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राजाम राउसरो वात-वरणाव तठा उपरांत करि नै राजान सिलामत घोड़ा दौड़ोज छ. राजान राजावत मारू घर पधारिमा छै. चौकि कलळ फूटि नै रही छ मायारा ऊबराव बहोड़ावीजे छै. कवि राजानां विदा कीजै छै. मायारा खवास पासेवान हाजर तेडीज छै. गोखें दीवा कीजे छै. महले दीवियां अगरदानिप्रांरी चहकि लागि नै रही छै. हाथी पगा होलिमा पाथरोजै छ ।
तठा उपरांत करि नै राजान सिलामत राजान राजावत महले पधारिमा छै. महले आइ विराजमान हुमा छै. मागै म्रिगानणी, अम्रित वैरणी कामणी सिणगार सझिया छै. इरिगयाळा काजळ ठांसिया छैः वरणाव किया छै. राजानरा मन राखै छै ।
गुण कामणि छंदो वयण, नमि नमि संधै नेह ।
पीरो कहियो धण करै, धणरौ कामणि प्रेह ।। अमलांस रंग-तरंग माणीजै छै. तेजपुंज प्रास्यपरा प्याला प्रारोगीजै छ ।
तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति हमै राजान कामरा भूखिया, लांघरिणया सीह ज्यों मापाळि नै रहिया छ. जाणे मदन-मयंद पछाड़ीजै छै. काछी जिमपुरी करिने रहिया छ. विरही वाग ऊपडी छ. चौरासी पासणरा भेद कीजै छ. प्रस्टांग मिलण चुंबण १, अधरपान २, नखदान ३, कुच-मर्दन ४, पुडपुड़ी ५, चुहटी ६, चसका ७, मसका, हां जी, ना जी इण भांति कामरी कुहक पडि नै रहो छ ।
तठा उपरांत करि राजान सिलामत रंग-महल में प्रेम-झड़ लागि नै रही छ. सुरतांत-समय हुवी छः महलारी हवा मारणीजे. कांचनारी कस छटी. मोज़ियारी माळ तूटी. जाणे सुखरी लंका लूटी. इण भात सुख-सेजे पौढिया. राति विहाणो. प्रभात हुवी छ. रातोका काम-उजागर नेण धुळि नै रहिया छै. कपोले काम सुहागरी छाप लागी छै. लि नै रही छै. इण भांत सुख-विलास करतां छरित बार मास माणीजै छै ।
दूहा खट रित बारे मास फिरि, ज्यौं ज्यौं यावत जाइ । त्यौं त्यौं वात-वरणावरा, दान तरंग सुहाइ ।।
...............",राज लोक सिणगार । च्यारे प्रस्तावे चतुर, वरिणयौ भलो विचार ।। मर-नर-नाग निघट्टियां, काकै केहरियां । जळ पूरियां पाखाण ज्यौं, गल्लां उवरियां ।। बेटै बाप विसारिया, भाई वीसारै । सूरां पूरां गल्हड़ी, मागिण चीतारै ।।
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