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________________ राजान राउतरो वात-धरणाव तठा उपरांति राजांन सिलामति कर के हेमाचळरा पहाड़रा टूकां ऊपर ऊजळा बरफरा. टूक बघण लागा. वड़ाई दिन लबुता पाई, ईहां नदियांरा जळ जंमि ठंठ हूप्रा. नदी खीरण पड़ी घटी। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति जिण भांत लगायत दीठां देणांयत घटै तिम तिणि भांति दिन दिन निसि दी सूरजरौ तेज घटण लागौ नैं सूरजरी तेज घटियो राति मोटी होरण लागी. वड़ाई पाई. दिन लता पाई. तिणि ओछौ हुन लागौ जिमि कोई भली भूडै बराबर कीजै तरां घटती जावै. भूडौ भलै बराबर कीजें वधती जाए. तिरण भांति राति बराबर हुई है. सूरजजी ठंदिरा मारीया उतर पंथ छोड़ी ने दक्षिण सामां वहण लागा। तठा उपरांति राजांन सिलामति उण रित माहै सूरजजी परिण मकर संक्रात भेळा हुमा छै. ठंढिरा दबाया आपरै महले माया छै नै आकासनू पंरण राति छोड़े नहीं. सूखरा पयोधर वधै तिण भांति प्रांबा दिन दिन वधरण लागा. विरहणी कामंणोप्रांरा मुखां कमळ कामरी दाहस बळीया छै. तिण भांति दाहे बाळिग्रा छै. कमळ पोइयो वनसपती वरणराइ बळी नै रही छै. अगनी जल सारीखी ठंढी लागै छै. जळ आग दाह सरोखौ लागै छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति तिण ससिर रितरी माह मासरी रातिरौ प्राळी पड़े छै. उतराधरौ पवन ऊतांमळौ टीयां खाइ नैं रहीयौ छै. तिणि रित माहै छोह ढालियां ऊडा भोहरां मांहैं ऊंडा तहखाना मांहै खेर कोइलारो मकालां जगाडीजे छ. तपन नापणरा सुख लीजै छै. उणि भांतिरी गरम ठौड़ माहै ऊची सोड़ तलाई सेझवट तकिया घणु ऊजळा गरकाब गदरा परांनैरूस भरिया थका घाऊजळी गरकाब बिछात कीजै छै. पीलचोसां पढ़ारदानीमांरी रुसनाई लागि रही छै. तेज पुज पासप(व) आरोगीजै छ. प्यार कर नै सौंस दे दे नै प्याला दीजै छ. घणां लौंग पान बीड़ारा रस लीजै छै... तठां उपरांति करि नै राजांन सिलामति घणी कसतूरी क्रिसनागर साख जबाद चोमा चंबेली अन्तर अम्बर भांति भांतिरा तेळ सुगंध सांधेसू गरकाब हुमा थका ऊवे राजांन पालोजां प्रालीगारा नाह उल अलबेलियारा पदमणीप्रांरा रमण मारणे छै. तिण भांति गलबाखडीमां घातियां पका बाली जोबन मांणीजै छै. इण भांति सुख बोल करि रात पाछी नाखीजै छै. परभाति बुलगारांरा गदरा पाथरीजै छ. धरणी चवेली तेलरी मड़दन कीजै छै. हमांमैं गरम पाणीसू नाहीजै छै. अंगोछी कीजै छै. वागांरा बरणाव कीजै छै. सांधाखानेसू आणी सांधा हाजर कीजै छै. भांति भांतिरा साधा लगाड़ीजै छै. सभा मजलस' कीजै छै, इण भांति सिसिर वरणाव बखांणी छ सु कहीजै छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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