SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजान राउतरो वात-वरणाव पूलारा चोसर घातियां हाथें ऊजळा पूलारा गेंद उछालती थकी ऊजळी सखीयार साथ सहेलियांरी टोळी सो रास-मडल रमणरै अोछाह चांदणोरी रातिरी चली जाइ छै. ऊजळा वणाव कियां ऊजळी चांदणी मिलि गई छ. सु पागली सखोप्रानू जावती लखै नहीं छ, लखाव नहीं पड़तौ छै. तिणि सोंधेरै डोरै लगी जाए छ. ऊजळी ठकुराणी ऊजळा ठाकुर प्रीतमसू जाइ जाइ मिलै छै. इण भांति सरद चांदणी रंग विलास मांणीजै छ । तठा उपरांति देव जागिमा छै. काती मासरा वरत महोछव कीजै छै. घरि घरि दीपमाळिकारा वरणाव हुइ नै रहिया छै. जूमा खेलि मंडि नै रहिया छै. दीवाली पूजीज छै. चितराम कीजै छै. भांति भांति रा अनद बट कीजै छै. गाइखा खरेर मांडीजै छै. कुल संक्रातिरा दिन बराबर हा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हेमंत रितरी वणाव कीजै छ. हेमत रित लागी पछिरो वाउ फिरियो. उतराधो वाउ वाजियो. हेमंतरा बरफ ऊपडिया टाढ़ौ टमकियो प्राळौ पड़ण लागो. जिके धरतीरा धणी पताळ वासी भुयंगने धणरा धणी दौलतवंत प्रो बिह्न एक वग हूंता सुधरतीरौ पुड़ भेद ने विमरै पैठा. उठे रहण लागा। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति उणि हेमंत रित माहै बालीमूध सुहव गोरी गयां तनांरी रस छातीरौ रस अधरांरी सवाद अमृत सरिखौ लागै छै. सु तो सरगांरा सुखासों परिण अधिक सुख जाणीजै छै । दोहा सरगे सुरा न बकरा, ना बाजंती बीरण । नां कांमरिण मेमत्तियां, भूरा डळा अफीण ॥१॥ तठा उपरांति करि नैं जिके बारै बारै वरसरी कामणी तेरा चउदां वरसां माहें पनरा सौल मांहें मुगधा मध्या प्रौढ़ा बीमा पचीस वरस मांही जिके कुदी जुवांनी कांमरी कंदली कांमरी कली रंगरी बूटी जीवनरी जड़ी इण भांतिरी कांमणी त्यांरा उरस्थल पाकी नांग्गीयां सारीखी अंगहार पाके वरन कोमल कठोर कुच असू भीडिया थका रहै. उवै कामणी धरणे क्रिसनागर कस्तूरी अंबर अंतर सांधेसूगरकाब हुई थकी उवा राजांरा मलकजादारा मन राखती थकी लोट पोट हुइ रही छै. घणे मंगाय पान तांबोलरा रस लो छै. उजळी सपेत बिछाइत ऊपर ऊजळे वरणाव कियां ऊजळी रुसनाई लाग रहो छै. इग भांतिसू हेमंत रित मांहै रातरा सुख विलास मांणीजै छै. हमें ससिर रितरा वरणाव कोजै छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy