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________________ राजान राउतरो वात-धरणाव, तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति चौमासारी छावणी हुई छै. मागम रित प्रावी छ. आसाढ़ धूधलामो छै. उतराधरी घटा काली कांठलि ऊपड़ी छै. आड़ गरी गुडलि मांहे ऊंडो गाजीग्रौ छै. बगला पावस बैठा छै. पंखीनां माला स मारिया छ. पावस पडि नै रहीमा छै. परनाळ खाळ पहाड़ खड़कीया छै. चात्रग मोर बोलि नै रहीआ छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति आगे कवेसर गंगेव नींबाउतरौ बेपारो बखांणीयौ छ. तिगरी उकति प्रांणो छै. तिण मांहे कवेसुर कहै छै. वात वरणावरौ पण भेळ कियौ छै. पण उण कवेसर रो उकति बराबर नहीं. हमें बरखा गिति माहे श्रावण ने भाद्रवरी सांध बरखा रित मंडी. दह बीजां झड़ लायो डाळ डाळ अंबर चर्माको छ. सेहरां पाखर पड़ी भाखरांरा माल हरोग्रा. पांगा एकनाळ भरिया. चोटोपाळी डहकि नै रहीया छैः परभातरै पहररी गाजावाज हुइ नै रहा छै. राजा न सिकाररी उमंग मनमां ग्रांणी छै. हुसनाका तरकसांसू मस कपड़री खोळी उतारि लीधो छै. कबाणां चाक कीज छै. हजार अराकीनां प्रारबीनां उजबकीनां तुरकीयां ताजोग्रां पलारण मंडीजै छै. तिके किरण भांतरा अराको, आरबी, तुरको, उजबकी, ताजी जिके लंकी पाररा उतारिया प्रांजणि मां आंखीग्रांरा मूडोकाट अंराको वाउ मूठ पकड़ता डाल भागा मांकड़ ज्यों डांण मांडता आडी प्रांकुलाटां उझळतां असील विलाती जाहरा सरीर प्रारीज्यां ऊजळा झांख मुखमली पसमरा, कलोसो कोनरा, झूठमो ट्रेठरा, कड़ा कंधरा, लोह में बंधरा, तोछड़ी पूठरा, चोवडी, दूबरा, चांमरो पूछरा, निमसो नलीरा, वाटके नख्खरा, धावणो द्रोड़रा, मूडा निघ ज्यौं कूदता, नट ज्यों नाचता, कुळचता, अकुळणी नैरण ज्यौं ऊछाछळां. प्रापरी छामांसू डरपता. बाज पंखी ज्यों ॐडाण झांपतां, जाणै सूरजरा रथ असमानरै फेर लागि नै रहीया छै. प्रिसण ज्यों भूख बांको कीमा थकां कना अरणमिलीग्रां जारसू छिनाळ मुख बांको करि रही, भाररा चाक ज्यों कडे फिरि रहीया छै. ढाळ सरोखा चौड़ा, उर ज्यारा आठुअारा टलासू हाथी धको खाइ सकै नहीं. माणसरा कमल ज्यों नासा फूल रही छै. नासारा फरडका वाजि नै रहीया छै. बेपख सध जिके सालहोतरमा वखाणिया तिहड़ा इरण भांतिरा तेजा. घरारा खूदणहार खुरताळांरा अधांसू धरती धमकि नै रही छै. तांह अगकीया. आरबीग्रां, उजबको ना, तरकीयां, ताजोपा पूठ पलांण मंडोबा छै. सो किरण भांति ग पलारण जिके समंकरी नीपनी मोरबो पलाणी, दामण चमकती, पिड़ामारो लगामी पारसी पाली प्रांरी छालीमा पाखरां घातियां. पलांण लगांरण जीण साकति साझ-वाम-लूब-झूब करि नै श्रामणरी रोजणी ज्यों पांडवे सिणगार पाखर घाति चोकि प्रांणि हाजर कीया छै. राजांन राजावत मारू किसो एक जी जिसो एक खत्री धरमरी चौवीस याखड़ा वहै. कुण कुण पाखडी कहै छै. दातरें दातार, झूझारें झार, परभोमि पंचायगा से देसहाथी, काछ वाच निकलंक, परनार सहोदर, पावती जावतोरी मूठि पूठि जोग्रे नहीं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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