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खीची गंगेव नोंगावतरो रो पहरी सू हजूर रहे छ. सुख कीजै छ, रस नर सुर नाग न घट्टियां, लीज छ. केसरिया दुपटा प्रोढ सुखसू
काळे केहरियाह । पौढजै छ. परभात हुवी छ. अमलारी
जळ पूरिय पखाण ज्यू बायहसूअांख खुली छै. दरबार पधारे छै. साथ सारो मुजरे पावै छै. मुजरो
. गल्हा ऊबरियांह । लीजै छै. अमल कीजै छै. गोठ मजलस भलियू भला, नरांह अमलारा बखाण हुयनै रह्या छ. फेर ,
लांबीयूं लांबा नरां। ही कोई राजवी माणगर हुवै सू इण मुळवा मुवां पछांह भांत ऐस माणज्यो.
वाता रहिसी वोच उत ।।
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