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________________ राजान राउतरो वात-बरणाव केतकी १, चंपकली २, रामकली ३, कामकली ४. त्यां दासियां आगै सोळे सोळे छोकरी खिजमतदार रहै छै. इण भांतिरा चार राजेलोकरा च्यार महलां प्रागै ४ नाजर खोजा रहै छै. मोहनराइ १, वसंतराइ २, सामरग ३, रामरग ४. महलारी दोढ़ीरी जाबतां राखै छ । तठा उपरति राजांन सिलामति रितिराज वसंत वैसाख मासरा मंगलाचार विमाहरा सुख बिलास करतां सरद रित आई छ. प्रासोज मास प्राइ संप्रापति हू छै. इतरी गढ़ कोठ चोहटा नगर वीमाहरा मगलाच्यार दान प्रथम प्रस्ताव रा वात वणाव विचार गढ़ कोट नगर वीमाह वात वरणावरो प्रथम परिछेद पूरी हुो छ। तठा उपरांति राजांन सिलामति षट रितरा बखांण कीजै छै. प्रथम सरद रिति वखाणीजै छै. प्रासोज लागै छै. पितर पख पूजोज 2. धरतोरी मैल कादमजल पखाळ निरमळी कियौ छै. सरोवरांरा जळ निरमळ हूमा छै. कमल पौइणी फूलि रहिया छै. सरगरा देवांने पितरांनू मात-लोक प्यारो लागै छै. कामधेनु गायां छै सु धरतीरो पाको औषधीरा रस चरै छै. दूधारा सवाद अमृत सरिखा लागै छै. सु कढ़ीरा बडिमारा गाटक लीजै छै. पंचामृतरा सवाद लीजै छै । तठा उपरांति करि नै नवरात होम ज्याग हुई नै रहिया छै. नव दुरगारा नौरतां दसराहो पूजीजै छै. दसराहेरा वणाव भांति भांतिरा सिंणगारोज छ, छत्र डड सिंघासण घोड़ा हाथी दरबाररा वरणाव गहमह हुइ नै रहिया छै. वाही आळ काढीजै छै. भैंसा ऊपरे तरवारियांरा वाड त्रुटि नैं रहिया छै. खाजरू नीझोड़ीजै छ. जिके दिगपाल रजपूत सामंत अजानबाह ठाकुर अड़ाबोड़ दरबारे प्राइ खड़ा रहिया छ. दरबार दुलीचा बिछाइज छ. विछात वरिण नैं रही छै. दरबार वरिणयौ छ. हाथी घोड़ा फेरीज छै. महोलां मुजरा कीजै छ। तठा उपरांति राजांन सिलामति सरद रितरै समैरी पूनिमरौ चद्रमा सौ कळा लियां संपूरण निरमळी रैगरौ उजळी चांदणीर किरण करि ने हसनू हंसरणी देख नहीं नै हंसरणी हंस देखै नहीं छै. मिलि सकता नही छै. तारां बार बार माहो माहै बोलि बोलि नै वेरह गमावता छै. पण चांदणीरो सपेतो करि ने महादेव नदी धमळ दृढता फिरै छ सो लाभता नहीं छै. इंद्र एरावति जोतां फिरै छै. इण भांतिरी सरद रितरी सपेती चांदणीरी सोभा विराज नै रही छै. रास मंडलरा महोछव मांडीज छ. राग रंगरा समाज ताइफा लागी नै रहिना छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति उवै चतुरंगी रायजादी क्रितीयांरौ झुबिखो मोतीयांरी लड़ी हवं तिणी भांतिरी ऊजळी गोरंगीनां ऊजळे गाति ऊजळं बावने चंदनरी खोळि कियां ऊजळा मोतियारा ग्रहणा पैहरियां ऊजळा वागांरा वरणाव कियां ऊजळा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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