________________
२८
राजान राउतरो वात-वरणाव तठा उपरांति करि ने राजान सिलामति नीला माला वंस केलि खंभ सूना गलिया थका कांचनारा कळसांरी वेह करि मैं चौंरी पधराया छ. हथळेवो जोडि छेहड़ा बांधिया छ. स जारणे मन बांधिया छै. जिके वेद सरति ब्राह्मण छ स अरणो प्रगनि लगाडि होम करै छै. घणो गो-घत नै कपूररी अाहति दीजे छै. वेद ध्वनि कीजै छै. दूलह ने दूलहनी सेहरा बांधिया पूरव साहमा बेसाणीमा छै. सेहरा दीजे छै. चार फेरा फेरीजै छै. वीमाह कीजै छ।
तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति अनेक राग रंग वधाई वांटीजै छै. राय अंगण घोलहरे गेहणी घणां मंगलाचार गीत नाद खंभाइची गावै छै. छत्रीस वाजां पंच सबदा वाजे छ. तांहरा नाम तंती १ वीणा २ किंनरी ३ तंबूरौ ४ नीसांण ५ एतो पांच सबदा भाग छत्रीस वाजांरा नाम कहै छ. ढोल ६ दमामा ७ भेरि ८ भूगलि ६ नफेरि १० मदन भेरि ११ सुरणाई १२ झांझ १३ मंजोरा १४ मादल १५ श्रीमंडल १६ डफ १७ ऊड़क १७ रंग तंग १६ मुहचंग २० ताल २१ कसाल २२ तंबूर २३ मुरली २४ रिणतूर २५ संख २६ ढोलक २७ राय गिड़ गड़ी २८ रवाज २६ रावण हथो ३० पूगी ३१ अलगचौ ३२ झालरि ३३ पिनांक ३४ बरघू ३५ सारंगी ३६ करनाल ३६ इण भांतिसूछत्रीस वाजा वाजि रहिमा छै. अनेक मंगलाचार हुइ रहिया छ. अनेक दांन सनमान दीजै छै. अनेक रंग बधामणां कीजे छ. मोति चौक पूरीजै छ. वीमाह पूरो कियो छ।
तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति वीमाहरे समागम प्रथम दूलह दूलहणी मिलणरो कोड रंग-रळी बधांमण की छ. रंग महले धवलहरें पधरावी छ. छेहडेरी राति गांठि छुटी छ.सु जाणें मनरी गांठि छुटी छै. राजांन कुमार घणे हरखसू आणंदसू उछाहसू नवल रंग, नवल नेह, नवल नारि, नवल नाह प्रथम समागम सुख सेझरी वात उहां हीज जाणी पिण बोजी उण सुख उण वातां कुरण जाणे. दूलह ने दूलहणीरी जोड़ी देखि देखि नैं लोक वार - वार वखांण छै. कहै छै गंगाजी माहै ऊंडे जल पैसि तपस्या करि ईश्वर गवरिजा पूजिया छै. वळे हेमा गळियां कासी करवत लियां अंगरी असत्री अंगरो भरतार पाई छ. सु यां हेलमा तपायो छ।
तठा उपरांति करिने राजांन सिलामति पनरह दिन तांई जान राखि घणी मनहारि करि भांतिगारी भगति जूगति महिमानी करि सतरह भ्रख भोजनरा वणाव कीजै छै. दोइ भांतिरा अंन १ वायो २ अड़क, तीन भांतिरा मांस १ जळजीव. २ थळजीव, ३ प्राकास उड़ण जीव, पांच भांतिरा सालणा १ तरकारी. २ मूलकंद, ३ डाल कपल, ४ पान-पत्र ५ फूल-फळी, पंड छालि, भांति भांति गोरस १ दूध, २ दही, ३ मिठाई, ४ लूण, ५ तेल, ६ हींग,७ वेसवार, ८ चरकाई. इण भांतिरा सत्तर भ्रख-भोजन कहीजै अढारमो ठंढ़ो परिणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org