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________________ राजान राउतरो बात-वरणाव टपारी 'वसुत राखे नहीं. भलफलमा झांसि मुडीघ्रा मेर, पुलीयां पखत साररा, पाचरा लोहरी गांठ, विरदारी भारो, घाट खराड, थाका सतरौ विसराम करड़दंत, कामरी कोट नेठा धरधीर, वहतो काळ. ढहीओ काहर तोरणरा आखा अगनि फूल, सतीरो नाळे, काळी बेहड़ो, रुळाचारों जोड़, रांकारी मालवो, कुमारी घड़ारौ बींद, पांचसे asi भाइयां भांत्रीजालियां हजार असवारांरी ढाळ किग्रा, भूखा लोह लियां, काळे बरछारै चूरंग कियां, चड़ते सुररौ सिकार चाड़वी छे भेर घाउ वळिश्रौ छै, होकार होकारो होइ नै रहिम्रो छै. लाल बरछी थकी नै रहो छ. पगेज बराबर चालता घोड़ांरा हाम्रां उपरि अध लोहोरा भाग तजारेरी वाड़ीरी भांति विराज नैं रहित्रा छे. फौज बराबर चालतां प्राकास उरें खेहरा डंबर हुइ नै रहिना छै । तठा उपरांत करि ने राजांन सिलामति सिकार पाखती जिनावर चालिश्रा जाये छै । सेत सूत्रा, सब सूना, सारों, मैनां, कोइल, तोतुर, कागा- उमा, सेत काग, सेत कबूतर उडण गिरहवाज, लख जातिरा पंखी, भांति भांतिरी भीणी भाषा बोलता, पढता कठपिंजरे घातिना वहै छै । ४३ तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति बाज, कुही, सिकरा, सींचांगा, जुररा, तुमती, हुसनाकां सारवानांरा हाथां ऊपरांसू सगगाट करता छूटै छै वाड पखरा जोरसू नीला घास धरतीसू लपट नैं रहिया छै. ग्रासमानरै फेर जितरा जिनावर चिड़ी, कमेड़ी, भाट मांही या छै तितरा झाटांसू मारिया जाने छै । तठा ऊपरांत करि नै राजांन सिलामति बड़ा सिकारी सिंघळी, सादूळ, पटाळा, केहरी नवहथां, कठोरीप्रां रीछीना, तेलिया, तीदूला, लकोरिया, बघेरिया, चीतरा, भांति भांतिरा, जाति जातिरा, नाहर सांकळे जड़िया रहहुने गाडे बैठा, कसता, करणरणता. बू बाड़ करता वहै छै । तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति कावली कूतरा, लाहोरी कूतरा, विलाती कृतरा, लोलमी, लालमी जीभरा, वळिमें पूछरा, लापड़े कानरा, दाड़मी दंतरा, सिघरा हथरा, केहरी कंधरा, झांफर रोमरा, के विना रोमरा, इण भांतरा कृतरा, चीतरा, मुखमळो, रेसमी, मुखांरा वरणग्या, सांकळीप्रां जडिग्रा, बेहलां पालखिनां ऊपरे बैठा वहै छै । तठा उपरांत करि नै राजांन सिलामति सिकारी ठौड़ पहाड़ारी पाखती वनारा भंगार मिळ नै रहिश्रा है. जांएँ घरणां दिनांरा विछड़ी मीत मिळे तिए भांतिरा रूख मिळि ने रहिग्रा छं. रूखारा भ्ड महादेवरी जटा ज्यू जुड़ि ने रहिया है. हखांरा जूट जुवान मल्ल जुटै तिण भांतिरा जुडि नै रहिमा छै. रूखांरा जूट रामचदरी वानरी सेन्या ज्योंरीधारी जमात सा निजरे श्रावै छै तिरिए भांति दोस छै. इस भांतरा वनभंगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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