देसीतांरे हाथां दीजै छे. कुंभारी कमायोड़ी, हथाळीरा मारिया, धुईरा पचाया, नींबुवै घाटरा. इस भांतरा गिलोला हाथ दीजै छे. गिलोलांसू उणहीज बंदूकां मुरगाव्यांने चोटां कीजे छै. तमासो हुयनै रह्यो छे. सिकार मुरगाबी अकठी कर तळावसू बाहर पधारजै छै. लीली पोतां दूर कीजै छै. चरणा पहरजै छै. सूकिरण भांतरा चररणा छ ? इलायचैरा मिसरूरा गुलबदनरां मालनेरीरा बाफतारा, चाळीस चाळीस हाथांरा छै. गिरिया डोबरे समा नाडा छै. सू चरणा पहर जोड़ी पगां घातजै छं. सू जोड़ी किरण भांतरी छे ? लाहौररी पिसोरी घर वनात मुखमलरी लपेटी थकी, घर कलाबूत गुथी थकी, पैहरजै छै. तठा उपरायंत पाछलै पोहररी ढळती छायारी विसायत कीजै छै. देसौत सिरदार जाजलमां पधारै छै. केस सुंबा छै. मोगरैरी वेल केवड़ रे तेलस केस सुथरो कीजै छै. दांतरा छलांरा चंदरगरा चखड़ीरा कांगसियांसू केस सुवारजै छै. केसांरां जूड़ा बांधजं छै. ऊपरा मखहूलरा डोरा बांधजं है. तठा उपरायंत गोठ सारू बाकरा मगायजै छे. रबारियांने हुकम हुवे है.. परगना मांहां बाकरा दही ले आवो. सू रबारी ऊंठां प्रावे छै. किरण भांतरा रबारी छे ? डीघा लांबा जुवान दीसता राजान, बांकी मूंछा, राता नैण, सासी डाढी, मोटा वैण, जाहचा लांबा हाथ, भूख सिघन घातं बाथ, इण भांतरां रबारी ऊंठांनं झालै है. सू ऊठ किरण भांतरा छै ? थापवी तळीरा सुपवी नळी रा. नाळ रागोडांरा, बीलफळ इरकीरा, हथाळिये ईडररा, ससा सेरी बगलांरा, घाट बाजोटरा, बाथमे कांधरा, कस्तूरिया पटारा, कोरवं कानरा, टाकसै माथैरा, लोकवे नाकरा, तजिये होठरा, कवाडियां दांतां उधरै पीडरा, परळां आसणांरा, कांगरे थूबरा, मोटै पूठेरा, छोटे पींडांरा, भामरे पूंछरा, भुवरियं रूरा, चोळमै रंगरा, लांघिये सीह ज्यू लंकां चढिया थका, भागा गाडा ज्यू' बठठाठ करता थका, dar ज्यू झाला करता थका, मार्त हाथी ज्यू हुंकारा करता थका. इसा ऊंठ भेकजै छै. हाथ फेरजै छे. पीतळरा गीरवारण रूपैरा कड़ा छे. ता मांहे मोहरा बोलचं मोहरा घात छै. लूबां कवडाळा वळंबड़ा घातजे छे. लाल सिलेहटीरां पडेछयां गाद्यां घातजै छे. ऊपरां पलाण मेलज छे.सू किरण भांतरा पलाण छे. सीसूरै काठरा, घरणे लोह पीतळसू जड़िया थका रूपैरी फूलड़ी लागी है. दांतरे कामसू वरिया थका. वनातरा मढिया श्री कुपीतळरा वाजरगा पागड़ा, कड़ी कुहट गाठी प्रोकढ़ा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खोची गंगेव नींबावतरो दो-पहरौ सांतरा, पटाडांरा चोलुवा बणायां थकां कागा कसरणा कीयां थकां चढ खड़िया छं. गांव-गांव मांहां दहीरा कळस मेल्हजै छै. जेवड़ां मांहां बाकरा उठायज छै. किरण भांतरा बाकरा छे. रातड़िये रिगरा, उजळां थळांरा, घरणी गांगुवरण हींगवणरा चरणहार, घर काचर तुबेरा चरणहार, गुवार चिड़ी - मोठराखावरणहार, भाह रे सादरा, कड़कती नळीरा, कबाड़िया दांतांरा, कमर वा ऊचा, चिलकता मोरांरा, माडर खेतरा, मादळियां पेटारा, बालखासी बोकड़ा, खोड़ खील्हेरीरा चरिया कुरणियारो बेसणहार, कूभटे सुरणहार, आयबेरा चरणहार.. सो उहां ऊठा ऊपर मसकांरी पर दोय- दोय बांधजै छै. चलायां आया है. राजानांसू प्राय मुजरो कियो छे. बाकरांतू वरको करणारे पगां अलवळिया मोट्यारांतू हुकम कीजै है. सुसीलां मीरोहियां लेने ऊठिया छै. मलकती वीखां भरै छै. जारं पावासररो हंस मोती चुगरण चालियो छै. दोय दोय बाकरांरी सिल्हाड़ने ठरका हुवे छे. तरवारांरा छणकार हुयनै रह्या छं. चौरंगारी खाटखड़ हुयनै रही छं. कटोरां मांहे फूल लीजं छै. बाकरा होसनाकां वसू कीजै छै. देसीत रवां धोय हाथ ऊजळा कर विसायतां ऊपर विराजमान हुआ . ११ तठा उपरायंत हुकांरी होंस कीजं छै. चाकरांने हुकम हुवौ छै. हुका तयार की छे. किरण भांतरा हुका र्छ? सोनेरा, रूपरा, विदरी, खांखोळ ठाढा पाणीस भरजं छै. नींचं सुथरा विछायजै छे. ऊपर हुका मेल्हजं छै. नमचा सरद कीर्ज छै. सू नमचा किरण भांतरा है ? वीटीवा, चौगानिया, घर वनातरा लपेटिया, सालूरा लपेटिया, बोयदाररा मढिया, चतरा, कलाबूतरे कामरा, सोनंरूपरै बळांरा,रूपैरा कुलाबा लागा थका, सोनेरी टूटी, रूपेरी चिलम, चिलमपोस है. तमाकु वरणायज छै. सू किरण भांतरो तमाकू छै ? सूरत नीनो, तांब रंगरी, जाडे पान. करड़ी डांवळीरो, सू इभांत तमाकू. सू चिलमां भरजे छे. ऊपरां थोहरा आकरा कोयलांरा चिलमिया मेल्हर्ज छं. जाणं सहिजादेरा ताइत, बभूत लगायोड़ा जोगीसा छं. तिणारी होंस मारणजै छं. मधरो-मधरो खांचजै छे.घरराटा हुयनै रह्या छे जा प्रभो मध गाज छै.धु वैरो डोरो लाग रह्यो छै.सू जाणं आसाढरी खाली प्रोमां है छै. तठा उपरायंत खसबोय मंगायजै छे, सू तर किरण भांत है ? गुलाबरो चनगरो फितनरो वुररो खसरो करणरो, सू सीसी खुली छं. सीकां भर-भर काढ छ, लगायी छे, मुनहारां कीजै छै. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खीची गंगेव नींबावतरो दो-पहरी तठा उपरायंत पुराणं अगररो छ ? जाणं रंगरेजरी हाट खुली है. चिकायो सधो मंगायज छै. सीसी खुलं जुदो देगचांमें वणायज छै. छै. मोतीपुड़ री सीपरा प्यालां मैं घात हाजर कीजै छै. सूधो बगला तठा उपरायंत हिरण खुल छै. सू लगायजै छ. जाण धोबीरै घर कपड़ा मोकळा किया छ. मांस उतार-उतार दुकड़ियां में तठा उपरायंत केसर मंगायज छे. घातजै छै. मिरच धारणा सूठ लूण हळदी स केसर किण भांतरी छै ? अराकरी वेसवार दोज छ. दहीरो रजबो दीजं छ. किसटवाडरी, कासमोरी, जाडो लकड़रो कठोतो मैं सुदवक राख छ. पांखड़ीरी वटवों डांडोरी. स केसर चंदणरासूकड़ासू जेलळमेररा पोरीसा तठा उपरायंत खरगोस होसनाक वाट में होसनाक जुवान घसै छ, ऊजळ रूपोटां है. मछळांद मिटायज छ. नान्हो छन में उतारजे छ. देसौतारै मुहाई प्रागै देगचांमें घातजै छै. माहे वेसबार हळद राखज छ. तिणरा तिलक कीजै छ. धारणा सूठ मिरच जाइफळ तज लांग पाड़ा काढजै छ. छ. सींधो लूण दही साथ दीजै घात छ. तिलोर तीतर करचानक मुरगाबी तठा उपरायंत बाकरा उणहीज होसनाक वरणावै छै. पोटा चीरज छ. दरखतासटांगणा कोज छै. बाकरा खूल्हे पेटाळजो चीरजे है. मुहड़ में हींग भरज छ. जाणं रूईरी बरकी वौपारी खोली छै. पेट में जीरो भरज छ. पांखां समेत छ. मांस उतार उतार पासे राख छ. देगचामें बाफ छै. तरवाररा पटदळां माहिसू कटामोहासू छुरी काढजै छै. मांस छून-छन तठा उपरायंत तीतररोमांस सिला पास कोजे छै. मोरां पसवाड़ा पीडारो ऊपर वांट पलीधो कीजै छै. दुसरो मांस देगचामें घातजै छै. हडोईरा मांस मांस न्यारो-न्यारो वरणायजे छ, घरणा पासे चरुवामें घातजै के.सीरा होसनाक मसाला दीजै छै. लवारो मांस होरानाक सुधारै छै. दुयजै छै. गरम पाणीस सुधारै छै. बकरांरा फीफर गरम धोयज छै.चीर-चीर देगवांमें घातजै छै. पारगोसू धोयज छै. ललाई मिटायजे है. प्रोझरा धोय-धोय माहे मसाला मारियो पासे देगचांमें राधजै छै. घणो घी मांस घात दवगर कीजै छै. पूल प्रांतां बेसवांरां मसालांसू वरणायजै छ. सीकां अवल धोयज' छ. ऊपर। दूसरी प्रांतारी पास वर्ण छ. आडा डोरा धीरा दीज साटा गूथज छै. मसाला चरायज छै. है. मांस रझतेरी खसबोय फूठने रही रजवो दहीरो दीजै छै. छं. त्यांरी खमबोय लेवरगनू तेतीम कोड़ देवतागरण गंध्रव होसां खाय रह्या छ. तठा उपगयंत सुबर खोलजै छै. भांत-भांतरो मांस वरणायज छ. दैरा साटा ऊार छै. सू कुणा भातरा दीसे मांडा Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ miat गंगेव मीबाबत दोपहरी कर है. ते घणो नान्हो छुनियो मांस मंदी यांव कढाईमें तळजै है. बेसवार मसाला घात उहां मांडांमें बातजै छ. तठा पछे मांडा ग्रंथ समोसा वणाय तजै छ : तठा उपरायंत सीरो-पूड़ी व छे. सोहित सारू देवजीभि जोयर्ज छं. विरं सारू चोखा मंगायी छे, पुलाब are कमोद बीराजे छं. काठां गोहुवारो आटो मंगायजै छं. सू नाळेर गरा गोळवां रोटा वरणाथर्ज छं. मूंगांरी पातळी दाळ घरणा मसालांसू कीजं छे. तुवररी दाल छूटां चावळा पां rain की छं. छूटा चावळ रांधारे पगां वासमती मंगाथर्ज छै. पातळा रोटा जुदा ही वरण रह्या छे. ठाम ठाम देगचा चरू चढ रह्या छै. मूंग जुदाहोज देगच में सोमं छै. सू मूंग किरण भांतरा छँ ? मगरैरा नीपना, भरतरं खेतरा, हरियै रंगरा, चुंवळा जेवड़ा, इग भांतरा मूंग हाथां रळकायजै छे. चुरण - वीण कांकरा काढजै छै. सू मूंग होसनाक वरगाव है. अनेक भांतरा छतीस भोजन व छं. निजारे पाणी आटो गूं दर्ज है. तैरा रोटा करर्ज है. रोटा भोर पो 'की छे. ताप कढाही में तक है. फेर भोर कट छाण मांहे बुरो घानजै छै. घात चूरमो कुतवी वरणायजं है. १३ तठा पर्छ सिखरणरै पगां दही बांधो थी तेरी गळणी खुलै छै. मांहे बूरो घात अधोतर रूमालसू द्याराजे है. मसाला मांहे लांग इळायची मिरच घातजै छै. इरा भांतरो सिखरण कर मटकी भरी छै. हडोई ऊपर चीलका कागला झड़ाफड़ करने रह्या छै. तिका कागलानू मलूकजादा कुवर गिलोलांरी बोटां कर रह्या छे. इभांत तमासो करतां पाछलो atafat श्रय रह्यो द्वं अमलोरो चखत व छे. तद खिजमतगारांने हुकम हुवी - सताबी सूं हर संकरो तयार कीजै. सू हरसंकरैरी तयारी कीजे है. सू हरसंकरो किरण भांतरो छे. भांगेसुर घोटियारी पींडी घरी मसाला समेतरी आजै छै. गळिया अमल में भांग गाळ छं. फेर दारुसू उलटाय कोढजे छै, रूमालस तिवारा छारराजं है. तयार कर पीतळरा कळस भरीजै छै. सिरदारां प्रागै प्रारण मेलजै छै. ऊजळा रूपोटा में घात मुनहारां सारा साथने पायजै छै. སཱོ किपा अंक सरदार जुवान छै ? पाका पाका वरियामांनू, अजरायल खींवरांनू, डाणहुला डाकियानू, करवंतांनू, लोह घड़ों लाह पर बालानू, लोली देता, कटारी उगराइ खाता, पचासा बोळावियां श्रावे प्राध वाढ उतरियां जियांरा पांच-पांच हजार दाम Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ खोची गंगेव नीबापतरो दो-पहरौ पाटा-बंधाईरा पाटेदार खाय चुका छै. पांच-पांच से हाथ कोरी पाटांनै लागी छै. इण भांतरा रजपूतांनै अमल सिरदार प्रापरा हाथां करावं छ. धरणे चोजसू मन लियां मनहारां की छ. दिल हाथ लीज छ, अमलां गहतंत हुवा छ. मातै हाथीज्यू झोटा खाय रह्या छै. फुरणी वाज रही है.कोसा लाल चिरमी हुवा छै. प्रांख्यां छिटक रही छै. मधरै-मधर हुक्कांसू तमाखू खायजै छै. गल्हां कीजै छै. फिर पाया छ.हाथ पग मिटीस उजळा कोज छै. कुरळा कीजै छ. सिंभयावांदरणरो वखत हुवो छ, वनाती पासण विछै छै. पीतलरा भरतरा धूपिया मागे प्राण मेलजै छै. गूगळ बतीस मसाल सहित खिवै छै. खसबोई महक रही छै. देई-देवता खसबोय ले रह्या छै.बनातरी गऊ-मुखीमें हाथ घातियां आपरै इष्टरो ध्यान-सुमिरण कर परवारिया छै. जाजमां प्राय विराजै छै. तठा उपरायंत मसालां हुई छै. दुसाखा हुवा छै. मसालचियां प्राण मुजरो कियो छ. नजर दौलत छड़ीदार कर रह्या छ. अमरावां सिरदारां खिजमतगारां सारां ही प्रारण जुहारमुजरो कियो छै. सारा ही मुहडै प्रागै विराजमान हुवा छै. तठा उपरायंत सूळांगरियां होसनाकांनै हुकम हुवै छै-जाजमां कनारै सूळां तयार करो, सू हिरणारा मगर पसवाड़ा पीडांसू मांस उतारज छै, छूांसू छुण छै. सू छुरी किरण भांतरी छ ? पेसकवज चकचकी रूमी विलायती म्यानां माहां काढजे छै. तिकारा दस्ता किण भांतरा छ ? मोहरैरा गुरड़ोदगाररा संगरेसमरा माहीदांतरा रूपैरा सीपरा जड़िया तर-तररांदसतांरी भांत तिकां छुऱ्यांसू मांस छाजे छै. मसाला वेसवार लूरण चरायजै छै. दहीरो रजबो दीजै छै. तरगसां मांहां सीकां काढजै छै. बेवड़ा ठीहां चाढजै छै. बीच खीसरी भरती दीजै छ.सू तसु वीढ सीकां ऊपर चाढ छ. प्राड हाथ डोरा घीरा दीजै छ,इण भांत सूळां वणे छै.वडी देवगिरी थाळीमें उतारजै छ. तठा उपरायंत दारूरा घड़ा मगायज छै. सू दारू किण भांतरो छ? अराकरो वैराक संदलीरो कदली पूलरोअतर बाती बझैधु वाधोर तिवारारो काढियो,बोदी बाड़में नाखियां जग उठे. बापरो पियो बेटो छिके. प्रसवाररोपियो प्यादो छिक. राजा पीवै परजा छिकं. इण भांतरो पहलड़ो तोडेरोधातो, सू दारू केसरिया गुलाबियारां दाव दीजै छै. मुजरा कीज छ. मूनहारां हुवे छै. मतवाळा हुयज छै. उपरा उण भातरां सूळांरो थाळ वीचमें लाया छै. मोछण-लुगार हुय रह्यो छ. चोळबोळां हुयज छै. तठा उपरायंत देसौत फेरांसारा तठा उपरायंत हवलदारां अरज Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीवी छे - भुजाई तयार हुयी है. धाप फुरमायो छे पांतोटा नाखो, बाजवट थाळ मंगावो. पांतोटा नाखिया छे, भागे बाजवट मेलिया छे. त्यां ऊपरं रुपैरा पीतळरा थाळ जळसू खंखोळिया मेलिया छे. सिरदार पांतोटा प्राय बैठा. छे. रहड़वां घातिया देगचा चरू आणजे छै. परीसारारो हुकम हुवो छे. सारं साथने सरब वसतरी परीसारो हुवे छे. पांच-पांच दस-दस इकलाळिया दांइदा भेळा बैठा छे. मुनहारा हुय रही है. धरणी फीनसताई चोज लियां आरोगजं छे. दारा दाव वीच वीच लीजै छे. गोळियांरी खाटखड़ लागने रही छे. मुसालांरो चानरणो वरणनै रह्यो छं, जारी सरदरी पुरणवांसी खुली छे. - खीची गंगेव नींबाबत दो - पहरौ फेर हुकम हुवै छै. महताबारो चांदणो हुवे. सू महिताबां पचास सव सांवठी ही लागी छे. जाणं जेठरो · दो पहरो खुलियो छे. इण भांतरे चांद में जीमरणरो होंस मारगजं छं. दारूसू मतवाळा सिरदार लाहरता बोलै छै. इण भांत प्रारोग परवारिया छै. थाळ बारियां उठाया है. हाथांरी चीकरणाई उतारण पगां मूंगांरा थाळ मंगायज छै तिरा मांहे हाथ मारजे छे. मसळ चीकरणाई उतारजे छे. तठा उपरायंत पाला भारा चळू करण रैपगां मंगायजै छै. चळ कीजै छै. कुरला की छै. हाथां लोहरणन् रूमाल हाजर हुवा छै. हाथ पूछजे छ. इतरैमें तंबोळी वीड़ा प्राण हाजर किया छे. तिके पान किरण भांतरा है. मघी दखणी तोडेरी बाड़ीरा नीपता. तिकारी बीड़ी ब छे. मांहे कपूर चूनो काथो सोपारी घात बीड़ी सिरदारांने दीजे छे. खुस वखत हुवे छे. - · कवीस्वर आसीस दिये छे-अखे न दाता ! ध्रुव मेर ज्यू अटळ, चंद सूर पवन पाणी ज्यू जुगे-जुग राज करंता जुजठळ-वाळा जाग ज्यू, १५ दिल धाई श्रासीस दे, कवि जंप जै अनं घ्रत छिले अपार | दस कूप समो वापी, - कार || दस वापी सभी सर । दसां सर - वरां समी किन्या, न - दान विसेखत ॥ इण भांतरी अनेक प्रासीस दिये छे. सो गहरे साद कविराव बोले छै जारी नगारे डंको हुवो कना भेर घाव gat. इरण भांत कवराव श्रासीस देवं छै. तठा उपरायंत श्ररगजो मंगायजे छै. सू अरगजो किरण भातरो छै ? चौखे चढगारा मुठिया गुलावर पाणीस रगडी है. मांहे कपूर कसतरी घातज है. केसर रंग दीजै छै. संधै चमेली Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ मेलवणी दर्ज है. इरण भांतरे मरगजो रूपेरा रूपोटां मौह धात प्रारण हाजर कोजे छे. प्ररगजो लगायजै छे. tet गंगेव नबाबत दो पहरौ तठा उपरायंत माळा फूलांरी छाबां प्राण हाजर कीजं छै. सू फूल कुरण भांतरा छ ? हजारा नौरंग तुररो मेहदी किलंगो सोनजुही इसकपेचो. खेरी कोयल मालती चांदणी मुखमल परगस हवास गुलमनार दाऊदी के वड़ो और ही अनेक भोतरा फूलारी माळा किलंगी छड़ी सेहरा गुथिया छै. सू सारे साथने बकस थे. फूलांरा चोसरा पातर्ज है. छड़ी हाथांमें विराज रही छं. तठा उपरांत कवरावाने नवाजस हुवे . घोड़ा ऊठ माळा कड़ा सिर-पांव fथरमा बकसीजे थे. तठा उपरांत प्रगुवां वाजदारांने इनाम दीजै छे. मात्रीने मोहताद दीजै छै. सारांहीरी ग्रास- उमेद वर प्राणजे . • इत्तरैमें सात घड़ी बाजी छे. आठवीं अमल छै. सिरदारां- रजपूतां अरज करायी छै - प्रसवार हुयजै, साथ सारो श्रमलां गाढो सदोरो छे. तरां आप उठिया छे. मार्त गजराज ज्यू होंडता थका खवास - पासवारणारे हाथ ऊपर हाथ दियां घूमता थका घोड़े पधारे छ. साहणी घोड़ो प्रारण हाजर कियो छे. पागड़े पग दियो ले. असवार हुवा छै नगर -भर घाव हुवा छे. सादिगारगा बाजे है. जागो ग्राभी गांजे छे तुरी करनाल रणसींगो वाज रह्या सहनाय मांहे खंभायची हुय रही छे. साथ सारो श्रमलांसू लल्हरतो थको वहै. छे. वधाईदार भागे वधाइयां छे. सू बधाई प्राण दीवी है. तठा उपरांयत कामणी हरख मरण उबरणो करे छे. पीठी सिनान करे छे. reat लगायजै छे. सीस गुथायजे छे. बाळ-बाळ मोती सारजं छं. हाम काम लोचनी प्रांभरी बीज. भादुवैरी प्राकासरी परी, मोतियां सरा. ऋत्यां भू बखो. पूम्यरं चंदसो मुख. थाको हंस. असील वंस. बेसुध भैसी सुध. सु श्राभरण पहरे छे. जरकसी साढी, प्रतलसी चरणो, केसरी अगिया, घर विराणपुरैरी कोर पटै लागी थकां सीस ऊपर हीरारी सीस- फूल बणायजै है. मोतियांरी मांग भरजे है. ललाड़ ऊपर अरधचंद्र विराज रह्यो छ. केसर सी. खोळां कीजै छे. हींगळूरी बंदी दीजं . वांका लोयरणामें अणियाळो ठास सजै छ . जड़ावरी लड़ी दांवणी झूटा झू बरा प्रलोक वा रह्या छे. मोतियांरो हार चीढ पंच-लड़ी विराज रह्या छ. जड़ावरा बाजूबंध कांकरण रतन चौक ग्रारसी वींटी विराज रही है. व त्रुड़ो सोनेरी बंगड़ीदार विराजे है. जागे काळी घटामें वीज चमके छै. कट मेखळा जड़ाव री सोहे, छै. सोनेरी पायल Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पग-पान पोलरी प्रणखट पगां विराजे . माभूखण असा विराजमान हुवा छै जाणं मेर गिर दोळी नखत विराज रही छे. माळ ater गंगेव नबाबत दो - पहरी हाम काम लोचरणी उलाळी प्राकास जावे. चावळरो चौथो हैंसो खावै. तंबोल विना खाधां प्राहारा विकार थावे. · माडी मोडो कटारीरी पड़चळी समावै. - उतरवाव वाजे दखरणने लुटं. चोवा सेवा जेतो वीचसू भाज जावे. इसी इसी खोडस वरसांरी मुगधा मध्या प्रोहा रूपरो निध्यान. जाका मलूक हाथ-पांव. जंघा कदळीको ग्रभ. बांह चंपारी डाळ. सिंघ सी कमर. कुच नारंगी. नख लाल मलोला. ग्रीवा मोर सी. बोली कोकल मी. अवर प्रवाळी. दांत दाड़मी-कुळी. नाक सुवारी चांच. नाथरा मोती जाणे सुत्र ब्रिहमपत सारखा दीपे छे. जागे लाल कंवरी सबोय लेवरण सेत भवर ग्राया है. घ सा नेत्र. मीन जैसा चपळ. भूह जा इंद्रधनख छै. मूख पून्यू रे चंद ज्यू सोळ कळा संपूरण छँ पेट पींपळ पान है. १७१ पासा भाखरारी लोथ छै. नितंब कटौरा सा है. नाभी मंडळ गुलाबरो फूल सो छ. साख्यातरी पदमरणी. कना रंभा सी. सरंगरी उरवसी. सी कामणी पोसाखां कर मोहला माहे मैरावतीरी पील. चोसां च्यारां खुरणां जगाय पान चावै है. चांदणीरा विछावरण खुल रह्या छै. ऊपर बनात कलाबूती चांदणी रूपैरी चोभांसू खड़ी की छे. सोनारो पिलंग कसरणां कसियो है. सो सोहेक सोभायमान दीसे छै ? जाणं खीर-समुद्ररा भाग छै. प्रोसीसा itsar कैसा विराजे है? जागै सोगीमल काबा समुद्र में केळ करै छै. इण भांत कामणी पोसाख विसायत कियां बिराजे है. जिसमें प्रसवारी प्रारण उतरी है. सारो साथ मुजरो जुहार कर घराने पधारं छं. घोड़ा पायगा लगायज लै. गंगेव नींबावत भीतर पधारे छै. खमाखमा हुय रही है. आरण ठोलिय विराजमान हुवा है. मुंहई धागे पातरां पोसाख कर साज बाज लियां खड़ी है. हुकम हुवो है. राग-रंग हुवै छै. छह राग, तीस रागणी. मूरतत्रंत खड़ा हुवा . सात सुर तीन ग्रामरो भेद वणियो छै. भाव दिखावे छे. फेर दारूरी मुनहार राज- लोक करें छै. तटा उपरायंत सारी राज-लोक मुजरी कर बोहर्ड है. जिगरो वाटो Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ना खीची गंगेव नोंगावतरो रो पहरी सू हजूर रहे छ. सुख कीजै छ, रस नर सुर नाग न घट्टियां, लीज छ. केसरिया दुपटा प्रोढ सुखसू काळे केहरियाह । पौढजै छ. परभात हुवी छ. अमलारी जळ पूरिय पखाण ज्यू बायहसूअांख खुली छै. दरबार पधारे छै. साथ सारो मुजरे पावै छै. मुजरो . गल्हा ऊबरियांह । लीजै छै. अमल कीजै छै. गोठ मजलस भलियू भला, नरांह अमलारा बखाण हुयनै रह्या छ. फेर , लांबीयूं लांबा नरां। ही कोई राजवी माणगर हुवै सू इण मुळवा मुवां पछांह भांत ऐस माणज्यो. वाता रहिसी वोच उत ।। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामदास बेरावतरी आखडीसे वात अथ राव प्राखडीरी वात लिखते । रामदास वेरावतरी गांव दुधोड हुवो राव श्री रिडमलजी रे पुत्र हुवा. बेराजी रे पुत्र रामदासजी हुवा. गांव दुधोड़रे खेड़े थापना कीनी. वडो एक प्राखाड़सिध रजपुत हुवो. विरदधारी रजपुत हृवो. रामदास वेरावतने उगरणीस विरुद हुवा. तिके विरदारा नांव - १. प्रथम पाखरीयां विना रहणो नहीं. २. दुजो सबलां उथांपर ३. तोजो निबलां थांपर. ४. चोथो जाचक जण तरवर. ५. पांचमो परनारी सहोदय. ३. छठो चरु सुगाळ. ७. सातमो सुखी. ८ आठमो सररणाई सोहड. ६. नवमो विरद प्ररणभंग. १०. दसमो पंथरी बोर. ११. इग्यारमो वेरी बकारने मारे. १२. बारमो पराइ लुगाइ माता समान. १३. तेरमो अगंलीयां गंजरण. १४. चवदमो छतीस प्रावध ढावरण. १५ पनरमो ग्राखाड़ सिध. १६. सोलमो गजघटा भांजरण. १७. सतरमो प्रासेसरमने. १८. अठारमो मनोहर. १६. उगणीसमो लाखां परछभा पंचायण. उगणीस विरद कया. हिवे चोरासी प्राखडी कहे छे १. च्यार लुगाइ उपरंत परणयारी श्राखडी. ३. ४. ५. ६. रुपा सोनारा थाळ विना जीमगरी आखडी. पोतळरो में जोमारी ग्राखडी. मलयुद्ध कीयां विना रहवारी. आखडी. तलवार पकडवारी ग्राखडी. जेठीमधु विना दांतरण करवारी प्राखडी. ७. खांडो खुरसागरो सेल सेर पनरे बाधरणो, नहीं तो बीजो बांधवारी श्राखडी. · ८. छतीस प्रावध चालतां सेर बीस रो प्रहार करने चालणो, नहीं तो श्राखडी. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामदास वेरापतरी मालमेरी बात ६. दिनमें पोहर सुवरणो, उपरंत ३१. दूधको वोलणरी पाखडी. पाखडी. ३२. मारग हालतां टलवारी पाखडी. १०. रातरे पोर एक सुवरणो उपरंत ३३. मऊतरो धन लेवारी माखडी. प्राखडी. ३४. खटबलमाल लेवारी माखडी. ११. बाजरी भुजाइमें वापरबारी ३५. गांव फिलसो देवारी पाखडी. प्राखडी. ३६. सीव मांहसू बलद गांवमें लावारी १२. गोव भुजाइ सगला साथने हुवा प्राखडी. विना जीमणरी प्राखडी. ३७. विखे विमाण गांव छोडवारी १३. सकर विना भुजाइ करवारी प्राखडी. प्राखडो. ३८. काम पडीयां वगतर टोप पेरवारी १४. पाछलो रात हल उछरतां भुजाइ पाखडी. कीयां विना रहवारी माखडी. ३६. केसरीया वागा विना पेरवारी १५. होके कीयां विना रहवारी पाखडी. . प्राखडी. १६. सगला साथने अमल कसुवो ४०. दांतरा चुडा विना वडारण कीना विना रहवारी पाखडी. राखरणरो पाखडी. १७. कटारी बांधवारी पाखडो. ४१. घुडवेल वेसवारी अाखडी. १६. साप सापणी भेला पकडवारी ४२. गांयारी घासमारी लेवारी माखडी. प्राखडी. १६. लुगाईरे नांवे वसा भाभडवारी ४३. चोर दीठां मेलणरी प्राखडी. पाखडी. ४४. कामरे माथे- रजत निकले २०. सरसे घोड़े चढवारी माखडी. तिगरो मुङो देसारी माखडी. २१. काछी घोड़े चढवारी प्राखडो. ४५. रजपूतरो रोजगार" राखणरो २२. पालची चढवारी माखडी. प्राखसी. २३. कपूर विना पान चाववारी प्राखडो. ४६. सरणे प्रायां काट देणरी प्राखडी २४. लुगाइसु रातमें एक बार भोग । करणो, उपरंत करवारी पाखडी. ४७. रजपूतरो मुकातो लेगरी माखी. २५. किसतुरी विना रहवारी प्राखडी. ४८. चोहटे घोडो नखुरी करावणरी २६. फटा कपडा सोवणरी माखंडी.. पाखडी. २७. साथने वल हुवा विनां जीमणरी ४६. पिण्घट ऊभा रेहणरो पाखडी. ___ आखडी. ५०. सोमवार विना खिजमत २८. वावड़ीरो पांग्णी पोवणारी आखडी. करावणरी पाखडी. २६. वेहती नदीरी पाणी पीवणरी ५१. बारे वरस ताइ वेदो कंवारी पाखडी. राखणी उपरंत राखवारी प्राखडी. ३०. भूखारो मुहडो देखगरी प्राबडी. ५२. तुरव ने बेटी देणारी पावडी. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामदास वेरावतरी माखडोरी बात २३. बेर वाढ विना वाढीया रहवारी १ माखडी. ५४. कूड बोलणरी प्राखडी. ५५. चडयां ऊभा जुत पिहरणरी माखडी. ५६. सांढोयां दीठां मेलवारी पाखड़ी, ५७. ढोल वाजीयां ऊभा रेणारी आखडी. ५६. सातसे वेरी माथे राखीयां विना रहवारी प्राखडी. ५९. वांसे खेद दीठां जायगासु खिसवारी प्राखडी. ६०. दोनां दलां विचे पग चतारदारी पाखडी. ६१. रोला में निकलवारी प्राखडी. ६२. भाजे तिण लारे जावागे आखडी. ६३. मामलाने विना वकरीयां लोह करवारी प्राखडी. ३४. लोहडा विना मारवारी प्राखडी. ६५. एक पाव विना लोह करवारा प्राखडी. ६६. माल वाय जाय तिराने मारीयां विना रेहणेरी माखडी. ६७. धोला केल दीठां जीवणारी आखडी. ६६. पोतारो मुढो दीठां जीवणरी माखडी. ६६. धाडो प्राणीयां वासी गखरगरी प्राखडी. २. मेवासीयांग गांव मागेयां विना रहवागे पाखडो. १. देसरा धरणीने काम पडे तरे ऊभा रेगरी प्राखडी. ७२. सूरजरो मुढो दोठा बिना जीम गरी प्राखडी. ७३. मुहडासुकिणने गाल काढणरी पाखडी. ७४. चारण भाटने विना काम विदो खणरी पाखडी. ७५. लुगाइने विना खुन मारवारी प्राखडी. ७६. मोज देने पाछी लेणरी पाखडी. ७७. जीमतां भाणे मांहे कालो नीकले तो अटो मेलणरी प्राखडी. ७८. रुपीयांरो व्याज लेवारी आखडी. ७६. धन सवारो पाखडी. ८०. तमाखु पीवणरो प्राखडी. ८१. जुवा रमणरी प्राखडी. ८२. विना चुप हसवारी पाखडी. ८३. - निबलाने मारणरी पाखडी. ८४. प्रापसु चढतो हुवे तिणसु लडवारी पाखडो. इतरी प्राखडी रामदास वेरावत प्राखाढ सिध रजपूत सुरवीर दातार तिए इसडी पाखडी पाली गांच दुधोड़रा दरवार प्रागे सिलाउगरणीस गज लांबी , पाठ गज चबडी छे, तिण ऊपर रामदासजी बेसता.तिकी सिला पडी छे. तिरण ऊपरे रजपुत बेसे तिको इसडी पाखडी पाले, तिको इज बेसे नहीं तो तलाक छे. गांवरो धणी पाटवीने छे. और लोक नचंत बेठो व्यापारी नचित बेमो देसोतने तलाख छ । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रामदास वेरावतरी प्राखडीरी बात बोलेंगे. तरे महेची कयो-मीयांजी हमारा भाइ सांढीयां लेवेगा. हिवे मीयां वुढरण जालोर राज करे, पांच हजारी रो मनसोवो छ, साथ सरांजाम वीजो घणे छे. अमल धरती में निपट करड़ो छे. वडी बढेरो करणहार छे. तिएरै सांढीयां हजार सात छे. तिको गांव देवु रहे छे. एक समे मीयां बुढण महेचारे परणीयो छे. तिको उणरो नाम बाइ लाडु छे. उणसुमीयां बुढरण चोपड रमे छे. सो बाइ लाडु रे डारण । पड़े नहीं, तरे बाइ पासो वावती कयो पासा तोने रामदास वेरावतरी प्राण छे. पोबारा पडीया तरे लाडुबाइरी जीत दुई। चोपड़ रमतां इसा सामाचार मीयां रे महेची रे हवा. तरे महेची चारण घर रो बुलायने रामदास जी रे कने मेलीयो ने कयो, इसी तरे- विरदा. यने कहेजो बाइ लाडुरे ने मीयां बुढणरे चोपड़ रमंता इसी बतलावरण हुइ छ, सो जारणसुराज मोने मोहरे कांचली दीनो अमर कांचली दीवी. ए करसु मारो बोल ऊमर प्रांरगजो. इसी तरे कागद लिख मेलियो, चारण साथे. सो कागद वांचने रामदास जी तिरणहीज वीरीया हेरु मेलिया, अने कयो अनतो सांढोयां लीयां वसां. चारण ने घोड़ो सिरपाव दे ने सीख दोनी पधारो बाइने जुहार कहेजो, तरे मीयां बुढण पुछीयो-रामदास वेरावत कुरण छ ? कठे रहे छ ? तरे महेची कयो- रामदास वेरावत माहरे भाइ छे. बडो रजपुत छे. तिणने चोरासी पाखडी छ, उगरणीस विरद छ, बडो सतधारी रजपुत छ, माहा सूरवोर छे, वडो प्राखाडसिध रजपुत छ. . तरे मीयां बुढण कयो-प्रेसा सुमारा भाइ हे तो हमारी साँढीयां लेवेगा? तरे महेची कयो-हमारा भाइ ऐसा ही हे सो तुमारी सांढीयां लेवेगा. मीयां कयो-खुब हम भी देखेंगे। हमारी मांढीयां लेवेगा तो बडो रजपूत विरद धारी जांणगे. तिरण ऊपर महेची कयो- तुमारी सांढीयां ले जाय ता तुम रजपुत जारण जो. अबे पाछासुदुधोडसु तीनसे असवारा स रामदासजी चढीया. प्रसवारा पुरी सिले करने चढीया ए काम प्यालारो पीवणहार छे कालीरो कलस छ, जाता पवन स लडे, जीव ऊपर उठा फिरे, तिमणे पग चांतरे नहीं, पुट फेरे नहीं. इण भांतरा असवार चढीया तिके जायने गांव देवुस सांढीयां लोवी. पछे रवारी ने कयो-सात हजार सांढीयां तिरण घरणी ताती सांट हवे तिरण ऊपरे चढने मीयां वृदगा ने जायने कहजो रामदास वेराबत साढीया लावी. गांव दुधोड़रो धणी लाइबाइरो भाइ तिगा सांढीयां लीवी. रबारी प्रायने कयो मीयांने वेगा चढो. तरे मीयांने समाचार हुवा तरे मीयां तरे मीयां वृढगा कयो-हमारी मांढीयां लेवेगा तरे हम तुमसे मुह Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामदास वेरावतरो भाखडोरी वात फोजरो घमसांण करने रामदासजी हुइ. सो इको सिले ठोय करने आयो छे. ऊपर चढोयां. रामदासजी ने पाखडी सो रामदासजी आवतारे बरछी वाहो. छ, खेह दीठां खिसगो नही. सांढ पिण सो इको घोडो फुटने बरछी जाती थको एक व्याइ सो सांढ ऊभी छोडने जांगरी धरतीमे रुपी. दोइ इका मारने रामपाखडी. तरे तोडीयाने पखालने सांड दासजी प्राधा खडीया. पाछासुमीयारी ऊपरे घाल लियो ने आगी खडीया. असवारी पाइ. फोज हजार पांच सात इतरे खेह उडतो दोठी, तरे रामदासजी लारे छे. सो मीयां इकां देखने इका कने ऊभा रया. इतरे मोयां राइका बाहदर प्राया. आगे देखे तो इकारे लोह कोइ दोय पारण पोहचा. तरे इका बोलीया नहो ने भात समान ऊभा छे. बरछींसु प्रबे खडे रहो, कहां जावोगे. तरे पोया छे. इसी तरे मोयां वुढरण लारासु रामदासजी सोले असवारांसु ऊभा देखने फोजने कयो इण रजपूतसुकोइ ग्या. बाजा सारा साथते सीख दीवी. हाथ जोडने लडेगा. तब साथरी तो कयो सांढीयां ले जावो. पाप राम- सांरारी इका देखने निरासां हइ. दासजी ऊभा रया. इतरे इका आरण रामदासजी ने किरण ही प्रासंग्या नही. पोहता. तरे रामदासजा वकारीया तरे मीयां पाछा वालीया. रामदासजी मीयां भला माया, स्यावास थाने. अवे सांढीयां ले ने दुधोड़ आया. इणाने वाहो. तरे इका बहादरां कयो रामदास तो पाखडो छे, धाडा बासी राखणो तुम वाहो. तरे रामदासजी बोलिया नहीं. सांढीयां रजपुतांने वेंच दीनी, सिरदारां इण इकाने मां पेहली लोह चारण भाट खटवनांने वेंच दीनी. देता करो मती. तरे रामदासजी कयो तिको देतां सुरज प्राथमारण लागो. रावळा में कबुल कीयो. इतरे इको घोडा हजार रसोडो तयार हुवा. इतरे चाकरां पांचसुचढीयो आयो. हाथ में सांग मरण प्राणने कयो रसोडे पधारो. रामदासजी एकरी लीयां थकां प्राण पोहतो. सो पुछीयो सांढीयां लारे कितरीक छ, तरे एकरण कांनी हजार पांच फोज, एकरण रजपुतां प्रधांनां कयो सांढीयां हजार दोय रही छे. तरे रामदासजी प्रोडांने कानी एक इको इसोप्राक्रमी पोरस छे. बुलायने कयो सांढीयां ल्यो अने तलाव सावंतरूपी छे. इसा इका प्रोहता तरे खोदो. तरे सांढीयां प्रोडांने दीनी. पछे रामदासजी बोलीया इका बाह करो. सारा साथसु रसोडे प धारीया. यांहरो धन लीधो छ, सो पेहली तु सांढीयांरा भावरो दुहो. वाह. तरे इको मरण दोयरी सांग बाहो. सो सांग रामदासजी ढालसु प्रोझाटसुटाळ दीधी. पछे रामदासजी संबत पनरेसे चोपने, बरछी फेरने बुडीरी दीधी इकारे. प्राणी झोक दरक । छातीमें. सो सास जातो रयो. तरे तलाव खरणायो वेरा तरणे, बोजा इकारे ने रामदासजीरे वतलावरण जाणे लोक खलक ।। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ रामदास बेरावतरी श्राखडीरी वात बात मियां बुढरण पाछो जालोर श्रो. बीबी महेचोसु मिलियो, महेची समाचार पुछीयो, मीयांजो हमारा भाइरा हाथ दीठा. मीयांजी बोलिया अब तुमारा भाइ कनासु सांढीयां मंगा दो. तब महैची बोली मीयांजी कछु भोला हो ? उरणने प्राखडी छे, ॥ इति उगरणीस विरुदवारी रामदास वेरावतरी चोरासी श्राखडी तिके संपूर्ण " घाड प्रांणीयो वासी राखणो नहीं सांडीयां तुरत वेच दीनी, उरणहीम वेलां. इसो सुणने मीयाँ सांढीयांरी आसा छोडी पछे रामदासजी वरस २५ (?) में हुवा तरे पातसाहरी फोजसु लडने कांम प्राया । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतसे वात-बणाव परमेसर प्रणमूप्रथम देवां सिरहर देव । सारदा गुणपति समरि सत-गुरची करि सेव ॥१॥ दिनो सेत वरदान तू परमेसरि प्रसताव । राजानारी रस-कथा विधि कहि वात वरणाव ।।२।। अथ वात ॐकार महादेव परमातमा परम सिच परम सकति प्रचळेसर प्रचळ प्रासरण कियौ. तिण थांनकरी ठौड़ नंदीगिर हेमाचळरौ बेटौ दूसरौ मेर गिर अढार गिररौ 'राजा बाबू गिरंद कहीजै. तिणरै बसणे ऊपरि ईसवररा अवतार महाराजा राजेसर राज करै. तिरण राजेसर राजा महारांणी महामाया पटराणी तिणरा पेटरी नीपनौ कुपर गुर पाटपति कुपर श्री राजान कुअर-पदो भौगवै. कामदेवरी मूरति नब कोटी मुरधररा पति नरेस अनेक विरद विराजमान । प्रथ काव्य भाले भाग्य-कला मुखे ससिकला लक्ष्मी-कला नेत्रयोः । दाने देव कला भुजे जय - कला जुद्धे प्रतिज्ञा - कला ।। भोगे कोक-कला बले गुण-कला चिंतामणी सा कला । . काव्ये कीर्ति-कला तव प्रतिदिनं क्षोणीपते राजते ।। वात खट-त्रीस वंस राजकुळी सिरोमणि सुरज वंसी राजान मारवाडिरा नव कोटरी कुराई जळाबोळ राज-पदवी भोगवै. राज-पाट सिंघासण छत्र डंड माथै सेत चामर इळावीजै छै. सेत वानां सेत नीसारण सेत झंझा विराजमान हुमा छ. तिण राजांन जाउतरा वात वणाव वखाणीजै छ। तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति तिण राजांनरी राजवट च्यार ठिकाणे Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ राजान राउतरो वात-वरणाव विराजमान दीसै छै. पांच कोट पट किया छै. राजथान नंदीगिर सिवपुरी मंडोवर अजमेर जाळिधर सारीखा पाइतख तवरणीज छ. गदाल सहर गढ कोट बाजार पौळि पगार वाग वावड़ी वगीचा कूमा सरवरांरी वड़ा पींपळारो छिबि सहररी पाखती विराजि नै रही छै. पाखती अरटारी झींगड़ि चींगरड़ि पाड़ नै रही छै. ढहारौ खटाको लागिनै रहिौ छै. पाखती नीळ वझि नै रही छ । तठां उपरांति करि नै राजान सिलामति गढ कोट चौफेर कांगुरा लागा थका विराजै छै. जाणे प्राकास लोक गिलपन दांत दिया छै. ऊंचो निजरि करि जोइजै तो माथारौ मुगट खड़हडे. तिण कोटरी खाही ऊडी द्रह नागद्रही सारीखी. जळ छैल पाताळरो जड़ासूलागि नै रही छै. तिण गढ माहे वावड़ी कूमा तळाव जळ बहळ धान घ्रित तेल लग खड़ इधरण अमल कपड़ो घणो अपार संचौ किमी छ. कोट भुरजारा कोसीस ने धमळहर धमळागिर पहाड़ ज्यौं वादळांरा कीरण सारीखा ऊजळा सीकोट सौं निजरि आवै छै. नगररा घर कोट बराबरि ऊंचा विराजि नै रहिना छ । तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति नगर मांहे ऊंचा देव सिव जैनरा देहरा मढ विराजि नै रहिया छं. ताहरा डंड-कळस धजा पताखा पासमानसूवातां करै छ, देहरा मांहे कथा कीरतन नाठक पड़िन रहिया छै. धूप-दीप को छ. पारती उतारीज छ. केसरि-चंदण चरचीजै छै. अगरउ खेबीजै छ. पंच सबदा वाजि रहिया छै. झालरियां झणकार हुइ नै रहिया छ। तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति देवळांरी पाखती धरमसाळा दानसाळा मंडीजै छै. माहे जोगेसर पवनरा साझणहार त्रिकुटीरा चडावरणहार धूम्र पानरा करणहार उरधबाहू ठाढेसरी दिगंबर सेतंबर निरंजनी प्राकास-मुनी। दूही ब्राह्मण सेतंबर वळे , जोगी जंगम जाणि । दान सन्यासी सोफिया, खट दरसरण वाखाणि ।। गोदड़ कानफाड़ जोगी जंगम सोफी संन्यासो अविधूत पंचागनिरा झूलणहार अलमसत फकीर जिके संसारन भागा थका फिरै. जड़भरत प्रतीत सम-रसरा छाकिया राम-रस प्यालेरा पीप्रणहार दया-धरमरा पाळणहार करम-जाळरा भोड़ाहार तापस प्रस्टांग जोगरा साझणहार सांत-रस मांहे गळताण होइ नै रहिया छै। तठा उपरांत करि राजान सलामति तिण सहर माहे च्यार वरण, च्यार आश्रम. अढारै वरण, खट दरसण, परम-ग्यान-पुरायण धरम धरमरा पाळणहार दया-धरमग Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव २७ राखरणहार देह साझनारा करणहार बैठा तप करै छै. अनेक सत्रकार सत धरमरा राखणहार खैराइतांरा करणहार धजबंधी कोड़ीधज लाखेसरी दौलतिवंत चौरंग लिखमीरा लाडिला लोक वडा वापारी वाहवारिया सौदागर वहराम संद साहूकार घरा सुख चैनसु वसै छे । तठा उपरांत करि राजान सिलामति तिग सहिर मांहे छत्रीस पवन जाति रहे छै तिर सहिर मां बाजार चोहटा मंडिया छै. सोना रूपा जवहर जड़ाव कपड़ा पटकूल रेसम पसमरा बाब भांति भांति विसाईजै छै । तठा उपरांति करि नै सराफ बजाज जोहरी दलाल भांति भांतिरा बाब भांति भांतिरा पदारथ भांति भांतिरी अमोलिक वसतां मोलावीजे छे. हटवाड़ेरी भीड़ हुई नै रही छे. चौहटै मांहे रंग तंबोलरों कीच मचि नै रहिनौ छै । तठा उपरांति करि नै भोगिश्रा भंगर लंजा छयल हुसनाक जुवान निजरबाज बाजार मांहै ऊभा जोहां खाए छै. चोहटै मांहै नगर-नायिका वेस्या लाख लाखरी लहरणहार सोल सिरणगार ठवियां थकां दूलांरा चौसरा पैहरियां थकां टोय श्रणियाला काजळ ठांसियां थकां वांकानैणांरी झाक नांखती पायलेरै ठमकेसु घूघरैरे घमकैसू विछीयांरै छमकै रमभोळ करतो मगूठा मोड़ती नखरा करती बाजारि चाली जाए छै. निजरां झड़ाका लागां थकां जुवानां छ्यल्लांरा मन गरेद बाज करै छै. भांति भांतिरी वेस, रसाळ, भांति भांतिरा खेल मंडि नै रहिया छै. भांति भांतिरा तमासा लागि नै रहिया छे. इरण भांतिरा मारू सहर मंडोवर सिवपुरी बिराजमान हुआ छे. कनां इंदपुरी-सी निजरि श्रावै छै । तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति इस भांतरा सिद्ध खेत गिरंद ऊपर राज पदवी राजसरा सुख कुअरपदी भोगवीजे छै तिरा राजान राजकुमार मारूनू ४ ठौड़रा नाळेर आया छै. एकलंग चित्रौड़ गढ़रा धरणीरा. लुद्रपुर पाटणरा, घाट सहररा, पुंगल नगरा डोला आइ पुहकर ऊपर उतरिया छे प्रढ़ार दोष रहित गोधुद्रिक साहो सोझाड़ियो छ । तठा उपरांत करि नै राजांन कुमारशे जांन घणै प्राडंबरसू हाथी घाड़ा वहिल सुखासरण रथ पायकरावरगाव कियां थकां बघेल जांनियांरं साथ लियां घर मोती जड़ाव जरकसी लड़ालंब हुआ है. घर सोंवें घरणी केसरि अगरचेस गरकाब कियां थकां घोड़ा रजपूतांरै घूमरैस प्राइ तोरण बांदियौ छे. तठे आगे बखांरणी निए भांतिरीं . रायजादी गोरंगीनां सोलसिणगार ठवियां बाळ वाळ मोती सारियां तोरण कळस दावे छे. मोतियै बधावे छे. प्रांखे छे 1 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ राजान राउतरो वात-वरणाव तठा उपरांति करि ने राजान सिलामति नीला माला वंस केलि खंभ सूना गलिया थका कांचनारा कळसांरी वेह करि मैं चौंरी पधराया छ. हथळेवो जोडि छेहड़ा बांधिया छ. स जारणे मन बांधिया छै. जिके वेद सरति ब्राह्मण छ स अरणो प्रगनि लगाडि होम करै छै. घणो गो-घत नै कपूररी अाहति दीजे छै. वेद ध्वनि कीजै छै. दूलह ने दूलहनी सेहरा बांधिया पूरव साहमा बेसाणीमा छै. सेहरा दीजे छै. चार फेरा फेरीजै छै. वीमाह कीजै छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति अनेक राग रंग वधाई वांटीजै छै. राय अंगण घोलहरे गेहणी घणां मंगलाचार गीत नाद खंभाइची गावै छै. छत्रीस वाजां पंच सबदा वाजे छ. तांहरा नाम तंती १ वीणा २ किंनरी ३ तंबूरौ ४ नीसांण ५ एतो पांच सबदा भाग छत्रीस वाजांरा नाम कहै छ. ढोल ६ दमामा ७ भेरि ८ भूगलि ६ नफेरि १० मदन भेरि ११ सुरणाई १२ झांझ १३ मंजोरा १४ मादल १५ श्रीमंडल १६ डफ १७ ऊड़क १७ रंग तंग १६ मुहचंग २० ताल २१ कसाल २२ तंबूर २३ मुरली २४ रिणतूर २५ संख २६ ढोलक २७ राय गिड़ गड़ी २८ रवाज २६ रावण हथो ३० पूगी ३१ अलगचौ ३२ झालरि ३३ पिनांक ३४ बरघू ३५ सारंगी ३६ करनाल ३६ इण भांतिसूछत्रीस वाजा वाजि रहिमा छै. अनेक मंगलाचार हुइ रहिया छ. अनेक दांन सनमान दीजै छै. अनेक रंग बधामणां कीजे छ. मोति चौक पूरीजै छ. वीमाह पूरो कियो छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति वीमाहरे समागम प्रथम दूलह दूलहणी मिलणरो कोड रंग-रळी बधांमण की छ. रंग महले धवलहरें पधरावी छ. छेहडेरी राति गांठि छुटी छ.सु जाणें मनरी गांठि छुटी छै. राजांन कुमार घणे हरखसू आणंदसू उछाहसू नवल रंग, नवल नेह, नवल नारि, नवल नाह प्रथम समागम सुख सेझरी वात उहां हीज जाणी पिण बोजी उण सुख उण वातां कुरण जाणे. दूलह ने दूलहणीरी जोड़ी देखि देखि नैं लोक वार - वार वखांण छै. कहै छै गंगाजी माहै ऊंडे जल पैसि तपस्या करि ईश्वर गवरिजा पूजिया छै. वळे हेमा गळियां कासी करवत लियां अंगरी असत्री अंगरो भरतार पाई छ. सु यां हेलमा तपायो छ। तठा उपरांति करिने राजांन सिलामति पनरह दिन तांई जान राखि घणी मनहारि करि भांतिगारी भगति जूगति महिमानी करि सतरह भ्रख भोजनरा वणाव कीजै छै. दोइ भांतिरा अंन १ वायो २ अड़क, तीन भांतिरा मांस १ जळजीव. २ थळजीव, ३ प्राकास उड़ण जीव, पांच भांतिरा सालणा १ तरकारी. २ मूलकंद, ३ डाल कपल, ४ पान-पत्र ५ फूल-फळी, पंड छालि, भांति भांति गोरस १ दूध, २ दही, ३ मिठाई, ४ लूण, ५ तेल, ६ हींग,७ वेसवार, ८ चरकाई. इण भांतिरा सत्तर भ्रख-भोजन कहीजै अढारमो ठंढ़ो परिणी Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो पात-वरणाव २६ कवित्त विधि अंन पल त्रिधा साग पंच मांस धारण । गो-रस जुग विधि गिरिणत मिष्ट गति ए कवि चारण । लूण तेल साख हींग सात. दस भोजन भत्तं । तिख्य अनंत गति रचे मान कुण गिणे कवित्तं ॥ संजोग एक अनेक सुचि षट रस षट विधि नेत सुचि । सुह विधि रसोइ समुझे भता सुपह प्ररोगै अन्न रुचि ॥१॥ तठां उपरांति करि नै राजान सिलामति भांति भांतिरा भोजन जाति जातिरा मांस जाति जातिरा पकवान जिलेबी, लाडू, खाजा, मोतीचूर, सीरो, पूरी, साबूणी खेरा, पंचामृत। मीठा मोळा रस मिल, खाटा खारा जांणि । कडुपा दान कसाइला, ए षट रस वाखाण ।। - भांति भांतिरा पकवान घणे सुरै घीरा झारिअल मुहढे मांहै मेलियां गलि जावै मुंहढामें मेलियां छाती ठाढ़ी हुवै । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति भांति भांतिरा अबरस, सिखरण, प्रांवा, नींबू, सूरण, पादा. भांति भांतिरा प्राचार प्राणा. भांति भांतिरी तरकारी. गोरस. मीठा मोळा खारा खाटा कडुना कसाइला भांति भांतिरा पट रस सवाद लीजै छ. ऊपर कपूर वासिया गगोदकरा चळू कीजै छै ।। तठा उपरांति राजान सिलामति घणां घोड़ा हाथो सुखासण रथ पायक जवहर हीरा मोती माणक सोना रूपा दइजें दीजै छै. घरणां दास दासी दे नै घरां सांमा प्रोभणा पधरावीजै छै.घरतीरौ इंदु होने तिरण भांति जग छल कर नै घणे सोने रूपरी मेह होइ मैं तूठो छे. कवेसरां गुणी जणां मंगत जणांनु घणा दान दे कोड पसाउ, लाख पसाउ, करि हाथी करह केकाणरा महा पसाउ करि जसरा जांगी घुराइ नै वलियो. आगे नीली झांप लीनां वधाईदार दोडिमा छै. नगर मांहै अोछव वधावी छ. मंगल गावी छै. गळिमां गळिमा फूल विखरीजै छ । तठा उपरांति राजांन सिलामति तोरण वांधीजै छै. घणां गज डंबर पेसारा करि मंडोवर महलें पधराया छ. सुभ दिन सुभ घड़ी सुभ मुहरत सुभ वार सुभ लगन सुभ वेळा मांहि प्रांणि पाट सिंघासण विराजमान किया है. माथा ऊपर सेत छत्र विराज छ. सेत चमर ढुळे छ । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव तठा उपरांति राजांन सिलामति तिण राजांन कुअर राजाउत मारू ठाकरर च्यार पटरांणी छै. नाम सिणगार सुदरी १, सोभाग सुदरी २, सरूप सुंदरी ३. मदन सुदरी ४. साख्यात देवांगनां पदमरणी विचित्र सुलखरणी चोसठ कलारी जागरणहार विननी करणहार लिखमी पारवती गंगा सरसतीरौ अवतार बारह आभूषन विराजमान हुआ छ. आठे पोहर सोळ सिणगार किया रहै छ. किरण भांतरा आभूषण किरण भातरा सिंणगार । काव्यं लज्जा मान कटाक्ष लोचन कला अल्प स्थितो जल्पनी । रति भय अभया सु प्रेम रसा गय हंस बुल्लाइनः ।। धैर्य च सुचक्षमा सुचित्त हरखं गुह्य स्थलं शोभनं । सील ग्यान सुनीति नित्य तन सा षट् दूरण आभूषणं ।।१।। राजांन कुमार सोळे सिणगार विराजमान हुआ छै. सु प्रथम मरदरा सोळे सिंणगार तिके किरण भांतिरा कहीजै। काव्यं क्षौर मंजन चारु-चीर तिलकं गत्रं सुगंधार्चनं । कर्णे कुडल मुद्रिका च मुकुट पादौपि सर्मोचनं ।। हस्ते खङ्ग पटंबरं कटि छुरी विद्या विना मुखं । तांबूलं मति सीलवंत चतुरं शृगारका षोडस ।।२।। वीजा स्त्रीरा सोळे सिणगार तिके किण भालरा कहोजे छ । काव्यं आदी मंजन चारु-चीर तिलक नेांजनं कुडलं । नासा मौक्तिक पुष्प-हार कुरलं कार कुन्नूपरं ।। अंगे चंदन लेपन कुच मणी क्षुद्रावली घंटिका । तांबूलं कर कंकणं चतुरता शृंगारकं षोडशः ।।३।। इण भांतिरा सोळे सिणगार किया थकां रहै छै । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामती तांह अतेउरी प्रागै ४ बडारणां सहेलियां रहै है. १ अनंगमंजरी, २ मदनमजरी, २ ३ तनमंजरी, ४ पटुमंजरी. तांह बडारणां संहलियां प्राग ४ पात्रां सिणगारणी खवास्यां रहै छ. १ गुणमाला, २ फूलमाला ३ विजेमाला. ८ दोपमाला. तिकां सिंगारणी खवास्यां प्रागै ४ विलासनी दासी रहै छै. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-बरणाव केतकी १, चंपकली २, रामकली ३, कामकली ४. त्यां दासियां आगै सोळे सोळे छोकरी खिजमतदार रहै छै. इण भांतिरा चार राजेलोकरा च्यार महलां प्रागै ४ नाजर खोजा रहै छै. मोहनराइ १, वसंतराइ २, सामरग ३, रामरग ४. महलारी दोढ़ीरी जाबतां राखै छ । तठा उपरति राजांन सिलामति रितिराज वसंत वैसाख मासरा मंगलाचार विमाहरा सुख बिलास करतां सरद रित आई छ. प्रासोज मास प्राइ संप्रापति हू छै. इतरी गढ़ कोठ चोहटा नगर वीमाहरा मगलाच्यार दान प्रथम प्रस्ताव रा वात वणाव विचार गढ़ कोट नगर वीमाह वात वरणावरो प्रथम परिछेद पूरी हुो छ। तठा उपरांति राजांन सिलामति षट रितरा बखांण कीजै छै. प्रथम सरद रिति वखाणीजै छै. प्रासोज लागै छै. पितर पख पूजोज 2. धरतोरी मैल कादमजल पखाळ निरमळी कियौ छै. सरोवरांरा जळ निरमळ हूमा छै. कमल पौइणी फूलि रहिया छै. सरगरा देवांने पितरांनू मात-लोक प्यारो लागै छै. कामधेनु गायां छै सु धरतीरो पाको औषधीरा रस चरै छै. दूधारा सवाद अमृत सरिखा लागै छै. सु कढ़ीरा बडिमारा गाटक लीजै छै. पंचामृतरा सवाद लीजै छै । तठा उपरांति करि नै नवरात होम ज्याग हुई नै रहिया छै. नव दुरगारा नौरतां दसराहो पूजीजै छै. दसराहेरा वणाव भांति भांतिरा सिंणगारोज छ, छत्र डड सिंघासण घोड़ा हाथी दरबाररा वरणाव गहमह हुइ नै रहिया छै. वाही आळ काढीजै छै. भैंसा ऊपरे तरवारियांरा वाड त्रुटि नैं रहिया छै. खाजरू नीझोड़ीजै छ. जिके दिगपाल रजपूत सामंत अजानबाह ठाकुर अड़ाबोड़ दरबारे प्राइ खड़ा रहिया छ. दरबार दुलीचा बिछाइज छ. विछात वरिण नैं रही छै. दरबार वरिणयौ छ. हाथी घोड़ा फेरीज छै. महोलां मुजरा कीजै छ। तठा उपरांति राजांन सिलामति सरद रितरै समैरी पूनिमरौ चद्रमा सौ कळा लियां संपूरण निरमळी रैगरौ उजळी चांदणीर किरण करि ने हसनू हंसरणी देख नहीं नै हंसरणी हंस देखै नहीं छै. मिलि सकता नही छै. तारां बार बार माहो माहै बोलि बोलि नै वेरह गमावता छै. पण चांदणीरो सपेतो करि ने महादेव नदी धमळ दृढता फिरै छ सो लाभता नहीं छै. इंद्र एरावति जोतां फिरै छै. इण भांतिरी सरद रितरी सपेती चांदणीरी सोभा विराज नै रही छै. रास मंडलरा महोछव मांडीज छ. राग रंगरा समाज ताइफा लागी नै रहिना छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति उवै चतुरंगी रायजादी क्रितीयांरौ झुबिखो मोतीयांरी लड़ी हवं तिणी भांतिरी ऊजळी गोरंगीनां ऊजळे गाति ऊजळं बावने चंदनरी खोळि कियां ऊजळा मोतियारा ग्रहणा पैहरियां ऊजळा वागांरा वरणाव कियां ऊजळा Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव पूलारा चोसर घातियां हाथें ऊजळा पूलारा गेंद उछालती थकी ऊजळी सखीयार साथ सहेलियांरी टोळी सो रास-मडल रमणरै अोछाह चांदणोरी रातिरी चली जाइ छै. ऊजळा वणाव कियां ऊजळी चांदणी मिलि गई छ. सु पागली सखोप्रानू जावती लखै नहीं छ, लखाव नहीं पड़तौ छै. तिणि सोंधेरै डोरै लगी जाए छ. ऊजळी ठकुराणी ऊजळा ठाकुर प्रीतमसू जाइ जाइ मिलै छै. इण भांति सरद चांदणी रंग विलास मांणीजै छ । तठा उपरांति देव जागिमा छै. काती मासरा वरत महोछव कीजै छै. घरि घरि दीपमाळिकारा वरणाव हुइ नै रहिया छै. जूमा खेलि मंडि नै रहिया छै. दीवाली पूजीज छै. चितराम कीजै छै. भांति भांति रा अनद बट कीजै छै. गाइखा खरेर मांडीजै छै. कुल संक्रातिरा दिन बराबर हा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हेमंत रितरी वणाव कीजै छ. हेमत रित लागी पछिरो वाउ फिरियो. उतराधो वाउ वाजियो. हेमंतरा बरफ ऊपडिया टाढ़ौ टमकियो प्राळौ पड़ण लागो. जिके धरतीरा धणी पताळ वासी भुयंगने धणरा धणी दौलतवंत प्रो बिह्न एक वग हूंता सुधरतीरौ पुड़ भेद ने विमरै पैठा. उठे रहण लागा। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति उणि हेमंत रित माहै बालीमूध सुहव गोरी गयां तनांरी रस छातीरौ रस अधरांरी सवाद अमृत सरिखौ लागै छै. सु तो सरगांरा सुखासों परिण अधिक सुख जाणीजै छै । दोहा सरगे सुरा न बकरा, ना बाजंती बीरण । नां कांमरिण मेमत्तियां, भूरा डळा अफीण ॥१॥ तठा उपरांति करि नैं जिके बारै बारै वरसरी कामणी तेरा चउदां वरसां माहें पनरा सौल मांहें मुगधा मध्या प्रौढ़ा बीमा पचीस वरस मांही जिके कुदी जुवांनी कांमरी कंदली कांमरी कली रंगरी बूटी जीवनरी जड़ी इण भांतिरी कांमणी त्यांरा उरस्थल पाकी नांग्गीयां सारीखी अंगहार पाके वरन कोमल कठोर कुच असू भीडिया थका रहै. उवै कामणी धरणे क्रिसनागर कस्तूरी अंबर अंतर सांधेसूगरकाब हुई थकी उवा राजांरा मलकजादारा मन राखती थकी लोट पोट हुइ रही छै. घणे मंगाय पान तांबोलरा रस लो छै. उजळी सपेत बिछाइत ऊपर ऊजळे वरणाव कियां ऊजळी रुसनाई लाग रहो छै. इग भांतिसू हेमंत रित मांहै रातरा सुख विलास मांणीजै छै. हमें ससिर रितरा वरणाव कोजै छ । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-धरणाव तठा उपरांति राजांन सिलामति कर के हेमाचळरा पहाड़रा टूकां ऊपर ऊजळा बरफरा. टूक बघण लागा. वड़ाई दिन लबुता पाई, ईहां नदियांरा जळ जंमि ठंठ हूप्रा. नदी खीरण पड़ी घटी। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति जिण भांत लगायत दीठां देणांयत घटै तिम तिणि भांति दिन दिन निसि दी सूरजरौ तेज घटण लागौ नैं सूरजरी तेज घटियो राति मोटी होरण लागी. वड़ाई पाई. दिन लता पाई. तिणि ओछौ हुन लागौ जिमि कोई भली भूडै बराबर कीजै तरां घटती जावै. भूडौ भलै बराबर कीजें वधती जाए. तिरण भांति राति बराबर हुई है. सूरजजी ठंदिरा मारीया उतर पंथ छोड़ी ने दक्षिण सामां वहण लागा। तठा उपरांति राजांन सिलामति उण रित माहै सूरजजी परिण मकर संक्रात भेळा हुमा छै. ठंढिरा दबाया आपरै महले माया छै नै आकासनू पंरण राति छोड़े नहीं. सूखरा पयोधर वधै तिण भांति प्रांबा दिन दिन वधरण लागा. विरहणी कामंणोप्रांरा मुखां कमळ कामरी दाहस बळीया छै. तिण भांति दाहे बाळिग्रा छै. कमळ पोइयो वनसपती वरणराइ बळी नै रही छै. अगनी जल सारीखी ठंढी लागै छै. जळ आग दाह सरोखौ लागै छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति तिण ससिर रितरी माह मासरी रातिरौ प्राळी पड़े छै. उतराधरौ पवन ऊतांमळौ टीयां खाइ नैं रहीयौ छै. तिणि रित माहै छोह ढालियां ऊडा भोहरां मांहैं ऊंडा तहखाना मांहै खेर कोइलारो मकालां जगाडीजे छ. तपन नापणरा सुख लीजै छै. उणि भांतिरी गरम ठौड़ माहै ऊची सोड़ तलाई सेझवट तकिया घणु ऊजळा गरकाब गदरा परांनैरूस भरिया थका घाऊजळी गरकाब बिछात कीजै छै. पीलचोसां पढ़ारदानीमांरी रुसनाई लागि रही छै. तेज पुज पासप(व) आरोगीजै छ. प्यार कर नै सौंस दे दे नै प्याला दीजै छ. घणां लौंग पान बीड़ारा रस लीजै छै... तठां उपरांति करि नै राजांन सिलामति घणी कसतूरी क्रिसनागर साख जबाद चोमा चंबेली अन्तर अम्बर भांति भांतिरा तेळ सुगंध सांधेसू गरकाब हुमा थका ऊवे राजांन पालोजां प्रालीगारा नाह उल अलबेलियारा पदमणीप्रांरा रमण मारणे छै. तिण भांति गलबाखडीमां घातियां पका बाली जोबन मांणीजै छै. इण भांति सुख बोल करि रात पाछी नाखीजै छै. परभाति बुलगारांरा गदरा पाथरीजै छ. धरणी चवेली तेलरी मड़दन कीजै छै. हमांमैं गरम पाणीसू नाहीजै छै. अंगोछी कीजै छै. वागांरा बरणाव कीजै छै. सांधाखानेसू आणी सांधा हाजर कीजै छै. भांति भांतिरा साधा लगाड़ीजै छै. सभा मजलस' कीजै छै, इण भांति सिसिर वरणाव बखांणी छ सु कहीजै छ। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हमैं आगे वसंत रितरा वरणाव वखाणीजै छै. दखिरण दिसा मलयाचल पहाड़रौ पवन वाजिनो छै. सीत मंद सुगंध गति पवन मतवाळा मैंगळ ज्यां परिमल झोला खावतो वहै छै. अढ़ार भार वनसपती मकरंद पुलादिरा रस मांणतो थको वहै छै. अंबर मोरीजै छै. कंपळां फूटीजै छै. वणराइ मंजरी छै. वासावली पूटि रही छै. केसू फूलि रहिया छै. रितिराज प्रगटीमो छै. वसंत आयौ छै. भमर मधुकर झंकार करी रहिया छै. मधुरी वाणीरा सुर करि कोकिला बोलि रही छै. बाग बागीचां दरखत गुल कारी झिलि फूल रहो छ । तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति जिके छोगाला छयल छबोला जुन हसनांइक पू.लांरा छोगा नाखीमां. थकां फूलांरा चोसर पेहरीयां थकां अगरचें मरगचें केसरिङ्ग कचमैले वाग की घणे चोमे अंतर पू.लेल गळा मांहि भीनां थकां घणे अंबीर नै गुलाल मांहै गरकाब हुआ थका झोली भरियां थकां दिसि दिसि छुटि रही छ. घणे अंबीर नैं गलाल माहै गरकाब हमा थका अंबीर गलाल उडि रहिया छ. दिस दिस केसरि पिचकारी छटि रही छै. आकास ऊपर अंबीर नै गुलालरी अंबर डंबरी लागि रही छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति सारीखा साथरी टोळियां कियां थकां झूल गैतूल पड़ि नै रहीया छै. केसरिया वरणाव कीनां थकां प्रागै वखाणी तिण भांतिरी नाइका पात्रांरा ढूल चलीया जायै छै. डफ चंग मुह चंग बाजि ने रहिया छै. वीणा नाल मृदंग बाजि रहिमा छै. वांसली वाजि रही छ. ढोलकां बाजि रही छै. फाग गाइजै छै. फाग खेलीजै छै. नाचीज है. हास विणोद कीजै छै. हास रस हुइ नै रहीयो छ. फागोटांरा मुख सवाद लीजै छै. घरि घरि वसंत राग हुलरावीज छ. कामदेवरी दुहाई देतां फिरै छै. पंचम राग गाईजै छै. वसंतरा वरणाव हुइ नै रहीमा छ। तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति होलिका प्रब पूजिजै छै. प्रागै बखांरिणया तिण भांतिरा अमल मागीजै छै. हमैं ग्रीषम रितरा वरणाव कीजै छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिसामति इतरा मां ग्रीषम रित पाई छ. सो किरण भांतरी वखाणीजै छै. नैरत दिसारौ ऊनौं पवन वाजियो छै. उन्हालसी प्रगटीमो छै. जेठ मास लागौ छै. सूरिज व्रख संक्राति आयौ छै. सुजाणीज छ. सूरिज खां ने बरखतारा पोलो ताकै छै. तो बीजां लोकारी कौंण बात. सूरजजी उतराध सामां वहै छै. सु जांणीजै छ. हेमाचलरी सरगो लिङ्ग छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति ग्रीषम रित मांहै पवन पावक समान वाजियो छै. प्रथी अप ने वायू प्रकास च्यारि तत पांचमै अगनी तेज तत भेळा मिल नै Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरगाव ३५ रहीमा छे. प्रिथीरा लोक विहंगम पंखी छे. सुर तरवरां रूखारा औला ताकै छे. तर - वरोरा पान झड़िया छे. सु जांणे वस्त्र विनां नागा डिगंबरां सारीखा नजर झावे छे. निवांणारा पाणी नीठिया है. पुोइरणी वलि नै रही है प्रोछे जळ माछळा तड़फड़ी रहीमा छै. गजराज सुका सरोवर ढूढ़ता फिरै छे. सादूला केसरीसिंह ज्वालानल श्रगनीसू बळतां थकां वा वनरा हाथिप्रांरी पेटरी छाया सूता विसराम करे छे. भुयंग सर्प तीसरीया है. सो लू ने तावड़ेरी बळता थकां द्रौड़ि द्रौड़ि ने हाथीश्रांरे सीतल सूडाला मांहै पेसि पेसि रहीमा छै. इग भांतरा सबळ जीव तिके निबळ हुइ ने रोमा छै । हमें तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति ग्रीषम रित मांहे जिके राजानां ठाकुरनां सुख जेठ मांहै कहीमा तिके सुख सुर जेठ कहतां इन्द्ररी ठकुराई पिए नहीं ऊनां राजांरा सुख कहीजै छै. जो उरण बगीचां मांहै हमामार महल छोह पंक ढालीचा घर तहखांना वरणाया छै. झरोखा, जालिए, छारिणों पवनरी हवा पड़ि ने रही छे. श्री महल केसर गुलाब छांटीजै छै. मांहे जळ गुलाबसू चहबचा भरीमा छै. धरणां मलयागर चंदरण, केसर, कपूर, घरणां गुलाब ने सुरा बरफरा पांरणीस घसीजै छै. प्र लेपन लगावीजं छै. अगे खोळ कीजै छे. वीझर वाउ ढोलिना छै । तठां उपरांति करि ने राजांन सिलामति उवां हमामां महलां बाहरि बागबगीचांरा रसता लागा छै. चोकीए विछाइत वरणी छे. पाखती जळ कूल छूटि नै रही छै. बागें रसतांरा चोहबाचा भरिया छै. खजाना भरीमा छै. चलत नळांरा फुहारा छूटि नै रहीया छे. क्यारे गुलकारी, रंग रंगरी बूटी, फुलावरी सबजी लागि नै रही छै । तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति उण बागाइत मांहै ग्रीषम रितरा विलाइती वालेरा खस खानां, ऊंची ठोड़रा बंगळा, रावटी वाळा बंधरा ठांसारा गूंथि भांति भांति खसखानां वरणाया छे, घरणं सीतल पांणीस सीचिमा थका atri वाइयां हींफा खाइ रहीना छे. तठे विलाइतरी ग्रंथी चटाई श्रमोलक विछा रही छे. ति ऊपर बैठा छत्रीस रोग हरे ऊपरे ढोलिना गिलमांरी विद्याति बाणि नं रही है. सेझां ऊपर घरणां फूल कपूर पाथरीजं छै । तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति किरण भांतिरा सरबत छांरगीजं छे. घर बेदान, दाड़िम कुलीरा रस लोज छै. सो धरणी कालपी मिसरीरा भेळ धरणी एलची नं मिरचार भेळ बौह लागे थके ऊजळा कपूर वासी गगोदक पांणीसू ऊजळे गळ भोळि भोळि भारीजै छै । तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति इकत्रीसमी ताररा पुराणा पोसत. मंडवाईरा Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ राजान राउतरो वात-वरणाव नीपनां, प्रागै बखारिणां तिरण भांतिरा, तजारी तूज, घरणीं कासमीरी केसर, घरणी ऊजळी मिसरीरं भेळि कपूर वासी पांरणीरी कल्हारी झारीज छे । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति तजारैरी बाड़ीरी नीपनी, नीली घणू पाकी, पुरांणी, प्रागै बखांणी तिण भांति भांगि घणी एलची, मिरचा, पान, जावश्री मेळ पाखांगरी कू डीग्रां सरबंगरा घोटासू ऊजळा प्राचांरी धमोड़ी घर ऊज मिसरीरै भेळ ऊजळा गरणांसू भारीछे छे. ऊजळां प्राचांरी खवस्यां ऊजळा रूपोटां iti हाजर खड़ी मिसरी, अफगसू श्ररोगाड़ोजै छै. कनाथां पड़दा तांणीजं छं. चोहबचा मांहै जल केलरा रंग तरंग मांणीजै छै. कुअर पदी भोगवीजै छं. चौमासो लागौ छै. दूसरी असाढ़ श्राइ संप्रापति हुनो छे. तठा आगे वरसात रितरा वरणात्र को जै छे, सो श्रागं बखांरगोजै छै । दोहा सरद हेम ने सिसर रित, रिति वसंत ग्रोषम्म | वरषां दांत बखारिण तू, ए षट रित श्रोपम्म || इति श्री षट रितिरै वात वरणावरी दूसरो प्रस्ताव पूरो हूम्रो । हमें तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति एकारिण प्रस्ताव महाराजा श्री राजेसररा परमांणा श्राबू गढ़रा मंडावरि श्राया छे. अजमेर थांरो हुकम हुयो छै. महाराजा कुमार श्री राजान राजाउत मारू मंडोअरसू अजमेर पधारिया छे. फौज बंधीरा बरगाव कीजै छे । तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति अतरा मांहै पातसाह महमद मुसतफाखांनरा चार दूत विचरिया हूंता त्यां हकीकत राजांनरा पातसाह श्रागे पोहचाई. सत्तर खांन बहत्तर उमरावी बांग खड़ा है. पातसाह श्री राजांन कुमर राजाउत वात पूछे छै. राजांन कुर किसाएक रजपूत है. दूत हकीकत कहै छे. जु राजांन कुमर उठती वहीरी जुवान प्रानजांनबाहू राजहंस लीलंग छै. भेदग छे. तिसा ही बागांरा वरणाव, तिसाही मूछारा मरट, तिसा ही भुजांरा श्रांमला, तिसा ही पोरसरा गाढ़, तिसा ही कामवटरा अंग, तिसा ही रजपूतवटरा श्राचार देख ने महाराजा राजेसर अजमेर रे थाणे राखैश्रा छै. हसम हुकम सौंपा छे. हजरत सू मालिम है। राजांन कुर बत्रीस लक्षणौ छं. तिके कहै छै. सत १, सल २, गुण ३, रूप ४, विद्या ५, तर ६ अलप अहारी ७. वडोचित उदार ८, तेज ६, धनकर १०, दोलवंत ११ सकलनाइक १२, दयावत १३, विचखरण १४, दाता १५. बुधिवंत १६, प्रमाणिक १७, जस १८, उदिम १६. लाज २०, धीरज २१. राज सनमान २२, सूर २३, सासी २४, बलवंत २५ भोगी २६. जोगी २७, भुजाय २८, भाग्यवान २६, चतुर ३, ग्यानी ३१, देवभगत ३२, पर उपगारी ३३ । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजाम राउतरो बात-पाय कवित्त सत्त सील गुण रूप विद्या तप प्रलप पाहारी । धन उदार जस तेज चतुर नाइक उपगारी ।। बुद्धिवंत बलवंत राज सनमान विचख्खण । भोग जोग गुर भगत भाग परमाण भुजायण ॥ जस लाभ धीरज साहस धरण दया ग्यांन उद्यम करण । रिणि सूर दान राजांनरा विधि बत्रीस लखरण वरण ॥१॥ तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति फेर पातसाहजी हुकम कीयो. हकीकत त कहै छै. कबले जिहांनियां पातसाह सिलामति राजांन कुमार षट भाषा निवास छै. विदै विद्यारी जाणहार छ। दोहा सुर भासुर अरु नाग नर, पसु पंखीकी वारण । जोदानां जारणे सुपह, सो षट भाष सुजाण ।।१।। काव्यं ब्रह्म ज्ञान रसायणं सुर धुनं घेदं तथा जोतिषं । ध्याकरणं च धनुर्धरं जलतरं मंत्राक्षरं वैदक ।। कोकैनटिक वाजवाह नरसे संबोधनां चातुरी । विद्या नाम चतुर्दस प्रतिदिनं कुर्वति नो मंगलं ॥१॥ तठा उपरांति करि नैं राजान सिलामति तोसरै हुकम दूत अरज कीधी ज जान राजेसररी तपतेज परमेसर परब्रह्म, मजनम, निरजए, निराकार, संसार रोमणि, संसार साधार, ईश्वररा अवतार. हिंदू महाराजाधिराज श्री राजांन जावत मारू रावत सूरजवंसी इण भांतिरी छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति इणि भांतसू राजांनरी वात सण नै जमेर थारगरी हकीकत सांभल नै प्रादि वैर उगराहन प्रसुरांण तुरकांणरा दल मजान ऊपरै विदा हूमा सो किरण भातरा कहीज छै. रहमाण रहीम अलाह परवर गार, पीरां पिकंबरांरी औलाद, चौवीस प्रवलीप्रारी करामात, अवलीए पासतीक वले जिहांनियां हजरति पातिसाह मुहमद मुसतफाखानरा उमराउ हसन हसेनखां लीखांन सारीखा गोरी, पठाण, सैद, मुगल, उजबका मुसलमान पाकीनदार, श्रीस पारारा पढ़ाहार, पांच बखत निवाजरा करणहार, सुद्ध कलमें रा पढ़णहार, पेसता, Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ राजान राउतरो वात-वरगाव प्रारबी, पारसीरा बोलणहार, श्राउखी ढाढी राखाणहार, बालि बाधि कोडोरा मारणहार, मवली मूंठीरा तीरंदाज, असली जादा, कोल बोलरा राखणहार, गाजी बहादर ताजक नीलक तार, जरबाफ वादले, आसावरी, विलाइती, हजारी कपड़ेरा पहराहार, देस देसरा, जाति जातिरा, मीरजादा भेळा हुआ छे. माही मुरातवा समेन पोहकर अजमेरश थारणां ऊपर विदा हुमा छे. आवाज फूट नें रही है । तठा उपरांत करि नैं राजांन सिलामसि पातिसाहरा दळ बादळ मागर थाट ऊपड़िया छै. बीस लाख असवार पाखरीमा लोहमीवाड़ किन बगतर, हाथल, टोप, फिलमें, चिलकतां ऊपरे पूरी सिलहा किनां, गरकाब हुआा थका छत्रीस थाउध डाबिया रहेछ । कवित्त सर सीगण छुरि कुत सांग गेडीहल मोगर । गोळी गोफण संख गुरज मूसळ घरण तोमर ॥ प्रासी चक्र खड़ग्ग गदा चाबक ने फरसौ । कुहक बांरण बंदूक ढाल कट्टार खपटसौ || सेलह त्रिसूल सांठो धको वली वंसहड़ि कड़ि लगण । भूकंत चहुलि सूळो चटक दंडायुध छत्रोस रणि ॥१॥ to भांति छत्री आयुष डाबिप्रां, नव हाथां जोष पांन तुरक, अवला पाघड़ारा जमरांणैरी जमात सारीखा निजरि आवे छे. जाणें कलिपत कालरौ सम उलटी प्रो छे. तिम्रा भांतिरी समंद व्यूह सेव्यां कीमां वाली आवे छे. कांही जळजात सेन्या कीधी है । तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति प्रठीना सका बंधी हिंदू भाजणी परत राजावत राजांन मारू गुरडत्यूह, विधव्यूह, चक्रव्यूह, सेना रवी छे बिहूँ फोजांरी घड़स चालो जाये. हसमरी धसन पड़ी ने रही है. सूरजि रथ खांचि नै रही श्री छे. गया गरज डंबर छायो छै. मरिज पीछे पांन सरिखो निजर प्रावे . मुलांश मुकामला मंडाया है. प्रणीमेन हूमौ ग्रॅ. रायजादारा भाला भलकि नैं रहीया है. तबल बंधा मीरजादा बाका बहादरावां ने तारा तवल बाजि नैं रहीग्रा है. भेर घाव लिने रह्यौ है. नोबतरा टकोरा लागे छे. नौबत भींगड़ि पड़ी ने रही है. भेर, नफेर, करनाल भभक नै रह्यो है. सुरणायांरी कहक पड़ि ने रही छे. वडो राग सिंधुड़ो वागि ने रहीओ छं । तठा उपरांति करि ने गजांन सिलामति किलकिला नाकि छूटी सु गोळां री प्रागान अमू' धरती धमकि नं रही छे. जबर जंग नाळ्यांरा निहा उपड़ि ने रहीना है. गज नाळ्या Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामान राउतरो वात-वरणाव सुतर नाल्यां, जंबूरा नाल्यां, रामचंगी हथ नाल्यांरा चरणणाट वाजे छै. आकास छायो छै. सु जारण तारा छुटै छ. कुहक वांगरी कहक पड़ि ने रही है. प्रातस प्राराबा हवायारो मारको पडि नै रहियो छ. अधार घोर हुइ नै रहीमो छै. इरिग भांतिरो प्रोसर मंडि नै रहोयौ छै. रौद्र रस प्रगटोओ छै। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति पचास टांक चिलेरोखा अणहारी कबाणग घोकार वाजि नै रहिया छं. त्रींगडा भलोडांग बूम पड़िया छै. सवाय मेहरौ जोरि सोक बाजे तिण भांति पंखारी रुग वाजि नै रही छै. केवर दुवासू कोरे पंखारै पूट फूट नीसरै छै. तीरां गोळीनां रै मारक पड़ने मिनावर पांख समारण न पावै छै. माकास ऊड़त पंखी पड़े छ । तंठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति प्रसवारांरी वाग ऊपाड़ी किलकिला ज्यों ऊपाड़ि ऊपाडि हेमरां नौखीज छै. झूसरमा ऊपरै बरछी चमकि नै रही छै. रामण गांजा सेलारा धमोड़ा पडि नै रहीमा छ. सरकत पार पार हुने छै. बगतरांरा तमा फोड़ फोड़ पूठी परा मरणोपाला प्रणो सीसर छ. सु जाणां धोवर पूठे जाल माहे मछा मह काढीमा छ। ' तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति जिके सूर सामंत रावताला छै. सु हाथीनारा कभथळा दांतूसला पाउ दे दे ने घाउ वाहै छै. झंडा नीसांग पाड़े छै. पातिसाहरा गूडर गाहीजे छ. गजटला गाहीजै छै. वीरा रस ऊपनो छै. वीरा रस मातौ छै. वीर हाक वाजि नै रही छ. नाराजीमारी झांट पडि नै रही छै. वगतरां जारां तरवारीमारा वांड त्रुटि नै रहोत्रा छै. जाणों बादळा माहै वोजडिप्रांरा सिला ऊपड़िया पाखरां ऊपरै सारधारा फूलधारां वाजी सु ठणणणण जाणे परभातरी झालर ठंगकी, नरबगतर विधंस हमा. कनां वह भायामी रांति वाही. तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति फंतकारी गहकि नै रही छै. भयानक रस मातौ छै. भयानक रस हुइ नै रहियो छ । तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति राजांन राजाउत मारूरा सामंत राइजादा एक पाखर, लाख पाखर, अरणीरा भमर जांहरा पग मेर माथै मंडीधा छै. एकूक रावता लेर हायि हजार हजार मोरजाना पड़ोग्रा छे. पागलै कवेसरे कहिनो। दोहा सुर असुरा इण पाहड़, पाही एक प्रवक्क । पिडि जितरा हींदू पड़े तेता सहस तुरक्क । मेछांण कटि घांस हा छ. चालीस कोस रिण साथरै पंजा हजार पडिमा छ. करकारी बाडि हुइ में रही छ. विजागरी वालद पड़े तिण भांति घोड़ां भड़ा हाथीप्रांरा गरा पडीमा छै. वसंतरा केसू पू.ले तिण भांत घणां घायांसू ध्राया थका Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० राणाम राउतरो वात-वरणाव डोलियां, झोलियां ऊपडिमा छै. जिके प्रवसांण सुध खत्री छै तांहरो भरोगी घिस छै. जिके सतवंती छ तिके सामरै साथ बळण चालीमा छ. तिके सती प्रगनि सनान करि नै सरग भोगरा सुख मांग छै. पू करण रस कीजै छ. जगवासी लोग छै त्यांना करण रस ऊपनौं छै। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति राजान राजावत परावर रिणखेत हाथी पायो छै. रिण जीत नगारा धुबै छ. फतरा सेवानां वागा छ. जस जैतरा डंका वाजिमा छ. कुसल खेम पारदरा वधाइदा दौडिमा छ. घरां साम्हां फौजांरा घडूस चालीमा छै. पावै छै सु किरण भांत बखांरगीज छै. पातसाह देरा हसंम रखत तखलू मां हंता सुप्रांरिण थाणे दाखलि कोग्रा छ. अजमेररा थाणारी जमीत कीजै छै. घरि घरि मंगळाचार पाणंद वधामणां को छ. घरणां माल निजराति उवारी छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति तिणि प्रस्तावि, राजानरै सिकारनो असवारी हुइ छ. नोबत टकोरा पडि नै रहिया छै. बाहरि डेरा कोना छै. असपका खड़ी हई छ. तंबू, समीरणां, सिराइचा, रावटी, वाडि समेत करणाटी, गूडर तांणीमा छै. दळ वादळ लागि ने रहिया छै. रजपूतांरा थाट मोगर मिळे छै. महोला लीजं छै. तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति हजार तोपची खंधार, शब्द भेदी प्रागबर जागरा जाळरणहार, आकास उड़ता पंखी पाई. इण भांतिरा नाळ गोळी दारू जामगी साज-बाज किया थकां, मुहडा मागलि सजि ने ऊभा छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति फोज बंधीरौ बगाउ कीजै छै. फौजां प्रागै प्रातस चाले छ जबरजंग नाळि, किलकिला नालि, जंबूरनाळ, गजनाळ, हथनाट, सुतर नाळ, कुहकवाण, राम चंगी कई भांति भांतिरा पाराबा रहङ्कए घाती प्रावै छै. तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हाथी सज की वह छै. सु किसड़ा बखांणीजै छै. थेट सिंघलदीप अनोप देसरा नीपना, धगरताह, भद्र जातीप्रां, हाथीप्रांरां भाथळा भांजिना. सवामण मोती प्रांमळ प्रमाण नीसरे प्रहार भार बनमपती सूअोघसतां थका हमला खाई में रहोत्रा छ. उरै गजराज रेवा नदीरै काठ द्रह ऊपरै पांच हाथीर हलके लीग्रां मोड़ी खर करि नै रहिना छ पाणीरी छोळारा भकोळा खावता थका गज कोला करि नै रहीमा छ । तठा उपरांति करि नै गजान सिलामति कपोलार मदगंध करि नै भौरांरा भोर पड़ नै रहीमा छ. भौरां वैठा सासहे नहीं, डीर वरां बलाका खाइ नै रहीमा छै. त? कालवत हसतगीर फरस करि नै छिबितरी खाड माहै पड़े छ. पछै लोह सांकळरा प्रास Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . राजान राउतरो पात-परगाव नाखि नै तिके हाथी पकड़ीज छ. इणी भातिरा सींधली गजराज वेसास नै प्राणीमा छ, ताहतूपणा मलीवा, बेसवार, मोगर वे देने पाटि पाणी नै सझाया छै. ताह गजराजां नूसार जड़ीमां जंजीरा लौह लंगरा लमाडि नै खभू ठाणांसू छोड़ीमा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति बड़ा जूह गयंदा गजराजांनूगड़ां चरखीग्रां मारि, पोतारि, नीठ वसांगीमा छै. रूमाल फेर झाड़ी छै. प्रांमळा तेलरो बोह दे नै काळा जह कीमा छै. गजराजांरा भाल कपोळ सूडाहळ घणै लाल सिंदूरसू चरचिमा छ. जाणे साख्यात गुणेशजो प्रसन्न हुआ छै. कनां इद्र धनुष फाविप्रो छ. तला जोड़ पटा झरत कपोलारा दाग छुटि नै रहीमा छ. तोह गजराजारा मद छरित बारह मास ऊतर नहीं थे। तमा उपगति करि नै राजान सिलामति पाखती सेत पमर विराजिमा छ. जाणे मेरगिरगंगारी धारा पसी छलाह गजराजोरा ऊजळा धातूसल बंगड़ीपासू' गरिमा है. जाणे पटाबीच बगलारी जोड़ी परी बीसै छ, देवळरो घटावळि जेम घंटा ठणक न रही गाण पणा पूग पावसरेराहक नै रहीमा गजराजारा डील रेसमी नाड़ोसू भी जटा-जूट कीमा छ. जरवाफ बणायटरी लालू ठाकिमा छै. सार पाखरसिरी झालरी लोहनी कोठी ऊपर समाह करि ने गरकाबकीमा छै. गजराजा ऊपर गजळाला ढळफिन रही है. जणि पहाड़ा ऊपरै खजूर कल प्रांबारी मंजर ढकि नै रही छ. गां ऊपरै धजां, नेजा, बीषा फरकि नै रही छै. जाणे हेमाचलरै टूका माथे कसू पूल नै रहीमा छ । तठा उपगति करि नै राजांन सिलामति उमां गजराजां प्रागै गड़ा चरखी दारू . पारावा टि नै रहोमा छै. जाणे धूधळे पहाड़ पाखती रोकी लाग रहा छ, मदि वहतां मतवाळा ज्यों पग नीठ भरै छ. गड़ारा तोडणहार, दरवाजांरा फोडणहार, दळारा मोदणहार, दळारा पगार, फोजारा सिणगार, इरण भांति गजराज सिणगार पाखरीमा छै. पीलवाण भाथळां माथे पगारा प्रांगूठा चलावै छै. गजवागा खेंचे छ. धता धता कर छ. नाग जो छछोहा जाणे बावळारा लगस पवन जोरसूचालोमा जाने छै. इण भांतसू गजराज मुहडा प्रागै ही डुल छ. डोहां करता हमलाखाना वहै छै. इण भांतिरा हाथिमारा हलका साज वाज सहित साजंति वरणाव नैं राखीमा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति अजमेर थाणैरो मुकाम किमो छ. सुखासण पालखी घोडाल रथ पाइक बणि नै रहीम्रा छै. कटकारा खूर पडि नै रहीमा छै. हाथी लड़ावीजे छ. पाइक सिरंम साझ छं. फूलहाथा फेरी छ. भांति भांतिरा तमासा लाग ने रहीमा छ । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-धरणाव, तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति चौमासारी छावणी हुई छै. मागम रित प्रावी छ. आसाढ़ धूधलामो छै. उतराधरी घटा काली कांठलि ऊपड़ी छै. आड़ गरी गुडलि मांहे ऊंडो गाजीग्रौ छै. बगला पावस बैठा छै. पंखीनां माला स मारिया छ. पावस पडि नै रहीमा छै. परनाळ खाळ पहाड़ खड़कीया छै. चात्रग मोर बोलि नै रहीआ छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति आगे कवेसर गंगेव नींबाउतरौ बेपारो बखांणीयौ छ. तिगरी उकति प्रांणो छै. तिण मांहे कवेसुर कहै छै. वात वरणावरौ पण भेळ कियौ छै. पण उण कवेसर रो उकति बराबर नहीं. हमें बरखा गिति माहे श्रावण ने भाद्रवरी सांध बरखा रित मंडी. दह बीजां झड़ लायो डाळ डाळ अंबर चर्माको छ. सेहरां पाखर पड़ी भाखरांरा माल हरोग्रा. पांगा एकनाळ भरिया. चोटोपाळी डहकि नै रहीया छैः परभातरै पहररी गाजावाज हुइ नै रहा छै. राजा न सिकाररी उमंग मनमां ग्रांणी छै. हुसनाका तरकसांसू मस कपड़री खोळी उतारि लीधो छै. कबाणां चाक कीज छै. हजार अराकीनां प्रारबीनां उजबकीनां तुरकीयां ताजोग्रां पलारण मंडीजै छै. तिके किरण भांतरा अराको, आरबी, तुरको, उजबकी, ताजी जिके लंकी पाररा उतारिया प्रांजणि मां आंखीग्रांरा मूडोकाट अंराको वाउ मूठ पकड़ता डाल भागा मांकड़ ज्यों डांण मांडता आडी प्रांकुलाटां उझळतां असील विलाती जाहरा सरीर प्रारीज्यां ऊजळा झांख मुखमली पसमरा, कलोसो कोनरा, झूठमो ट्रेठरा, कड़ा कंधरा, लोह में बंधरा, तोछड़ी पूठरा, चोवडी, दूबरा, चांमरो पूछरा, निमसो नलीरा, वाटके नख्खरा, धावणो द्रोड़रा, मूडा निघ ज्यौं कूदता, नट ज्यों नाचता, कुळचता, अकुळणी नैरण ज्यौं ऊछाछळां. प्रापरी छामांसू डरपता. बाज पंखी ज्यों ॐडाण झांपतां, जाणै सूरजरा रथ असमानरै फेर लागि नै रहीया छै. प्रिसण ज्यों भूख बांको कीमा थकां कना अरणमिलीग्रां जारसू छिनाळ मुख बांको करि रही, भाररा चाक ज्यों कडे फिरि रहीया छै. ढाळ सरोखा चौड़ा, उर ज्यारा आठुअारा टलासू हाथी धको खाइ सकै नहीं. माणसरा कमल ज्यों नासा फूल रही छै. नासारा फरडका वाजि नै रहीया छै. बेपख सध जिके सालहोतरमा वखाणिया तिहड़ा इरण भांतिरा तेजा. घरारा खूदणहार खुरताळांरा अधांसू धरती धमकि नै रही छै. तांह अगकीया. आरबीग्रां, उजबको ना, तरकीयां, ताजोपा पूठ पलांण मंडोबा छै. सो किरण भांति ग पलारण जिके समंकरी नीपनी मोरबो पलाणी, दामण चमकती, पिड़ामारो लगामी पारसी पाली प्रांरी छालीमा पाखरां घातियां. पलांण लगांरण जीण साकति साझ-वाम-लूब-झूब करि नै श्रामणरी रोजणी ज्यों पांडवे सिणगार पाखर घाति चोकि प्रांणि हाजर कीया छै. राजांन राजावत मारू किसो एक जी जिसो एक खत्री धरमरी चौवीस याखड़ा वहै. कुण कुण पाखडी कहै छै. दातरें दातार, झूझारें झार, परभोमि पंचायगा से देसहाथी, काछ वाच निकलंक, परनार सहोदर, पावती जावतोरी मूठि पूठि जोग्रे नहीं. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो बात-वरणाव टपारी 'वसुत राखे नहीं. भलफलमा झांसि मुडीघ्रा मेर, पुलीयां पखत साररा, पाचरा लोहरी गांठ, विरदारी भारो, घाट खराड, थाका सतरौ विसराम करड़दंत, कामरी कोट नेठा धरधीर, वहतो काळ. ढहीओ काहर तोरणरा आखा अगनि फूल, सतीरो नाळे, काळी बेहड़ो, रुळाचारों जोड़, रांकारी मालवो, कुमारी घड़ारौ बींद, पांचसे asi भाइयां भांत्रीजालियां हजार असवारांरी ढाळ किग्रा, भूखा लोह लियां, काळे बरछारै चूरंग कियां, चड़ते सुररौ सिकार चाड़वी छे भेर घाउ वळिश्रौ छै, होकार होकारो होइ नै रहिम्रो छै. लाल बरछी थकी नै रहो छ. पगेज बराबर चालता घोड़ांरा हाम्रां उपरि अध लोहोरा भाग तजारेरी वाड़ीरी भांति विराज नैं रहित्रा छे. फौज बराबर चालतां प्राकास उरें खेहरा डंबर हुइ नै रहिना छै । तठा उपरांत करि ने राजांन सिलामति सिकार पाखती जिनावर चालिश्रा जाये छै । सेत सूत्रा, सब सूना, सारों, मैनां, कोइल, तोतुर, कागा- उमा, सेत काग, सेत कबूतर उडण गिरहवाज, लख जातिरा पंखी, भांति भांतिरी भीणी भाषा बोलता, पढता कठपिंजरे घातिना वहै छै । ४३ तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति बाज, कुही, सिकरा, सींचांगा, जुररा, तुमती, हुसनाकां सारवानांरा हाथां ऊपरांसू सगगाट करता छूटै छै वाड पखरा जोरसू नीला घास धरतीसू लपट नैं रहिया छै. ग्रासमानरै फेर जितरा जिनावर चिड़ी, कमेड़ी, भाट मांही या छै तितरा झाटांसू मारिया जाने छै । तठा ऊपरांत करि नै राजांन सिलामति बड़ा सिकारी सिंघळी, सादूळ, पटाळा, केहरी नवहथां, कठोरीप्रां रीछीना, तेलिया, तीदूला, लकोरिया, बघेरिया, चीतरा, भांति भांतिरा, जाति जातिरा, नाहर सांकळे जड़िया रहहुने गाडे बैठा, कसता, करणरणता. बू बाड़ करता वहै छै । तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति कावली कूतरा, लाहोरी कूतरा, विलाती कृतरा, लोलमी, लालमी जीभरा, वळिमें पूछरा, लापड़े कानरा, दाड़मी दंतरा, सिघरा हथरा, केहरी कंधरा, झांफर रोमरा, के विना रोमरा, इण भांतरा कृतरा, चीतरा, मुखमळो, रेसमी, मुखांरा वरणग्या, सांकळीप्रां जडिग्रा, बेहलां पालखिनां ऊपरे बैठा वहै छै । तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति सिकारी ठौड़ पहाड़ारी पाखती वनारा भंगार मिळ नै रहिश्रा है. जांएँ घरणां दिनांरा विछड़ी मीत मिळे तिए भांतिरा रूख मिळि ने रहिग्रा छं. रूखारा भ्ड महादेवरी जटा ज्यू जुड़ि ने रहिया है. हखांरा जूट जुवान मल्ल जुटै तिण भांतिरा जुडि नै रहिमा छै. रूखांरा जूट रामचदरी वानरी सेन्या ज्योंरीधारी जमात सा निजरे श्रावै छै तिरिए भांति दोस छै. इस भांतरा वनभंगरा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो पात-पाय माह हरिण, सूपर, सांबर, रोज, खरगोस, गेंडा खग, भांति भातिरा जानवर वनभंगरा माह परै छ. सिकारी हाँक वालि नै रही है। না বাল বিন লাল লিলাবলি ব্রিা ভাবি ভুল সাল্লা मोढ़ा फाड़ फाड़ने निकळिमा छ. सूपरें राते खून किमो छ. सरे गुलवाड़ि विधासिया छ. त्यां सूरांरै मोरै पैराकी. प्रारबी, उजबकी, तुरकी, ताजी लगाड़ीजै छ. सतपुड़ा पहाड़ा मांहै दराजा बदूकांरा खललाट पड़मादा पडि नै रहिया छै. ग्रीध पंखांरा सरारी सोक वाजि नै रहिमा छै. सेलारा धमोड़ा पड़े . सेलारा फळ सूरार मोरै भांजि भांजि रहिमा कै. सूरार मोरे भूखा बाज ज्यों प्रसवार नै पोड़ो ग्राफलि रहिमा छै. सूपरारो मिकार मायोज है. एकल नाहीज छ. रहा मगाजरहर पाति पाति नै बलता की. इति फोजी मसलत भारष जुध सिकार तीसरी प्रस्ताव पूरी पी। दोहा कौनधी मिसलत दुध, मारक हो भाव । सानलबास मायरी, एपीजो प्रस्ताव ।। तठा उपरांति करि नै गजान सिलामति रातो बाके ते पारू पिमा तासीमा त्रिखावंत हमा.बेपारहरैरी हांस तरस मागगन हजार प्रसवारी तलवारे माथेनू वाग वाळी छै. सो किण भांति तलाव जाणं दूसरीमानसरोबर रातासी एके रडिरं माथै पांररी नीर पवनरी मारियो कराई फीण पाछटतो ठेपा खाइ नै रहिमा छै. कही मांसमा पेठां पगारा नख झांखे, दूध र भोळे बिलाव बास पालिरै फेर केलिरै गिरदवाइ माहे सारसारा टोला झींगोर करि नै रहिमा छै. माहे सूमा कोडल मोर बपैया बोलि नै रहिमा छै. प्राडा हाक में हिना छ. बतका बकोर करिनै रहिमा छै. डेडरा उहक नै रहिमा है. हस काला करि नै रहिना छ. कमल पर फूल ने रहिया छं. पोइरणी थरकि नै रहिमा छै. भवर गंजारव करि नै रहिमा छ. पालिरै फेर गरदवाइ उपरि बड़ ने पीपल साख मेल हइ न रहिया छ. ऊपरि वड़ा ने पीपरांरी घटा बधिजिने रही छै. मैं तलाव - ते छायारी होस तरस माणणन हजार प्रसवारांसू राज ने प्राइ पागड़ा छाडिया छै. होलि में जिहाजां पाथरीज छ.. पंच रंग बादळ होइ तिण भांति राग रंगी बिछाइत चांदरणी कीजै छै. भांति-भांतिरा हुलीचा गिलमा ढाळीजै छ. पूलवाड़ीरो वरणाव वरिण नै रहिम्रो छ। तटा उपरांति करि नै राजांन सिलामति मुखमली जरबापती, मखतूल, रेसमरी कलावतू जरकस लपेटिमा लुबा समेत गादी तकिमा विराजमान कीजे छ । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरी बात-परपाव ४५ तठा उपरांति करि नै राणान सिलामति परधियारी पकारी उतरिमो छ सो किगा भातिरी बरछी जिके पांच पांच, सात सात ताकड़िपारा मणगांजा सेल उवा वरिमां मारा हाथारा, सेलारै टेकिया सुवरिमा मैं सेलारासू उतारिन उपा होज बग न पोपलारीप्रां साखासू नागळिमा छ । तका उपरांति करि नै राजांन सिलामति कबाणारी चकारी उतरै छ, सो किण भांतिगे कबांणा थेट विलाती, सींगरी सिगणी, तू जो हलका, अठार टांक चिलेरी खामणहार, मुलाताण उतपति, कुरबारण रहति, बार बारै वरस दरिमावा माहे जेहाजा हेठो चलो प्रावी, चिलेरी तारणी, हुंकार करती, बड़े पठाणरी बेटी ज्यू तहीर करतो, पण भातिरी कपाणारी पकारी उतरै छै सु उपाहीजपा पीपलारीमा साखाम्नागली छ। ता उपरोति करि में राणान सिलामति प्रतरा माई डाला प्रतीबंध यूट. सुकिरण मोतिरी डाली सुध गैंग पणारी मारी गधे, सुहरतोली रग लागे. तीर, तरवार, कटारी, परछीरी वादी नहीं, सूमारी वातरी लागे तो पायक अतर. गोळी लागतो उम्र में पाछी पर, सोमहीरी पूला मकसी कला मुखमलरी गादी पातियां, सांबरा हपयामा, बुलगोरी गो सहित अपांस राजानारा हापारी उपाहीज बरा में पीपलारीमा सासासू' नागळिया। तठा उपराति करि नै राजान सिलामति पतरा माह तरकसारा कुहटाऊ बोडिया छै. सो किरण भांतिरा तरकस कंटील, जिके मुखमली ठाठी, प्रतिकाली सकलात, मैंण कपड़री खोळीसूकाढ़ी, कलावूत नीसरी साठी, गिरमरी नीपनी, कांबडे गजबलरा भल, कावर ग्रीध पर पंखारै दांतर बढ़ार घणे पंचरग पाट माह झिझकियां थकां घणं मुखमल नै घणे दांतमा गरकाब कोमा पकां, उवां राजावारी कडिमारी उवांहीज बड़ा पीपलारी साखासूनांगळीज छै । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति प्रतरा माहै तरवारियांरा करमसार छुटै छ. तरवारियांरा साज खुलै छ. सु किण भांतरी तरवार थेट सिरोहीरी, सांतरी, दारांदार, मित्रांन धातियां बिग्रागुले बाढ़े झरिमां-मित्रांनसू काढि नै घास में नाखी हो तो पांरपोरै भोळे जिनावर ठूक मारै. छछोही बाल नागणी चिलकै जाणें काळोरी जीभ हाल, तिण भांतिरो प्रांबेर, जेसलमेर, सांगानेर, महेवारी त्रीजणी हवै तिण भांतिरी. घणे मुखमल नै घणी सोने रूप मांहै गरकाब करी थकी, इण भांतरी तरवार, घणे ककडे गोनी सांबरमां लपेटी थकी तहनाळ, मुहनाळ, कड़ी, कुरसी समेत नकसी मंठि उमां राजादा हाथरी उमां हीज वड़ा ने पीपलारी साखांसू नागळोजे छ। तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति कटारी किरण मांतिरी कुनारबंधी,कुनारगामी, Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव जमदाढ़ सोनहरी नकसी जड़ाव सांतरी, घणे मुखमल नै घणे कतीफे मांहै गरकाब कीधी थकी, उमां राजानांरी कड़ियांरी इण भांतिरो कटारी बीड़ी वटवं समेत ए जमा पगांसू लपेट ने उनांहीज ढाळारी प्रांचांमां राखीजे छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति अतरा मांहै वागांरा चिहुरबंध हटै छै. सो किरण भांतिरा वागां श्री साफ, भैरव चौतार हजारी, गंगाजळ खासा वामता इण भांति वागांरा चिहरबंध छटै छै. कडियां लोळ लीजै छ, वीजगणे वाउ ढोळीज छै, घोड़ा वाउठा कीजै छ. अराकी टहलावीज, चौरंगा सोगठारी खाट खड़ पडि नै रहो छ. वे पहरी धमहमि नै रहिरो छै. गजेसरां, राइजादां, पालोजां जुवानां, मलूका, कमरांग साथ कल्हारीरी होफो फिर छ. हकम हौ छै कल्हारी. हो ठाकुरे कल्हारी. मोणि भांतिरी कल्हारी तेलगगरो गाडीरो कमल, इकत्रीसमी ताररी तजारी, कोपरारै दलिगरीरै वढ़ि हाथां छूटो, पाणीमां पड़े तो गळि नै जावै घणं भीमसैनी कपूर वासीमा पाणीसू केहरी कल्हारी खासां दोवड़ा छांणोज छै. ऊजळा रूपौटा उलटाजे छै. ऊजळा खवास पासवान हाजिर लोप्रां खड़ा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति इतरा माहेरा इतनांरा साथनां अमल कराड़ी छ. काळी कंदलीवाढीजै छै. भूरो मेवाती पारोड़ा अमल आगराई मिसरी अहि फीण पनै वासग नागरै मुहडेरा झाग हनं तिण भांतिरौ नेस सीघोडी भंज कियां. पामिरी वढ़ कीनां थका, पांच पांच, दस दस सेर देवगिरिमां थाळियांमां घातियां थका फिरीजै छै. जो किणी ठाकुररी हांस तरस हुन छै तिणन् अमल पारागाडीजे छ । तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति धूधळीतजारौ, बांधलौतजारो, पांव पांच सेर, दस दस सेर कोरा कडामा घातीनां थकां सांबरा प्रांचारा जुवान मचकावै छं. पवनरी मारी सिकडीजे नहीं. प्रा लारै प्रगरि प्रावं. प्रांगूठार अगरि प्रायां निलाडरी तिलक ले. इण भांतिगै धधळोतजारी, बांधळीतजारौ सो किरणन्जी पाका पाका वरीप्रांमां जोधारां करड़दता, अजराइला. खोबरां डाणां दूलाडा कोनां लोह घरडां लोहानां लोळी लेतां काटर ऊगर है करतां पचासे बोलीए. आठे पाठे वढेररिण खेतर विर्ष पडि पडि पडिमा. जाहरां पांच पांच हजार बाम पाटा बेंधे खाधा तांह रजपूतांनू अमल कराडीजै छै. प्रमलारी नीमां दूणी दीजं छै. अमलारी तंडल रोपीज छै. अमलारा जमाव कोजै छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति केमरिये वागे नंदा चंदा जुमांन माहिल वाडियारौ साथ अपडियां घटारा चुवता पटारा खासीयां बांहारा बोलता कहा गजांन राजावतरं वेपार र वास नकरा मगाडी छ. पोटी जंठे चाडीजै छ. सो किरण भांतिरा ऊंठ, किरण भांतिरा हाण, किरण भांतिरा डांण, किरण भांतिरा पलारण नै किरण Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामान परत पात-बणाव भांति रा बाण. जिके पंचाळी वहीरा, वालमी नहीरा, वाटली तळीरा, घाटमी नळीरा, जाडा गोडारा, छोटा पींडारा, घटवाटरा, ससा सेरिमां बगलांरा, चाकमै ईडररा, झांबरै पूछरा, वलिमे रूपरा, नवहथी झोकरा, बाथिमें कंधरा, छत्रधारी माथेरा कोरिमै कानरा, साइमै वानरा, तजिमा होठांरा, कसतूरियां पटारा, भमण मथा सांली सिंह ज्यों सारसे करता सीघोड़ा सा, कूटा काढिमां, भूखै मयंद ज्यों हूंकार करता. मद वहता, हाथी ज्यों जोहां खाता, भाद्रवैरी गाज ज्यों मावाज करतां, साठीकरै भमरण ज्यू चसळका करता, भाग गाडै ज्यों बठठाट करता, पागले झाग नाखतां खौटहड़ी पैरा गोरा झूठ कूप्रेरा कळसिमां कपोळांरा, कमाल धड़े चड़ीमा, कड़े बाथमां थेट पाडेवळे सारीखां गिरवरां पहाड़ारा, झंगरां बनसपती सोमरा, पाखड़ा प्रतकाळो सकळात में उकू लपेटियां थकां; पीतळरा पागड़ा, कळीझार झोळ घातियां थकां, घरणी पीतळ नै घणी दांत मांहे गरकाब हुमा थका, रेसमी पटाटा, सांबरा उकटां, तगे अंग भीडिमां थकां. इण भांतिरा सौ ऊठा ऊपर सौ पलाणां मंडिमा छै. घड़िया जोजनरा जावणहार, घरतोरा करवत जाणे जळरा जेहाज डूंघाजमाज छेडिया छ. ऊठी चड़ि वाग उठाई छ. मोठी जाए एवड़ि पहुंता छै. बाकरा पकड़ी छै. सो किरण भांति रा बाकरा जिके कड़कती. सांधरा, बड़कती नळीरा, भाहरे सांदरा, मांदळिए पेटरा, माडि बोर काचररा, बरडणहार, घणें कभट नै वावळीरी टीसीमारा . बाड़णहार, सिखिरिरा मालणहार, फिरणीमरा बैसणहार, बालखसी बोकड़ा, बिसे बोकड़ा, खोरडे खील हरीरा चारीप्रोडा, सो ऊठा बिसे बोकड़ा मसकारो भांतिसों लिड़ाइ ने घातिमा छ. मोठीए चड़ि ने वाग उपाड़िया छ. प्रोठिए प्रांणि राजांनसू मुजरा गुदराया छै. खाजरू पाए हाजर हुमा छ. रावताला कहियो छै. ठाकरे खाजरूपां ने ठरका करो. तिके रावताल। घरणी केसर ने घरण कसनागर अन्तर सांधे मांहे गरकांब हुमा थका. उमां सीरोहीनां खाजरू वोझोड़ीजै छ. बाकरा फूलधारा मुहे निखाळीजै छै. बाकरा उधेड़ीजै छै. तांह खाजरूपां उबेडिमांरो कासूएक बखांण बजाजरी हाट बास्तेरा थांनरूरी, बरकी, पीजी औरूरा गोटा, गुजराती कागळरा पाठ, इण भांतिरा खाजरू नीसरिया छै. भीतर वाडियां हुसनाकांनू सूळांरो हुकम हौ छ. तिके सूळा कीजै छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति बाकरां में सूपरांरै सांटरा सूळा जोळा जोळा हमे छ. सो किरण भांतिरा सळा पेटिमारा खालिमार, अतर वेढिप्रांरा ऊपर चेढ़रा, कालिजैरा, पेटालिजैरा, इण भांतिरा सूपरां बाकरांरा सूळा रजबेरा मारिया घणं सुरहै घोरा झारिमा, पाडीमां, पोटळियां ऊपरि झरराट करि नै रहिमा है. सातमैं पाताळ वासंग नागरै माथ टपूकड़ा खाइ नै रहिया छ. त्यारी सौरभरी वास्त तेत्रीस कोड़ि देवता सरगसू हेलूस नं उतर देवांसुरांरा विवाण हिलोरव खाइ नै रहिमा छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति राजांन राजावतरै बेपारह वास्तै भागि Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ रामान राउतरो बात-बणाव मंगाहीजे छ. तिका किरण भातिरी भाग सुष काकापुरणि वासिंग नाग मारी नीपनी, सिंघरी गुफा माहे नोपनो, पोहरर बिड़ेरा, भाखररे खुरेरी, सूमरी पांख, परहरी मांख, रोज मारि, म्रिप मारि, भमर मारि, लटिमाळी, बापरी खाधी बेटना पाव, काकरी खाधी भत्रीजनां पावे, मसवाररी खाधी प्यादौ छक, इण भातिरी भांग मंगाड़ोज छ. मकराण पखापरं कूडे घातीमा, माल कांगणीरा गोटासू वाटीज छ. सांबरा प्राचारां जुवान घोटै छ । तठा उपरांति करि नै राजांद सिलामति मेलवणी जोळी जोळी मंगाड़ीजै छै. सो किण भांतिरी मेलवणी लंवग, गेग, जायफळ जावंत्री, नागकेसर, तज, तमाल पत्र, सींगी, मुहरा, धतुरो, भूटटी, एकखान, बहमदाबावी पान, हाया छटो रायागरण में परेती सात सात का होईना पण भाति बमोसी काडीजे . भातिरी मेलवणी जोळी जोकी मंगायी है. कसूभरी वास्तै मिसरी कोरा माटा मंगळोज छ, कस्पी पासा पटोळा बाणोज 2. कसूनी ऊजळा रूपोटा उळजे छ. कसू ऊचोप्रा बिलगिणिमा पारीण ब. कसूबो रातो मोखाडा पोछाड़ोज . काम में इसनाक पवन हाक के कसूरी पाणिगो मरित्रो छ। तठा उपति करि नै राजांन सिलामति गोळी, पूरण, पासण, कबळ, कुटी, नागासिणी, विरंच, मुफर, तांबेसर, कामेसर, मदन कामेसर, जिता मारिमा पोखध फेरीज कै. बांह कुरा होस तरस हमें छै ताहन कपूर वासिमी पाणी ऊजळा रूपोटी झालियां उजळा खवास पासवान हाजर लियां ऊभा छ. इण भातरा पोखद उप राजांनरा साथ प्रारोगाडीजे छ. कितराइक तो राजांन कपूरतररा लोचन कियां गिड़भाग मेघ ज्यों विराजमान हुइ नै रहिमा छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति प्राटा मैदारी फांटां प्राणीज छ. सिवपुरीरा देवजीर चोखा, वांवळ, कपूर सारीखा ऊजळा वीणीज छ. नागरचालरा नोपनां गोहूँ, बजर कठकाळिमां मूछारा. त्रांबारी सिलाक हुमै तिण भांतिरा, बारां बारां परसारा डाउडारा कान वीधीजै. इण भांतिरा पांच पांच मण, दस दस मरण गेहूं, चावळ प्राडि जाजमां घातियां रोळोजे छ. कांकरा काढोजे छ. धूए अंबर धूधळियो छ. शरीराउतें जीही जरै छै. जांगडिप्रारी जोड़ी प्राडियार बांज झालियां थका हकळिन रही छै. वडा दांतरा सिरदारांरा खंभाइची मांहे दहा गाईजे छ. जस जांगड़ा गवाडीजै छै. ढाढिपारो जोडी गजराज पटाझर ज्यों झाकड़ी खाइ नै रही छै, इमिरितीरा झोला दे में रही छ जाणे सातम सररी सुहागण हमामरै झरोखे झापां खाइ नै रही नै च्यार टांक चावळ खामं तो सरोर महार-विकार थाए, गीत, संगीत, तालबंध, नदंग, वीणा, सारंगो, तवरारा साज लागि नै रहिमा छै. इण भांतिरी मालाई रंभा पात्र निरस कारणी Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-पाय सोळे सिणगार कियां थकां कानरा झांझर वाणि नै रहिमा छै. श्रीमंडल राग कलावंत घमंड राग जमावि नै रहिमा छै.. छै राग ने छत्रीस रागणी पालापीज रहिमा छै. तां राजानां मुंहा प्रागि पंडित, मिश्रा, जोतसी, चारण, भाट बैठा छै. छभा मंडि नै रहिमा छ. कवेसुर कवित्त, गीत, छंद, दोहा, गाथा, वात कथी नै रहिमा छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति राजांन राजावत घणां अमलां किया थकां प्रागै वखाणियां तिण भांतिरो दारू पियां छकोने उछकिनै साथसू लांगीरी पोत किमां झोलणना पेठा छ. दरियाव मांहे घड़ नावां बांधी छै उरिण होदरी हवा उवो घड़नावां ऊपर सूरती तंबाकू मारोगीज छ. गुमानरा कुरळा कीजै छ. घरणीं वासावळीरो वाह लागि नै रहिनो छ. भीर वांट वाट न पाणी उछाळीजै छ. होकार होंकारी हुइ नै रहिौ छ. पाणी माहे वासावळीरो डोरो फूटि नै रहिनो छ। . तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति झलरंमि खेलि नै बार पधारिमा छै. कपड़ा पहरी छै. वरणाव को छ हिलमी जेहाज पाथरीजै छै. बिछाइत गादी तकिया फेर विराजमान कीजै छ. बेवड़ी, त्रेवड़ी, चौवड़ी पात्यां जुडी छै. सूमार, पडिहार प्राडा डोत्रा, लांबां कुडछां, झालियां यका कछि नै रहीमा छै. चरू रहए घाति घाति पीसीजे छ. पाडायां डांगरां घातिमां चरू रठठाविजे छ तांह चरवारा निहाव्या पहाड़े पडि सादाने रहिमा छै. देवगरी थाळ सोने रूपैरा, सिरदारांरा मुहडा मागे मेलोज छ. घरणा मालवा पुरी काठा घहूंदा बटीज छ. घणा केसयां मांस रजवेरा भीनां थका उधमीजै छै. घणां जोजरा रोटा, ऊजळा देवजीर जादूरा फूल हवै तिण भांतिरा चावळ परूसीजे छ. मसकारे मुहडे घो नामीजै छै. अतरा मांहे सोहित ने मांसरा चरू ऊतरिया छ. सोळा सोहिता धांधुसो पुलाब चकताळो जळचर मांस, थळचर मांस, उडणा पंखिमारा मांस, भांति भांतिरा जुदा जुदा समार समार ने वणाया छ. प्याला मांहि परूसीजै छै. हाजर कीजै छ । .. तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति दारूरी तू गा लागीसूअोछाछिमा घणे ठळे पाणीसू छांटि छांटि नै वडारी साखांसू नागळी थकी जूलं छ. पवनरो हवास टिप्पा खाइन रही छै. कोरी गागर मांहे घाति घाति ठारीजै छै. बतकां भरीज छ. ऊजळा खवास पासवान करा बीड़ा झालियां हाजर खड़ा ऊभा छ. प्रतरा माहे दारू प्राय हाजर हुप्रो छ। तठा उपरांति करि ने राजांन सिसामति दारूरौ पाणींगो मंडियो है सो किरा भांतिरौ दारू. उलटेरी पलट. पलटैरो भैराक, अराकरो वैराक, वैराकरौ संदली, संदलोरी, कंदली कंदलीरौ कहर, कहररौ जहर, जहररो कटाव, कटावरो नेस, नेसरो जेस, जेसरो मोद, मोदरो कमोद, कमोदरो हूल. घाहि लाग तो नांहि जाग, मुह मैं मेल्हियां छातो लीह पड़े चिगती भाठीरो तेज पूज भासप अरोगीज छै. घणां जड़ाव नै चिरणींरा प्याला फिर मैं रहिमा छै. इण भांतिरो दारू पाणिगो मंडियो छै. उणि भांतिरो मांस उरिण भांतिरो Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० रामान राउतरो पात-पणाव सुहितो, उणि भांतिरा कररता सूळांरो निकुल कीजे छ. साथ प्रारोग छै. गोठिवर रस माई छ. अरोगि ने चळू की छं ऊपरा कपूर, पान, बीड़ा, सोपारी, केसरि, ताम, लौंग, डोडा, काथा, चूना, सजुगम, मुखवास, मुहछण दीजै छ. सु कितरो एक साथ तो गिड़ भागा मेघरो नांई झांख मारियां कबूतर सा लोचनां धूमि नै रहिना छ, सु कितरा एक तौ राजान उछक छाक छकतां बकता थड़ता घूमता पड़ता घोड़ा पाया छै. घोड़ा पाइ हाजर हुमा छ । तठा उपरांति करिने राजांन सिलामति प्रतरा मांहे बधाईदार द्रोडिया छ. पागल महलांरां वरणाव हुई नं रहिमा छ. सु कहै छै. ममणी पाखांणरा महल सात खरणां प्रामास चुणिमा थका, माळिमा, गोख, झरोखा, जाळी, बमळा, कपबड़ी, प्रसमानस लागि रही छै. प्रो जाळिमां चिगां ढलि नै रहो छ. कोडी चूनां कलारो छोह बंध प्रारीसौ झळकं तिरण भांतिरी लागे छ, प्रारीसंरा महल वरिण ने रहिमा छ. धमलहरै कोरणो वरणी छ. कछपाचमी नै होंगल तबाकां ऊपर सोनेरी कळस ईगं झळकि ने रहिया छ. सांझ समै रंग रंगरा बावळ दीस छै. तिण भांतिराः महल प्रायोफेरे लागि नै रहिमा छ. केसरी कुम कुमें महल टावी छ. गुलाबरा छिड़काव हवै छै. खस खान गुलाब छटावीज छ. अगर उखेवी छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति जिके रायजादी राज कुमार छ. त्यारी खवास्यां देहीरी पारासि करै छै. घणां अगर. अरगजा, सूधारो पीठी ऊगट मंजणां कीजै छै. जळ गुलाबसूचिहुर टपकिग्रा छै. किरण भांतिरा. जांण मखतूलस मोतिप्रांरी लड तूटी अंगोछा धूपणां की छ. खावास्यां फूल दे दे नै चोटी गूथे छै. पूलमांसू पाटा घूटी घूटी पाड़े छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति नख सिख सधो सिणगार वखाणीजै छ. वासिगां सारीखी पहपवेण ऊपरि सीसपूल मोतिमारोवणाव वरिण नै रहिनो छ. पूनिमचंद सो मुख सोळे कला संपूरण विराजिनो छ.तिलक बीच बिंदी झिख नै रही छ.कारण ज्यां बांकी भ्राहां भमर विलसी विराज नै रहिमा छ. निघ नैणां त्रिखा भळकां ज्यो जळवालियां टोए प्रणिपालोका जळ ठांसियो छ सूपासी नासिका बीच बेसर वणी, उजले पाणी नरमदा मोती प्रोया सू लटकि नै रहिमा छ, बिचे लाल मणी झलक ने रही छै. वसंत कोकिला सारीखी मधुरी वाणी बोले. कनां जारण पड़दं वीण वाजै छै. दाडिम कूली सा दांतां मांही सोनारी मेखां चमक नै रही छै. लाल प्रवालीसा अधरा रंगि लागि ने रहिनो छ पाकै अंब भोर चीटला ज्यौं हिड़की ऊपर चिबुक बरिण न रही छ. प्रारीसा सारीखा कपोलां जारणं सोनारा तबक विराजिमा छ. केसरिमा भलिकावलि काळा नाग ज्यौं चिटुला ज्यौं चिलक नै रही छ. चंदर थपेड़ा 'ज्यौं काने कुडल झखि नै रही है. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजान राउतरो वात-वरणाव गावड़ जाणे खरादी खराद उतारो छै. कमल नाळपी बांहां लाल चूड़ो वरिणग्रो छै. विचै सोवन चूड़ी विराज रही छै. बाजुबंध झावी मखतूलसू लटक रहिया छै. लाल कमलसा हसत कमल जावक मेंहदीरे रंग लागा थकां. चोळा फळी सी प्रांगुळी. गोरे प्रांचे प्राचीनां वरिण रही छै. छाप मूदड़ी नवग्रही जड़ाव वरिणयो छ. उरस्थल कूभाथ सारीखौ गजमोतोरो हार विराजियो छ. जाणें मेरगिररा टूका बीच गंगारी धारा धसी छ. नारंगी अणहार, सोपारी सा कठोर कुच वाटला तीखा कांचू वीच विराजिना. छै. अंगियां ऊपरै फूलांरा चौसर पहरिप्रां लांधरिणयां सिंघरी कटी लंक धड़े चड़ रहिौ छै. पान सारीखौ पेट पातलो अम्रित सी नाभी कुंडली माहि पाणी पीतां ढळकतो दीसै छ. जारण काचरी सीसी माहै गुलाब ढळकतौ दीसै छै. पेटरी अवली जाणे कामरा महलरी पाहड़ी वरणी छै. कर ले मापीजे तिरण भांतिरै भमर लक ऊपरि कटि मेखळा वणि नै रही छ. सुराही गळारै घाटि सभासलं पोंडी झीण गिरीप्रै ऊपरि वाजणी पायलरा घूधरा रमझोळ झाकिया जाणे कळहंसरा बच्चा बकोर करि रहिया छ. पगरी राती पीडी खालिमी कूतरारी जीभ सारिखी, लाल कमल चरण जावक महिदी रंगसूविराज रहिमा छै. पग अंगुळी राइवेलिरी कळी हीरा सा नख पारोसा ज्यों झांखि रहिमा छ. ऊपरै अरगोटपोल पावटा विछप्रारौ वरणाव वरिण नै रहिनो छ। तठा तपरांत करि नै राजान सिलामत चदावदनरी देहरी नरमाई गुलाब-फूल, तिल-फूल सारीखी. हंस गमगीरी गज गति लाड गति छै. इस भांत नख-सिख सुधा सोळे सिणगार कियां बारै प्राभूषण विराजिया छै. जाणे इन्द्र-लोकरी अपछरा, रूपरी रंभा पासमानरी ऊतर पड़ो. चित्रामरी पूतळी, विधाता हायस समारी. कामरी केळि, विरहरी वीज, सुखरी सिळाव, सोनारी कांब हुदै तिण भांतिरी संकेळी, नख मांस मांहे ऊलाळी प्राकासि जा, चाबळरौ चौथो खा, साख्यात पदमणी. वाळि वाळि मैं गांठ दीजै. इण भांतिरो तू जी, हलका ज्यों लचकती. रतनाळा लोचनां, परिणाळा काजळ सारीजै छै. जोहर कांचू जडिज छै. भमर लंक, झीण लंक ऊपरा चालहरा घाघरा वासिजै छै दखरगो चीर प्रोढि छ पाटंबर नोलंबर जरकसीरा वणाव की छ. आडिमां फरिणयां मुखमली खासां विलाविना थकां जाळौरी सांठ, खुरासारणी भळके सांतिनं ऊंठ सौदागरर घोड़े चालवियं पठाण अरई प्राय चींघडि रूठ, गाम-धरणीरा सा लौचनां कियां, वाळि वाळि मोती पाठवियां थका, काळरा नेवर पहरिप्रां, केळिग्रभ चंदणरौ छेडी, रतनारी रासि, अंधारैरी पादीत, अरसरो अमरी, सरगरी झांप, विरहरौ समूह रूपरौ निधान, थाका हंसरी टोळी, निवायैरी होळी, घरग हाट नै चीरमां लपेटी थकी विराजमान होइ नै रहो छै. जाण पासोजरी पूनमरौ चद्रमा सोळे कळा संपूरण उदित हुनौ छै. इण भांत ऊजळे पतिव्रतरी पाळणहार, ऊजळी सखियांरो टोळीसू राजहंस राइजादी राजकुमारी झरोख चडो झांखे छ. बधाईदार दौड़िया छ. वधाईदारां प्राइ खबर दीधी छ । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजाम राउसरो वात-वरणाव तठा उपरांत करि नै राजान सिलामत घोड़ा दौड़ोज छ. राजान राजावत मारू घर पधारिमा छै. चौकि कलळ फूटि नै रही छ मायारा ऊबराव बहोड़ावीजे छै. कवि राजानां विदा कीजै छै. मायारा खवास पासेवान हाजर तेडीज छै. गोखें दीवा कीजे छै. महले दीवियां अगरदानिप्रांरी चहकि लागि नै रही छै. हाथी पगा होलिमा पाथरोजै छ । तठा उपरांत करि नै राजान सिलामत राजान राजावत महले पधारिमा छै. महले आइ विराजमान हुमा छै. मागै म्रिगानणी, अम्रित वैरणी कामणी सिणगार सझिया छै. इरिगयाळा काजळ ठांसिया छैः वरणाव किया छै. राजानरा मन राखै छै । गुण कामणि छंदो वयण, नमि नमि संधै नेह । पीरो कहियो धण करै, धणरौ कामणि प्रेह ।। अमलांस रंग-तरंग माणीजै छै. तेजपुंज प्रास्यपरा प्याला प्रारोगीजै छ । तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति हमै राजान कामरा भूखिया, लांघरिणया सीह ज्यों मापाळि नै रहिया छ. जाणे मदन-मयंद पछाड़ीजै छै. काछी जिमपुरी करिने रहिया छ. विरही वाग ऊपडी छ. चौरासी पासणरा भेद कीजै छ. प्रस्टांग मिलण चुंबण १, अधरपान २, नखदान ३, कुच-मर्दन ४, पुडपुड़ी ५, चुहटी ६, चसका ७, मसका, हां जी, ना जी इण भांति कामरी कुहक पडि नै रहो छ । तठा उपरांत करि राजान सिलामत रंग-महल में प्रेम-झड़ लागि नै रही छ. सुरतांत-समय हुवी छः महलारी हवा मारणीजे. कांचनारी कस छटी. मोज़ियारी माळ तूटी. जाणे सुखरी लंका लूटी. इण भात सुख-सेजे पौढिया. राति विहाणो. प्रभात हुवी छ. रातोका काम-उजागर नेण धुळि नै रहिया छै. कपोले काम सुहागरी छाप लागी छै. लि नै रही छै. इण भांत सुख-विलास करतां छरित बार मास माणीजै छै । दूहा खट रित बारे मास फिरि, ज्यौं ज्यौं यावत जाइ । त्यौं त्यौं वात-वरणावरा, दान तरंग सुहाइ ।। ...............",राज लोक सिणगार । च्यारे प्रस्तावे चतुर, वरिणयौ भलो विचार ।। मर-नर-नाग निघट्टियां, काकै केहरियां । जळ पूरियां पाखाण ज्यौं, गल्लां उवरियां ।। बेटै बाप विसारिया, भाई वीसारै । सूरां पूरां गल्हड़ी, मागिण चीतारै ।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- _